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एक प्रभावशाली स्वप्न- जो विचलित कर देगा ChsHin 61

29 सितम्बर 1886 मुझे एक स्वप्न दिखाया गया। मैं एक बड़े समूह के साथ जा रही थी, जो बेर (एक प्रकार का फल) की तलाष में घूम रहे थे। उस समूह में अनेक जवान पुरूश व स्त्रियाँ थीं, जो फल बटोरने में मद्द करते थे, षायद हम किसी षहर में थे क्योंकि वहाँ छोटा स्वा वाली मैदान था किन्तु षहर के चारों ओर खुले मैदान सुन्दर बाग और बुआई के लिये बगीचे तैयार किये गये थे। एक बड़ी गाड़ी जरूरत के सामान से लदी हुई हमारे आगे चल रही थी। अचानक गाड़ी रूक गई और कोई ऊँची कोई नीची झाड़ियाँ थीं, जिनमें बड़े सुन्दर जंगली बेर लगे हुये थे, झुण्ड के लोग काफी दूर थे ये सब देखने के लिये । मैं आसपास पड़े बेर इकट्ठे करने लगी। मैं बड़ी सावधानी से पके हुये बेर ही बटोर रही थी, कच्चे व हरे बेर नहीं क्योंकि वे सब एक से दिखते थे किन्तु मैंने उस गुच्छे से पके हुये फल ही बटोरे। ChsHin 61.2

उनमें से कुछ बड़े और अच्छे बेर जमीन पर गिर गये, जिन्हें कीड़े व इल्ली जल्दी ही आधा चट कर गये । ओह! मैंने सोचा काष की इस खेत में पहले ही कोई आ गया होता, जो इन पके हुये किमती बेरों को बचा सकता था। किन्तु अब तो देर हो चुकी है, तब भी मैं वे बड़ी सावधानी से इन बेरों को उठाया और देखा कि क्या अभी भी इनमें कुछ बाकी है? यदि ये बेर पूरी तरह से खराब भी हो गये थे, मैंने उन्हें उठाया अपने भाईयों को बताने के लिये कि उन्हें यहाँ अच्छे फल मिल सकते थे यदि वे यहाँ पर पहले आये होते। ChsHin 62.1

तभी समूह के दो-तीन लोग वहाँ टहलते हुये आ गये, जहाँ मैं भी। वे लोग आपस में बातचीत करने में मषगूल थे। तभी मुझे देखकर कहने लगे, “हमने सब जगह ढूँढा, पर हमें कोई फल नहीं मिला। मेरे पास इतने फल देखकर वे अचंभित हो गये। मैंने उनसे कहा, यहाँ झाड़ियों में तुम्हें और फल मिलेंगे, यहां ढूढ़ों । वे ढूंढ़ने लगे किन्तु फिर रूक गये ये कहते हुये कि यह सही नहीं। क्योंकि इस जगह को तुमने पाया है और यहां के फल भी तुम्हारे हैं।” किन्तु मैंने उन्हें जवाब दिया, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जहां मिले वहां से बटोरो। ये परमेश्वर का खेत है, ये बेर भी तुम्हारे हैं, ये तुम्हारे लिये अवसर है कि तुम इन्हें बटोरो। ChsHin 62.2

जल्दी ही मैंने अपने आप को अकेला पाया, दूर से लोगों के हंसने और बाते करने का स्वर सुनाई आ रहा था, वे गाड़ी के पास चले गये थे। मैंने उन्हें पुकारा, “तुम क्या कर रहे हो? उन्होंने जवाब दिया,’ हमें तो कोई बेरीज मिले नहीं। हम तो वैसे ही थक गये और फिर हमें भूख भी लगी है, हमने सोचा की हम गाड़ी पर जाकर दोपहर का खाना खायेंगे, थोड़ी देर आराम करके फिर ढूँढने निकल जायेंगे। ChsHin 62.3

लेकिन मैंने कहा “तुम अभी तक कुछ नहीं लाये और सारी खाद्य सामग्री खाने जा रहे हो हमें कुछ दिये बिना। मैं तो अभी कुछ खा नहीं सकती, क्योंकि अभी ढेर सारे फल बटोरना बाकी है। तुम्हें वे नहीं मिले क्योंकि तुमने उन्हें झाडियों में ढूंढ़ा ही नहीं। वे कोई झाड़ियों के ऊपर लगे हुये नहीं मिल जाते, उन्हें ढूँढ़ना पड़ता है। ये सच है कि तुम हार भर-भर कर नहीं बटोर सकते किन्तु कच्चे न हरे बेरी के बीच में ध्यान पूर्वक ढूँढ़ने पर तुम्हें जरूर अच्छे व काम के बेर मिल जायेंगे। मेरा छोटा सा बर्तन जल्दी ही फलों से भर गया और मैं उन्हें लेकर गाड़ी की ओर गई। मैंने कहा ये सबसे बढ़िया फल हैं जो मैंने बटोरे हैं, मैंने इन्हे पास से ही बटोरा, जबकि तुम दूर-दूर तक गये और फल पाने में सफल नहीं हये।” ChsHin 62.4

वे सभी मेरे फलों को देखने आये और कहने लगे, ” ये ऊँची झाड़ियों के फल हैं, ठोस एवं अच्छे। हम नहीं सोचते कि हम इन ऊँची झाड़ियों में कुछ पा सकते थे। इसलिये हमने नीची झाड़ियों में फल ढूँढ़े आरै केवल कुछ फल ही पाए ।’ तब मैंने कहां, ” क्या तु इन फलों की देखभाल करोगे और मेरे साथ उन ऊँची झाड़ियों में फलों को ढूँढ़ने चलोगे? लेकिन उन्होंने कोई ऐसी तैयारी नहीं की, कि वे फलों की देखभाल करते। वहाँ बहुत से खाली बर्तन और थेले थे, जिन्हें फलों से भरना था, किन्तु उन्हें तो केवल खाने-पीने की चिंता थी। मैं उनका इंतज़ार करते हुये थक गई और पूछा, “क्या तुम फल बटोरने नहीं आये हो? फिर उनकी देख-रेख करने को तैयार क्यों नहीं हो? ChsHin 63.1

एक ने जवाब दिया, “सिस्टर व्हाइट, हमने वास्तव में इन बहुत से घरों में कोई फल पाने की उम्मीद ही नहीं की थी, जहाँ हमें बहुत चलना पड़ता, परंतु जैसा कि तुम फलों को बटोरने में इतनी दिलचस्पी दिखा रही थी, हमने तुम्हारे साथ आने का निष्चय किया। हमने सोचा था हम अपने लिये पर्याप्त खाना लाये हैं। हम यहाँ मनोरंजन करेंगे यदि हम फल इकट्ठा नहीं करते हैं। मैंने उत्तर दिया, ” मैं इस प्रकार का काम करना नहीं जानती मैं फिर से उन झाड़ियों में जाऊँगी। दिन काफी बीत चुका है जल्दी ही रात हो जायेगी और तब हम फल नहीं बटोर पायेंगे।” उनमें से कुछ तो मेरे साथ आये और दूसरे खाने की गाड़ी के पास ही रह गये। एक और जगह एक छोटा समूह इकट्ठा था और आपस में बातचीत करने में लगा था वे किसी रोचक विशय पर बातचीत कर रहे थे। मैं उनके नज़दीक गई और देखा कि एक स्त्री जो छोटे बच्चे को गोद में लिये थी, उनके आकर्शण का कारण थी। मैंने उनसे कहा, ” तुम्हारे पास केवल थोड़ा ही समय बाकी है, अभी समय है जितना चाहो काम कर लो।” एक नवयुवक और नवयुवती खाने वाली गाड़ी की ओर दौड़ रहे थे, काफी लोग उन्हीं को देखने में लग गये।वे दोनों गाड़ी तक पहुँच कर थक गये और थककर बैठ गये, काफी लोगों ने भी घास पर बैठकर आराम किया। ChsHin 63.2

इस प्रकार दिन तो बीत गया और काम तो बहुत कम हुआ था, आखिर मैंने कहा, “आप इसे एक असफल अभियान कर सकते हैं। क्योंकि यदि इस प्रकार आप काम करते हैं तो कोई षक नहीं कि तुम्हें असफलता ही मिलेगी। आपकी सफलता या असफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप काम को किस प्रकार हाथों में लेकर करना चाहते हो? यहाँ बेर फल हैं, मुझे मिले भी हैं। लेकिन तुम में से कुछ नीची झाड़ियों में उन्हें व्यर्थ ढूँढ रहे हो। दूसरों को कुछ फल मिले भी है किन्तु वे बड़ी-बड़ी ऊँची झाड़ियाँ उन्होंने देखी ही नहीं, क्योंकि उन्हें आषा ही नहीं थी कि उन्हें वहाँ कुछ मिलेगा। तुम देखो जो फल मुझे उन झाड़ियों में मिले वे पके हुये और बडे भी हैं। अभी कुछ ही समय में दूसरे बेर भी पक जायेंगे और हम फिर से वहाँ जायेंगे। इस तरह मुझे सिखाया गया है, फलों को बटोरना यदि तुम ने गाड़ी के आसपास फल ढूँढ़े होते तो जैसे मुझे फल मिलें, तुम्हें भी मिलते। जो पाठ तुम्हें आज सिखाया गया वे उन लोगों के लिये है जो फल-बटोरने का काम सीखना चाहते हैं। इसी प्रकार उन्हें भी करना है। परमेश्वर ने इन फलों से भरी झाड़ियों को इसी लिये इस घनी आबादी वाले स्थान में रखा है कि तुम फलों को बटोर सको किन्तु तुममें से कितने तो खाने-पीने और मनोरंजन करने में लगे रहते हो। तुममें से कोई भी नहीं इस निश्चय के साथ यहाँ आया कि यहाँ से फल बटोर सके। ChsHin 64.1

अब से तुम इस काम को पूर्ण ईमानदारी जोश और एक अलग नजरिये को ध्यान में रखकर करना वरना तम्हारा परिश्रम कभी सफल नहीं होगा। सही तरीके से काम करके तुम अन्य नौजवानों को यह सिखा सकते हो कि खाना-पीना और मनोरंजन ही ज्यादा महत्व के काम नहीं है, जब प्रभु का काम करना हो तो पूरा ध्यान उसी काम पर होना चाहिए। खाना-पीने के सामान ढोने वाली गाड़ी को नीचे लाना काफी कठिन था, फिर भी तुम्हें खाने की ज्यादा चिंता थी, अपने परिश्रम से बटोरे हुये फलों की नहीं । तुम्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए, कि पहले अपने आस-पास के फल बटोरें तब आगे बढ़ते हुये फलों की खोज करते जायें। फिर वापस लौटते समय भी आस-पास से बटोरें और तभी तुम्हें सफलता मिलेगी। (गास्पल वर्कर्स- 136-139) ChsHin 64.2