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प्रार्थना में अधिक धन्यवाद ककेप 160

‘’हर एक प्राणी जिसमे साँस हैं परमेश्वर की बड़ाई करे. ‘’क्या हम में से किसी ने सोचा है कि हमें परमेश्वर का कितना धन्यवाद करना चाहिए? क्या हम याद करते हैं कि परमेश्वर की कृपए प्रति सुबह नई हैं और उसकी विश्वस्तता चूकती नहीं? क्या हम स्वीकार करते हैं कि हमारा अवलम्बन उसी पर है अत: उसके उपकारों के लिए धन्यवाद देते हैं ?प्रत्युत हम भी अक्सर भूल जाते हैं कि,’‘ हर एक अच्छा दान, कर्म और हर एक सिद्ध दान ऊपर से उतरता है अर्थात् ज्योतियों के पिता से आता है.” ककेप 160.3

कितनी बार वे जो स्वस्थ हैं उन अद्भुत करुणाओं को भूल जाते हैं जो उन्हें दिन प्रतिदिन और प्रति वर्ष प्रदान की जाती हैं.उसकी सारी भलाइयों के लिए वे परमेश्वर की स्तुति नहीं करते.परन्तु जब बीमारी आती है तब परमेश्वर याद किया जाता है.स्वस्थ होने के लिए बड़ी उत्सुकता से प्रार्थना की जाती है और यह है भी उचित.परमेश्वर दुःख और सुख में हमारा विपत्ति (अर्थात् आशा की हुई बुराइयों) के सोच सागर में डूबना मूर्खता तथा मसीह के प्रतिकूल है.ऐसा करने में हम आशीषों का आनन्द लेने में और वर्तमान अक्सरों को सदोपयोग करने में चूक जाते हैं. परमेश्वर हम से यही चाहता है कि हम आज के कर्तव्य कर्मों को निभायें और उसके दुःखों को सहे.आज हमें सावधान होना है कि हम वचन में या काम में अपराधी न ठहरें.आज हमें परमेश्वर की बड़ाई और आदर करना चाहिए.जीवतै विश्वास के प्रयोग द्वारा आज हम शत्रु को जीत सकते हैं.आज हमें परमेश्वर को ढूंढना चाहिए और संकल्प करें कि हम उसकी उपस्थिति के बिना संतुष्ट न रहेंगे. हमें जागते रहना,काम करते रहना और प्रार्थना करते रहना चाहिए मानो की यही हमारा अंतिम दिन है जो हमें दिया गया है.तब हमारा जीवन कितना अधिक उत्सुक होगा हम यीशु का अनुकरण वचन व कर्म द्वारा कितना अधिक करेंगे. ककेप 160.4