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जातियता के साथ मसीह का सम्बंध ककेप 128

मसीह ने जाति, पाति ,उपाधि अथवा धार्मिक सिद्धान्त में कोई मत भेद नहीं रखा.अध्यापकों और फ्ररिसियों ने स्वर्गीय वरदानों से स्थानीय व जातिया लाभ उठाने की इच्छा प्रकट की और परमेश्वर के शेष परिवार को अलग कर दिया.परन्तु मसीह जुदाई की प्रत्येक दिवाल को ढाने आया. वह यह दिखलाने आया कि उसकी दया और प्यार का वरदान ऐसा असीमित है जैसे वायु,प्रकाश और बारिश की बौछार जो भूमि को तरोताजा करती है. ककेप 128.5

मसीह के जीवन द्वारा एक धर्म स्थापित हुआ है जिससे जाति पांति का कोई बेद नहीं,एक धर्म जिसमें यहूदी और अन्य देशी,स्वतंत्र तथा बन्दी एक ही बिरादरी में जोड़े जाते हैं और परमेश्वर के सामने बराबर हैं. उसकी कार्यशीलता पर किसी राजनीति के प्रश्न का प्रभाव नहीं पड़ा.उसने पड़ोसियों और विदेशियों, मित्र व शत्रु में कोई भेद भाव नहीं रखा.जो बात उसके मन को अच्छी लगी, वह वही आत्मा थी जो जीवन के जल की प्यासी थी. ककेप 129.1

उसने किसी मानव,प्राणी के पास से गुजरकर उसको निकृष्ट नहीं बतलाया परन्तु प्रत्येक आत्मा पर उसने चंगा करने वाली औषधि लगाने की चेष्टा की.जिस किसी समाज में वह गया उसने समय और अवसरनुसार उचित पाठ उपस्थित किया. जब कभी कुछ मनुष्यों की ओर से दूसरों की ओर अवहेलना अथवा अपमान प्रकट हुआ तो उससे वह और भी सचेत हो गया कि उन्हें उसके ईश्वरीय मानवीय सहानुभूति की अत्यन्त आवश्यकता है. ककेप 129.2

उसने कोशिश की कि सबसे असभ्यों और आशाहीन के अंदर आशा की किरण उपज जावे और उनको आश्वासन दिलाया कि वे निर्दोष तथा निष्पाप बन सकते हैं और ऐसा चरित्र प्राप्त कर सकते हैं जिसके द्वारा वे परमेश्वर के पुत्र कहला सकते हैं. ककेप 129.3

जब कि परमेश्वर की संतान मसीह में एक हैं तो यीशु जाति पांति की, समाज की विशिष्टता को, मनुष्यों के बीच के भेदभाव को जो रंग, जाति, स्थिति, धन दौलत,कुल अथवा ज्ञान के कारण पड़ जाते हैं कि किस दृष्टि से देखता है? एकता का रहस्य मसीह के विश्वासियों की बराबरी व समानता में पाया जाता ककेप 129.4