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स्वयं संतुश्ट रहने वाला वर्ग ChsHin 48

मेरे समक्ष एक ऐसा वर्ग भी प्रस्तुत हुआ, जो सजग व सचेत है। जिनमें उदारता की भावना समर्पण, भलाई करने से प्रेम है, किन्तु फिर भी वे कोई काम नहीं करते। उन्हें आत्म संतुश्टी महसूस होती है, और वे केवल यह सोचते रहते की काष उन्हें अवसर मिलता तो ये करते या फिर परिस्थितियाँ हमारे पक्ष में होती तो हम क्या ही बड़े-बड़े और अच्छे काम कर लेते। ऐसे लोग केवल अवसरों की बातें करते हुये प्रतीक्षा करते रह जाते हैं। वे उन गरीब नासमझ लोगों को घष्णा से देखते और जरूरतमंदों की ओर देखते ही नहीं। ChsHin 48.1

वे सिर्फ अपने लिये ही जीते हैं, दूसरों की भलाई के लिये बुलाए जाने पर आगे नहीं आते। अपनी योग्यता का इस्तमाल स्वयं के लिये जीवन में मिली सुविधाओं का उपयोग व लाभ केवल उन्हीं के लिये हो। उसमें जंग लगने के लिये नहीं, न ही गलत उपयोग के लिये और न ही उस टेलेन्ट को ज़मीन में गाड़ने के लिये दिया गया है। उसका तो इस्तमाल दूसरों के लिये होना चाहिये। जो लोग इस प्रकार स्वार्थी, कंजूस और बुरे विचार ६ पारा वाले हैं, उन्हें अपने इस निम्न स्तर के काम करने के लिये प्रभु को लेखा देना होना, उस टेलेन्ट को जिसको उन्होंने व्यर्थ गवाँ दिया। ChsHin 48.2

ज्यादा जिम्मेदार लोग जो उदार मन रखते और स्वभाविक रूप से ही आध्यात्मिक कार्यों को करने के लिये षीघ्रता करते हैं यदि कभी इन्हें काम नहीं मिलता और जिस अवसर की खोज में रहते हैं यदि वह नहीं मिलता तब भी उन लोगों के ठीक विपरित सभी परिस्थितियों का सामना करते हुये वे उनसे कहीं ज्यादा सफल सिद्ध होते हैं जबकि उनके पड़ौसी सब कुछ होने के बाद भी अपनी निम्नस्तर की सोच में ही पड़े रह जाते हैं। ChsHin 48.3

ऐसे लोग स्वयं को ही धोखा देते हैं। वे केवल खूबियों का भंडार है. जिनको इस्तेमाल किया ही नहीं गया उनसे केवल वे अपने ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ाते जाते हैं। और यदि वे अपने प्रभु के गुणों का उपयोग न करें तो वे वैसे ही रखे रह जायें तो उनकी दशा अपने पड़ोसियों से कम न होगी, जिनसे वे स्वयं इतनी घष्णा करते है। इनके लिये यह कहा जा सकता है, “तुम पिता की इच्छा जानते थे, तब भी उसे पूरा नहीं किया।” (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 2:250, 251) ChsHin 48.4