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महान संघर्ष - Contents
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    रव्रीस्त-यीशु का पहला आगमन

    श्रीमती ई. जी. व्हाईट अपने दर्शन की बात कहती है कि जब यीशु मनुष्य का अवतार लेने वाला था तो मुझे स्वर्ग से उतारा गया। उस वक्त उसने अपने को नम्र बनाकर शैतान की परीक्षा का भी सामना किया।1SG 11.1

    यीशु का जन्म के समय कोई तड़क-भड़क नहीं था। वह गौशाला की चरणी में जन्मा फिर भी इस दुनियां के मनुष्यों के जन्म से अधिक ही आदर ज्योतिषियों से पाया। स्वर्गदूत जब यीशु के जन्म की खबर देने गड़ेरियों के पास पहुँचे तो एक बड़ी ज्योति भी साथ आई। स्वर्गदूतों ने अपनी वीणाओं को बजा कर स्वागत के लिये महिमा के गीत गायें। उन्हों ने बहुत जोश के साथ यीशु के जन्म को पतित मानव को बताया। वह इस पृथ्वी में आकर मनुष्यों के लिए मर कर सुख और शान्ति और अनन्त जीवन लायेगा। ईश्वर ने पुत्र का आगमन को सम्मानित किया और स्वर्गदूतों ने उपासना की।1SG 11.2

    जब उसका बपतिस्मा हुआ तो स्वर्गदूत ऊपर से उस पर छाया डाल रहें थे। पवित्रात्मा कबूतर के रूप में उस पर आया और उजाला किया तो लोग बहुत आश्चर्य करने लगे। ईश्वर की आवाज उस वक्त सुनाई दी - ‘तू मेरा प्रिय पुत्र है, मैं तुझसे अति प्रसन्न हूँ।’1SG 11.3

    यूहन्ना को निश्चय मालूम नहीं था कि त्राणकत्र्ता बपतिस्मा लेने के लिये उसके पास जर्दन नदी में आया है। ईश्वर ने उसे पहचानने के लिये एक चिन्ह दिया था जिसे देखकर वह पहचान सके। वह चिन्ह तो यह था कि कबूतर आकर उसके सिर पर बैठेगा और चारों ओर महिमा का प्रकाश छा जायेगा। यूहन्ना ने अपने हाथ को यीशु की ओर इशारा करके कहा देखो-मनुष्य का पुत्र जगत का पाप उठा ले जाता है।1SG 11.4

    यूहन्ना ने अपने चेलों को बतलाया कि प्रतीज्ञा का उद्धारकत्र्ता यीशु मसीह यहीं है जो जगत को बचायेगा। अपने काम के अन्तिम समय में यूहन्ना ने अपने चेलों को सिखाया कि तुम लोग यीशु को देखो और उसके पीछे चलो, क्योंकि वह एक महान शिक्षक है। यूहन्ना का जीवन शुष्क था। वह निःस्वार्थ के साथ-साथ उदास भी रहता था। उसने रव्रीस्त का पहला आगमन की सूचना दी, पर ताज्जुब, काम करने का अवसर नहीं मिला जिससे वह उसका आनन्द नहीं पा सका। वह जानता था कि यीशु को जब अपने शिक्षक के रूप में बतायेगा तो उसे (यूहन्ना) मरना पड़ेगा। उसकी पुकार (प्रचार) सिर्फ जंगल में ही सुनाई पड़ी। वह एकान्त जीवन बिताता था उसने अपने सांसारिक पिता का परिवार में न रह कर घर का सुख से वंचित रहा। अपना काम करने वह एकान्त में चला गया। बहुत लोग अपना काम-धंधा छोड़ कर इसका उपदेश सुनने के लिए गाँव-घर से मरूभूमि की ओर चले। यूहन्ना ने यीशु का मार्ग तैयार किया था। उसने निडर होकर लोगों को बताया था कि पाप का क्या परिणाम होगा और ईश्वर का मेम्ना का मार्ग तैयार किया था।1SG 12.1

    यूहन्ना का प्रभावशाली उपदेश से हेरोद डगमगा गया था। उसने बहुत इच्छुक हो कर पूछा कि उस का चेला बनने के लिए क्या करना होगा? यूहन्ना को मालूम था कि वह (हेरोद) अपना भाई की पत्नी से शादी करना चाहता था। उसका भाई अभी जिन्दा था और उसने कहा था कि ऐसा करना उचित न होगा। हेरोद इस पर राजी नहीं था। उसने अपने भाई की पत्नी से शादी कर उसके द्वारा यूहन्ना को पकड़ कर जेल में डलवाया। पर हेरोद उसे छोड़ना चाहता था। जेल में रहते हुए यूहन्ना ने यीशु के बड़े-बड़े काम के विषय सुने थे। उसने तो कभी यीशु के उपदेश नहीं सुने थे, पर चेलों ने उसे बतलाया था और उसे सान्तवना दिया था। इसके तुरन्त बाद हेरोद ने यूहन्ना बपतिस्मा देने हारा को कत्ल करवा दिया। इसमें उसकी पत्नी का हाथ था। श्रीमती व्हाईट कहती है कि यीशु के थोड़े चेलों ने उस के (यीशु) उपदेश और शान्ति के वचन सुने, वे यूहन्ना बपतिस्मा के उपदेशों से अधिक प्रभावशाली थे। यीशु के वचन अधिक सम्मानजनक और ऊपर उठानेवाले थे। उनमें अधिक आनन्द मिलता था।1SG 12.2

    यूहन्ना, एलिय्याह नबी के आत्मा और शक्ति से यीशु के पहिला आगमन की गवाही देने आया था। फिर एलेन व्हाईट कहती है कि मुझे दर्शन में दिखाया गया है कि अन्तिम दिनों का क्रोध के समय और यीशु का द्वितीय आगमन के पहले जो लोग संवाद सुनायेंगे तो ठीक एलिय्याह की आत्मा और अधिकार का प्रयोग करेंगे।1SG 13.1

    यीशु का बपतिस्मा होने पर आत्मा ने उसे जंगल में लिया जहाँ शैतान से उसकी परीक्षा की। भयंकर तथा कठिन प्रलोभन और परीक्षा के समय पवित्रात्मा उसके साथ था। यीशु बिना खाये-पीये चालीस दिन तक था। उसके चारों ओर का दृश्य बहुत ही खराब था जिसे मनुष्य अन्दाज लगा सकता था। उस निर्जन स्थान में यीशु जानवरों के साथ अकेला था और शैतान भी वहाँ पर परीक्षा करने के लिए तैयार बैठा था। एलेन व्हाईट कहती है कि मैंने यीशु का चेहरा को पीला देखा और उपवास कर दुःख सहने के कारण दुबला-पतला भी देखा। पर वह तो ठहराया हुआ काम को करने आया था और उसे पूरा करना ही था।1SG 13.2

    परमेश्वर के पुत्र की दुःख-तकलीफ का फायदा शैतान ने उठाया। उस पर विजय प्राप्त करने की आशा से उसने उस पर हर तरह की परीक्षाएँ लाईं क्यों कि यीशु ने मनुष्य का अवतार लिया था अतः शैतान को आशा थी कि जैसा उसने आदम-हव्वा को परीक्षा में गिराया था वैसे ही इसे भी गिरा देगा। यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो इस पत्थर को रोटी बना कर खा लो। उसने यीशु को मसीह होने का प्रमाण देने का लालच देकर उसकी स्वर्गीय शक्ति प्रदर्शन करने को कहा। यीशु ने नम्र भाव से जवाब देते हुए कहा - “लिखा है, मनुष्य सिर्फ रोटी से अकेला नहीं जीता है पर हरेक वचन जो परमेश्वर के मुख से निकलता है।”1SG 14.1

    यीशु को परमेश्वर का पुत्र होने सम्बन्धी शैतान उस से तर्क करने चाहता था। उसने उस की दयनीय स्थिति का गर्वपूर्वक चर्चा कर अपने को यीशु से बढि़या साबित करना चाहता था। परन्तु स्वर्ग से जो वचन बोला गया था कि तू मेरा प्रिय पुत्र है जिससे मैं अति प्रसन्न हूँ। वही यीशु के लिए दुःख में धीरज धरने का काफी सहारा था। मैंने देखा कि यीशु अपने सारे कामों के दौरान अपनी शक्ति और पुत्र होने का परिचय, शैतान को देना उचित न समझा। शैतान के पास यीशु जगत का उद्धारकत्र्ता है, इसका काफी प्रमाण था। उसके इस अधिकार को न मानने के कारण ही शैतान स्वर्ग से बाहर हुआ है।1SG 14.2

    यीशु को उसकी शक्ति की परीक्षा करने के लिये शैतान ने उसे यीरूशलेम मन्दिर की चोटी पर ले कर बैठाया और उसे वहाँ से नीचे डेगने कहा, इस बार शैतान पवित्र शास्त्र की बातों को बोलते हुए कहा कि लिखा है कि स्वर्ग दूतगण तुझे गिरने से बचा लेंगे। तुझे जमीन पर ठोकर खाने नहीं देंगे। यीशु ने फिर उसे उत्तर दिया, - “तू अपने परमेश्वर की परीक्षा मत कर।” शैतान चाहता था कि वह अपने पिता की मदद व दया की आशा लगा कर अपना जीवन को खतरे में डालेगा और अपना काम पूरा करने नहीं सकेगा। उसे आशा थी कि उद्धार की योजना असफल हो। लेकिन योजना की नीव इतनी मजबूत थी कि शैतान को उसे उखाड़ फेंकना या बिगाड़ना कठिन था।1SG 14.3

    मैंने देखा कि रव्रीस्त सब मसीहियों के लिए एक अच्छा उदाहरण बना जब वे परीक्षा में पड़ते हैं या विवाद में फँसते हैं। उन्हें धीरज धरे रहना चाहिए। उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि अपना काम कराने के लिये ईश्वर को आश्चर्य काम करवाना है। जब तक कोई विशेष उद्देश्य न हों और ईश्वर की महिमा प्रगट न हो तो उसे आश्चर्य कर्म नहीं कराना है। यदि यीशु अपने को जमीन पर जबर्दस्ती गिराता तो ईश्वर की महिमा नहीं होती। इसे स्वर्गदूत और शैतान को छोड़ कोई नहीं देखते। यीशु दुश्मन के विरूद्ध यदि अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता तों वह परीक्षा में गिर जाता। यदि ऐसा होता तो यीशु को उससे समझौता करना होता न कि अपना दुश्मन को हराना। शैतान उसे पहाड़ की ऊँची चोटी पर बैठा कर संसार का सारा वैभव एक ही मिनट में दिखा कर बोला कि मैं ये सब तुझे दे दूँगा यदि तू मुझे झुक कर प्रणाम करे। यीशु ने शैतान को डाँटते हुए कहा - “हे शैतान, तू दूर हट जा, क्योंकि लिखा है कि प्रभु अपने ईश्वर को छोड़ किसी की उपासना न करना।”1SG 15.1

    शैतान ने यीशु को जगत का राज्य और उस का वैभव को दिखाया था। संसार को बहुत लुभावना ढंग से दिखाया था। यीशु को बोला सिर्फ एक बार प्रणाम करने से ही मिल जायेगा। जगत में अपना अधिकार जमाना छोड़ देगा। शैतान को मालूम था कि उस की शक्ति सीमित है और उसे छीना जायेगा, जब उद्धार की योजना का काम पूरा होगा। मनुष्यों को छुड़ाने के लिये यदि यीशु मरेगा तो उसका अधिकार पृथ्वी पर समाप्त होगा और उसे मरना पड़ेगा। इसलिये वह यीशु को उसके काम से हटाने चाहता था। यदि हो सके तो उद्धार करने का एक बड़ा उपाय यीशु ने शुरू किया था उसे शैतान को रोकना था। यदि उद्धार कराने का काम असफल होता तो शैतान का अधिकार जगत से नहीं उठता। यदि शैतान सफल होता तो यह कह कर झूठी बड़ाई करता कि मैं जगत में राज्य कर रहा हूँ ईश्वर नहीं।1SG 15.2

    जब यीशु ने स्वर्ग की महिमा और अधिकार को छोड़ा तो शैतान बहुत खुश हुआ। वह सोचता था कि वह अब उस के कब्जे में आ जायेगा। आदम-हव्वा को तो उसने बड़ी आसानी से ठग दिया और यीशु को भी बहुत आसानी से ठग कर अपना राज्य और प्राण को बचाने सोचा था। यदि वह यीशु को पिता की इच्छा के विरूद्ध चलाने में सफल होता तो उसका मनोरथ पूर्ण हो जाता। यीशु ने शैतान से कहा था कि तू मेरे पीछे हट जा। उसे सिर्फ ईश्वर के सामने झुकना है। समय आ रहा था तब यीशु शैतान का सारा अधिकार छीन लेता और पृथ्वी पर के सब प्राणी उसके अधीन होते। शैतान ने दावा किया संसार का सब अधिकार उसके पास है और वह उसे यीशु को देने के लिये तैयार है बशर्ते कि वह उसे झुक कर प्रणाम करे। इसके लिये यीशु को दुःख भी नहीं सहना पड़ेगा। पर यीशु अपने विचार पर अटल रहा। पिता ने इस राज्य को पाने के लिए यीशु को दुःख-तकलीफ सह कर मृत्यु दण्ड भी पाने का उपाय किया था। इसलिये वह सहज से नहीं पर कठिनाई से राज्य पाना अच्छा समझा। वह उचित ढंग से जगत का उत्तराधिकारी बना। उसे इस पर सनातन का अधिकार मिला। शैतान को भी मार डालने का अधिकार मिला, जिससे वह भविष्य में यीशु को या किसी सन्त को भी न तंग करे।1SG 16.1

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