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महान संघर्ष 1SG

शैतान का, पाप में गिरना 1SG 1

श्रीमती एलेन जी व्हाईट कहती है कि प्रभु ने मुझे दर्शन में बताया कि शैतान स्वर्ग में सम्मानित दूत था। वह यीशु के बाद दूसरा आदरवान व्यक्ति था। उस के चेहरे से नम्रता और खुशी झलकती थी। वह दूसरे दूतों के जैसा पवित्र था। उसका कपाल उठा हुआ और चैड़ा था जो बुद्धिमान होने का संकेत था। उस का शरीर सुडौल था। वह सज्जनता और गौरव से परिपूर्ण था। जब मैं देखी - ईश्वर ने अपने पुत्र यीशु और पवित्रात्मा से कहा कि चलो हम मनुष्य को अपने स्वरूप बनाएँ। शैतान उस वक्त यीशु से डाह करने लगा। वह चाहता था कि मनुष्य की सृष्टि के समय उस की सलाह भी लेनी चाहिए थी। वह ईष्र्या, द्वेष और घृणा से भर गया। वह स्वर्ग में सब दूतों से बड़ा पर ईश्वर का पुत्र से छोटा माना जाता था। वह यीशु से बहुत बड़ा गौरव पाना चाहता था। इस समय तक स्वर्ग में कोई गड़बड़ी नहीं थी। ईश्वर के राज्य की शासन-व्यवस्था सब ठीक-ठाक थी। 1SG 1.1

ईश्वर के शासन और इच्छा के विरूद्ध चलना ही सब से बड़ा पाप का उदय हुआ। ऐसा लगा कि स्वर्ग की शासन-व्यवस्था ही डगमगा गयी। स्वर्ग दूतगण अपने प्रधान दूत (शैतान) के अधीन में एक कम्पनी बनाने लगे। सब दूत छिन-भिन्न हो गये। लुसीफर ईश्वर का राज्य के विरूद्ध दूसरे दूतों को भड़काने लगा। यीशु का अधीन में नहीं रह कर अपने को उस से अधिक ऊँचा दर्जा में रखना चाहता था। कुछ दूतगण तो शैतान से मिल गए पर अधिकांश ईश्वर की बुद्धि और महिमा को जान कर तथा यीशु को अपने राज्य का अधिकार ठहराने को सही समझ कर उस के पक्ष हो कर लड़ने लगे। इस प्रकार आपस में दूतगण लड़ पड़े। जो दूत शैतान के पक्ष में थे, उन्होंने ईश्वर की अगम और असीम बुद्धि को देखा, जिसने यीशु को ऊँचा उठा कर उसे असीम शक्ति और अधिकार दिये थे। इसलिये ईश्वर के पुत्र के अधिकार का विरोध करने लगे। सब दूतों को ईश्वर के सामने बुलाकर इस मामला को ईश्वर ने सुलझाना चाहा। यहाँ फैसला किया गया कि शैतान को स्वर्ग से बाहर निकाला जाये। शैतान के सहदूतों को भी जिन्होंने विद्रोह किया था, उन्हें भी। तब स्वर्ग में लड़ाई छिड़ गई। सब दूत लड़ने लगे। शैतान चाहता था कि यीशु पर विजय प्राप्त करे और उस के पक्ष में जो दूत थे उन पर भी। लेकिन अच्छे और सच्चे दूतों की विजयी हुई। शैतान और बुरे दूत स्वर्ग से ढ़केल कर गिरा दिए गए। 1SG 1.2

जब शैतान और उस के दूत स्वर्ग से नीचे गिरा दिये गए तो उनकी पवित्रता और महिमा सब सदा के लिए खत्म हो गई। लड़ाई के पहले पश्चाताप करने का काफी अवसर उन्हें दिया गया था। पर ढिठाई से पश्चाताप नहीं किए। उस के द्वारा पाप जगत में आया और विद्रोह का बीज भी बोया गया। अभी उन को अन्तिम दिन में पाप की सजा देने के लिए रखा गया है। 1SG 2.1

जब शैतान के होश आये तो उसने सोचा कि अब ईश्वर की मेहरबानी उस पर नहीं होगी, तब वह उस के विरूद्ध काम करने लगा। अपने साथी दूतों के साथ सलाह कर ईश्वर की शासन-व्यवस्था के विरूद्ध उत्पात मचाने लगा। जब आदम और हव्वा अदन-बारी में थे तो शैतान उन को बर्बाद करने का उपाय सोचने लगा। अपने बुरे दूतों के साथ सलाह करने लगा। जब तक ये दम्पत्ति ईश्वर की आज्ञा मानते रहेंगे तब तक उनका सुखी जीवन का अन्त न होगा। जब तक वे ईश्वर की आज्ञा मानेंगे तब तक शैतान उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता था और न अपने पक्ष में ला सकता था। इसलिये उन्होंने सोचा कि ईश्वर का अनाज्ञाकारी बनाने के लिये तथा ईश्वर का क्रोध उन पर भड़काने के लिये और अपने कब्जे में करने के लिये कुछ करना है। इस विचार से शैतान ने साँप का रूप धारण किया और उन से बात कर उनकी रूचि जगायी। उसने ईश्वर की कही हुई सच्चाई के प्रति भ्रम पैदा किया और कहा - ‘क्या सचमुच ईश्वर ने जो कहा है, सत्य है?’ ऐसा भ्रम पैदा कर उसने ईश्वर की असीम योजना को बिगाड़ डाला, जिसमें भलाई और बुराई के ज्ञान का वृक्ष का फल नहीं खाने के लिये बोला गया था। 1SG 2.2