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बालको को शिक्षा निमित्त माता-पिता का कर्तव्य ककेप 213

बालकों को शिक्षा दी जावे कि जो कुछ उनका है इस पर परमेश्वर का अधिकार है.कोई वस्तु भो अधिकार मुक्त नहीं है.उनके पास जो है वह केवल धरोहर है जिसके द्वारा वे अपना आज्ञाकारी होना प्रमाणित कर सकते हैं.धन एक आवश्यक भंडार हैं,इसे उन पर व्यय न कीजिए जिसे जिन्हें आवश्यकता  नहीं. किसी को आप के स्वेच्छादान की आवश्यकता है.यदि आप अतिव्ययी है तो शीघ्र ही ऐसी आदत को मिटा दीजिए. ऐसा न करने से आप अनन्तकाल तक दिवालिए रहेंगे. ककेप 213.9

इस युग में स्वाभाविक रुप में युवक की यह प्रवृति होती है कि वह आर्थिक सुव्यवस्था को कंजूसी या संकीर्णता समझकर उसकी अवहेलना करने लगता है परन्तु आर्थिक सुव्यवस्था का सम्बन्ध विस्तृत एवं उदार मनोभावों से होता है.बिना व्यवहार सच्ची उदारता मूल्यहीन है.छोटे-छोटे कणों का सदुपयोग करके आर्थिक सुव्यवस्था का अध्ययन करन अपनी मर्यादाहीनता का परिचय नहीं समझना चाहिए. ककेप 214.1

प्रत्येक युवक एवं बालक को शिक्षा दी जावे कि वे केवल कल्पित समस्याओं को ही हल न करें वरन् अपनी आप-व्यय का ठीक-ठीक हिसाब रखें.पैसे का उपयोग करके उसका सदुपयोग सीखें.बालकों को शिक्षा दी जावे कि अपने कमाए हुए अथवा माता-पिता के दिए हुए पैसे से अपनी पुस्तके,वस्त्र अथवा अपनी उपयोगी वस्तुएँ चुनना और मोल लेना सीखें और अपने व्यय का हिसाब रखने से वे रुपये पैसा का मूल्य तथा उपयोग सीखेंगे जिसे वे किसी और रीति से नहीं सीख सकते. ककेप 214.2

बालकों को बुद्धिहीन परामर्श भी दिया जा सकता है.वे बालक जो अपनी शिक्षा का खर्च उठाने के लिए काम करते हैं पैसे का मूल्य उनकी अपेक्षा अधिक समझ है जिन का भार माता-पिता स्वयं उठाते हैं.जब तक हमारे बालक असह्य बोझ बन जावे उनका भार ने उठाया जावे. ककेप 214.3

जब तक युवक जो शारीरिक योग्यता रखते हैं, प्रयत्नशील परिश्रमी होने का अनुभव कर ले तब तक उसे किसी उद्योग के लिए प्रशिक्षण देने निमित्त उदारता से अर्थ व्यय करके माता-पिता अपने कर्तव्य पालन में भूल करते हैं. ककेप 214.4

पत्नी एवं माता में यदि कुशलता एवं चतुरता का अभाव हो और वह अपनी लालसा पूर्ति में व्यस्त हो जावे तो ऐसा करने से उसके भंडार का क्षय हो जायगा.माता तो यही सोचेगी कि वह ठीक मार्ग पर होकर उचित व्यय कर रही है क्योंकि उसे पहिले गृहस्थी चलाने में अपनी तथा बालकों की आवश्यकताओं पर प्रतिबंध लगाने की शिक्षा नहीं मिली.ऐसे परिवार को दो गुने धन की आवश्यकता होती है जब कि उसी धन से और एक परिवार का प्रतिपालन हो सकता. ककेप 214.5

परमेश्वर की प्रसन्नता इसमें हुई कि व्यर्थव्यायी होने के दुष्परिणाम मेरे समक्ष रखे,कि मैं मातापिताओं को अपने बच्चों के लालन पालन के निमित्त दृढ़ मितव्ययी होने का परामर्श दे सकू.बच्चों को सिखलाइए कि अनावश्यक वस्तुओं पर व्यय करना धन का दुरुपयोग करना है. ककेप 214.6