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परमेश्वर के घर में प्रार्थना का ढंग ककेप 111

जब उपासक सभा घर में प्रवेश करते हैं तो उन्हें शिष्टता के साथ खामोशी से अपनी-अपनी जगह बैठ जाना चाहिए.यदि कमरे में चूल्हा(स्टोव) है तो उचित नहीं कि सब उसके ईर्द-गिर्द लापरवाही से एकत्र हो जायं. उपासना घर में आराधना से पहिले या बाद, सामान्य बातचीत, फुसफुसाने तथा हंसी की मुमानियत होनी चाहिये.उपासकों में उत्साही भक्ति का चरितार्थ होना चाहिये. ककेप 111.3

यदि आराधना के आरम्भ से पूर्व किसी को कुछ मिनट ठहरना पड़े तो वे खामोशी के साथ ध्यान करें और भक्तिभाव को प्रगट करें और हृदय को परमेश्वर की ओर प्रार्थना में लगायें ताकि आराधना उनके प्रति लाभदायक सिद्ध हो और दूसरी आत्माओं के हृदय परिवर्तन की ओर अगुवाई हो.उनको याद रखना चाहिये कि स्वर्गदूत आराधनालय में उपस्थित है.हम अपनी व्याकुलता से और ध्यान व प्रार्थना में व्यस्त न रहने से परमेश्वर के साथ मधुर संगति को खो डालते हैं, आध्यात्मिक स्थिति का अकसर अवलोकन होना अवश्य है और मानव हृदय की धार्मिकता के सूर्य की ओर खींचना चाहिये. ककेप 111.4

जब परमेश्वर के लोग उपासना गृह में आते हैं यदि उनके हृदय में परमेश्वर के लिए यथार्थ सम्मान है और यह महसूस करते हैं कि वे परमेश्वर की उपस्थिति में हैं तो उस समय खामोशी में ही वाकपटुता का आभास होगा.फुसफुसाना हँसना तथा बातचीत करना भले ही सामान्य व्यवसायी जगहों में निर्दोष समझे जायें परन्तु आराधनालय में उनके लिए आज्ञा न होनी चाहिये.मन को वचन सुनने पर प्रस्तुत होना चाहिये ताकि उसकी उचित महत्ता हो और हृदय भी प्रभावित हो जाय. ककेप 111.5

जब मंडली का अध्यक्ष प्रवेश करता है तो बड़ी गम्भीरता व सम्मान के साथ प्रवेश करें. ज्यहि वह मंच(पुलपिट) में कदम रखता है उसको खामोशी की प्रार्थना में झुक कर परमेश्वर की सहायता के लिए विनती करनी चाहिये, इससे कितना सुन्दर प्रभाव पड़ेगा.लोगों पर पवित्रता तथा भय का प्रभाव पड़ेगा.उनका अध्यक्ष परमेश्वर के संग बातचीत कर रहा है. वह अपने को लोगों के सामने खड़े होने के पूर्व परमेश्वर के समक्ष अर्पण कर रहा है.सब पर गम्भीरता छा जाती है और स्वर्गदूत निकट लाये जाते हैं.सभा में प्रत्येक और वह भी जो परमेश्वर का भय मानता है खामोशी प्रार्थना में सिर झुकाकर उसके साथ सम्मिलित हो कि परमेश्वर अपनी उपस्थिति से उपासना पर आशीर्वाद देवे और मानव होठों द्वारा अपने सत्य के प्रचार को करने में शक्ति दे. ककेप 112.1

विचार-विमर्श तथा प्रार्थना की सभाएं थकाने वाली नहीं होनी चाहिये.यदि सम्भव हो तो सभों को नियत समय पर उपस्थित होना चाहिये और यदि विलम्ब करने वाले भी हों जो आधा घंटा या पन्दरह मिनट पीछे आयें तो उनके लिए ठहरना नहीं चाहिये.यदि दो भी उपस्थित हों तो वे प्रतिज्ञा के अधिकारी हैं.यदि सम्भव हो तो मीटिंग को नियत समय पर आरम्भ करना चाहिये.चाहे सभाप्रद थोड़ा हो या बहुत. ककेप 112.2