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पाठ ३ - उद्धार की योजना GCH 6

जब यह मालूम हुआ कि जिस जगत की सृष्टि कर ईश्वर ने वहाँ मनुष्य को रखा था, वह पाप में गिर कर दुःख-कष्ट बीमारी और मृत्यु लाई है और इससे बचने का कोई उपाय नहीं है तो स्वर्ग में उदासी छा गई। आदम के वंश के सब लोग मरेंगे। मैंने यीशु के चेहरे में उदासी और सहानुभूति की झलक देखी। मैंने तुरन्त ही एक तेज ज्योति देखी जो पिता के पास आकर घेर ली। जब यीशु पिता से बात कर रहा था तो दूतों की चिन्ता और भी बढ़ गयी। तीन बार वह पिता की महिमा रूपी ज्योति से ढाँकी गयी पर आखिर में निकला। उसके चेहरे में घबड़ाहट और कष्ट की झलक नहीं थी। पर उदारता और नम्रता से ऐसा भरा हुआ दिखाई दिया जिसका शब्दों से वर्णन नहीं किया जा सकता है। अन्त में उसने स्वर्गदूतों का दल को बता दिया कि मनुष्य को बचाने का उपाय हूँढ़ा गया है। उसने कहा कि मैं पिता से अर्जी कर रहा था। मनुष्य को बचाने वास्ते। मैं अपने प्राण को बलिदान करना चाहता हूँ, जिसके द्वारा मनुष्य को उद्धार प्राप्त हो। उस के खून की कीमत से, ईश्वर की व्यवस्था को मानने से, वह ईश्वर का अनुग्रह उनके लिये प्राप्त करे। फिर से सुन्दर बागन में आकर जीवन का वृक्ष का फल खा सके। GCH 6.1

शुरू में तो स्वर्गदूतों के बीच हर्ष नहीं देखा गया था। क्योंकि उनका कप्तान (यीशु) ने उन के बीच उद्धार की योजना के विषय कुछ भी नहीं बताया था। पर कुछ न छिपा कर अपनी मृत्य का भी अन्त में वर्णन किया। उसने कहा कि वह पिता के वचनों और पापी मानव के बीच खड़ा होकर पुल बनेगा। वह उन के पापों और अपराधों का बोझ ढोयेगा। इस पर भी बहुत कम लोग उसे ईश्वर का पुत्र सरीखा मानेंगे। प्रायः सब लोग उसे घृणा कर इन्कार करेंगे। वह स्वर्ग की सब महिमा को छोड़ कर पृथ्वी में मनुष्य का अवतार लेकर आयेगा। मनुष्य के समान दीन होगा। अपने अनुभव से सब प्रकार की परीक्षाओं और प्रलोभनों का सामना करेगा जिसे मानवजाति को करना पड़ता है। अपने अनुभव से उन्हें परीक्षाओं से बचायेगा। अन्त में एक शिक्षक होने के नाते उन्हें बचा कर अपना काम पूरा करेगा। उसे वह मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाकर शैतान की युक्ति अनुसार सब प्रकार के कष्टों को झेल कर अन्त में मरना पड़ेगा। स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एक पापी की तरह क्रूस क्राठ का दुःख भी उठाना होगा। उसे ऐसी बुरी मौत मिलेगी जिसे स्वर्गदूत भी न देख कर अपने चेहरे ढाँक लेगें। सिर्फ शारीरिक वेदना नहीं मानसिक वेदना भी उसे सहन करना पड़ेगा। शारीरिक वेदना तो मानसिक वेदना से ज्यादा होगी। सारा जगत के पापों का बोझ उस पर पड़ेगा। उसने उन्हें बताया कि मर कर तीसरा दिन जी उठ कर अपने पिता के पास जाकर पापियों की बिचवाई करेगा। GCH 6.2

स्वर्गदूतों ने उसको घुटना टेक प्रणाम किया। उन्होंने अपना जीवन व्यौछावर कर दिया। यीशु ने कहा कि मरने के द्वारा वह बहुत लोगों को बचायेगा। इस ऋण को स्वर्गदूत चुका नहीं सकते हैं। केवल यीशु का जीवन ही मनुष्यों का उद्धार कर सकता है। GCH 7.1

यीशु ने उन्हें कहा कि इस बचाव काम में उनका भी हिस्सा है, उन्हें भी काम करना चाहिए। उनके साथ रह कर विभिन्न समय में दृढ़ करना है। यीशु को मनुष्य का स्वभाव लेना था। पर उसकी शक्ति स्वर्गदूतों की शक्ति से बढ़कर है। उन्हें यीशु की नम्रता को देखनी थीं। यीशु का दुःख तकलीफ को, जिसे लोग देंगे, देखकर स्वर्गदूत भारी संवेदना से भर जायेंगे। प्रेमवश उसे बचाने की कोशिश करेंगे। पर वे उस के ऊपर जो दुःख कष्ट होगा उसे रोक न पायेंगे। वे उस के पुनरूज्जीवन में भी भाग लेंगे जिसको पिता ने पहले से उपाय किया था। GCH 7.2

पवित्रता की उदासी से उसने दूतों को शान्ति प्रदान कर उत्साहित किया। उसके बाद बताया कि जिन्हें वह बचा लेगा वे उसके साथ होंगे। अपनी मृत्यु के कारण सबों का पाप मिटा डालेगा। मृत्यु का सरदार की शक्ति का विनाश करेगा। उसका पिता उसे स्वर्ग का राज्य देगा जो सब राज्यों से श्रेष्ठ होगा। वह उस पर सदा राज्य करता रहेगा। शैतान और दुष्ट लोग सब विनाश किये जायेंगे। वे फिर कभी राज्य में गड़बड़ी नहीं फैलायेंगे और न अपवित्र करेंगे। यही नयी पृथ्वी और नया आकाश होंगे। यीशु ने स्वर्गदूतों से कहा कि ईश्वर की योजना में शामिल होकर आनन्द करो क्योंकि पतित मनुष्यों का उद्धार मेरी मृत्यु के द्वारा होगा। अतः स्वर्ग में ईश्वर के साथ आनन्द करो। GCH 8.1

अब स्वर्ग में ऐसा आनन्द छा गया जो वर्णन से परे हैं। स्वर्गदूतों ने ईश्वर की महिमा और स्तुति के गीत गाये। उन्होंने वीणा बजाते हुए ऐसा गीत गाया जो पहले नहीं गाये थे क्योंकि परमेश्वर का असीम अनुग्रह से उसका पुत्र यीशु को उपद्रवी जाति के लिये जगत में आकर प्राण देना था। यीशु का निःस्वार्थ बलिदान को देखकर प्रशंसा और महिमा के गीत गाये गये। क्योंकि वह ईश्वर के पास धरती पर आने को राजी हुआ है वह इस जगत में आकर दुःख कष्ट झेलते हुए दूसरों के वास्ते नींदनीय मरण मरने को तैयार हुआ है। GCH 8.2

स्वर्गदूत ने कहा कि ईश्वर ने अपना प्यारा एकलौता पुत्र को बिना हिचकिचाहट के दे दिया है। न ही ईश्वर को सोचना पड़ा कि क्या वह अपना पुत्र को जगत में भेजे, कि पापियों को मरने दे ? स्वर्गदूत सोच रहे थे कि क्या उनमें से कोई होगा जो इस जगत में आकर पापियों के लिए म रे ? मेरा राक्षक दूत ने कहा कि ऐसा कोई दूत में योग्यता नहीं थी कि वह आकर इनके लिए मरे। पाप इतना बढ़ा था कि स्वर्गदूत की मृत्यु उसका मूल्य नहीं चुका सकता था। यीशु मसीह को छोड़ कर कोई उनकी बिचवाई नहीं कर सकता था और न पाप की मंजूरी का बदला चुका सकता था। सिर्फ वही एकमात्र है जो खोया हुआ मानव को दुःख कष्टों से भरी, आशाहीन गर्त से बचा सकता है। स्वर्गदूतों को स्वर्ग से उतरने और चढ़ने का काम सौंपा गया। उन्हें परमेश्वर के पुत्रों का दुःख-दर्द और कष्टों में शान्ति का मलहम लगाने को कहा गया। बुरे दूतों से ईश्वर की प्रजाओं की रक्षा का काम भी सौंपा गया। शैतान हर समय उनके बीच में अंधकार लाता है इस वक्त ईश्वर का वचन रूपी प्रकाश से उज्वलित करने को कहा गया। खोये हुओं को बचाने के लिये कोई दूसरा उपाय नहीं था न व्यवस्था को बदला जा सकता था और न ही ऐसे ही क्षमा दी जा सकती थी। इसलिये ईश्वर का पुत्र यीशु को मनुष्यों का, आज्ञा तोड़ कर पाप करने के कारण, मरना पड़ा। GCH 8.3

शैतान अपने दूतों के साथ फिर आनन्द करने लगा क्योंकि मनुष्य को छुड़ाने के लिये यीशु को स्वर्ग की महिमा को छोड़ कर धरती में आना पड़ा। अपने दूतों को पहले से शैतान ने बता दिया कि जब यीशु मनुष्य का रूप लेगा तो उस पर विजय प्राप्त करेगा, वह उद्धार की योजना को भी बिगाड़ डालेगा। GCH 9.1

श्रीमती ह्वाईट कहती है कि उस वक्त शैतान को ऊँचा उठाया गया और उनके बीच खुशी दिखाई दी। उसके बाद अभी जैसा है वैसा दिखाया गया। वह अभी भी अंधकार का राकुमार है और उसका डील-डौल पहले जैसा है परन्तु वह एक पतित स्वर्गदूत है। अभी उसके चेहरे से चिन्ता, घबड़ाहट, ईष्र्या, ठाग, बदमाशी, नाखुश और सब प्रकार की बुराई झलकती हैं। उसका पहले का चेहरा बहुत सुन्दर था। उसका चेहरा आँखों से पीछे की ओर ढालू था और उसमें सिकुड़न आई थी। मैंने देखा कि वह अपने को बहुत दिनों से नीचा बनाया था इसलिये उसके सब अच्छे गुण खत्म हो चुके थे। इस के बदले सब बुरे गुण भरे पड़े थे। उसकी आँखों से धूर्तता झलकती थी, पर आँखों की रोशनी तो थी। उसका शक्ल तो बड़ा था पर उसकी माँसपेशियाँ ढीली-ढाली थी जो हाथों और चेहरों से झूल रही थीं। मैंने देखा कि उसकी ठोढ़ी बाईं हाथ पर टीकी हुई थी। ऐसा लग रहा था कि वह गहरी चिन्ता में डूबा हुआ है। जब वह मुस्कराता है तो मुझे डर सा लगता है। वह शैतानिकआचार-विचार और धूर्तता से परिपूर्ण था। जब वह किसी को अपना शिकार बनाता है और उसे अपने कब्जे में करता है, तब ही इस प्रकार की हँसी हँसता है। GCH 9.2

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यशायाह ५३ के कुछ अंश हैं, पर सब नहीं। GCH 10.1