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सामान्य जीवन जीने वालों की बुलाहट ChsHin 31

सामान्य लोगों को भी मसीह के कर्मचारी होना चाहिये, वे अपने साथियों के दुखों को बाँटने का काम करें, जैसे प्रभु यीशु ने मानवता के लिये दुःख सहा और विश्वास से वे सब उसे अपने साथ काम करते हुये देख सकेंगे। (गॉस्पल वर्कर्स-38) ChsHin 31.3

सभी दूर व पास के इलाकों के सभी लोगों को बुलाया जायेगा जो चाहे फल उगाते, अन्य-अन्य व्यवसायिक काम करने वाले अधिकतर जो उनके मन—मस्तिश्क में होता है, वही करते हैं किन्तु इन्हें सभी को शिक्षित किया जायेगा। उन लोगों के साथ जिन्हें अनुभव है। जैसे ही वे प्रभावशाली तरीके से मेहनत करना सीख जाते हैं, वे सत्य का पूरी सामर्थ के साथ प्रचार करने लगेंगे। स्वर्गीय पिता के द्वारा प्रदान किये गये सर्वश्रेश्ठ कार्य प्रणाली द्वारा बड़ी से बड़ी कठिनाई के पहाड़ों को रास्ते से हटा कर समुद्र में डाल दिया जायेगा। वह समाचार जो पथ्वी के रहने वालों के लिये जो इतना अधिक महत्वपूर्ण है, सुना और समझा जायेगा। मनुश्य जान जायेंगे कि सत्य क्या है ? आगे और आगे यह समाचार प्रचार का कार्य बढ़ता जायेगा, जब तक की पष्थ्वी के सब लोगों को चिताया नहीं जाता; और तब अंत आ जायेगा। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 9:96) ChsHin 31.4

परमेश्वर उन लोगों को जिन्होंने मानव निर्मित स्कूलों में अच्छी शिक्षा प्राप्त नहीं की है, अपने काम के लिये उपयोग कर सकता है, बल्कि वह ऐसों को ही चुनेगा। परमेश्वर की षक्ति पर संदेह केवल तभी संभव है जब लोगों में परमेश्वर पर अविश्वासी होना पाया जाये। ये अविश्वास ही परमेश्वर की अथाह षक्ति, जो पूरे विश्व में व्याप्त है, उसको सीमित करती है, वह सामर्थ जिसके लिये कुछ भी असंभव नहीं । हाँ, ऐसे कई कमतर पाए गए, बिन-बुलाये लोग, जिन्हें अपने अविश्वास के प्रति सजग होना था, क्योंकि ऐसों के कारण कलीसिया की सामर्थ व्यर्थ जाती है या उसका सही उपयोग नहीं हो पाता। ये प्रचार कार्य की रूकावट बनती है, रास्ते बंदकर देती है और जिससे पवित्र आत्मा मनुश्यों पर अपना काम नहीं कर पाता। वे उन्हें बेकार ही बैठाये रखती है, जबकि वे लोग अपनी इच्छा से जोश से भरकर प्रभु के मार्ग पर चलना चाहते हैं। ये आलस व अविश्वास कार्य में प्रवेश करने से रोकता है। कई लोग तो अपनी इच्छा से यीशु के वफादार प्रभावशाली सेवक परमेश्वर की सामर्थ के साथ बन सकते थे यदि उन्हें एक उचित मौका मिला होता। (गॉस्पल वर्कर्स- 488, 489) ChsHin 32.1

हरेक आत्मा के लिये एक सुअवसर है वो उन्नति करें और आगे बढ़े। वे जो प्रभु से जुड़े हैं वे उसके अनुग्रह और इसके ज्ञान में बढ़ेंगे और सही अर्थो में स्त्री व पुरूश होंगे। यदि वे सभी जो प्रभु यीशु में, सत्य में भरोसा करने का दावा करते हैं, उन्होंने ही अपनी योग्याताओं को और अवसरों का सही फायदा उठाया, सभी कामों को जानने सीखने और करने के लिये जिससे वे मसीह में सामर्थी बन सकें। भले ही उनका कोई भी व्यवसाय- जैसे कोई किसान, कारीगर, शिक्षक या प्रचारक । यदि ये सब पूरी तरह से परमेश्वर के प्रति समर्पित होते तो वे परमेश्वर के सक्षम कार्यकर्ता होते। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 6:423) । ChsHin 32.2

कलीसिया में पाये गये वे लोग जो पूर्ण प्रतिभाशाली हैं, ताकि किसी भी प्रकार के कार्य को करने में निपुण है; चाहे वे पढ़ाने वाले, इमारत या भवन निर्माण करने वाले या किसान, सामान्यत; कलीसिया को सुदष्ढ़ बनाने के काम में हाथ बंटा सकते है। वे अपने समुदाय की सेवा करके या सब्बत स्कूल के शिक्षक का काम करके, अपने को प्रचार कार्य में लगाकर या दूसरे काम करने वालों को कलीसिया में सम्मिलित करके इस काम को बढ़ावा दे सकते हैं। (द रिव्यू एण्ड हैरल्ड- 15 फरवरी, 1887) ChsHin 33.1

उसके काम को जारी रखने के लिये प्रभु यीशु ने यहूदी सनहेड्रीन या रोम के शक्तिशाली, शिक्षित या प्रबद्ध, अच्छा व्याख्यान देने वालों को नहीं चुना। यहूदी स्वधर्मी शिक्षकों को नज़र अंदाज करते हुये, गुरू प्रभु यीशु ने उन नम्र, अशिक्षित लोगों को सत्य का प्रचार करने के लिये चुना, जो पूरे जगत में बड़ा बदलाव लाने वाले थे। इन लोगों को उसने अपने काम को करने के लिये प्रशिक्षित कर कलीसिया के अगुवे होने के लिये प्रोत्साहन दिया। बदले में ये ही लोग अन्य लोगों को सिखा कर सुसमाचार प्रचार कार्य के लिये भेजें ताकि वे अपने काम में सफलता पा सकें, उन्हें पवित्र आत्मा की षक्ति भी दी जानी थी। केवल मानवीय ताकत या बुद्धि का इस्तेमाल कर सुसमाचार प्रचार का काम नहीं होना था बल्कि परमेश्वर की सामर्थ के द्वारा ही। (द एक्ट ऑफ अपॉसल्स- 17) ChsHin 33.2

उन में से जिनको हमारे प्रभु यीशु ने इस विशेष काम को सौंपा था। “इसलिये तुम जाओ और सारे देशों को सिखाओ।” अधिकतर वे निम्नतम स्तर का जीवन जीने वाले स्त्री व पुरूश थे, जिन्होंने प्रभु से प्रेम करना सीखा और जिन्होंने ठान लिया था कि प्रभु के समान निस्वार्थ सेवा करेंगे। ये सभी नम्र हृदय वाले तथा प्रभु के शिष्यों जिन्होंने यीशु के साथ इस संसार में सेवा करने का काम किया था, प्रभु ने उन्हीं पर अपना भरोसा रखा था कि वे ही सम्पूर्ण जगत में आनंद का सुसमाचार जो प्रभु यीशु के द्वारा है, सुनाने का काम करेंगे। (द एक्ट ऑफ अपॉसल्स- 105, 106) ChsHin 33.3