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महान संघर्ष - Contents
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    पहिला दूत के समाचार

    मैंने देखा की १८४३ ई. में ईश्वर का संवाद प्रचार करवाना चाहता था। इसी उद्देश्य से उसने लोगों को जगाया और उसकी जाँच की जिससे वे निर्णय कर सके। पादरी लोग सच्चाई को विश्वास कर अपनी आत्मिक दशा को भी पहचानने लगे। उन्होंने अपना गर्व को छोड़ा, नौकरी भी छोड़ी और मंडली भी छोड़ कर जगह-जगह पर सुसमाचार सुनाने के लिए निकल पड़े। सनातन का यह सुसमाचार बहुत लोगों के दिल में घुसने के बदले कम ही लोगों में घुसा। तब ईश्वर ने उन्हें चुना जो प्रचारक या पादरी नहीं थे। कुछ ने अपने खेती-बारी का काम छोड़ा तो कुछ ने अपनी दूकानदारी का काम छोड़ कर प्रचार के काम में लग गये। कुछ लोग जो पेशावार थे उन्हें अपना पेशा को छोड़ने के लिये मजबूर किया गया और उन्हें इस साधारण काम जो लोगों को सुसमाचार सुनाना था उसमें लगाये गये। मंत्रियों को भी अपना सचिवालय का काम छोड़ कर यीशु मसीह के आने के सुसमाचार देने पड़े। हर तरफ लोग जाने लगे और सुसमाचार भी उधर फैलने लगे। पापी लोग रो-रो कर पश्चात्ताप का पापों की क्षमा के लिये प्रार्थना करने लगे। जो लोग बेईमानदार थे वे अपनी दशा सुधारने के लिये बहुत इच्छुक थे। 1SG 105.1

    माता-पिता अपने बच्चों के लिये बहुत जोर से प्रार्थना कर रहे थे। जिन्होंने इस संवाद को पाया था, वे अपने अपश्चातापी मित्रों और सम्बन्धियों को समझाने में व्यस्त थे। वे एक साथ प्रार्थना के लिये घुटना टेक कर इस संवाद की गम्भीरता को ध्यान में रखते हुए यीशु के दूसरे आगमन की तैयारी के लिये आग्रह करने लगे। जो लोग इस दिल छूने वाली चेतावनी को सुन कर भी अपना दिल कठोर किये हुए थे, उनको समझाने में कठिन परिश्रम करना पड़ा। इस आत्मा शुद्ध करने का काम ने बहुत लोगों को दुनिया को मोह-माया से अलग कर दिया। वे अब पवित्र चाल-चलन की ओर झुक गए। विलियम मिल्लर ने जो सच्चाई प्रचार की उस को लोग ग्रहण करने लगे। ईश्वर के दासों को एलिया के समान प्रचार करने का जोश मिला, वे प्रचार के काम में तन-मन से लग गए। जिन्होंने यूहन्ना बपतिस्मा का जोश से इस गम्भीर संवाद को पेश किया उन्हें कहा गया कि पश्चात्ताप का फल पाने के लिये लोगों के मन की गहराई तक जाना होगा। उनकी गवाही इतनी जबरदस्त थी कि मंडली के लोगों का चरित्र को बदल डाला। आने वाला क्रोध का दिन से भागने के लिये जैसे ही चेतावनी का यह गम्भीर संवाद पेश किया गया तो कुछ लोग जो सत्य को ग्रहण करने लगे उन्हें चंगा करने का भी संवाद मिला। उन्हें अपनी गिरी हुई दशा मालूम हुई, वे आँसू बहाकर पश्चाताप करने लगे और आत्मा की वेदना से ईश्वर के सामने नम्र हुए। जब परमेश्वर की आत्मा उनके मन में उतरा तो वे घोषणा करने लगे - “ईश्वर से डरो और उसकी महिमा करो क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ गया है।” 1SG 105.2

    जब यीशु के आने का ठीक समय के विषय प्रचार हो रहा था तो लोग इसे पसन्द नहीं कर रहे थे। पादरियों से लेकर नीचे के साधारण मण्डली के सदस्य भी इसका विरोध करने लगे। ढोंगी पादरी और हँसी-ठट्ठा करने वाले लोगों के मुँह से सुनाई देने लगा कि यीशु के आने का ठीक समय को कोई नहीं जानता है। जब भविष्यवाणी की बात को बताकर उन्हें समझाने की कोशिश की जा रही थी तो लोग सुनना पसन्द नहीं करते थे और न अपनी गलती सुधारना चाहते थे। उन्हें बताया जा रहा था कि भविष्यवाणी पूरी हो रही है और यीशु का आना भी नजदीक है। यहाँ तक कि दरवाजा पर है। मंडली के कई चरवाहे थे वे कह रहे थे कि यीशु के आने का प्रचार करने में उनकी ओर से कोई बाधा नहीं है पर निश्चित समय पर आने के विषय में वे राजी नहीं हैं। सर्वज्ञानी ईश्वर ने उनके हृदय को पढ़ लिया। वे यीशु के आने का नजदीकी समय को पसन्द नहीं कर रहे थे। वे जानते थे कि उनका सांसारिक जीवन इस कसौटी में खरा नहीं उतरेगा। क्योंकि जो सीधा और नम्र रास्ता दिखाया गया था उसमें वे नहीं चल रहे थे। ये ही झूठे चरवाहे थे जो ईश्वर का मार्ग में रोड़ा अटका रहे थे। विश्वास उत्पन्न करने वाला शक्तिशाली वचन जब पेश किया गया तो लोगों का दिल छिद गया और वे उस दरोगा की तरह कहने लगे कि बचने के लिये मैं क्या करूँ? परन्तु ये झूठे पादरीगण सच्चाई और लोगों के बीच खड़े होकर उन्हें सच्चाई से भटका रहे थे। वे शैतान और उसके दूतों से मिल कर कहने लगे - “शान्ति, शान्ति, जबकि शान्ति नहीं थी।” मैंने देखा कि ईश्वर के दूतों ने उन्हें चिन्ह कर लिया और उन अपवित्र चरवाहों का वस्त्र लोगों के खून से रंग दिया गया था। जिन्होंने ऐश-आराम का जीवन और ईश्वर से दूर ही रहना पसन्द किया उनका दूषित मन को दूर नहीं किया जा सका।1SG 106.1

    बहुत से चरवाहों (पादरियों) ने इस संवाद को ग्रहण नहीं किया और जिन्होंने ग्रहण किया उन्हें बाधा पहुँचाने की चेष्टा की। उनके खून का लेखा उन्हें देना पड़ेगा। स्वर्ग का इस संवाद को प्रचारक और लोगों के दोनों दल विरोध करने लगे। विलियम मिल्लर के साथ जो लोग काम करते थे उन्हें वे सताने लगे। उसका प्रभाव पर हानि पहुँचाने के लिये झूठी नोटिशें चारों ओर बाँटी गई। दूसरे समय पर जब उसने ईश्वर का वचन से अपने श्रोताओं को सुनाया तो झूठे चरवाहों की बातें असत्य निकली तो वे गुस्सा से भर गये। उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की कि उसकी रक्षा कर सुरक्षितपूर्वक उसे अपने घर पहुँचावे। गुंडों के हाथ से उसे बचा लिया क्योंकि अभी उसे ईश्वर के लिये बहुत काम करना था। 1SG 107.1

    जो लोग बहुत ही ईश्वर भक्त थे उन्होंने तो इस संवाद को ग्रहण कर ही लिया। उन्हें मालूम हुआ कि यह संवाद ईश्वर की ओर से ठीक समय में मिला है। स्वर्गदूतगण इसका (संवाद) परिणाम देखने के लिये व्यग्रता से आशा लगाए हुए थे। जब मंडली ने इसका विरोध कर दूसरी तरफ मुँह मोड़ लिया तो वे दुःखित हो कर यीशु से विचार-विमर्श करने लगे कि क्या होने वाला है। यीशु ने भी अपना मुँह नहीं स्वीकार करने वाली मंडली की ओर से फेर लिया और दूतों से कहने लगा कि जिन्होंने साक्षी की बात को इन्कार नहीं की है उन लोगों की रक्षा करो, क्योंकि अभी और दूसरी ज्योति उनके लिये आने वाली है। 1SG 108.1

    मुझे यह दिखाया गया कि जो लोग मसीह के चेले हैं वे यीशु के आने की बाट देखते, उनका प्रेम उस पर होता, वे यह समझते कि उसके जैसा पृथ्वी पर कोई दूसरा नहीं है तब वे उसके आने की खबर पहली बार पाते तो आनन्द से उसकी जय जयकार करते। परन्तु उन्होंने उसे नकारने की साक्षी दी और उनके लिये उसका दूसरा आगमन से पता चलता है कि उसे प्रेम नहीं करते हैं। शैतान और उसके दूतों ने अपनी विजय समझ कर यीशु के चेहरे पर उदासी डाली और कहा कि उसके चेले उसका दूसरा आगमन से नाखुश हैं।1SG 108.2

    मैंने ईश्वर के सच्चे लोगों को आनन्दपूर्वक यीशु के आने की प्रतीक्षा करते हुए देखा। पर ईश्वर ने उसका सबूत देखना चाहा। भविष्यवाणी के मुताबिक यीशु के आने का दिन ठहराया गया था, उस पर ईश्वर ने अपने हाथ से ढाँक दिया था। जो यीशु के आने की राह बहुत बेताब होकर देख रहे थे, उन्होंने भी इस गलती को नहीं देखा और जो लोग विद्वान थे, उसका विरोध कर रहे थे। उन्होंने भी नहीं देख पाया। ईश्वर की इच्छा थी कि इन्हें एक बार निराश होना होगा। समय गुजर गया। जिन लोगों ने बड़े आनन्द से उसके आने की बाट जोह रहे थे और नहीं आया तो बहुत उदास हुए, जब कि दूसरे लोग यीशु का आगमन नहीं चाहते हुए भी डर से संवाद ग्रहण कर चुके थे और यीशु नहीं आया तो खुशी हुई। उनके दैनिक कामों से उनके न दिल का बदलाव आया और नव जीवन में शुद्धता आई। इन दिलों को बताने के लिये समय का सही हिसाब लगाया गया था। ये ही लोग पहला व्यक्ति रहे जिन्होंने उदास दिलवालों को ठट्टा में उड़ाने का काम किया, उन्हें जो यीशु के आने की राह तन-मन से देख रहे थे। मैंने इसमें ईश्वर की बुद्धि को देखा - उसने उनको परखा और दोबारा बैबल से इस विषय में ढूँढ़-ढाँढ़ करने का अवसर दिया कि कहाँ पर वे गलती कर रहे हैं। फिर जो लोग इस संवाद पर विश्वास नहीं कर रहे थे उनके विश्वास को डगमगा कर सिर्फ सच्चे विश्वासियों को चुनने का मौका मिला। 1SG 109.1

    यीशु और स्वर्गीय दूत उनको सहानुभूति से देख रहे जो यीशु को प्रेम करते थे और उसके आने की इच्छा करते थे। उनके निराशा और उदास की घड़ी में स्वर्गदूत उनके ऊपर छाया किये हुए थे और उन्हें सान्तवना दे रहे थे। परन्तु जो स्वर्गीय संवाद को ग्रहण करना नहीं चाहते थे उन्हें अंधकार में छोड़ गया। ईश्वर का गुस्सा उन पर भड़क उठा क्योंकि उन्होंने स्वर्ग से जो ज्योति आई थी उसे ग्रहण नहीं की थी। जो विश्वासी उदास हो कर सोच रहे थे कि क्यों उनका प्रभु नहीं आया, उन्हें अंधकार में नहीं छोड़ा गया। फिर से उन्हें बाईबिल की भविष्यवाणियों को अध्ययन करने का मौका मिला। इस बार ईश्वर का हाथ उस रहस्यमय जगह से हट गया और उन्हें अपनी गलती समझने का अवसर मिला। उन्होंने देख पाया कि भविष्यवाणी का समय या मन्दिर को शुद्ध करने का समय १८४४ ई. में पहुँच गया। वे प्रमाण देते आ रहे थे कि दानिय्येल ८:१४ की भविष्यवाणी १८४३ में पूरी हो रही है और यीशु १८४४ ई. में आयेगा।1SG 109.2

    ईश्वर के वचन से उन्हें प्रकाश मिला और उन्होंने इसे प्रतीक्षा करने का समय बताया। यदि दर्शन में प्रतीक्षा या ठहरो था, तो उन्हें यीशु के शीघ्र आगमन की प्रतीक्षा में ठहरना था पर वे इसकी अवहेलना की और उसी दिन यीशु को इस पृथ्वी पर आने की प्रतीक्षा की जबकि यीशु उस दिन को स्वर्ग का महा पवित्र स्थान में प्रवेश किया। यह दर्शन बाईबिल को भविष्यवाणियों को गहरा अध्ययन के समय दर्शन में मिला। बहुत से लोग १८४४ ई. का महान निराशा में इतना निरूत्साह हो गये कि अपना पहिले का जोश और होश को बिल्कुल खो दिए। वे इस संवाद पर विश्वास करना व्यर्थ समझने लगे। शैतान और उसके दूतों ने इन्हें हतास कर दिया था और जिन्होंने इस पर विश्वास नहीं किया था, वे इस को देख कर खुश थे। वे भ्रम पैदा करने वाला संवाद कह रहे थे। उन्हें मालूम नहीं हो रहा था कि ईश्वर की सलाह का इन्कार कर रहे थे जिसका बुरा नतीजा उन पर पड़ने वाला था। वे शैतान के साथ मिल कर ईश्वर के सच्चे विश्वासियों को हतास करने में लगे थे। 1SG 110.1

    इस संवाद पर विश्वास करने वालो को मंडली में बेइज्जत कर रहे थे। कुछ समय के लिये ये डर कर अपने मनों की बात या सत्य जो बाद में उन्हें मिला था उसको नहीं बता रहे थे। जब कुछ दिन बीत गए तो उन्होंने फिर सत्य को बताना शुरू किया। उनको हिसाब लगाने में जो गलती हुई थी उसे बताने लगे। वास्तव में हिसाब में गलती नहीं थी पर यीशु का स्वर्ग का महापवित्र स्थान में प्रवेश करने को पृथ्वी पर आने बताया गया था। इस शक्तिशाली तर्क के विरूद्ध में विरोध करने वाले कुछ तर्क न दे सके। पर मंडली में लोगों का गुस्सा इनके ऊपर बढ़ा। उन्होंने ठान लिया कि उनका उपदेश अब किसी भी मंडली में सुनाने नहीं दिया जायेगा और न किसी जगह अपने लोगों को सुनने देंगे। जिन्होंने विरोधियों का सामना नहीं किया वे स्वर्ग का दिया हुआ संवाद सुनने से वंचित रह गए पर जो सुनने के लिये तरसते थे उनके साथ यीशु के दूसरे आगमन का संवाद जो दूसरा दूत के द्वारा सुनाया गया था उसे सुन कर अपने को न्याय के दिन के लिये तैयार कर रहे थे।1SG 111.1

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