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विवाह एक साधारण एवं आनंद का अवसर हो ककेप 183

पवित्र प्रेम जिसका प्रादर्भाव मसीह से हुआ हो मानुषिक प्रेम को नाश नहीं करता वरन् उसको अपने में लीन कर लेता है.उसी के कारण मनुष्य के प्रेम का शोधन और पवित्रीकरण होता है जिससे वह श्रेष्ठ और उत्तम बने.जब तक मनुष्य के प्रेम का समावेश दिव्य प्रेम से न हो जिसके फलस्वरुप वह स्वर्ग की ओर बढ़ने के लिए अगुवाई प्राप्त करे वह अपना बहुमूल्य फल नहीं दे सकता.मसीह की इच्छा है कि विवाह आनन्दमय हो जिससे आनन्दमय कुटुम्ब का निर्माण हो. ककेप 183.4

पवित्र वचन में लिखा है कि (काना के)इस विवाह में मसीह और उसके शिष्यों को आमंत्रित किया गया.मसीहियों को विवाह के आनन्दमय सुअवसरों पर भाग लेने से मसीह ने कभी वर्जित नहीं किया.मसीह ने इस विवाहोत्सव में उपस्थित हो कर हमें यह शिक्षा दी कि उसकी ठहराई हुई विधि को मानने के लिए जो आनन्दमय मनाते हैं हम भी उनके साथ सम्मिलित हों.जब मनुष्य ईश्वरीय आदेशानुसार किसी निर्दोष उत्सव में सहभागी हो तो वह उसे कभी निराश नहीं करता.उसके अनुगामियों को ऐसे जलसों में भाग लेना जिन्हें उसने स्वयं अपनी उपस्थिति द्वारा सम्मानित किया उचित हैं. ककेप 183.5

इस उत्सव के पश्चात् उसने कई और ऐसे जलसों में भाग लेकर उसका अपनी उपस्थिति और परामर्श द्वारा पवित्र किया.यद्यपि विवाह पात्र सुयोग्य हो तो भी इसकी आवश्यकता नहीं कि भारी आडम्बर रचा जावे.जब कभी विवाहोत्सवों में आनन्द प्रदर्शन के ऊपरी साधनों की प्रचुरता रहती है तो कुछ भद्दा-सा प्रतीत होता है.नहीं, नहीं स्मरण रखिए कि यह परमेश्वर द्वारा ठहराई हुई विधि है इस कारण गम्भीरता से यह सम्पन्न हो.जिस कुटुम्ब का निर्माण पृथ्वी पर होता है यह स्वर्गीय कुटुम्ब का एक नमूना हो.सदैव परमेश्वर की महिमा ही को प्रथम स्थान दिया जावे. ककेप 184.1