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एक चरवाहे की तरह देखभाल ChsHin 192

वह चरवाहा जो अपनी एक भेड़, एक खोई हुई भेड़ को भी ढूँढ़ निकालता है, अपनी बाकी भेड़ों को जो घर में सुरक्षित हैं, उन्हें नज़र अंदाज नहीं करता और कहता है, “मेरे पास निन्यानवें भेड़े तो हैं, और उस खोई हई को ढढने में मझे काफी परेषानी का सामना करना पडेगा। उसे खद ही वापस आ जाने दो। और मैं भेड़ द्वार उसके लिये खुला छोड़ दूंगा। ताकि वो अंदर आ सके। नहीं परंतु जैसे ही भेड़ खो जाती है, चरवाहा दुःखी और परेषान हो जाता है। वह अपनी भेड़ों को बार-बार गिनता और जब पाता है कि एक कम है तो वह देरी नहीं करता। वह कुल निन्यानवे भेड़ों को सुरक्षित स्थान में रखकर उस एक खोई हुई भेड़ को ढूँढ़ने निकल पड़ता है। अंधेरी और बहुत ही खतरों से भरी रात में, अनजान व खतरनाक रास्तों से होता हुआ वह चरवाहा जो ज्यादा चिंतित है और उससे अधिक उसकी खोज वह हर संभव प्रयास करता है कि उसकी खोई हुई भेड़ उसे मिल जाये। ChsHin 192.1

और ज बवह दूर से उसकी पहली हल्की सी आवाज सुनता तो कितना खुष हो जाता है, वह बड़ी खतरनाक ढलानवाली, ऊँचाई पर चढ़ जाता और उस खाई के किनारे तक पहुंच जाता है, जहां उसकी स्वयं की जान को खतरा है, तब भी वह उसे ढूँढ़ लेता है, जबकि उस भेड़ की आवाज वह धीमी आवाज बताती है कि वह मरने पर है, किन्तु आखिरकार चरवाहे की मेहनत रंग लाती है, उस खोई हुई भेड़ को वह पा लेता है, तब वह उसे डांटता भी नहीं कि उसके कारण उसे कितनी तकलीफ सहनी पड़ी। न वह उसे छड़ी से मारता, वह उसे घर तक चलने नहीं देता किन्तु खुशी के मारे उसे अपने कंधे पर उठा लेता है। यदि उसे कहीं चोट या खरोंच आई तो वह उसे अपनी बाहों में बड़े प्रेम से उठाता व गले से लगाता है ताकि उसके हृदय की गर्मी उसे नया जीवन दे सके। वह धन्यवादी होता है कि उसका परिश्रम उसकी खोज व्यर्थ नहीं गई। वह उसे उठाकर भेड़ षाला में रखता है। (क्राइस्ट ऑब्जेक्ट लैसन्स- 187, 188) ChsHin 192.2