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पाठ ४१ - दूसरी मृत्यु GCH 187

शैतान भीड़ के बीच पहुँच कर उन्हें लड़ाई करने के लिए उत्साहित करता है। इसी समय आकाश से आग की वर्षा होती है जिससे बड़े लोग, लाचार, दुःखित, राजा, लड़ाकू सब के सब एक साथ जल कर मरते हैं। मैंने देखा कि कोई-कोई जल्द ही मर गए पर कुछ लोग देर तक जल कर तड़पते रहे। जैसा उन्होंने अपने शरीर के द्वारा पाप किये थे वैसे ही वे जलकर भस्म हो गए। कुछ लोगों के शरीर बहुत दिनों तक जलते रहे। स्वर्गदूत ने कहा - जीवन का कीड़ा नहीं मरेगा। उनकी आग तब तक नहीं बुझेगी जब तक एक छोटा अंश भी जल कर खत्म न हो जाये। GCH 187.1

शैतान और उसके दूतों को अधिक समय तक जलना पड़ा। शैतान न केवल अपने पापों के लिये सजा पा रहा था पर जितने लोगों को उसने पाप करवाया था सबके पापों के लिए भी सजा पा रहा था। मैंने देखा कि शैतान और उसके दूत जल गए और ईश्वर अपना न्याय से सन्तुष्ट हुआ। सब दूतगण और सब उद्धार प्राप्त सन्त लोग ऊँची आवाज से बोले - आमीन। GCH 187.2

दूत ने कहा - शैतान जड़ है और उसके साथी डालियाँ हैं। अब जड़ और डालियाँ जलायी जायेगीं । ये अनन्त मृत्यु में मर गए। वे फिर कभी भी नहीं उठेंगे। अब ईश्वर का राज्य में कोई पाप नहीं पनपेगा। यह राज्य तो पापरहित और पवित्र होगा। मैंने उस आग को देखा जो दुष्टों को जलाया था। उसने पृथ्वी के जितने कूड़े-कचरे को जला कर साफ कर दिया। फिर मैंने देखा कि पृथ्वी को जला कर साफ कर दिया गया। वहाँ साप का एक भी अंश नहीं था। इसमें पहले जो उबड़-खाबड़ या ऊँचा-नीचा था, वह सम्पूर्ण रूप से समतल हो गया। सारा भूमण्डल पवित्र था। अब बड़ा वाद-विवाद सदा के लिये अन्त हो गया। चारों ओर देखा - जिधर भी देखा सब तरफ सुन्दरता और पवित्रता भी। उद्धार पाये हुए सब लोग क्या छोटे, क्या बड़े, क्या बूढे, क्या बच्चे, अपने-अपने चमकीले मुकुट को यीशु के पाँवों के पास लाकर, उसकी उपासना और स्तुति निमित्त घुटना टेकने लगे। उन्होंने उस प्रभु की उपासना की जो अनन्त काल से है। और रहेगा। यह सुन्दर महिमापूर्ण पृथ्वी अनन्त काल तक सन्तों का निवास स्थान बन गयी। राज्य और पराक्रम और महिमा जो आकाश के नीचे है प्रभु परमेश्वर के सन्तों को सौंप दिया गया। वे युगानुयुग तक इस राज्य में रहेंगे। GCH 187.3

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आधारित वचन दानियेल ७:२६, २७, मरकुस ९:४४, ४८, २
पतरस ३:९-१३ प्रकाशित वाक्य २०:६-१० GCH 188.1