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मानव-नीति षास्त्री ChsHin 59

कई लोग जो मसीही कहलाते हैं, अधिकतर अपने आप को नैतिक ज्ञान के षास्त्री मानते हैं। वे उस इकलौते इनाम का इंकार करते हैं जो उन्हें मसीह के नाम को महिमा देने के योग्य बनाता है। जो पूरे जगत में फैलाया जाता है। उनको पवित्र आत्मा के द्वारा किया गया काम अजीब लगता है। वे वचन के अनुसार चलने वाले नहीं हैं। आकाषीय षक्तियाँ जो प्रभु के दास और जो संसार के सरदार के दास हैं, इनमें अंतर करने में कठिनाई का सामना करते हैं। मसीह के कट्टर शिष्य भी अब अपनी अलग पहचान लिये हुये नहीं पाए जाते। दोनों के बीच का अंतर नहीं के बराबर है। लोग संसार के लोगों के समान हो गये हैं, उनका व्यवहार, उनकी रीतिरिवाज, उनका स्वार्थीपन सब कुछ उनमें दिखाई देता है। सारी कलीसिया संसार के अन्य लोगों की तरह अनाज्ञाकारी हो गये हैं जबकि होना तो यह चाहिये कि संसार को मसीह के करीब आना और आज्ञाओं को मानना चाहिए। ये प्रक्रिया दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही हैं। (क्राइस्ट ऑब्जेक्ट लैसन्स- 315, 316) ChsHin 59.2