Loading...
Larger font
Smaller font
Copy
Print
Contents
महान संघर्ष - Contents
  • Results
  • Related
  • Featured
No results found for: "".
  • Weighted Relevancy
  • Content Sequence
  • Relevancy
  • Earliest First
  • Latest First
    Larger font
    Smaller font
    Copy
    Print
    Contents

    पाठ २८ - तीसरे दूत के समाचार

    जैसे ही यीशु की सेवकाई पवित्र मन्दिर का पहला भाग में समाप्त हुई तो यीशु दूसरा भाग यानी महापवित्र स्थान में प्रवेश कर ईश्वर की आज्ञा जिस सन्दूक में रखी गई थी ठीक उसके सामने खड़ा हुआ। इसी प्रकार ईश्वर ने पृथ्वी पर तीसरा दूत को समाचार देने भेजा। उसने स्वर्गदूत के हाथ में कागज रख दिया। वह बड़ी महिमा और शक्ति के साथ पृथ्वी पर उतर आया और बहुत ही डरावना संवाद दिया जो मनुष्य ने कभी नहीं सुना था। यह संवाद तो ईश्वर के लोगों की रक्षा करने सम्बन्धी था। परीक्षा की घड़ी और क्रोध का समय उनके सामने है, उसकी चेतावनी थी। स्वर्गदूत ने फिर आगे कहा कि वे पशु और उसकी मूरत की पूजा करें। इसके बीच में उन्हें घोर संघर्ष या युद्ध करना पड़ेगा। अनन्त जीवन पाने का एक मात्र जरिया उनके लिये यही होगा कि वे अपने विश्वास में स्थिर रहें। यद्यपि उनके जीवन के लिये खतरा है फिर भी उन्हें सच्चाई पर स्थिर रहना होगा। इन वचनों से तीसरा दूत ने अपना संवाद अन्त किया “सन्तों का ८ Tीरज इसी में है जो ईश्वर की आज्ञाओं को पालन करते और यीशु पर विश्वास रखते हैं” (प्र.वा.१४:१२) इन शब्दों का उच्चारण कर उसने स्वर्गीय महापवित्र स्थान की ओर संकेत किया। जिन्होंने इस संवाद को ग्रहण किया उनके मनों को महापवित्र स्थान की ओर संकेत किया जहाँ यीशु दया का सिंहासन के सामने खड़ा था। वहाँ वह उन लोगों की विचवाई कर रहा है जिनके पाप क्षमा नहीं हुए हैं और जिन्होंने आज्ञाओं को तोड़ा है। प्रायश्चित का यह काम मरे और जीवित दोनों प्रकार के धार्मिक लोगों के लिये कर रहा है। यीशु उनके लिये भी प्रायश्चित का काम कर रहा है जो उसकी आज्ञा पाये बिना मरे यानी अनजान से मर गए हैं।GCH 133.1

    जब यीशु ने महापवित्र स्थान का दरवाजा खोला तो सब्त की सच्चाई का प्रकाश दिखाई दी। इसके द्वारा ईश्वर के लोगों की जाँच होगी। ईश्वर ने प्राचीन काल में इस्त्राएलियों के बच्चों को इसके द्वारा परखा।GCH 134.1

    मैंने तीसरा दूत को देखा जो निराश हो गए थे। उन्हें स्वर्ग का महापवित्र स्थान की ओर इशारा कर दिखा रहा था। उन्होंने विश्वास से यीशु को महापवित्र स्थान में सेवकाई का कार्य करते हुए देखा। यीशु को देखकर उनके मन में आनन्द और आशा की नई किरणें उग आईं। मैंने उन्हें बीती हुई घटनाओं को दुहराते हुए देखा। वे यीशु मसीह का दूसरा आगमन से लेकर १८४४ ई० तक जो सुसमाचार सुना रहे थे उसका अवलोकन कर रहे थे। उनके निराश होने का कारण को विस्तार से समझाया गया। इसके बाद उनका आनन्द को नवीकरण किया गया यानी उनका आनन्द लौट आया। तीसरा दूत ने उनका बिता हुआ अनुभव में रोशनी डाली, भविष्य की बात को खोल दिया। इस तरह से वे जान गए कि ईश्वर अद्भुत रीति से उनकी अगुवाई की।GCH 134.2

    मुझे दिखाया गया की शेष विश्वासी लोगों ने यीशु को महापवित्र स्थान में सन्दूक के सामने और दया का सिंहासन के पास खड़ा देखा। वे उसकी बड़ाई कर रहे थे। यीश ने वहाँ सन्दक खोला तो देखा कि दस आज्ञाओं की दो पट्टियाँ रखी हुई थीं। उन्होंने वहाँ एक ताज्जुबी चीज देखी। चौथी आज्ञा के ऊपर और दूसरी नौ आज्ञाओं से अधिक रोशनी पड़ रही थी। सारी आज्ञाओं के चारों ओर महिमा की रोशनी पड़ रही थी पर चौथी आज्ञा पर सबसे ज्यादा थी। उन्होंने वहाँ ऐसा कुछ भी संकेत नहीं पाया कि चौथी आज्ञा उठा दी गई या उसे सातवाँ से पहिला दिन में बदली कर दी गई है। बादलों के गर्जन और बिजली की चमक के बीच ईश्वर का महान, अद्भुत और डरावना हाथों के द्वारा ये दस आज्ञाएँ दो पट्टियों पर लिखी गई थी और मूसा के द्वारा इस्त्राएलियों को दी गई थी। उसमें जो लिखी गई बातों को हम इस प्रकार पढ़ते हैं - छः दिनों तक तू परिश्रम कर सब प्रकार के कामों को करना लेकिन सातवाँ दिन मत करना। क्योंकि यह तुम्हारे प्रभु परमेश्वर का सब्त दिन है। दस आज्ञाओं को वहाँ बहुत ही हिफाजत से रखी गई थी उसे देख कर लोग आश्चर्य करने लगे। उन्होंने उसे ईश्वर के पास सुरक्षितपूर्वक रखी हुई देखी। वह ईश्वर की पवित्र छाया से ढाँकी हुई थी। उन्होंने देखा कि पट्टियों की चौथी आज्ञा को लोग रौंद रहे थे यानी यहोवा का दिया हुआ सातवाँ दिन का सब्त को न मान कर हिन्दुओं और पोप के लोगों के द्वारा घोषित किया हुआ सब्त याने सप्ताह का पहिला दिन को मान रहे थे। वे ईश्वर के सामने नम्रता से झुक कर सब्त तोड़ने के कारण विलाप करने लगे।GCH 134.3

    यीशु ने जब इनका पश्चात्ताप की प्रार्थना पिता के पास पहुँचाया तो वहाँ धूप-धुवान जलाने का बर्तन से धुंवा निकलने लगा। मैंने उसे देखा। जब धुंवा हट रहा था तो यीशु की दया का सन्दूक के ऊपर और प्रार्थना करने वालों के ऊपर एक तेज ज्योति उतरती हुई दिखाई दी। ये प्रार्थना करने वाले इसलिये दुःखित थे कि उन्होंने ईश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन किया था। पर अब उनके पाप क्षमा हुए। वे आशिष के भागी हुए। तब उनके चेहरों में आनन्द की रोशनी दिखाई देने लगी थी।GCH 135.1

    उन्होने तीसरा दूत के साथ मिल कर गम्भीर चेतावनी का संवाद दिया। प्रारम्भ में तो कुछ ही लोगों ने ग्रहण किया परन्तु वे हतास न हो कर जी जान से प्रचार करते रहे। इसके बाद मैंने देखा कि बहुत लोग इसमें शामिल होकर एक साथ तीसरा दूत का संवाद सब जगह प्रचार करने लगे। उन्होंने ईश्वर को पहिला स्थान देकर उसका पवित्र किया हुआ सब्त को मानने लगे।GCH 135.2

    बहुत लोगों ने तीसरा दूत का संवाद को तो अपनाया पर पहले दो दूतों के संवाद का कुछ भी अनुभव नहीं था। शैतान इसे जानता था और उसने उन्हें भटकाने की कोशिश की। परन्तु तीसरा दूत इन्हें स्वर्ग का महापवित्र स्थान की सेवकाई को दिखा रहा था और वे लोग भी जिन्हें पहले अनुभव हो चुका था। इसी ओर इशारा कर रहे थे। बहुतों ने इन दूतों के समाचार में सिलसिलेवार देखा और आनन्द से सत्य को ग्रहण करने लगे। उन्होंने इन संवादों को सिलसिलेवार रूप से अपना कर स्वर्गीय पवित्र स्थान में यीशु की सेवकाई को ग्रहण किया। ये समाचार जहाज का लंगर के समान हमारे लिये भी है, बोल कर दिखाया गया। अब लोग इसे ग्रहण कर लेते हैं तो समझ जाते हैं और शैतान की भरमाहट परीक्षा से भी अपने को बचा लेते हैं।GCH 136.1

    सन् १८४४ ई० का भयानक निराशा के बाद शैतान और उसके दूत मसीहियों का विश्वास को डगमगाने के लिए बहुत कोशिश करने लगे। जिन लोगों ने अपने जीवन में इनकी अभिज्ञाता प्राप्त की थी उनके मनों को फुसलाने-बहकाने का काम कर रहे थे। वे अपने को नम्र बना कर दिखा रहे थे। पहले और दूसरे दूतों के समाचार को बदल कर इसे भविष्य में पूरा होने की चर्चा कर रहे थे। फिर दूसरे लोग इस को बहुत दिन पहले बीती हुई घटना बता रहे थे। ये ऐजेंट लोग अनुभव से गुजरे हुए लोगों के मन को डाँवाँ-डोल कर उनके विश्वास को डगमगा रहे थे। कुछ लोग तो बाईबिल को ढूँढ़-ढाँढ़ कर अपना विश्वास को स्थिर करने में लग हुए थे और खुद खड़े रहना चाहते थे। इसमें शैतान बहुत खुश था। वह जानता था कि लोग सत्य का लंगर को छोड़ चुके हैं उन्हें विभिन्न प्रकार की त्रुटियों, कमियों को दिखाकर उन्हें सिंद्धान्तों की हवा में उड़ा कर ले चलें।GCH 136.2

    जो लोग पहिला और दूसरा दूतों का संवाद को ग्रहण कर उसके अनुसार चल रहे थे वे शैतान की इस चालाकी से दूर रहे। पर जिन्हें अनुभव नहीं था वे शैतान के भ्रम रूपी जाल में फंस गए। इस प्रकार इस मसीही झुंड में दो दल हो गए। मैंने विलियम मिल्लर को अपने लोगों की इस दशा पर उदास-निराश होकर सिर झुकाए बैठा देखा। मैंने देखा कि जो दल १८४४ ई० में एक दूसरे से प्रेम कर एकता के बंधन में थे, वे अपना प्रेम को छोड़कर एक दूसरे के विरूद्ध बातें करने में लगे। इस का नतीजा यह हुआ कि वे नीचे अंधकार में गिर गए। शोक के कारण अपनी शक्ति खो चुके थे। तब मुझे यह दिखाया गया कि उस समय के अगुवे क्या विलियम मिल्लर को तीसरे दूत का समाचार पर स्थिर देखकर ईश्वर की आज्ञाओं को मानते देख रहे हैं या नहीं। उन लोगों ने देखा कि वह स्वर्ग की ज्योति की ओर झुक रहा है तो वे उसका मन को भटकाने लगे। मैंने देखा कि मनुष्य का प्रभाव उसको अंधकार में रखने की चेष्टा कर रहा था। वे उसे अपने साथ रखना चाहते थे। पर विलियम मिल्लर की जीवनी जिसे जेम्स ह्वाईट ने लिखी यह कहता है - “मैं आशा करता हूँ कि मैंने अपना वस्त्र यीश के लोह से धो डाला है। जहाँ तक मैं महसूस करता हूँ कि मैंने अपनी लियाकत या क्षमता से लोगों का दोषारोपण से अपने को मुक्त कर लिया है।” ईश्वर से इस व्यक्ति ने कहा - “यद्यपि मैं दो बार निराशा से घिरा हुआ था फिर भी मैं अब तक सम्पूर्ण रूप से निराश नहीं हुआ था और न फेंका हुआ के समान अपने को समझा”।GCH 137.1

    “यीशु के आगमन में मेरी आशा शुरू से ही स्थिर है, कभी नहीं डगमगाया है। मैंने बहुत वर्षों के गम्भीर सोच विचार से ही इसे स्थिर रखा है, मैंने ऐसा कर अपनी गम्भीरता समझी । यदि मुझ से कुछ गलती हुई भी है तो वह अपने भाईयों को प्रेम करने में और ईश्वर के प्रति अपनी कर्तव्य निवाहने में।” एक बात मैं जानता हूँ कि जिस पर मैंने विश्वास किसा उसी का प्रचार भी किया। ईश्वर भी मेरे साथ था। उसकी शक्ति प्रचार के काम में थी और इससे अच्छाई के लिए बहुत प्रभाव डाला गया। इस प्रचार के दौरान बहुत से लोगों को बाईबिल का अध्ययन करने के लिये प्रेरणा दी गई, उसके जरिये, विश्वास से, और यीशु के लोहू के छिड़काये जाने के कारण ईश्वर के साथ समझौता हुई। (प्लिस पृ० २५६, २५५, २७७, २८०, २८१) मैं घमंडियों के मजाक का पक्ष नहीं करता था और जब दुनिया हमारे विरूद्ध उठी तो उससे भी नहीं डरा। मैं न उनके पक्ष में हूँगा और न मैं अपना कर्तव्य से भी नहीं भागूंगा और उन्हें चिढ़ाने का अवसर न हूँगा। मैं अपना जीवन को उनके हाथ में कभी न डालूंगा और न झुलूंगा, इसको (जीवन) खोने के डर से, मैं आशा करता हूँ कि ईश्वर अपना अच्छा प्रबन्ध से ऐसा ही करे। जेम्स ह्वाईट, विलियम मिल्लर की जीवनी पृष्ठ ३१५ -GCH 138.1

    ________________________________________
    आधारित वचन निर्गमन २०:८-११, मत्ती ५:१८, २४:२० प्रकाशित वाक्य १४:९
    GCH 138.2

    Larger font
    Smaller font
    Copy
    Print
    Contents