Go to full page →

प्रेम मसीह की ओर से एक अमूल्य दान हैं ककेप 173

प्रेम एक अमूल्य दान है जिसे हम मसीह से पाते हैं.शुद्ध और पवित्र प्रेम एक अनुभव नहीं पर एक सिद्धान्त है.वे जो सच्चे प्रेम से उसकाए जाते हैं न बुद्धिहीन न अन्धे होते हैं.पवित्र प्रेम,वास्तविक सच्चा अनुरक्त बहुत कम पाया जाता है.यह कीमती वस्तु बहुत कम पाई जाती है.कभी-कभी भूल से लालसा को प्रेम कह दिया जाता है. ककेप 173.3

सच्चा प्रेम एक ऊंचा और पवित्र सिद्धान्त है अपनी विशेषताओं में उस प्रेम से सर्वथा भिन्न है जो प्रवृति से जाग्रत हो ता है पर कठोर परीक्षा पड़ने पर अचानक समाप्त हो जाता है. ककेप 173.4

प्रेम एक ऐसा पौधा है जिसकी वृद्धि स्वर्गीय है, इसका पालन पोषण करना आवश्यक है.स्नेह हृदय सत्य सप्रेम वचन,सुखी कुटेम्बों का निर्माण करेंगे एवं अपने प्रभाव क्षेत्र में आने वालों पर अपना ऊंच उठाने वाला प्रभाव डालेंगे. ककेप 173.5

पवित्र प्रेम अपनी समस्त योजनाओं में परमेश्वर को स्थान देगा और परमेश्वर के आत्मा के साथ पूर्व रुप से एकता में होगी, विवेक रहिए,प्रभावहीन, प्रतिरोधों का उल्लंघन करने वाली.वह अपनी इष्ट वस्तु को एक प्रतिमा अथवा आराध्य वस्तु बना लेगी.सत्य प्रेम का अधिकारी अपने प्रत्येक आचरण में परमेश्वर की दया का प्रदर्शन करेगा.नम्रता,सरलता, सच्चाई, नैतिकतता और धर्म विवाह सम्बन्ध की ओर प्रत्येक पद का निर्धारण करेंगे जो इस प्रकार अंकुश में हैं वे एक दूसरे की संगति में तीन नहीं होंगे जिससे प्रार्थना सभा में उनकी रुचि और धार्मिक कामों में रुझान का अपहरण हो.सत्य के प्रति उनका उत्साह अवसरों एवं विशेष अधिकारों की, जो कि परमेश्वर ने दयापूर्वक उन्हें दिये हैं अपेक्षा करने से समाप्त नहीं होगा. ककेप 173.6

वह प्रेम जिसकी नींव शारीरिक सुख प्राप्ति मात्र पर डाली गई हो केवल हठी अन्धा और निरंकुश होगा.प्रतिष्ठा सत्य एवं मन की प्रत्येक श्रेष्ठ और उत्कर्ष शक्ति लालसा के वशीभूत हो जाती है.मनुष्य जो इस माह पाश में फंस गया बहुधा बुद्धि और विवेक की आवाज को नहीं सुन सकता,न ही तर्क और प्रार्थना उसे अपना भूला हुआ मार्ग दिखाने से सार्थक हो सकते हैं. ककेप 174.1

सत्य प्रेम कोई बलवान तीक्षण प्रचण्ड लालसा नहीं है.इसके विपरीत वह स्वभाव में शान्त और गहरा है.वह बाहरी बातों के परे देखता तथा केवल गुणों द्वारा आकर्षित होता हे.वह बुद्धिमान और विवेकी है.उसकी आराधना वास्तविक और स्थायी है. ककेप 174.2

प्रेम,लालसा और मनोवेग के आधिपत्य और ऊपर उठाया जाकर धार्मिक बन जाता है जिसका प्रगटीकरण वचन एवं कार्यों में होता है.प्रत्येक मसीही में कोमलता ऐनव प्रेम होना चाहिए जिसमें अधैर्य या चिड़चिड़ापन नहीं होता कर्कश और कठोर व्यवहार ईश्वर की अनुग्रह से कोमल हो जाना चाहिए. ककेप 174.3