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ईर्षा और दोष ढूंढना ककेप 234

मुझे यह कहते खेद होता है कि मण्डली के सदस्यों में बिना लगाम की जवाने हैं,वे झूठी जिहादें जो बुराई से पलती है.कानाफूसी करने काली जिहादें भी हैं.बकबाद, अशिष्ट हस्तक्षेप तथा चतुर असंगत कार्य का बोलवाला है.गपशप प्रेमियों में कुछ तो कौतुहल के कारण, अन्य डाह के कारण अनेकों उस घृणा के कारण जो वे परमेश्वर के आज्ञानुसार झिड़की देने वालों के प्रति रखते हैं उत्तेजित होते हैं.उन सब में कलह,विरोध कीभावना कार्य करती है.कुछ वास्तविक भावों को छिपाने,दूसरे उन्हें दूसरों को बताने में इच्छुक होते हैं सन्देह भी करने तथा दूसरों के प्रति बुराई करते हैं. ककेप 234.4

मैं ने उस झूठी आत्मा को कार्य करते देखा जो सत्य को झूठ में, अच्छाई को बुराई में, निर्दोष को दोषी ठहराने में कार्य करता है.शैतान परमेश्वर के कहलाने वाले लोगों की स्थिति पर प्रसन्न होता है.जब कि बहुत से अपने प्राणों की हानि उठा रहे हैं वे दूसरों की आलोचना करते और उनकी निंदा करने के लिए अवसर खोजते हैं सब के चालचलन में बुराइयाँ हैं और यह बताना कठिन नहीं कि किस प्रकार ईर्षा चोट पैदा कर सकती है.ये स्वयं-नियुक्त न्यायाधीश कहते हैं, “अब हमारे पास प्रमाण हैं. ‘’हम उन पर ऐसा फन्दा लगाएँगें जिससे वे उपयुक्त अवसर की घात में रहते हैं फिर अपना गपशप का पुलिन्दा खोल कर चटपटी चीजों को उपस्थित करते हैं. ककेप 234.5

अपने प्रयत्नों में,लोग जो हठ कल्पना रखते हैं अपने आप को व दूसरों को धोका दे रहे हैं वे दूसरों से असुरक्षित विचार लेते हैं बिना यह विचार किये कि शीघ्र कहें हुए शब्द वक्ता के वास्तविक भावों को न दर्शाते हों परन्तु वे बिना विचारे शब्द,अवसर ऐसे क्षुद्र होते हैं कि हम उन्हें ध्यान में नहीं लाते परन्तु शैतान उन्हें वृहणयन्त्र द्वारा देखता है और सोचता है,दोहराता है जब तक कि पर्वत नहीं बन जाता है. ककेप 235.1

क्या यह मसीही प्रेम है कि प्रत्येक झूठी बात इकट्ठा कर ली जाए,हर उन भेदों को उघाड़ने के द्वारा जिससे दूसरों के चरित्र पर सन्देह किया जा सके और सब उसको हानि पहुँचा कर प्रसन्न हों.शैतान,मसीह के अनुयायी को आघात कर या बदनाम कर गौरव पाता हैं.वह’‘ भाइयों पर दोष लगाने वाला ‘’हैं क्या मसीही उसकी इस कार्य में सहायता करें. ककेप 235.2

परमेश्वर के चहुं और घूमने वाली आंखें को पहचानती हैं तौभी वह हमारी गलतियां सहता तथा निर्बलताओं पर सहानुभूति प्रगट करता है.वह अपने लोगों में इसी प्रकार के कोमल और सहानशील आत्मा को बढ़ाना चाहता है.सच्चे मसीही दूसरों की निर्बलताओं और गलतियों को दूसरे पर प्रगट करने से खुश नहीं होते.वे अपना ध्यान नीचता और कुरूपता की ओर से फेर कर, उस सुन्दर और आकर्षित आदर्श की ओर लगाते हैं.दोष ढूंढने और दोषी ठहरने का हर एक कार्य मसीही के लिए दु:खदायी होता ककेप 235.3