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आत्मिक जागपत और व्यक्तिगत प्रयास का समन्वय ChsHin 157

जब कलीसियायें पुर्नजागष्त हो जाती है, और ये इसलिये होता है कि कुछ व्यक्ति विशेष परमेश्वर की आषीश को पाने के लिये काम करने को उत्साहित होते हैं। वह परमेश्वर के भूखे और प्यासे होते है और विश्वास से मांगते और उसके अनुसार पाते भी है। वह पूरी शिद्दत से पूरी तरह से प्रभु पर निर्भर होकर काम करता है और लोग उसके समान आशिशों को पाने के लिये उत्सुक हो जाते हैं। और उन सभी आत्माओं पर आशिशों की बारिश होती है जो उन्हें तरोताजा कर देती है। ऐसा अद्भुत काम कभी नकारा नहीं जायेगा। इससे बड़े काम सही समय पर नियोजित किये जायेंगें। किन्तु व्यक्तिगत और आपसी संबंध अपने पड़ौसियों और मित्रों के प्रति किया गया परिश्रम सोचे गये परिणाम से कहीं अधिक ज्यादा कारगर सिद्ध होगा। ChsHin 157.1

जरूरत है तो इस प्रकार की रूचि और परिश्रम की इन नाश होते हुये लोगों के प्रति जो बचाये जा सकें क्योंकि प्रभु यीशु ने इन्हीं के लिये अपनी जान दी एक जीवन भी किमती है। क्योंकि कलवरी उसकी किमत बताता है। एक आत्मा सत्य से जीती गई आत्मा वह साधन बन जायेगी दूसरों को जीतने के लिये । और उसके बाद आशिशों से भरे परिश्रम और उद्धार पाने वालों की संख्या बढ़ती ही जायेगी। आप के काम और अधिक सफलता पा सकते है, उन बड़ी सभाओं के अलावा यदि वे आपसी मेल-जोल से स्थापित हों। क्योंकि व्यक्तिगत परिश्रम और प्रभु की आशिश और अगुवाई मिलकर एक अधिक अच्छा और पूरा काम सफल बनाया जा सकता है। फिर भी यदि आप केवल व्यक्तिगत आपसी मेल-जोल से घरों, में जाकर प्रभु का जीवित वचन पढ़े व सुनायें, लोगों से अपील करें, घर के सदस्यों से खुलकर बात करें, केवल छोटी महत्व की बाते नहीं बल्कि बड़ी महत्व की बातें जैसे उद्धार पाने का विचार उन्हें दिखाईये कि वे देख सकें आपके हृदय का बोझ जो आत्माओं को बचाने के लिये आप पर है। (द रिव्यू एण्ड द हैरल्ड-13 मार्च 1888) ChsHin 157.2