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चरित्र विकास का महत्व ककेप 256

परमेश्वर ने माता-पिता को यह काम सौंपा हैं कि वे ईश्वरीय आदर्श के अनुकूल बच्चों का चरित्र निर्माण करें.कि वे ईश्वरीय आदर्श के अनुकूल बच्चों का चरित्र निर्माण करे.उसके अनुग्रह की सहायता से वे यह कार्य संपन्न कर सकेंगे.बालकों की लालसाओं पर अंकुश लगाने में तथा इच्छा की अगुवाई देने के कार्य में बड़ी सहनशीलता,स्थिरता, कठिन परिश्रम की आवश्यकता होगी.यदि खेत को लापरवाही से छोड़ दिया जाय तो उसमें काँटे ही उगते हैं. वह जो उपयोगिता और सुन्दरता की फसल काटना चाहते हैं उन्हें पहिले खेत को तैयार करके बोना चाहिए.कटीली जड़ खोदिए, भूमि को नरम बनाइए तब बहुत मूल्य पौधा बन कर फलदायी होकर आपको मेहनत का फल देगा. ककेप 256.4

चरित्र निर्माण ऐसा महत्वपूर्ण कार्य है जो मनुष्य जाति को सौंपा गया है,आज कल इसके अभ्यास में जितना जोर दिया जा रहा है उतना और किसी समय नहीं दिया गया था. भूतकाल में इन महत्वपूर्ण बातों की ओर किसी पीढ़ी का ध्यान आकर्षित नहीं किया गया था;वर्तमान काल में जो भय तरुणों के समक्ष उपस्थित है उतने किसी अन्य समय में नहीं थे. ककेप 256.5

चरित्र का बल दो बातों पर निर्भर है इच्छाशक्ति और आत्मा अनुशासन की शक्ति पर कई युवक चरित्र के बदले निरंकुश अभिलाषाओं को स्थान देते हैं;सच तो यह है कि जो अपनी लालसाओं के वश में आ गया वह दुर्बल व्यक्ति है.किसी मनुष्य का बड़प्पन का मापदण्ड यह है कि उसमें अपनी भावनाओं के वशीकरण की कितनी शक्ति है,न कि इसमें कि वह अपनी भावनाओं के वशीभूत हो जावे.बली तो वह है जो गाली का सूक्ष्मग्राही होकर भी अपने मनोवेगों को वश में रखकर अपने दुश्मन को क्षमा कर दे.ऐसे पुरुष वास्तविक में वीर है. ककेप 256.6

अपने भविष्य के संबंध में बहुत कम ज्ञान होने के कारण बहुत लोग बौने और संकीर्ण ही रह जाते हैं पंरतु जब परमेश्वर की दी हुई शक्ति का उपयोग करेंगे तो वे एक सर्वोत्तम चरित्र का निर्माण करके इतने प्रभावशाली होंगे कि मसीह के लिए अनेकों आत्माओं को जीत सकेंगे.ज्ञान ही शक्ति है पर हृदय में भलाई के बिना मानसिक ज्ञान शैतान के लिए शक्ति है. ककेप 256.7

परमेश्वर ने हमें मानसिक और नैतिक शक्ति दी है,पर अधिकांश रूपमें प्रत्येक मनुष्य स्वयं अपना चरित्र निर्माण करता है.इस इमारत का निर्माण कार्य दिन प्रतिदिन बढ़ता जाता है.परमेश्वर का वचन कहता है कि हम सावधान रहें कि हम किस प्रकार बनाते हैं, हम सचेत रहें कि हमारी नींव अनन्त चट्टान पर हो.समय आता है जब हमारा कार्य प्रगट होगा कि वह किस प्रकार का है.अभी अवसर है कि हम परमेश्वर द्वारा दी हुई शक्ति को बढ़ाने में अग्रसर हो जावें जिससे वे इस काल में और भविष्य में उच्चतर सेवा के उपयुक्त होने के निमित्त चरित्र निर्माण कर सकें. ककेप 257.1

हमारे जीवन का प्रत्येक कार्य चाहे वह कितना ही महत्वहीन क्यों न हो हमारे चरित्र को प्रभावित करता है.सांसारिक धन की अपेक्षा सचरित्र अति मूल्यवान है.चरित्र निर्माण कार्य मनुष्य के लिए सर्वोत्तम हैं ककेप 257.2

वातावरण से वंशीभूत होकर जिस चरित्र का निर्माण होता है वह सम लय न होकर परिवर्तन शील है यह तो कई विरोधात्मक बातों का जमाव ही है.जिस में इस प्रकार का चरित्र हो वह जीवन में उच्च लक्ष्य या उद्देश्य प्राप्त नहीं कर सकता.दूसरों को ऊँचे स्तर पर उठाने में वे प्रभावरहित हैं.शक्तिहीन और अभिप्रायहीन हैं.जीवन का जो छोटा सा काल हम को मिला है उसे हम बुद्धिमानी से उन्नत करें.परमेश्वर चाहता है कि उसकी मण्डली जाग्रत भक्तिभाव से परिपूर्ण और कार्यशील मण्डली हो.हमारे लोग सामूहिक रुप में इस आदर्श से बहुत दूर हैं.परमेश्वर बली, साहसी कार्यशील तथा जाग्रत मसीहियों को बुलाता है कि वे सच्चे नमूने का अनुकरण कर परमेश्वर और सत्य के लिए संसार को निश्चित रुप से और सत्य के लिए संसार की निश्चित रूप से प्रभावित करें.परमेश्वर ने अति महत्वपूर्ण गम्भीर सत्य अपनी थाती के रूप में हम को सौंपा है.हम इससे अपने जीवनों व चरित्रों को प्रभावित होने दें. ककेप 257.3