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आखरी दिनों में COLHin 204

इस धरती के इतिहास के समापन दष्श्यों को अमीर आदमी के इतिहास के समापन में चित्रित किया गया है। अमीर आदमी ने अब्राहाम का बेटा होने का दावा किया, लेकिन वह अब्राहाम से एक अगणित खाड़ी से अलग हो गया था—एक चरित्र गलत तरीके से विकसित हुआ। विश्वास और आज्ञाकारिता में उनके वचन का पालन करते हये अब्राहम ने ईश्वर की सेवा की। लेकिन अमीर आदमी ईश्वर से पीड़ित मानवता की जरूरतों से बेखबर था। उसके और अब्राहित के बीच तभी की गई बड़ी खाड़ी अवाज्ञा की खाई थी। आज कई ऐसे है जो उसी पाठ्यक्रम का अनुसरण कर रहे हैं। हालांकि चर्च के सदस्य, वे अनियंत्रित है। वे चर्च की सेवा में भाग ले सकते हैं, वे भजन का जाप कर सकते है “जैसे हिरणों नदी के जल के लिये हांफती है, वैसे ही, हे परमेश्वर, मैं तेरे लिये हांफता हूँ।” (भजन संहिता 42:1)। लेकिन वे एक झूठ की गवाही देते है। वे ईश्वर की दषष्ट से अधिक धर्मी नहीं है, जो सबसे बड़ा पापी है। सांसारिक सुख की उत्तेजना के बाद जो आत्मा लम्बी होती है, वह मन जो प्रर्दशन के लिये प्रेम से भरा होता है, ईश्वर की सेवा नहीं कर सकता। दष्टान्त के धनी व्यक्ति की तरह, इस तरह के शरीर की वासना के खिलाफ युद्ध करने के कोई झुकाव नही है। वह भूख को बढ़ाने के लिये तरसता है। उसने पाप का वातावरण चुना। वह अचानक मष्यु से छीन लिया जाता है और वह शैतानी ऐजेसियों के साथ अपने जीवन काल के दौरान चरित्र के साथ कब्र में चला जाता है। अनुग्रह में उसके पास कुछ भी चुनने की शक्ति नहीं है, चाहे वो अच्छा हो या बरा, उस दिन के लिये जब अमन भर जाता है, उसके विचार नष्ट हो जाते है। (भजन संहिता 146:4, समोपदेशक 9:5, 6)। COLHin 204.1

जब परमेश्वर की आवाज मरे हुये लोगो की जगाती है वह उस कब्र की भूख और जनुन के साथ आयेगे, वही पसन्द और नापसन्द जिसे वह जीवित रहते हुये पोषित करता है। ईश्वर किसी ऐसे व्यक्ति को फिर से बनाने के लिये कोई चमत्कार नहीं करता है, जिसे तब दोवारा नही बनाया जायेगा। जब उसे हर अवसर हर सुविधा के साथ दिया जाय । अपने जीवन काल के दौरान उन्होंने न तो ईश्वर को प्रसन्न किया और न ही उनकी सेवा में आनन्द पाया । उसका चरित्र ईश्वर के अनुरूप नहीं है और वह स्वर्गीय परिवार में खुश नहीं रह सकता। COLHin 204.2

आज हमारी दुनिया में एक वर्ग ऐसा है जो आत्म धार्मिक है। वे लोलुप नहीं है, वे शराबी नहीं है, वे काफिर नहीं है, लेकिन वे खुद के लिये जीना चाहते है ईश्वर के लिये नहीं। वह उनके विचारों में नहीं है, इसलिये उन्हें अविश्वासियों के साथ वर्गीकृत किया जाता है। क्या उनके लिये परमेश्वर के शहर के द्वार में प्रवेश करना सम्भव था, उन्हें जीवन के पेड़ पर कोई अधिकार नहीं हो सकता था जब उनके सभी बाध्यकारी दावों के साथ उनके सामने ईश्वर की आज्ञा रखी गई थी, तो उन्होंने कहा, न ही उन्होने यहाँ ईश्वर की सेवा नहीं की है। इसलिये वे उसके बाद सेवा नहीं करेगे। वे उसकी उपस्थिति में नहीं रह सकते थे। और वे महसूस करेगे कि कोई भी स्थान स्वर्ग के लिये बेहतर था। COLHin 205.1

मसीह को सीखने का अर्थ है उनकी कष्पा प्राप्त करना, जो उनका चीजों लोग धरमी पर दिये गये बहुमूल्य अवसरो और पवित्र प्रभावों की सरहाना और उपयोग नहीं करते है, उन्हें स्वर्ग की शुद्ध भक्ति में भाग लेने के लिये फिर नही किया जाता है। इनके पात्रों को ईश्वरीय अनुकरण के अनुसार नहीं ढाला जाता है अपनी उपेक्षा से उन्होंने एक ऐसी चौकी बनाई है जो कुछ भी नहीं पा सकती। उनके और धर्म के बीच एक बड़ी खाई है। COLHin 205.2