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स्थानिक परिस्थितियों को ध्यान में रखना चाहिये ककेप 296

यद्यपि हम पेट्रपन तथा असंयम के विरुद्ध परिश्रम कर रहे हैं फिर भी हमें उन परिस्थितियों को ख्याल अवश्य करनी पड़ेगा जिसमें मानव परिवार रहते हैं.परमेश्वर ने संसार के विभिन्न देशों के निवासियों के लिये खाने-पौने की सामग्री जुटाई है.जो परमेश्वर के साथ सहकारी होना चाहते हैं उनको खुल्लमखुल्ला बतलाने से पहिले कि कौन-कौन से भोजन खाने चाहिये और कौन-कौन से नहीं सावधानी के साथ सोच विचार कर लेना चाहिये.हमारा सम्बंध तो जन साधारण से पड़ता रहेगा.यदि हद दर्जे का स्वास्थ्य सुधार उनको सिखालाया जाय जो विपरीत परिस्थितियों के अधीन उसे स्वीकार नहीं कर सकते तो बजाय फायदे के नुकसान ही होगा.गरीबों को सुसमाचार का प्रचार करते समय, मुझे हिदायत हुई कि उनसे यही कहूं कि वे ऐसा भोजन खावें जो देह को अत्यधिक बल देवें.मैं उनसे यह न कहूंगी कि,“आप को अंडे,दूध अथवा मलाई नहीं खानी चाहिये.खाना तैयार करने में आपको मक्खन का उपयोग नहीं करना चाहिये.’‘ सुसमाचार का प्रचार गरीबों को सुनाना है पर समय अभी नहीं आया है कि हम उनको भोजन के कड़े नियमों से बांधे. ककेप 296.2