Loading...
Larger font
Smaller font
Copy
Print
Contents
महान संघर्ष - Contents
  • Results
  • Related
  • Featured
No results found for: "".
  • Weighted Relevancy
  • Content Sequence
  • Relevancy
  • Earliest First
  • Latest First
    Larger font
    Smaller font
    Copy
    Print
    Contents

    पाठ २६ - दूसरा उदाहरण

    मैंने जगत में जागरण के लिये जो काम किया जा रहा था उसे देखा और स्वर्गदूतों के बीच में भी इस काम के लिये खुशी हो रही थी। यीशु के एक बलवन्त दूत को भेज कर जगत के लोगों को चेतावनी दी कि यीशु का दूसरा आगमन के लिये तैयार हो जाएँ। इस महान दूत स्वर्ग में यीशु के सामने रहना छोड़ कर पृथ्वी में उतर आया। उसके आगे-आगे बहुत तेज रोशनी जो महिमा की थी चली। मुझे बताया गया उसे अपनी महिमा की ज्योति से जगत को उजाला कर लोगों को चेतावनी देनी है क्योंकि ईश्वर क्रोधित होकर न्याय करने आ रहा है। बहुतों ने ज्योति पाई। कुछ लोग बहुत गम्भीर थे जबकि दूसरे लोग आनन्द से खुशी मना रहे थे। सब को ज्योति मिली। कुछ लोगों को इसका कुछ प्रभाव न पड़ा। क्योंकि उन्होंने हृदय से ग्रहण नहीं किया था। किन्तु जिन लोगों ने हृदय से ग्रहण किया था, उन्होंने ऊपर देख कर ईश्वर की महिमा की। बहुत लोगों को तो गुस्सा होना पड़ा। पादरी और प्रचारकों ने एक साथ मिलकर एक साथ स्वर्गदूत से ज्योति मिली थी, उसका विरोध I किया। पर जिन्होंने हृदय से ग्रहण किया था, उन्होंने दुनिया की मंडली से अपने आप को अलग कर एकता कायम की।GCH 121.1

    शैतान और उसके साथी उन लोगों को खोजने में बहुत व्यस्त दिखाई दिए जिन्हें नयी ज्योति में कम विश्वास था। जिस दल ने ज्योति को त्याग दिया था, उन्हें अधिकार में छोड़ दिया गया। मैंने स्वर्गदूतों को देखा कि वे उन लोगों पर बहुत ध्यान से देख रहे थे जिन्होंने नई ज्योति को ग्रहण किया था और उस पर चल रहे थे। उनके चरित्र के गुण रेकार्ड किताब में लिख रहे थे। बहुत से लोग यीशु पर विश्वास करने और उसके चेले बनने का ढोंग रच रहे थे, पर स्वर्गीय ज्योति के आने पर इन्कार कर रहे थे। उनके नाम स्मरण की किताब से हटाये जा रहे थे। सारा स्वर्ग उदास से भर गया क्योंकि यीशु के नकली चेलों के द्वारा उसे नकारा गया था।GCH 121.2

    मैंने विश्वास करने वालों के बीच उदासी देखी थी। क्योंकि वह आशा किया हुआ समय पर नहीं आया। ईश्वर की इच्छा थी कि भविष्य की बात को गुप्त रखें और अपने लोगों को किसी निर्णय पर ले आवें । ऐसा न करने से ईश्वर जो करना चाहता था वह पूरा नहीं होता। शैतान बहुत से लोगों को ईश्वर का ठहराया हुआ समय से बहुत आगे ले जाना चाहता था। यीशु के आने का समय को सुनाया गया तो उसके पहले उससे मिलने के लिये मनों की तैयारी करने की जरूरत थी। जब आने का समय बीत गया तो जिन्होंने दूत के समाचार को नहीं ग्रहण किया था, वे उदास-निराश हुह लोगों पर अपनी हँसी-ठट्ठा की बातों से आक्रमण कर रहे थे। मैंने स्वर्ग में स्वर्गदूतों को यीशु के साथ सलाह करते देखा। उन्होंने यीशु के सच्चे शिष्यों की स्थिति की जानकारी ली। यीशु का आगमन का समय ने बहुतों को जाँचा और परखा जिसमें बहुत लोग नापे गए और घटिया पाये गए। वे बहुत जोर देकर अपने को मसीही कहला तो रहे थे पर उसके सच्चे चेले होने में कई बातों पर चूक गए। शैतान उनकी शोचनीय दशा पर खुशी मनाने लगा। उसने उन्हें अपने काठघरे में बन्द कर रखे थे। बहुतों को उसने सीधा रास्ता से भटका दिया था। वे टेढ़े मार्ग से स्वर्ग की ओर चढ़ना चाहते थे। दूतों ने पृथ्वी पर पापी-दोषी और सन्त, पवित्र लोगों के साथ मिल कर रहते देखा। सच्चे ईश्वर भक्तों को भी देखा गया पर उन्हें दुष्ट लोग अपनी संगति से बिगाड़ रहे थे।GCH 122.1

    जिन के दिल यीशु को देखने के लिये तरस रहे थे, उनको यीशु के नकली चेले मना कर रहे थे कि उसके विषय चर्चा न करें। स्वर्गदूतों ने इन सारे दृश्य को देखा और उन शेष लोगों पर जो यीशु का आगमन को प्रिय जानते थे, सहानुभूति प्रकट की। फिर दूसरा बड़ा दूत को पृथ्वी पर भेजा गया। उसने बड़े जोर से शब्द करते हुए कहा - बाबुल गिर पड़ा, गिर पड़ा। तब मैंने उदास-निराश लोगों को आनन्द से सिर उठाते हुए ऊपर देखा और वे यीशु के आने की आशा देख रहे थे। पर बहुत लोग तो ऐसा दिखाई दिये मानो सो रहे हैं। फिर भी मैंने पता लगाया कि बहुत लोग तो उदास की मार से घायल थे। इन उदास करने वालों को बैबल के द्वारा पता चला कि वे ‘ठहरने की घड़ी में वास कर रहे हैं। उन्हें धीरज धर कर समय आने की बाट जोहना है। जिस साक्षी के द्वारा उन्हें आशा थी कि प्रभु १८४३ ई० में आयेगा। अब वह उन्हें १८४४ ई० में आने की आशा दिलायी। मैंने देखा था कि बहुतों की आशा जितना १८४४ ई० में दृढ़ थी उतनी १८४३ ई० में नहीं थी। उनका उदास ने उनका विश्वास को डूबा दिया। पर जितने उदास-निराश हुए लोग थे, जब एक साथ मिल कर बड़े जोर से दूसरा दूत का संवाद सुनाने लगे तो उनकी रूचि और सुसमाचार का प्रभाव देखने को मिला। दूतों को देखने में आया कि जो लोग यीशु का नाम लेते थे और क्रिश्चियन कहलाते थे, वे उलट कर हताश हुए थे उन पर हँसी-मजाक की बौछार करने लगे। जब हँसी-ठट्ठा करने वालों की बातें विश्वासी लोग सुन कर घबरा रहे थे तो दूतों ने उन्हें सान्तवना देकर कहा कि तुम लोग तो अब तक यीशु के जैसा ठट्टा में नहीं पड़े हो। अतः तुम लोगों को धीरज हारे रहना है।GCH 123.1

    मुझे एलिया नबी का स्वर्ग की ओर ऊपर उठा लिये जाने का दर्शन दिखाया गया। एलिया का वस्त्र एलिशा के ऊपर गिरा और दुगुना वरदान मिला। जब वह रास्ते में जा रहा था तो बच्चों ने यह कह कर ठट्ठा किया कि चले जा चान्दवे चले जा ! उन्होंने ईश्वर का ठट्ठा किया और उसकी सजा भुगतनी पड़ी। उन्होंने अपने पिता से सीखा था। सन्त कह कर जिन्होंने इसी मतलब से चिढ़ाया है उसका प्रतिफल तो ईश्वर की ओर से ही दिया जायेगा जैसा इन बच्चों को दिया गया। इस प्रकार की हँसी-ठट्टा को छोटा समझ कर खेल नहीं करना चाहिए।GCH 124.1

    यीशु ने तुरन्त एक दूसरा दूत को भेज कर उदास-निराश में डूबे हुए लोगों को धीरज देकर उनके विश्वास को मजबूत कर दूसरा दूत का संवाद को समझने में मदद की। एक दूसरा मुख्य आन्दोलन स्वर्ग में चलाना था। उसके विषय भी बताया। मैंने इन दूतों को यीशु की ओर से बड़ी शक्ति और ज्योति को प्राप्त करते हुए देखा। वे बड़ा काम को पूरा करने के लिए पृथ्वी की ओर आए। जब स्वर्गदूत ने चिल्ला कर कहा कि देखो दूल्हा आता है और उसे भेंट करने निकलो तो ईश्वर के लोगों पर एक बड़ी ज्योति चमकी। उदास-निराशा में डूबे हुए लोगों को जोश मिला और वे भी दूसरा दूत के साथ बड़े जोर से पुकारने लगे - देखो दूल्हा आता है और उससे मिलने के लिए निकल आओ। स्वर्गदूतों से ज्योति बाहर निकल कर अंधकार का राज्य को दूर कर रही थी। शैतान और उसके दूत इस ज्योति को तथा इसका प्रभाव जो लोगों पर पड़ रहा था उसे रोकने चाह रहे थे। ईश्वर के दूतों से शैतान लड़ते हुए बोल रहा था कि ईश्वर ने लोगों को धोखा दिया है। उनकी शक्ति और ज्योति के साथ भी खेलखाड़ किया है। इसलिये लोगों को विश्वास नहीं दिला सके कि यीशु आ रहा है। शैतान का विरोध करने पर भी ईश्वर के दूत उन्हें उमझाने बुझाने में लगे रहे। जिन्होंने इसे पाया वे बहुत खुश थे। वे स्वर्ग की ओर अपनी आँखें उठा कर यीशु के आने की राह देखने लगे। कुछ लोग तो बहुत उदास थे। वे रो-रो कर प्रार्थना करते रहे, उनकी आँखें तो अपनी ही दशा पर केन्द्रित थी औ स्वर्ग की ओर उठाने का साहस नहीं हो रहा था।GCH 124.2

    स्वर्ग से एक बहुमूल्य ज्योति आकर अंधकार को हटा देती है और वे अपनी उदासी आँखों से ऊपर की ओर देखते हैं तो उन्हें सान्तवना मिल जाती है। वे आनन्द से अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। इन प्रतीक्षा करने वाले विश्वासियों को यीशु और उसके दूत सहानुभूति से देखते हैं।GCH 125.1

    जिन्होंने पहले दूत के समाचार को इन्कार किया उन्हें दूसरे दूत के समाचार की ज्योति नहीं मिल पाई और इस प्रकार से उसकी शक्ति और महिमा से प्रभावित न हो सके। उस समाचार से भी वंचित हुए जिसमें कहा गया - देखो दूल्हा आता है। यीशु उनसे नाराज हो कर चला गया। उन्होंने उसका संवाद को हल्का जानकर त्याग दिया। पर जिन्होंने संवाद पाया वे महिमा का बादल से घिर गए। ईश्वर की इच्छा को जानने के लिये उन्होंने प्रार्थना की, आशा कर ठहरे रहे। ईश्वर को नाराज करने से डरते थे। मैंने शैतान को देखा कि ईश्वर के लोगों तक ज्योति नहीं पहुँचने के लिए बहुत कोशिश की। पर जब तक वे इसको पसन्द कर पाने के लिए प्रार्थनाGCH 125.2

    करते रहे तब तक शैतान इसको पाने से रोक नहीं सकता था। ये सदा अपनी आँखें यीशु की ओर लगाए हुए थे। स्वर्ग से जो संवाद उन्हें दिया गया था इससे शैतान और उसके दूतों को गुस्सा आ रहा था। वे लोग जो यीशु को मानते थे, पर उसका आना को इन्कार कर रहे थे, उन्होंने उनको बेइज्जत कर हँसी-ठट्टा भी किया। परन्तु दूत ने उनके ऊपर हरेक अत्याचार, बेइज्जत और अपमान जो किए गए थे उन सब का हिसाब लिख लिया था। बहुत से लोग यह कहते हुए कि देखो दूल्हा जल्द आ रहा है, अपने हठीले भाईयों को छोड़ कर निकल आये। जिन लोगों ने यीशु का आगमन और उसे उन्कार किया था उनसे यीशु ने अपना मुँह फेर लिया। उसने दूतों को हुक्म दिया कि अपने लोगों को अशुद्ध लोगों या अपवित्र लोगों से अलग रखो। ऐसा न हो कि वे भी दुष्टों के साथ रह कर दुष्ट (अविश्वासी) बन लाएँ। जिन्होंने सुसमाचार को सुन कर ग्रहण किया था वे स्वतन्त्र और एकता में थे। उनके ऊपर पवित्र ज्योति चमक रही थी। उन्होंने जगत की मोह-माया को छोड़ दी, उसका बंधन को तोड़ फेंका और धरती से अपना स्नेह उठा लिया। दुनिया की सम्पत्ति का मोह छोड़ दिए और उनकी इच्छा स्वर्ग की ओर लगाई गई। वे अपना प्रिय उद्धारकर्ता की राह देखने लगे। उनके चेहरों पर पवित्र आनन्द की झलक दिखाई देने लगी। उनके दिलों में आनन्द और शान्ति का राज्य आ गया। यीशु ने अपने दूतों को उन्हें मजबूत करने और स्थिर रखने के लिये भेजा। क्योंकि उनकी परीक्षा की घडी आ रही थी। इनको अब तक वैसी परीक्षा का सामना करना नहीं पड़ रहा था, जैसा होना चाहिये था। वे गलती करने से वंचित भी नहीं हुए थे। जगत के लोगों के लिये चेतावनी भेजने में ईश्वर की करूणा और समझदारी को मैंने देख पाया। बार-बार संवाद भेजकर उसने उन्हें बैबल का गहरा अध्ययन की ओर अगुवाई कर अपनी गलती को समझने का अवसर दिया। इन संवादों के जरिये ईश्वर ने अपने लोगों को अधिक जोर-शोर से काम करने का मौका दिया। उनको पहिले के और दूसरे दूतों के सुसमाचार को प्रचार करने और सब आज्ञाओं को मानने के लिये भी उत्साहित किया।GCH 126.1

    ______________________________________
    आधारित वचन मत्ती २0प्रः६ प्र० वाक्य ३:१४—१६, १८:१, २२:१४
    GCH 127.1

    Larger font
    Smaller font
    Copy
    Print
    Contents