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अध्याय 1 - विश्वासियों के प्रतिफल के विषय में दर्शन ककेप 32

(मेरा प्रथम दर्शन )

जब मैं पारिवारिक वेदी पर प्रार्थना कर रही थी तो पवित्र आत्मा मुझ पर उतर आया और ऐसा प्रतीत होता था कि मैं अंधेरे संसार से ऊपर उठती जा रही हूँ. मैं ने ऐडवेनटिस्ट लोगों को पृथ्वी पर देखने के लिये निगाह फेरी परन्तु उनको न पा सकी, उसी समय एक आवाज़ ने मुझसे कहा, “फिर से निगाह करो और थोड़ा ऊंचाई पर देखो, ‘’इस पर मैंने आँखे उठाई तो क्या देखती हूँ कि एक सीधा सकरा मार्ग पृथ्वी से बहुत ऊँचाई पर है.इस मार्ग पर आगमन के लोग उस नगर की ओर यात्रा करते हुये जा रहे थे जो मार्ग के दूसरे छोर पर था.मार्ग के आरंभ में उनके पीछे एक बड़ी मशाल जल रही थी जो दूत के कहने के अनुसार आधी रात को धूम कहलाती थी. सह मशाल रास्ते पर चमकती और उनके पांवों को उजाला देती रही ताकि उन्हें ठोकर न लगे.यदि वे अपनी आंखे यीशु पर जमाये रखते जो उनके सामने ही था और नगर की ओर उनका मार्ग दर्शन कर रहा था, तो वे सुरक्षित रहते. परन्तु शीघ्र हो कुछ तो थक गये और कहने लगे कि नगर तो अभी बहुत दूर है और अब तक तो हम पहुँच भी गये होते. ऐसी आशा अन्होंने व्यक्त की. तब यीशु ने अपनी विशाल दाहिनी भुजा को उठाकर उनको प्रोत्साहन दिया जिसमें से एक प्रकाश निकला जो ऐड्वेन्ट दल के ऊपर चमका और वे ‘ हल्लिलुयाह’ के नारे लगाने लगे. अन्यों ने जल्दबाजी में अपने पीछे के प्रकाश का इंकार किया और कहने लगे कि इसमें परमेश्वर का हाथ नहीं है जो इतनी दूर तक चले भी आये. अत: उनके पीछे की रोशनी बुझ गई और उनके पाँव निपट अंधेरे में पड़ गये और ठोकर खा कर निशाने और यीशु से औझल हो गये और मार्ग से नीचे अंधेरे और पापी संसार में गिर गये. तुरन्तु ही हमने परमेश्वर की आवाज़ बहुत से जल की तरह गूंजती सुनी जिससे हमें यौशु के आगमन के दिन तथा घड़ी का पता लग गया. जीवित पवित्र जन जिनकी गिनती 144000 थी उस आवाज़ को समझते गये जब कि दुष्टों ने बादल की गरज और भुईंडोल ही समझा और जब परमेश्वर ने समय को बतलाया तो हम पर अपना पवित्र आत्मा उंडेला और हमारे चेहरे परमेश्वर की महिमा से दमकने लगे जिस प्रकार मूसा का मुख दमकता था जब वह सीनै पर्वत से उतरा था. ककेप 32.1

144000 व्यक्तियों पर छाप लग चुकी थी और वे पूर्णत: संयुक्त थे. उनके माथों पर परमेश्वर,नया यरुशलेम और प्रतापी तारा जिसमें यीशु का नया नाम था लिखा हुआ था. हमारी सौभाग्यशाली व पवित्र स्थिति को देख दुष्ट लोग क्रोधित होकर बलापूर्वक हमारी ओर झपटे कि पकड़ कर हमें बन्दीगृह में डालें परन्तु हमने परमेश्वर का नाम लेकर हाथ फैलाया और वे लाचार होकर भूमि पर गिर पड़े. तब शैतान के अनुयाइयों ने जान लिया कि परमेश्वर इनसे प्रेम रखता है क्योंकि ये एक दूसरे के पाँव धोते और भाइयों को पवित्र चुम्बन द्वारा प्रमाण करते हैं. वे हमारे चरणों को छूकर आदर करने लगे. ककेप 32.2

शीघ्र ही हमारी आँखें पूर्व दिशा की ओर आकर्षित हुई जहाँ एक छोटा काला बादल मनुष्य के हाथ के बराबर प्रगट हुआ जिसे हम सब समझते थे कि मनुष्य के पुत्र का चिन्ह है. गम्भीर खामोशी में हम निकट आते हुए बादल को ताकते रहे जिसका तेज बढ़ता गया.यहां तक कि वह सफेद बादल बन गया. उसका निचला भाग अग्निस्वरुप था, मेघ के ऊपर इन्द्र धनुष्य था जिसके इर्द-गिर्द हज़ारों दूत सुरेले राग का मनोहर गीत गा रहे थे और उस मेघ पर मनुष्य का पुत्र विराजमान था. उसके सफेद सुंघराले बाल कंधों तक फैले हुये थे जिसके सिर पर अनेक मुकुट धरे थे. उसके पाँव अग्नि सदृश्य थे, उसके दाहिने हाथ में तेज हंसुआ और बायें में रुपहली तुरही थी. उसकी आँखें अग्नि ज्वाला की नाई थी जो अपनी सन्तान का पूर्ण रीति से निरीक्षण करती थी तब सकल चेहरों का वर्ण पीला हो गया परन्तु जिन्हें परमेश्वर ने रद्द कर दिया था उनका वर्ण श्याम पड़ने लगा. हम सब चिल्ला उठे, “अब कौन ठहर सकता है?” क्या मेरा वस्त्र निर्मल है? तब स्वर्गदूतों ने गाना बन्द कर दिया और कुछ समय लों अपूर्व सन्नाटा छा गया. फिर यीशु बोल उठा, “जिनके हाथ निर्दोष और हृदय शुद्ध हैं वे ही ठहरने योग्य होंगे;मेरा अनुग्रह तुम्हारे लिये पर्याप्त है.’’इस बात पर हमारे चेहरे दमकने लगे और ह्दय प्रसन्नता से भर गये. अब दूतों ने ऊंचे स्वर में एक राग छेड़ा इतने में वह मेघ पृथ्वी के और भी निकट आ गया. ककेप 33.1

फिर यीशु की रुपहली तुरहीं गूंज उठी जब वह अग्नि की ज्वाला में लिपटे हुए मेघ में उतर रहा था. उसने सोते हुये ककेप 33.2

पवित्र जनों की कब्रों पर निगाह डाली फिर आँखें और हाथ स्वर्ग की ओर उठाकर पुकारा, “जागो ! जागो ! तुम जो मिट्टी में सो रहे हो, उठो.’‘ इस पर एक भीषण भुईंडोल आया. कबरें खुल गई और मुर्दे अमरत्व का चोला धारण किये हुए निकल आये. 144000 जन” हल्लिलुयाह ‘’शब्द पुकारने लगा जब उन्होंने मृत्यु द्वारा छीने गये मित्रों को पहिचाना और उसी क्षण में हम बदल लगे और प्रभु को मिलने के लिये उनके साथ हवा में उठा लिये गये. ककेप 33.3

हम सभी ने साथ साथ मेघ में प्रवेश किया और कांच के समुद्र तक पहुंचने में हमें सात दिन लगे तब यीशु ने मुकुटों को अपने दाहिने हाथ से हमारे सिरों पर रखा. उसने हमें सोने की वाणी और विजय रुपी खजूर की डालियाँ दी. कांच के समुद्र पर144000 जन वर्गाकार शक्ल में खड़े हुऐ कुछ के तो अति चमकीले मुकुट थे, दूसरों के इतने चमकीले न थे. कुछ मुकुट तारों के कारण भारी नजर आते थे परन्तु अन्यों पर थोड़े ही तारे थे, परन्तु प्रत्येक अपने मुकुट से अत्यन्त सन्तुष्ट था. और वे सबके सब एक शानदार सफेद चादर कंधों से पावों तक ओढ़े हुये थे.हमारे चारों ओर स्वर्गदूतों का वृंद था. जब हम काँच के समुद्र से गुजरते हुये नगर के द्वार की ओर जा रहे थे तब यीशु ने अपनी चक्रवर्ती पराक्रमी भुजा से मोतियों के फाटक को पकड़ा और उसके चमकते हुये कबजों पर पीछे को हटा दिया और हमसे कहा “तुम लोगों ने अपने-अपने वस्त्र मेरे लोहु में स्वच्छ किये हैं, मेरे सत्य पर दृढ़ता से अटल रहे हो, अब उसमें प्रवेश करो.’‘ हम सब अन्दर गये और वहाँ जाकर महसूस किया कि नगर में हमें पूरा-पूरा अधिकार हैं. ककेप 33.4

यहाँ हमने जीवन का वृक्ष तथा परमेश्वर का सिंहासन देखा. सिंहासन से एक निर्मल जल को नदी निकलती है. नदी के दोनों ओर जीवन का वृक्ष है. वृक्ष का एक तना तो नदी की एक और दूसरा दूसरी ओर था. दोनों पारदर्शक सोने के थे. प्रथम मैं समझती थी कि मैं दो पेड़ देख रही हैं. मैं ने फिर निगाह की और क्या देखती हूँ कि वे चोटी पर संयुक्त हो गये हैं. सो जीवन का वृक्ष जीवन की नदी के दोनों ओर स्थित था. उस पेड़ की डालियाँ वहाँ तक झुकी हुई थीं जहाँ हम खड़े थे, फल भी शानदार था ऐसा लगता था कि मानो सोने चान्दी का मिश्रण हो. ककेप 34.1

हम सब वृक्ष के नीचे बैठकर उस स्थान का वैभव देखने लगे तो क्या देखते हैं कि भाई फिचे और स्फाकमन जिन्होंने राज्य के सुसमाचार का प्रचार किया था परन्तु जिन्हें परमेश्वर ने बचाने के हेतु कब्र में रख दिया था वे हमारे पास आकर पूछने लगे: जब हम सो रहे थे तो उस समय तुम्हारे ऊपर क्या-क्या गुजरी? हमने अपने भीषण क्लेशों को स्मरण करने की कोशिश की परन्तु वे उस अत्यधिक वरन् महिमा की अनन्त शान के सामने जो हमें घेरे हुए थी इतने लघु प्रतीत थे कि हम उनका नाम तक मुंह पर न ला सके और हम सब के सब बोल उठे, “हल्लिलुयाह’‘ स्वर्ग बहुत सस्ता है. फिर तेजस्वी वीणा लेकर हमने उसकी ध्वनि से स्वर्ग के गुम्बर को गुंजा दिया. ककेप 34.2

यीशु के नेतृत्व में हम सब उस नगर से इस पृथ्वी की ओर एक बड़े पर्वत पर बैठ कर उतरे जो यौशु को उठा नहीं सकता था और वह पर्वत दो भाग हो गया और एक विस्तृत मैदान बन गया. फिर हमने ऊपर की ओर निगाह की और उस विशाल नगर को देखा जिसकी बारह नौवें और बारह फाटक थे, प्रत्येक दिशा में तीन-तीन फाटक, और प्रत्येक फाटक पर एक-एक दूत खड़ा था. हम सब के सब पुकार उठे,“वह नगर, वह अनुपम नगर, स्वर्ग से परमेश्वर के पास से उतर रहा, ‘’और आकर वहाँ स्थिर हो गया जहाँ हम लोग खड़े थे. तद्पश्चात हम नगर के बाहर को और वैभवशाली वस्तुओं को देखने लगे.फिर मैंने सब से अधिक महिमापूर्ण हवेलियों को देखा, जिनकी शक्ल रुपहली थी, जिनको मोती जड़ित चार स्तंभ सम्भाले हुऐ थे. ये पवित्र जनों के निवास स्थान थे जिनमें प्रत्येक में एक सुनहली ताक थी. मैं ने अनेक भक्तों को उन मकानों में जाते और अपने भड़कीले मुकुटों को उतारकर ताक में रखते देखा, फिर घरों के पास खेतों में जाकर उन्हें काम करते देखा, इस प्रकार का काम नहीं जैसा हम करते हैं, नहीं, नहीं. उनके सिरों के इर्द-गिर्द एक तेजस्वी प्रकाश चमकता था और वे निरन्तर परमेश्वर को पुकार कर गुणानुवाद करते थे. ककेप 34.3

मैंने एक ओर खेत नाना प्रकार के फूलों से भरा हुआ देखा और ज्योंही मैंने उन्हें तोड़ा मैं चिल्ला उठी,“ये कभी नहीं मुरझायेंगे.’’फिर मैं ने एक खेत देखा जिसमें ऊंची-ऊंची घास थी और देखने में सुहावनी थी, उसको सदाबहार की हरियाली थी और सुनहले और रुपहले दोनों रंगों की झलक लिए हुए थी और खेत में दाखिल हुये जिसमें नाना प्रकार के जन्तु थे-सिंह, मेम्ना, चीता, भेड़िया. ये सब मेलजोल से रहते थे. हम उनके बीच में से गुजरें और वे शान्तिपूर्वक पीछे-पोछे हो लिये. तद्नंतर हम एक वन में गये जो उन अन्धेरे वनों की भांति न था जो हमारे आस-पास हुआ करते हैं;नहीं, नहीं;परन्तु प्रकाशमान ककेप 34.4

और अत्यन्त सुन्दर था;पेड़ों की डालियाँ हिलती थीं. हम चिल्ला उठे, “हम वन में निडर होकर रहेंगे तथा सोयेंगे.’‘ हम वन में से होकर निकले क्योंकि हम सियोन की ओर जा रहे थे. जब हम यात्रा कर रहे थे तो हमें एक दल मिला जो उस स्थान के सौंदर्य को देख रहा था. मैंने उनके वस्त्र की किनारी लाल देखी, उनके मुकुट भड़कीले और वस्त्र बिल्कुल सफेद थे. जब हम उनसे मिले तो मैंने यीशु से पूछा ये लोग कौन हैं? उसने कहा, ये वे शहीद हैं जो मेरी खातिर वध किये गये थे. उनके साथ बालकों को एक बड़ी संख्या थी; उनके वस्त्र की किनारी भी लाल थी, सियोन पर्वत हमारे सामने आ गया, उस पर्वत पर एक शोभायमान मन्दिर था, जिसके इर्द-गिर्द सात और पर्वत थे जो गुलाब तथा सोसन के फूलों से सुसज्जित थे. मैंने बालकों को पर्वत पर या तो पैदल चढ़ते या अपने पंखों से उड़कर उसकीचोटी तक पहुँचते और नाकुम्हलाने वाले फूलों को तोड़ते देखा. मंदिर की शोभा बढ़ाने को उसके चारों ओर सब प्रकार के पेड़ थे. बबूल, चीड़, सनोवर, जलपाई, मेहन्दी, अनार आदि.अंजीर का वृक्ष सामयिक फलों के वजन से झुका जा रहा था, इन सभों से वह स्थान शोभायमान दिखाई दे रहा था. जब हम पवित्र मन्दिर में प्रवेश करने जा रहे थे तो यीशु ने मधुर वाणी से कहा, “इसमें 144000 ही प्रवेश कर सकते है’’और हमने ‘हल्लिलुयाह ‘‘ के नारे लगाये. ककेप 35.1

इस मन्दिर की सात स्तंभ सम्भाले हुए थे जो पारदर्शक स्वर्ण के बने हुए थे और अति सुन्दर मोतियाँ से जड़े हुए थे.जो अद्भुत बातें मैं ने वहाँ देखी वे वर्णन से बाहर हैं. कितना अच्छा होता यदि मैं कनान को भाषा बोल सकती तब मैं उस श्रेष्ठ लोक की महिमा का थोड़ा बहुत वर्णन कर पाती. वहाँ जो मैं ने पत्थर को पहियाँ देखौं जिन पर 144000 का नाम सुनहले अक्षरों में खुदा हुआ है. मन्दिर का वैभव देखने के पश्चात् हम बाहर चले आये और यीशु भी हमें छोड़कर नगर को लौट गया.शीघ्र ही हमने उसकी प्यारी आवाज यह कहते सुनी,“मेरे प्यारे लोगों, आओ तुम भीषण क्लेशों में से निकल कर आये हो, मेरी इच्छा को तुमने पूरा किया, मेरे लिये दुख उठाया, मेरे साथ संध्या के भोजन में बैठी. मैं कमर बांधकर तुम्हारी सेवा करेंगी.’’हम चिल्लाकर बोले, “हल्लिलुयाह’’जय , हो. और नगर में प्रवेश किया. और मैंने खालिस चांदी की एक मेज देखी, जो मीलों लम्बी थी फिर हमारी आँखें उसके विस्तार को देख सकती थीं. मैं ने जीवन के वृक्ष का फल देखा, मन्ना, बादाम, अंजीर, अनार, अंगूर तथा नाना प्रकार के फल देखे. मैंने यीशु से प्रार्थना की कि मुझे फल खाने की आज्ञा दीजिए. उसने कहा, “अभी नहीं. जो इस देश का फल खा लेते हैं वे फिर मृत्यु लोक को वापिस नहीं जाते है. परन्तु थोड़ी देर के बाद यदि विश्वास योग्य रहो तो तुम जीवन के वृक्ष का फल खाओगी और चश्मे का पानी पिओगी.’‘ और उसने कहा, “तुम को फिर पृथ्वी पर लौटकर उन बातों का वर्णन करना होगा जो मैं ने तुमको दिखाई हैं.’‘ तब एक दूत एक दूत मुझको आहिस्ते से इस अंधकार जगत में ले आया. कभी कभी मैं सोचती हूँ कि इस संसार में और अधिक देर तक नहीं रह सकती; इस पृथ्वी की सव वस्तुएं भयंकर मालूम देती है. मुझे यहाँ सुनसान लगता है क्योंकि मैंने उत्तम लोक देख लिया है. काश मेरे कबूतर की तरह पंख होते तब उड़कर विश्राम पाती. 1अर्ली राइटिंग्स, पृष्ठ 14-20. ककेप 35.2