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महान संघर्ष - Contents
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    तीसरा दूत के समाचार बन्द हुए

    जब तीसरा दूत के समाचार बन्द हो रहे थे तो मुझे दिखाया गया। ईश्वर की आत्मा लोगों पर थी। उन्होंने अपना काम पूरा किया था और परीक्षा की घड़ी के लिये तैयार थे। प्रभु की ओर से उन्हें आखिरी वर्षा जो पवित्रात्मा की मिलनी थी, मिल चुकी थी। जीवता वचन उन्हें मिल चुका था। आखिरी बड़ी चेतावनी चारों ओर दी जा रही थी। इससे पृथ्वी के लोगों के बीच में खलबली मच गई थी और उनमें गुस्सा चढ़ रहा था जो अब तक इसको ग्रहण नहीं किये थे। 1SG 167.1

    मैंने देखा कि स्वर्ग में दूत इधर से उधर दौड़ लगा रहे थे स्वर्गदूत लेखनी बगल में लेकर यीशु के पास लौट आये और बताया कि उसका काम खत्म हो गया। सन्तों की गिनती हो गई। उन पर मोहर छाप लगा दिया गया। इस वक्त यीशु मन्दिर में सन्दूक के सामने खड़े होकर सेवकाई का काम कर रहा था। हाथ में धूप जलाने का वत्र्तन था उसे नीचे गिरा दिया। हाथ पर उठा कर जोर से कहा - ‘यह पूरा हुआ’। जैसे यीशु ने गम्भीर शब्द से पुकारा वैसे ही सब दूतों ने अपने मुकुट उतार दिए। जो अन्याय है अन्याय करता रहे और जो पापी है, पापी बना रहे और जो धर्मी है, धर्मी बना रहे और जो पवित्र है, पवित्र बना रहे। 1SG 167.2

    मैंने देखा कि सब मामलों के लिये या मुत्यु का निर्णय कर लिया गया। यीशु ने अपने लोगों के पापों को मिटा डाला। उसको राज्य मिल गया। अपनी प्रजाओं के लिये उसने उद्धार का काम पूरा कर लिया। जब यीशु मन्दिर में सेवकाई का काम कर रहा था उस समय मरे हुए धर्मी लोगों और जीवित धर्मियों का न्याय हो रहा था। राज्य की प्रजाओं को चुना गया। मेम्ने का विवाह खत्म हो गया। स्वर्ग और पृथ्वी का राज्य यीशु को दिये गये। यीशु अब प्रभुओं का प्रभु, राजाओं का राजा बन कर शासन करेगा। 1SG 167.3

    जैसे ही यीशु महापवित्र स्थान से निकला तो उसके शरीर की घंटी बज उठी। जब उसने मन्दिर छोड़ा तो पृथ्वी के लोगों पर अंधेरा छा गया। अब इसके बाद पापियों के लिये ईश्वर के पास बिचवाई करने का कोई न रहा। जब तक यीशु पापियों और ईश्वर के बीच में खड़ा था तो लोगों की भीड़ लगी थी, पर जैसे ही वह हट गया तो उस भीड़ को भी हटायी गई। अब उन पर शैतान का कन्ट्रोल था। तब यीशु मन्दिर में बिचवाई कर रहा था तो विपत्ति का आना कठिन था परन्तु जैसे ही वहाँ का काम समाप्त हुआ, वैसे ही बिचवाई का काम खत्म हो गया। ईश्वर का गुस्सा भी उनके ऊपर भड़का, जिन्होंने उसका उद्धार को तुच्छ जाना, उसकी चेतावनी को इनकार किया। यीशु के बिचवाई के बाद सन्त लोग ईश्वर की देख रेख में थे। हरेक मामला का फैसला हो गया। सब रत्नों का हिसाब हो गया। यीशु स्वर्गीय मन्दिर से बाहर निकला। कुछ देर वहाँ ठहर कर उन सब के पापों का पाप को पिता ने शैतान के सिर में डाल दिया। उसे पापों की सजा उठानी चाहिये। 1SG 168.1

    इसके बाद मैंने देखा कि यीशु ने अपना पुरोहित का पोशाक उतार कर राजा का वस्त्र पहन लिया। उसके सिर पर मुकुट के ऊपर मुकुट थे। वह स्वर्गदूतों से घिरा हुआ था। स्वर्ग से पृथ्वी की ओर आने की तैयारी करने लगा। पृथ्वी के लोगों पर विपत्ति के ओले पड़ने लगे थे। कुछ लोग ईश्वर को कोस कर कुड़कुड़ा रहे थे। दया की मधुर आवाज अब नहीं सुनाई पड़ रही थी। आखिरी चेतावनी भी दी गई थी। जब स्वर्ग के सब लोग उनके उद्धार की चिन्ता कर रहे थे तो उन्होंने इसमें कोई रूचि नहीं दिखाई। अब तो उनके लिये जीवन या मरण का निर्णय कर लिया गया। बहुतों को उद्धार पाने की बहुत इच्छा हुई पर उन्हें नहीं मिला। उन्होंने जीवन को नहीं चुना। अब उद्धार पाने का समय बित चुका था। यीशु पहले ही कह चुका था - यह पूरा हुआ है। अब मेहरबानी की मधुर आवाज खत्म हो चली थी। अब चारों ओर डर छा गया। उन्हें भयानक आवाज सुनाई पड़ी। उद्धार पाने के लिए बहुत देर हो गयी। 1SG 168.2

    स्वर्गदूत कहता है कि जिन्होंने पहले ईश्वर के वचन को सुनने से इन्कार किया था अब वे उसकी खोज के लिए उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम दौड़ लगा रहे थे। अब तो प्रभु के वचनों को जमा करने के बदले दुनिया के धन को जमा करने में लगे थे। यीशु को इनकार कर उसके चेलों को भी घृणा करते थे। अतः अब पापी हमेशा पापी बना रहेगा प्रका. वा. २२:११। 1SG 169.1

    अधिकांश लोगों पर विपत्ति का बादल गिरा तो उनका गुस्सा सन्तों पर पड़ने लगा। यह तो दुःख का एक डरावना दृश्य था। माता-पिता अपने बच्चों को घुड़क रहे थे और बच्चे अपने माता-पिताओं को, भाई बहनों को और बहने भाईयों को दोष दे रहे थे। चारों ओर रोने-चिल्लाने की आवाज गूँज रही थी। मंडली के सदस्य अपने पदारी-प्रचारकों को गाली दे कर कह रहे थे कि तुम्हीं लोगों ने हमें सत्य को मानने से रोका। अन्यथा हम बच जाते। कोई कह रहे थे कि तुम लोग जानते हुए भी हमें चेतावनी नहीं दी। जब चेतावनी दी जा रही थी तो तुम लोगों ने बताया कि कुछ फर्क नहीं होगा और कहा शान्ति, शान्ति धीरज रखो। तुम लोगों ने इस न्याय के विषय नहीं बताया। जब ये प्रचार करते थे तो कहा कि ये लोग पागल हैं, झूठे प्रचारक और नबी हैं। मैंने देखा कि ये पादरी और प्रचारक सिर झुका कर खड़े थे। वे ईश्वर के क्रोध से बचने वाले नहीं थे। उनके दुःख तो अपने मंडली सदस्यों से दस गुना अधिक था।1SG 169.2

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