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महान संघर्ष - Contents
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    पाठ ७ - ख्रीस्त का पकड़वाया जाना

    जब यीशु अपने चेलों के साथ फसह पर्व मना रहा था तो मुझे दर्शन मिले कि मैं स्वर्ग से पृथ्वी में उतर रही हूँ। शैतान ने यहूदा इस्कारियोती को यीशु का एक चेला कहलवा कर उसके द्वारा यीशु को पकड़वाया। यहूदा का मन तो हमेशा कुटिल रहता था। वह तो यीशु की सेवकाई के पूरे समय उसके साथ रहा और उसके बहुत बड़े और अचम्भे काम देख कर मोहित हुआ था लेकिन वह एक बहुत लालची व्यक्ति था। वह पैसों का बहुत प्रेमी था। जब मरियम के द्वारा यीशु के पावों पर दामी तेल ढाला गया तो उसने इसकी शिकायत की थी। मरियम तो अपने प्रभु यीशु को प्यार करती थी। उसने उसके बहुत से पाप क्षमा किये थे और उसका भाई लाजर को भी जिलाया था। इसलिये वह सोचती थी कि यीशु को देने के लिये कुछ कीमती चीज की जरूरत है। यह तेल जितना अधिक कीमती होगा उतना ही अच्छा होगा अपनी कृतज्ञता प्रगट करने वास्ते। यहूदा अपना लालचपन को छुपाते हुये कहता है कि इसे तो बिक्री कर गरीबों की मदद की जा सकती थी पर क्यों बरबाद किया जा रहा है। इसे बिक्री कर पैसे को गरीबों को देने का मन यहूदा को नहीं था पर वह इस पैसों को खजाने में रखकर किसी समय अपना खर्च चलाना चाहता था। वह तो बहुत स्वार्थी था और प्रायः मंडली के रूपये जो उसके हाथ में थे उसे गरीबों को ना देकर उसका दुरूपयोग करता था। यहूदा ने कभी भी यीशु की जरूरतों और सुख-सुविधाओं का ख्याल नहीं किया। अपने लालचपन को छुपाने के लिये प्रायः गरीबों का नाम लेता था। इस काम के द्वारा मरियम की उदारता ने यहूदा का लालची स्वभाव को लताड़ा।GCH 25.1

    यहूदा के मन को परीक्षा में डालने के लिये इस तरह से रास्ता साफ किया गया जिसका ताक शैतान देख रहा था। यहूदी लोग यीशु से घृणा करते थे। पर उसके युक्तिपूर्ण और ज्ञान से भरपूर उपदेश को सुनने के लिये भीड़ लगा देते थे। इस तरह से पुरोहित और प्राचीन लोगों का ध्यान इस ओर गया। लोग उसके उपदेशों को सुनने के लिये उत्तेजित हो जाते थे क्योंकि वह एक महान गुरू था। यहूदियों की महासभा (सन् हेड्रिन) के अधिकारी भी यीशु पर विश्वास करते थे लेकिन अपने को उसका चेला बोल कर स्वीकार नहीं करते थे। क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं उनको महासभा (सन् हेड्रिन) से निकाला जाये, वे लोगों के मन को यीशु की ओर से हटाने का कुछ उपाय सोचने लगे। उनको डर हो रहा था कि सब लोग यीशु की ओर न चले जायें। अपने लिये वे कुछ बचाव नहीं देख पा रहे थे। वे सोचते थे तो यीशु को मार डाले या अपनी पदवी से हट जायें। यदि यीशु को मार भी डाले तो भी उसके बहुत से मजबूत चेले हैं। यीशु ने लाजरस को जिलाया था और वह इसके विषय में एक जीवित गवाही दे सकता था। बहुत से लोग लाजरस को देखने आते थे। उन्होंने सोचा कि क्यों न लाजरस का भी कत्ल किया जाये और उसको देखने की उत्तेजना को बन्द किया जाये। ऐसा करने के पश्चात्त वे लोगों को यहूदियों की परम्परा का धर्म की ओर खींच कर उन्हें राई, सरसों और पुदीना के भी दसवाँस दिला सकते थे। जब यीशु अकेला रहेगा उसी समय मारने का विचार किया गया। जब भीड़ में यीशु को मार डालने की कोशिश की जाये तो लोग उससे प्रेम करते हैं। वे उल्टे हम पर पत्थर बरसायेंगे कहकर डरते थे।GCH 26.1

    यहूदा का चरित्र उन्हें मालूम था। वह पैसे के लिये कितना लोभी था। यदि उसे कुछ पैसे दे दिए जाते हैं तो वह निश्चय ही यीशु को हमारे हाथों में धरा देगा। उसका पैसे का लोभ ने अपना गुरू (यीशु) को दुश्मनों के हाथ पकड़वाने के लिये राजी किया। शैतान सीधा, यीशु को पकड़वाने के लिये मन में काम कर रहा था और उस फसह पर्व की बिमारी के अन्त में यह काम किया गया। यीशु ने दुःख के साथ अपने चेलों को बताया कि तुम लोग मेरे कारण ठोकर खाओगे। पतरस ने बड़े गर्व से कहा - “हे ! प्रभु यदि तेरे कारण सब ठोकर खायें तो खाने दे पर मैं नहीं खाऊँगा।” यीशु ने कहा कि शैतान ने तुझे पकड़ कर गेहूँ की तरह फटकने चाहा है पर मैंने तुम्हारे लिये प्रार्थना की है तू विश्वास में बना रहेगा। जब तुम स्थिर हो जाओगे तो अपने भाईयों को भी दृढ़ करो।GCH 26.2

    मैंने यीशु को अपने चेलों के साथ गेतसीमानी बागन में देखा। बहुत उदास होकर यीशु ने अपने चेलों से कहा कि जागते रहो और प्रार्थना करते रहो जिससे तुम परीक्षा में न पड़ो। यीशु को मालूम था कि उनका विश्वास परख जायेगा और उन्हें उदास होना पड़ेगा। पर जागते रह कर प्रार्थना करते रहने से उन्हें विश्वास में स्थिर रहने के लिये बल प्राप्त होगा। यीशु वहाँ रो-रो कर प्रार्थना करने लगा - हे पिता ! यदि हो सके तो यह दुःख का प्याला मेरे सामने से दर कर, फिर भी यह मेरी इच्छा नहीं, तेरी इच्छा हो तो पूरी हो। यीशु एक भारी संबेदना से प्रार्थना कर रहा था। खून के समान पसीने उसके चेहरे से गिर पड़े। स्वर्गदूतों की छाया उस पर थी। वे उसे देख रहे थे। पर एक ही दूत को उसके पास जा कर मदद करने की आज्ञा थी। स्वर्गदूतों ने स्वर्ग में अफसोस कर अपने-अपने वीणा बाजा फेंक दिए और यीशु का दुःख-कष्ट को उदास होकर देख रहे थे। स्वर्ग में उदासी छा गयी थी। वे चाहते थे कि यीशु को इस दुःख से छुड़ा ले परन्तु कप्तान स्वर्गदूत ने ऐसा करने से मना किया। क्योंकि यदि ऐसा किया जाता तो यीशु को मरना नहीं पड़ता और मनुष्यों को बचाने का काम भी पूरा नहीं होता।GCH 27.1

    प्रार्थना करने के बाद यीशु अपने चेलों को देखने आया। वे सो रहे थे। उस संकट की घड़ी में यीशु ने अपने चेलों की प्रार्थना के द्वारा शान्ति और मदद नहीं पायी। कुछ देर पहले ही पतरस ने अपने को बड़ा वीर साबित किया था। अभी वह गहरी नींद में सो रहा था। यीशु ने उसकी बातों को याद दिलाते हुए व्यंग शब्दों में कहा कि क्या तुम लोग मेरे साथ एक घन्टा भी नहीं जाग सकते हो ? यीशु ने तीन बार बहुत दुःखित हो कर प्रार्थना की। इतने में यहूदा अपना दल लेकर पहुँच गया। वह यीशु को पहले की तरह सलाम करने आ गया। उसका दल ने उसे घेर लिया। वहाँ यीशु ने अपना स्वर्गीय अधिकार का प्रयोग कर कहा - ‘तुम जिसे ढूँढ़ते हो ? मैं वही हूँ, इसे सुनकर वे पीछे जमीन पर गिर पड़े। यीशु ने उनको जनवाने चाहा कि वह अपना अधिकार का प्रयोग कर अपने को उनके हाथ से, चाहे तो छुड़ा सकता है।GCH 28.1

    जब दुश्मन लोग अपनी ढाल और तलवार के साथ गिर पड़े तो दूतों को आशा लग रही थी कि यीशु बचेगा। वे उठ कर फिर यीशु को घेरने लगे तो पतरस ने गुस्सा से एक व्यक्ति का कान काट डाला। यीशु ने पतरस से कहा कि अपनी तलवार म्यान में रख ले। तुम यह नहीं सोचते हो कि मैं अपने पिता से प्रार्थना कर पलटानों का बारह दल नहीं माँग सकता हूँ। मैंने देखा कि यीशु जब यह कह रहा था तो दूतों के चेहरे खुशी से चमक रहे थे। वे फिर से यीशु को घेर कर उसके दुश्मनों से छुड़ाना चाह रहे थे। यीशु की इस बात को सुन कर उनमें फिर उदासी छा गई कि ऐसे में पवित्र शास्त्र की बात कैसे पूरी होगी ? इसे सुनकर चेलों के मन हतास-नीरस से भर गये। उन्होंने यीशु को ले जाते देखा।GCH 28.2

    चेले डर कर भाग गए। यीशु अकेला रह गया। शैतान की क्या यही विजय है? और स्वर्गदूतों के बीच में क्या ही दुःख और सन्ताप का कारण हुआ ! पवित्र दूतों के दलों में से एक-एक को इस दृश्य को देखने भेजा गया। यीशु पर जो भी दोष या अपमान या मार क्रूरता से पड़ रही थीं उनको रेकार्ड रखने को कहा गया। हर दुःख का अनुभव यीशु ने किया उसे भी लिखने कहा गया। क्योंकि इसे जीवित चरित्र में उन्हें देखना था।GCH 29.1

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    मत्ती २६, मरकुस १४, यूहन्ना १३
    GCH 29.2

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