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व्यावहारिक जीवन के कर्तव्यों में शिक्षण का महत्व ककेप 267

जिस प्रकार इस्राएल के दिनों में,उसी प्रकार आज भी प्रत्येक युवक को व्यावहारिक जीवन के कर्तव्यों में शिक्षण की आवश्यकता है.प्रत्येक को कोई दस्तकारी या शिल्पकारी की कला का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए जिस से यदि आवश्यकता पड़े तो वह आजीविका कमा सके.यह न केवल जीवन के उलट फेर में संरक्षकता के लिए हो जरुरी है परन्तु उसका शारीरिक, मानसिक तथा नैतिक विकास पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है. ककेप 267.1

हमारी पाठशालाओ मे भिन्न भिन्न प्रकार के उद्योगों का इंतजाम करना चाहिए.उद्योग सम्बंधी शिक्षण में हिसाब किताब रखना, बढ़ई का काम और कृषि विद्या विषयक सम्पूर्ण कार्य सम्मिलित है.लोहार का काम,रंगसाजी,मोची का काम,रसोई बनाने,रोटी पकाने,कपड़ा धोने,मरम्मत करने, टाइप करने तथा छापने के काम सिखलाने की तैयारियां होनी चाहिए.हमारे अधिकार में जो भी शक्ति हो उसको शिक्षण करना चाहिए ताकि विद्यार्थीगण व्यावहारिक जीवन के कर्तव्यों के लिए पूर्ण रीति से तैयार होकर निकलें. ककेप 267.2

युवतियों के लिए अनेक उद्योगों को प्रदान करना चाहिए ताकि वे भी विस्तृत और व्यावहारिक शिक्षा प्राप्त कर सकें.उनको वस्त्र बनाना और फुलवाड़ी का काम सिखलाना चाहिए. फुलों को और स्ट्राबेरी(फल) के पौधे लगाने चाहिए.इस प्रकार जब वे लाभदायक परिश्रम में शिक्षा प्राप्त कर रहीं हैं तो उनको खुले में स्वास्यप्रद व्यायाम भी मिलेगा. ककेप 267.3

मस्तिष्क का देह के ऊपर और देह का बुद्धि के ऊपर पढ़ने वाले प्रभाव पर विशेष जोर देना चाहिए.बुद्धि को विद्युत शक्ति जिसकी मानसिक सक्रियता द्वारा उन्नति होती है सम्पूर्ण शरीर रचना को जीवन प्रदान करती है यों रोग का प्रतिरोध करने में अनमोल सहारा सिद्ध होती है. ककेप 267.4

धर्मपुस्तक में एक ऐसा मनोवैज्ञानिक सत्य है जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए.’’मन का आनन्द अच्छी औषधि.” ककेप 267.5

बालकों और युवकों को स्वास्थ्य,आनन्दमय स्थिति, प्रफुल्लता तथा सुडौल मांस पेशी व बुद्धि प्राप्ति के लिए अधिकतर खुली हवा में रहना चाहिए और सुव्यवस्थित उद्यम तथा मन बहलाव में व्यस्त रहना चाहिए.जो बालक तथा युवक पाठशाला में पुस्तकों से ही सीमित हैं उनका शारीरिक गठन स्वस्थ नहीं हो सकता.सपरिश्रम पुस्तकावलोकन के साथ-साथ यदि उसी अनुपात में शारीरिक व्यायाम न किया जाए तो रक्त मस्तिष्क में संचय हो जाने की संभावना रहती है.इस प्रकार शरीर रक्ताभिसरण असंतुलित हो जाता है.मस्तिष्क में अत्यधिक रक्त संचय हो जाने के कारण अंतिम छोरों में उसकी बहुत कम मात्रा रह जाती है.बालकों और युवकों को पढ़ाई को कुछ घंटों तक नियमित करने के लिए नियम होने चाहिए फिर उनके समय का कुछ अंश शारीरिक परिश्रम में व्यतीत होना चाहिए.और यदि उनके खाने,कपड़ा पहनने और सोने की आदतें शारीरिक नियम के अनुकूल हैं तो उनको शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की हानि उठाए बिना शिक्षण प्राप्त हो सकती है. ककेप 267.6