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विवाह के स्वाधिकार ककेप 191

मसीह धर्मावलम्बियों के विवाह सम्बन्धी स्वाधिकारों के नतीजों पर विशेष देना चाहिए.उसका पवित्र सिद्धान्त वैवाहिक जीवन संबंधी प्रत्येक कार्य का आधार होना चाहिए.माता-पिताओं ने बहुधा विवाह संबंधी इन स्वाधिकारों को दुरुपयोग करके और निरन्तर उनमें रत रह कर पाश्विक मनोवेंगो को प्रोत्साहन दिया है.(दूसरे स्थान पर) “कौटुम्बिक सम्बन्ध के स्वत्राधिकार एवं उसकी आत्मीयता’‘ शीर्षक लेख में मिसिज हाइट ने अपने विचार प्रगट किए है. ककेप 191.5

किसी वैधानिक अथवा नियमित वस्तु की उचित सीमा को उल्लंघन करना महा पाप है.अनेकों माता-पिता वैवाहिक जीवन सम्बन्धी जो ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है वह नहीं करते हैं.वे इस बात में अपनी सुरक्षा भी नहीं करते कि कहीं अवसर पाकर शैतान उनके मन एवं जीवन पर अपना प्रभुत्व न जमा ले.वे इस बात से भी सतर्क नहीं रहते कि परमेश्वर चाहता है कि उनका वैवाहिक जीवन संयमी ही.बहुत कम यह समझते हैं कि अपनी लालसाओं को वश में रखना एक धार्मिक कर्तव्य है.वे अपनी ही इच्छा से वैवाहिक सम्बन्ध में प्रविष्ट हुए है और इसी कारण उनका तर्क कि विवाह के द्वारा उनकी निम्न कामनाओं की तृत्ति की आकाक्षां नयायसंगत है.वे भी जो धार्मिक होने का दम भरते हैं अपने लालसायुक्त मनौवेगों को निरंकुश छोड़ हैं, वे भूल जाते हैं कि ऐसा करने से वे अपने जीवन को निर्बल बनाते हैं अथवा इस प्रकार उनकी अनमोल शक्ति के क्षय किये जाने का लेखा परमेश्वर लेना. ककेप 192.1