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महान संघर्ष - Contents
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    पाठ ३६ - याकूब की विपत्ति का समय

    मैंने सन्तों को शहर और गाँवों को छोड़ते हुए देखा। वे एक साथ मिल कर नगरों से दूर एकान्त या निर्जन जगह में रहने लगे। उनके लिये स्वर्ग के दूतों ने भोजन-रोटी और जल का इन्तजाम किया। परन्तु दुष्ट पापी लोग भूख और प्यास से तड़प रहे थे। इस जगह के नेतागण और प्राचीन लोग मिल कर सलाह कर रहे थे और शैतान भी उसके दल के लोगों के पास कुछ को लेकर हाजिर था। मैंने शैतान और उसके दल के लोगों के पास कुछ कागज देखे थे। उसमें लिखे हुए थे कि ये सन्त लोग जब तक सब्त को नहीं छोड़ते और पहिला दिन को गिरिजा नहीं करते तब तक सुरक्षित नहीं हैं। इस कागज को चारों तरफ बाँटते देखा। उन्हें समय दिया जायेगा छोड़ने के लिए, नहीं छोड़ने से उन्हें कत्ल किया जायेगा। इस संकट की घड़ी में सन्त लोग शान्त होकर ईश्वर पर भरोसा रखे हुए थे कि वह उन्हें छुड़ायेगा। कोई-कोई जगह में तो समय पूरा होने के पहले दुष्ट लोग सन्तों के पास मार डालने के लिए पहुँच गये। ऐसे समय में ईश्वर के स्वर्गदूत आकर उन्हें बचा लेते हैं। शैतान को बहुत इच्छा थी कि उसे यीशु के सन्तों को मौत के घाट उतारने का अच्छा मौका है। लेकिन यीशु ने अपने दूतों को भेज कर उनकी रक्षा की। जो लोग उसकी व्यवस्था का पालन कर रहे थे उनके जीवन को अपनी वाचा के मुताबिक बचा कर अपनी इज्जत रख ली। इससे ईश्वर की महिमा प्रगट हुई। जो लोग बहुत दिन से यीशु की प्रतीक्षा कर रहे थे उनको स्वर्ग लेने के द्वारा वह भी गौरवान्वित किया जायेगा यानी यीशु भी सम्मानित होगा। क्योंकि बिना मृत्यु चखे वे स्वर्ग को उठा लिए जायेंगे।GCH 171.1

    थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि सन्त लोग एक भयानक संवेदना से गुजर रहे हैं। ऐसा दिखाई दे रहा था कि वे जगत में दुष्टों की बड़ी भीड़ से घिरे हुए हैं। कुछ लोग सोच रहे थे कि ईश्वर ने उन्हें अन्त में दुष्टों के हाथ से मारे जाने के लिए छोड़ा है। पर यदि उनकी आँखें खोली जाती तो वे देख सकते कि ईश्वर के दूत उनके चारों ओर घेरा डाले हुए हैं। इसके बाद दुष्टों का बड़ा दल आया जो क्रोध से भरा था। फिर बुरे दूतों का दल भी वहाँ पहुँचा। ये सन्तों को मार डालने के लिये ही वहाँ दौड़ कर आये थे। उन सन्तों को मारने के लिये पहुँचने के पहने ईश्वर के दूतों का बड़ा दल को पार करना था। इन पवित्र दूतों का दल से गुजरना बहुत कठिन था। ईश्वर के दूत उन्हें पीछे ढकेल रहे थे और बुरे दूतों को तो पछाड़ कर गिराते थे। सन्तों के लिये यह समय एक बड़ा डरावना और वेदनापूर्ण था। बचाव के लिये वे ईश्वर से रात और दिन विनती कर रहे थे। बाहरी दिखावट से ऐसा लगता था कि उन्हे बचने का कोई सम्भवना नहीं थी। क्योंकि दुष्ट लोग जीतते हुए चले आ रहे। थे। वे उनको चिढ़ा रहे थे कि क्यों कर ईश्वर तुम्हें नही बचाने आता है ? पर सन्त लोग उनकी बातों को अनसुनी कर रहे थे। वे ईश्वर से याकूब की तरह मलयुद्ध कर रहे थे यानी लगातार विनती कर रहे थे। स्वर्गदूत तो चाहते थे कि उन्हें जल्दी से छुड़ा लें परन्तु आदेश यह था कि उनके कप्तान की ओर से थोड़ी देर के लिये उन्हें इस तकलीफ से जाने दो और उन्हें अनुभव करने दो। दूत विश्वासपूर्वक उनकी पहरा कर रहे थे। जब समय आया तो ईश्वर ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर उन्हें आश्चर्य रूप से बचा लिया। ईश्वर अपने बदनाम गैर ईसाईयों के मुँह से सुनना नहीं चाहता है। ईश्वर अपने नाम की महिमा के लिये हरेक को छुड़ा लेगा जो धीरज से उस की बाट देखते हैं और जिनके नाम जीवन की किताब में लिखे गए है।GCH 172.1

    मुझे नूह की ओर इशारा किया गया। वर्षा हुई और बाढ़ भी आई। नूह और उसके परिवार के लोग जहाज के भीतर गये और ईश्वर का दूत ने दरवाजा बन्द कर दिया। जब नूह लोगों को विश्वासपूर्वक चेतावनी देता था तो लोग उसे पागल कह कर उसका मजाक करते थे। जैसे पानी पृथ्वी पर भर गया और एक के बाद एक लोग डूबने लगे तब लोगों ने देखा कि नूह और उसके परिवार जो जहाज के अन्दर ये सुरक्षित तैर रहे थे। ईश्वर के लोग जगत को चेता रहे थे कि ईश्वर का क्रोध का दिन आने वाला है। इसलिये उसकी बातों को सुन कर बचने के लिये चले आओ। पर उन्होंने भी ढिठाई से नूह की बात नहीं सुनी और जलप्रलय में डूब कर मर मिटे। इस वक्त भी ईश्वर के लोग विश्वश्ता से जगत को चेता रहे थे। पर अधिकांश लोग उस चेतावनी को इनकार करते रहे। पर कुछ विश्वासी लोग निकले जो उसके आने की बात को धीरज से देख रहे थे, वे पशु की आज्ञा नहीं मानते थे उसके मूरत की छाप अपने माथे और हाथ पर नहीं लेते थे। उनको यीशु बिना मृत्यु चखे स्वर्ग ले जायेगा। यदि ईश्वर सन्तों का मार्ग दिये जाने का अधिकार शैतान और उसके बरे दतों को देता तो वे बहुत खुश होते। शैतान की शक्ति का क्या यहीं विजय का दिन होता ? उस आखिरी लड़ाई में शैतान अपनी शक्ति को दिखाकर घमंड से फूल जाता। जो लोग यीशु के आने की बाट धीरज से जोह रहे थे और उसके साथ स्वर्ग जाना चाहते थे उनकी आशा पानी में फिर जाती। सन्तों का स्वर्ग जाने का विचार को लोग मजाक में उड़ा रहे थे पर वे देखेंगे कि सचमुच सन्त लोग यीशु के साथ स्वर्ग जायेंगे।GCH 173.1

    जब सन्तों ने शहर और गाँवों को छोड़ दिया तो वे निर्जन जंगल में रहने चले गये तो दुष्टों ने उनका पीछा किया। जब उन्हें तलवारों से कत्ल करने के लिये तलवारें उठाने लगे तो उनकी तलवारें टूट कर गिर पड़ीं। ईश्वर के दूतों ने उन्हें बचा लिया। रात दिन ईश्वर से विनती करने का मीठा फल उन्हें मिल गया।GCH 174.1

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    आधारित वचन उत्पत्ति ७:१ यशा ३३:१६, ४९:१० प्रकाशन वाक्च १४:१४
    GCH 174.2