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स्वयं अपने आप को ही आलोचना करना व्यावहारिक महत्व की बात है. ककेप 237

यदि सब मसीही दूसरों की झूठियों के विषय में बातचीत करने की अपेक्षा, अपने इस अन्वेषण शक्ति का प्रयोग अपने भीतर की ही बुराई खोजने और उसको दूर करने के लिए करेंगे तब मण्डली की दशा आज की अपेक्षा अधिक स्वास्थ कर होगी.जब ईश्वर अपने रत्नों को एकत्र करेगा तब ये सच्चे खरे और निश्चल हैं उनको देख वह खुश होगा. ऐसों के लिए स्वर्ग के दूत मुकुट बनाने के लिए काम में लगाए गये हैं और इन तारे जड़ित मुकुटों पर परमेश्वर के सिंहासन से चमकता हुआ प्रकाश प्रतिबिंबित होगा. ककेप 237.2

ईश्वर अपने लोगों की जाँच करता और उन्हें सिद्ध बनाता है.आप अपने जीवन चरित्र के प्रति बहुत ही कटु आलोचक हो सकते हैं किन्तु कृपया दूसरों पर नम्र और दयालु होइए.प्रतिदिन अपने से प्रश्न कीजिए कि क्या मैं अपने अंत:करण में सच्चा हूँ या मैं अपने आप में झूठा हूँ,ईश्वर से प्रार्थना कीजिए कि वह आप को इस धोके के पाप से बचावे,इसमें अनन्त हित अंतर्निहित है.जब कि बहुत से लोग पद और धन के लोलुप हैं तो मेरे और प्रिय भाइयों क्या आप उत्सुकता से ईश्वर के प्रेम के आश्वासन को खोजेंगे और पुकारेंगे? कौन मुझे मेरे बुलाये जाने और चुन लिए जाने का मार्ग दिखायेगा? ककेप 237.3

शैतान सावधानी से मनुष्य के शारीरिक पापों का अध्ययन करता है.हम परीक्षाओं से घिरे हैं परन्तु यदि हम हियाब बांध कर लड़े तो हमारी विजय निश्चित है क्योंकि लड़ाई प्रभु की है.हम सब खतरे में हैं परन्तु यदि हम नम्रता से चलें और प्रार्थना के साथ इस मठू में हो कर जाएं तो चोखे सोने की तरह निकलेंगे, ओपीर के सुनहरी ईंट से भी सुन्दर.यदि लापरवाह और प्रार्थना हीन होकर सोते रहें तो आप ठनठनाते पीतल और झनझनाती झांझ ही ठहरेंगे. ककेप 237.4