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भूल का प्रकाश दीखता ककेप 328

हम तेज प्रकाश के युग में रहते हैं परन्तु अधिकतर जिसे प्रकाश कहते हैं,वह शैतान की विद्वता और कला कौशल के लिए मार्ग खोलना ही है.बहुत सी बातें जो पेश की जाती हैं असली सी प्रतीत होती हैं,तौभी उनको अधिक प्रार्थना के साथ सावधानी से सोच विचार करना चाहिए.हो सकता है कि वे शत्रु की दिखावटी युक्तियां हों.झूठ का मार्ग अवसर सत्य मार्ग के पास-पास ही चलती दिखाई देता है, जो सच्चा मार्ग पवित्रता और स्वर्ग को ले जाता है और जो भूल मार्ग है उन दोनों में अतर बहुत कठिनाई से पहचाना जाता है.परन्तु पवित्र आत्मा द्वारा प्रकाशमान हृदय बूझ सकता है कि वह सही मार्ग से दूसरी दिशा को जा रहा है.थोड़ी देर के पश्चात दोनों एक दूसरे से बड़ा अन्तर रखते दिखाई देते हैं. ककेप 328.5

परमेश्वर एक है जो सारी प्रकृति में व्याप्त है.यह शैतान का अति धूर्त युक्तिमय सिद्धांत है.इससे परमेश्वर का मिथ्या वर्णन किया जाता है और उसकी महिमा और प्रभुत्व का अपमान होता है. ककेप 328.6

(पैनथीस्टिक )सर्वेश्वरवाद सिद्धांत का अर्थात् सृष्टि ही बल है परमेश्वर का वचन समर्थन नहीं करता.उसके सत्य का प्रकाश बतलाता है कि ये सिद्धांत आत्माध्वसंक साधन हैं.और इच्छा को अनुचित स्वतंत्रता देते है.इन सिद्धांतों को स्वीकार करने के परिणाम स्वरुप परमेश्वर से पृथकता होती है. ककेप 329.1

हमारी दशा पाप के कारण अप्राकृतिक हो गई है इस लिए वह शक्ति जो हमें पुन:स्वस्थ करे अलोकिक ही होनी चाहिए अन्यथा उसका कोई मूल्य नहीं हैं.एक ही शक्ति है जो मनुष्यों के हृदयों से बुराई के अधिकार को तोड़ सकती है और वह यीशु मसीह में परमेश्वर की शक्ति है.केवल क्रूस पर चढ़ाये गये पुरुष के लोहू द्वारा पाप से शुद्धि हो सकती है.केवल उसका अनुग्रह हमें पतित प्रकृति की प्रवृतियों का प्रतिरोध करने और उनको पराजय करने के योग्य कर सकता है.यह अनुग्रह की शक्ति उस शिक्षा से नष्ट हो जाती है जो यह सिखाती है कि परमेश्वर एक सद्गुण जो हर कहीं और सब चीज़ में है. ककेप 329.2

यदि परमेश्वर वह स्वप्न है जो सारी प्रकृति में व्याप्त है तब तो वह सब मनुष्यों के हृदय में बसा है और इस लिए पवित्रता प्राप्ति के लिए मनुष्य को केवल अपने ही अन्दर की शक्ति को उन्नत करना है. ककेप 329.3

यदि इन सिद्धांतों का तर्कानुसार परिणाम तक अनुकरण किया जाय तो ये सारी मसीही शिष्टाचार पद्धति का सत्य नाश कर डालेंगे.वे प्रायश्चित की जरुरत का तिरस्कार करते हैं और मानव स्वयं का उसका त्राणकर्ता बनाते हैं.परमेश्वर के समबन्ध में ऐसे सिद्धांत उसके वचन को प्रभावहीन कर देते हैं और जो इन्हें ग्रहण करते हैं आखिरकार इस खतरे में पड़ जाते हैं कि वे सारी बाइबल को एक किस्सा कहानी की पुस्तक जैसी देखने लगते हैं.हो सकता है कि वे पुण्य को पाप से बेहतर समझें, परन्तु परमेश्वर को उसके प्रभुत्व से उतार कर वे मानुषिक शक्ति पर आश्रम रखते हैं जो बिना परमेश्वर के व्यर्थ हैं.असहाय मानव इच्छा में कोई वास्तविक शक्ति नहीं है कि बुराई का प्रतिरोध करके उसको पराजय कर सके.आत्मा की किलाबंदी ढा दी जाती है.मनुष्य के सामने पाप को रोकने की कोई दीवार नहीं रहती.एक बार जब परमेश्वर के वचन उसकी आत्मा की रोकथाम अस्वीकार कर दी जाती है तब हम नहीं कह सकते कि वह कितने गहरे गड़हे में गिर जायगा. ककेप 329.4

जो इन ब्रह्यवाद सिद्धांतों को थामे रहते हैं वे अपने मसीही अनुभव से हाथ धो बैठेगे.उनका परमेश्वर से नाता टूट जायेगा और अनन्त जीवन को खो बैठेगे. ककेप 329.5