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कर्मचारी कलीसिया के सदस्यों का प्रशिक्षण करें ककेप 65

यह प्रत्यक्ष है कि जितने व्याख्यान दिये गये उन्होंने आत्म त्याग कर्मचारियों के बड़े समुदाय का विकास नहीं किया है. इस विषय को ऐसा समझना चाहिये जिसमें अति गम्भीर परिणाम सम्मिलित हैं. हमारा भावी अनन्त जीवन है. मण्डलियां दुर्बल होती जा रही है क्योंकि उन्होंने प्रकाश फैलाने में अपने योग्यता का उपयोग नहीं किया.आदेशों को सावधानी के साथ देना चाहिये जो मसीह की ओर ऐसे पाठों की भांति कार्य करेंगे कि सब के सब अपने प्रकाश का व्यवहारिक उपयोग कर सकें. जिनके पास मण्डलियों की देख रेख का भार है उन्हें योग्य सदस्यों को चुनकर ऊपर जिम्मेदारी डालनी चाहिये, साथ ही साथ उन्हें आदेश देना चाहिये कि दूसरों की सेवा उत्तम रीति से कैसे कर सकें और आशीष दे सके. ककेप 65.3

कारीगर,वकील, सौदागर हर प्रकार के व्यवसाय व पेशे के लोग यथा क्रम शिक्षा प्राप्त करते हैं ताकि वे अपने कारोबार में निपुण हो जाय: क्या मसीह के शिष्य जब कि प्रगट में उसके सेवा कार्य में संलग्न हैं उन तौर तरीकों से अनभिज्ञ रहें जिन्हें उपयोग में लाना चाहिये. अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिये धैर्य पूर्ण कार्य प्रत्येक सांसारिक विषय से श्रेष्ठ है.लोगों का योशु की ओर नेतृत्व करने के हेतु मानव प्रकृति का ज्ञान और मानव मास्तिष्क का अध्ययन होना परमावश्यक है कि सत्य के इस गूढ विषय को लेकर किस प्रकार पुरुष स्त्रियों तक पहुँचा जाये. ककेप 65.4

ज्योंही कलीसिया का संस्थान हो जाय, धर्माध्यक्ष सदस्यों को कार्य से जुटाई. उन्हें निस्सन्देह यह सिखलाना पड़ेगा. कि किस प्रकार सफलता से कार्य करना चाहिये. धर्माध्यक्ष को अपना अधिकाशं समय उपदेश देने की अपेक्षा प्रशिक्षण में लगाना चाहिये. वह लोगों को सिखलावे कि वे उस ज्ञान को जिसे उन्होंने प्राप्त किया है दूसरों तक किस प्रकार पहुंचावे. नये चेलों को शिक्षण देना चाहिये कि वे अधिक अनुभवी कर्मचारियों से परामर्श लिया करें और यह भी बतलाना चाहिये कि वे धर्माध्यक्ष को परमेश्वर का स्थान न दें. ककेप 66.1

शिक्षक गण लोगों के बीच काम करने के हेतु नेतृत्व करें तब दूसरे लोग जो उनके संग-संग काम कर रहे हैं उनके नमूने को पकड़ेंगे. एक उदाहरण अनेक सिद्धान्तों के मूल्य से कहीं बढ़ कर हैं. ककेप 66.2

जिनके ऊपर कलीसिया की रेख देख का भार है उनको चाहिये कि ऐसी मुक्ति निकालें जिससे कलीसिया के प्रत्येक सदस्य को परमेश्वर के कार्य में काम करने का कुछ अवसर प्राप्त हो. प्राचीन काल में ऐसा नहीं किया गया. ऐसी योजनाओं का पूर्णतया पालन नहीं हो सका जिनसे सब की योग्यता सेवा कार्य में बनती जा सके.केवल थोड़े ही लोग हैं जो महसूस करते हैं कि इसके कारण कितना नुकसान उठाना पड़ा है. ककेप 66.3

प्रत्येक कलीसिया में विशेष योग्यता है जिसे यथा योग्य परिश्रम द्वारा विकसित करके इस कार्य में बड़ी मदद हो सकती है. कर्मचारियों को संलग्न रखने के लिये सुव्यवस्थित योजना का निर्माण होना चाहिये कि वे हमारी छोटी बड़ी मण्डलियों में जाकर सदस्यों को सिखलायें कि मण्डली के निर्माण तथा अविश्वासियों के हितार्थ किस प्रकार परिश्रम करना चाहिये. प्रशिक्षण की परम आवश्यकता है, जो काम इस समय के लिये है, उसको करने के लिये प्रत्येक को अपने हदय तथा मन को शिक्षित बनाना चाहिये, और जिस कार्य के लिये वे उपयुक्त हों उसी में अपने को योग्य बनावें. ककेप 66.4

जिस बात को इस समय हमारी कलीसिया के निर्माण में आश्यकता है वह बुद्धिमान कर्मचारियों द्वारा कलीसिया के बीच योग्यता को पहिचानने तथा उसका विकास करने को उत्तम कार्य है. ऐसी योग्यता जो स्वामी के सेवाकार्य के लिये शिक्षित की जा सके. जो लोग मुलाकात करने का परिश्रम करते हैं उनको भाइयों और बहिनों को धार्मिक कार्य के व्यावहारिक ढंग पर आदेश देने चाहिये, युवकों के प्रशिक्षण के निमित्त एक क्लास खोलनी चाहिये. युवकों व युवतियों को घर ही पर अपने पड़ोसी में तथा समुदाय में कर्मचारी बनने का शिक्षण देना चाहिये ककेप 66.5

स्वर्गीय दूत बड़ी देर से मानव कर्मचारियों, कलीसिया के सदस्यों की बाट देख रहे हैं कि इस भारी काम के किये जाने में सहयोग दें. वे आपकी बाट देख रहे हैं.क्षेत्र इतना विस्तृत, नकशा इतना बड़ा है कि प्रत्येक पवित्र जन ईश्वरीय शक्ति के कार्य कर्ता होने के नाते से सेवा कार्य में खप सकेगा. ककेप 66.6

राज मार्गों पर जो आमंत्रण दिये जाने को हैं उसका उन सभों को भी अर्थात् लोगों के शिक्षकों तथा नेताओं को जो संसार के काम में प्रमुख हिस्सा रखते है प्रचार किया जाना चाहिये.जो लोग जनता की सेवा करने में भारी जिम्मेदारी उठाते हैं---हकीम, शिक्षक, वकील तथा न्यायी, सरकारी हाकिम तथा व्यावसायिक लोगों को भी एक स्पष्ट सन्देश देना चाहिये. ‘’यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपने प्राणों की हानि उठाये तो उसे क्या लाभ होगा, और मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा.’’(मरकुस 8:36,37) ककेप 66.7

हम विसरे हुए गरीबों के विषय में बहुत वार्तालाप करते अथवा लिखते है;क्या भूले हुए धनवानों की ओर भी कुछ ध्यान न देना चाहिए? बहुत से इन लोगों के पास जाना व्यर्थ समझते हैं और उनकी आँखों को खोलने के लिए कुछ नहीं करते जिनकी आँखें शैतान की शक्ति द्वारा अंधी की गई है अथवा चुधिया गई हैं और जो अनंत जीवन की ओर से हाथ धो बैठे हैं. हजारों धनवान चेतावनी पाए बिना अपनी कबरो में चले गए हैं क्योंकि दिखावट के अनुसार उनका विचार किया गया और व्यर्थ व्यक्ति समझकर छोड़ दिय गए. वे लापरवाह ही क्यों न दिखाई दें परन्तु मुझपर प्रगट किया गया कि इस श्रेणी के बहुत से लोग त्राण के लिए चिंतित हैं. हजारों धनवान पुरुष हैं जो आत्मिक भोजन के बिना भूखों मर रहे हैं. बहुत से लोग जो सरकारी पदों पर हैं किसी ऐसी वस्तु की आवश्यकता महसूस करते हैं जो उसके पास है नहीं. उन में से केवल थोड़े से ही लोग गिरजे जाते हैं क्योंकि वे समझते हैं कि उनको कोई लाभ तो होता नहीं. जो व्यख्यान वे सुनते हैं वह उनके हृदय की स्पर्श नहीं करते, क्या हम उनकी खातिर व्यक्तिगत परिश्रम न करें? ककेप 67.1

शायद कोई यह प्रश्न करे: क्या हम उनके पास पर्चा, पुस्तका के द्वारा नहीं पहुँच सकते? परन्तु अनेक लोग हैं जिनके पास इस ढंग से नहीं पहुंचा जा सकता. उनको वैयक्तिक कोशिश की आवश्यकता है. क्या वे बिना विशेष चितावनी के नाश हा जायंगें? प्राचीन समय में तो ऐसा नहीं होता था. ककेप 67.2

परमेश्वर के दास उन ऊंची जगहों में रहने वालों के पास भेजे जाते थे ताकि उनको शांति व विश्राम केवल प्रभु यीशु मसीह में प्राप्त हो सके. ककेप 67.3

स्वर्ग का महाराजाधिराज इस जगत में पंतित खोये हुये लोगों को बचाने आया. उसकी कोशिश केवल अहूतों के लिये ही नहीं थी परन्तु कुलीन,उच्च श्रेणी के लोगों के लिये भी थी. उच्च श्रेणी के उन मनुष्यों से सम्पर्क उत्पन्न करने के लिये उसने बड़ी बुद्विमानी से काम किया जो परमेश्वर से अनभिज्ञ थे तथा उसकी आशाओं का पालन न करते थे. ककेप 67.4

मसीह के स्वर्गारोहण के पश्चात भी वही कार्य जारी रहा. मेरा ह्दय अति कोमल हो जाता है जब मैं उस दिलचस्पी का वृतान्त पढ़ती हूँ जो प्रभु ने कुरनेलियुस पर प्रगट की. कुरनेलियुस उच्च मर्यादा का पुरुष था, रोमी सेना में अफसर था परन्तु वह उस प्रकाश के अनुकूल जीवन व्यतीत कर रहा था जो उसे मिला था. परमेश्वर ने स्वर्ग से उसको विशेष संदेश भेजा था, और दूसरे संदेश द्वारा पतरस को भी आदेश दिया था कि उससे मुलाकात करे और उसको और अधिक प्रकाश देवे.हमारे काम में इससे बड़ा प्रोत्साह मिलता है जब हम सोचते हैं कि परमेश्वर उनको प्रेम और करुणा दृष्टि से देखता है जो प्रकाश की तालाश करते तथा उसके लिये प्रार्थना करते हैं. ककेप 67.5

मुझे बतलाया गया कि बहुत लोग हैं जो कुरनेलियुस को भांति है. ऐसे लोग जिन्हें परमेश्वर की इच्छा है कि उसकी कलीसिया में सम्मिलित हों. उनकी सहानुभूति आज्ञापालन करने वाले लोगों के साथ है. परन्तु जो धागे उनको संसार से लपेटे हुये हैं वे उन्हें दृढ़ता से पकड़े हुये हैं. उनके अन्दर साहस नहीं है कि वह नम्र लोगों से हिलमिल सकें. हमें इन लोगों के लिये विशेष परिश्रम करना चाहिये. जिनको दायित्व और प्रलोभन के कारण विशेष मेहनत की जरुरत है. ककेप 67.6

उस प्रकाश के अनुसार जो मुझे दिया गया मैं जानती हूँ कि संसार के अधिकारियों और प्रभावशाली पुरुषों से साधारण भाषा में यह कहना चाहिये ‘’प्रभु यहोवा यों कहता हैं.’‘ वे भंडारी हैं जिन्हें परमेश्वर ने महत्वपूर्ण धरोहर सौंपी है. यदि वे उसकी बुलाहट को स्वीकार करेंगे तो परमेश्वर उनको अपनी सेवा कार्य में प्रयोग करेगा. ककेप 68.1

कुछ लोग हैं जो विशेष रुप से उच्च श्रेणी के लोगों के लिये काम करने के योग्य हैं, उन्हें प्रति दिन परमेश्वर को ढूंढना चाहिये और अध्ययन करना चाहिये कि किस रीति से इन लोगों तक पहुँचा जाय,केवल एक सरसरी मुलाकात के लिये नहीं किन्तु व्यक्तिगत परिश्रम और जीवित विश्वास द्वारा उनको पकड़ लेना और उनकी आत्माओं के लिये प्रगाढ़ स्नेह व सच्ची चिंता व्यक्त करना कि उनको परमेश्वर के वचन के अनुसार सत्य का ज्ञान प्राप्त हो जाय. ककेप 68.2

(1) धर्माध्यक्षो तथा मंडली के अधिकाररियों से निवेदन; ककेप 68.3

(18) धम्र्माध्यक्षों तथा मंडली के अधिकारियों से निवेदन ककेप 68.4