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अब्राहम एक श्रेष्ठ उदाहरण ChsHin 249

अब्राहम की परीक्षा कोई आसान नही थी। जो उस पर आई थी, न ही उससे कोई साधारण बलिदान मांगा गया था। उसे बहुत मजबूती से अपने राष्ट्र, जाति व लोगो से जुड़े रहना था। किन्तु वह उस बुलावे को मानने से पीछे नहीं हटा, उसने प्रतिक्षा किये हुये देश के बारे में कोई प्रश्न भी नही किया कि वह वहाँ की भूमि उपजाऊ है, की नहीं या वहॉ का मौसम स्वास्थ्यवर्धक है या नहीं? या देश उपयुक्त वार्तावरण से घिरा है या नहीं तथा वह क्षेत्र धन धान्य से परिपूर्ण होने के अवसर प्रदान करेगा, की नही, प्रभु न कहा और उसके सेवक ने आज्ञा मानी और निकल पड़ा। क्योंकि पथ्वी के तरह परखे जाते हैं, उन्हें परमेश्वर की आवाज स्वर्ग आती हुई सुनाई देती, किन्तु वह उन्हें बाईबल भी शिक्षा जो उसके वचन से मिलती है। और कुछ होने वाली घटनाओं का परिणाम होता है। हो सकता है कि उन्हें अपना सब कुछ, जो उन्हें धन व सम्मान दिला सकता है छोड़कर आसान व फायदे मेंद संगठन को छोड़कर और अपने प्रिय लोगो को चाहता है, किन्तु जीवन की सुविधायें मित्रा का प्रभाव तथा पारिवारिक जिम्मेदारियां इस कार्य की प्रगति में रूकावट बनते और जरूरी बाते जो इस काम को पूरा करने में बांधा उत्पन्न करती है। परमेश्वर उनहें सभी मान्यवीय प्रभावों को जरूरत है, ताकि परमेश्वर स्वय को उन पर प्रकट कर सकें। कौन है जो तैयार है, अपने पालन पोषण की योजनायें और पारिवारिक संबंधो का त्याग कर इस कुलाहट के लिये आये? कौन है जो इन कर्तव्यों को स्वीकार करने अनजान स्थानों पर जाने, परमेश्वर का काम पूरी इच्छा व रूचि से करने के लिये यीशु की खातिर अपनी असफलताओं पर ध्यान देगा? वह जो यह करता है वही अब्राहम के जैसा भरोसा परमेश्वर पर रखता और अब्राहम की पीड़ाये कुछ भी नही होगी ।(पेट्रिएक्स एण्ड प्रोफेटस, 126, 127) ChsHin 249.1