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कुलपिता और भविष्यवक्ता - Contents
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    अध्याय 29—व्यवस्था के विरूद्ध शैतान की शत्रुता

    परमेश्वर की व्यवस्था को पराजित करने का प्रथम प्रयत्न- जो स्वर्ग के निष्पाप वासियों के बीच किया गया -कुछ समय सफलता से अभिषिक्त प्रतीत हुआ। स्वर्गदूतों का विशाल समूह पथगभ्रष्ट हो गया, लेकिन शैतान की दृश्यमान विजय का परिणाम था, पराजय और क्षति, परमेश्वर से अलगाव, और स्वर्ग से निष्कासन।PPHin 333.1

    जब पृथ्वी पर संघर्ष पूर्ण अवस्था में आ गया, शैतान को फिर से एक काल्पनिक अनुकूल परिस्थिति मिल गईं। आज्ञा उल्लंघन के कारण, मनुष्य उसका दास हो गया और मनुष्य का राज्य धोखे से प्रधान-विद्रोही के हाथों में चला गया। अब शैतान के लिये एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना करने को और परमेश्वर और उसके पुत्र के आधिपत्य को चुनौती देने के लिये रास्ता खुला प्रतीत हो रहा था। लेकिन उद्धार की योजना ने मनुष्य का परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी होने को, और मनुष्य और पृथ्वी को दुष्ट के आधिपत्य से अनन्त: छुटकारे को सम्भव किया।PPHin 333.2

    शैतान फिर से पराजित हुआ और अपनी हार को जाति में बदलने की आशा में दोबारा धूर्तता पर उतर आया। पतित जाति में अतिक्रमण को उकसाने के लिये, उसने परमेश्वर को अन्यायी बताया, क्योंकि उसने मनुष्य को उसकी आज्ञा का उल्लंघन करने की अनुमति दी। धूर्त प्रलोभक ने कहा, “जब परमेश्वर जानता था कि परिणाम क्या होगा, फिर उसने मनुष्य की परीक्षा क्‍यों ली जाने दी, उसे पापक्यों करने दिया, और दुख और मृत्यु को क्‍यों आने दिया?” और आदम की संतानों ने, उस चिरसहिष्णु करूणा को भुलाकर, जिसने मनुष्य को एक और सुनवाई प्रदान की थी, उस आश्चर्यजनक और महिमामय बलिदान पर ध्यान दिये बिना, जो विद्रोह के मूल्य के तौर पर स्वर्ग के राजा को देना पड़ा, प्रलोभक की बातों पर विश्वास किया और उस एकमात्र हस्ती के विरूद्ध बड़बड़ाये जो उन्हें शैतान की क्षति शक्ति से बचा सकता था।PPHin 333.3

    आज भी हजारों ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर के विरूद्ध वही विद्रोही आरोप को दोहराते हैं। वे यह नहीं देखते कि मनुष्य को चयन की स्वतन्त्रता से वंचित करने का मतलब था उसके बुद्धिजीवी होने के विशेषाधिकार को दीन कर उसे महज एक मशीन बनाना। इच्छा को बाध्य कर परमेश्वर का उद्देश्य नहीं। मनुष्य को एक स्वतन्त्र सात्विक कर्मक सृजा गया था। अन्य ग्रहों के वासियों को तरह, उसकी आज्ञाकारिता को परखा जाना था, लेकिन उसे कभी भी उस स्थिति में नहीं लाया जाता कि बुराई के आगे समर्पण करना अनिवार्य हो जाए। ऐसे किसी भी प्रलोभन या परीक्षा को उसके पास आने की अनुमति नहीं जिसका प्रतिरोध करने में वह सक्षम नहीं। परमेश्वर ने ऐसा पर्याप्त प्रयोजन की व्यवस्था की है कि शैतान के साथ संघर्ष में वह कभी भी पराजित नहीं होगा।PPHin 333.4

    जैसे-जैसे पृथ्वी पर जनसंख्या में वृद्धि हुई, सम्पूर्ण जगत विद्रोह-वर्ग से जा मिला। एक बार फिर ऐसा प्रतीत हुआ कि शैतान की विजय हुई। लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने पाप की प्रक्रिया पर रोक लगा दी और जल-प्रलय द्वारा प्थ्वी को उसके नैतिक प्रदूषण से स्वच्छ किया गया।PPHin 334.1

    यगगायाह 26:9,10 में नबी कहता है, “जब तेरे न्याय के काम पृथ्वी पर प्रकट होते हैंतब जगत के रहने वाले धर्म को सीखते है। दुष्ट पर चाहे दया भी की जाए तो भी वह धर्म को नहीं सीखेगा, धर्मराज्य में भी वह कूटिलता करेगा, और यहोवा की तेजस्विता उसे दिखाई नहीं देगी।” जल प्रलय के पश्चात ऐसा ही हुआ। परमेश्वर की दण्डाज्ञा से छुटकारा पाते ही, प्रथ्वी वासियों ने फिर से प्रभु के प्रति अतिक्रमण किया। दो बार जगत के द्वारा परमेश्वर की वाचा और उसकी व्यवस्था की उपेक्षा की गई थी। जल-प्रलय पूर्व के वासियों व नूह के वंशजो ने ईश्वरीय सत्ता को अस्वीकार किया। फिर परमेश्वर ने अब्राहम के साथ वाचा बाँधी और एक जाति को अपनी व्यवस्था का संग्रहस्थान होने के लिये अपनाया। इन लोगों को झाँसा देने और नष्ट करने के लिये शैतान ने तत्काल ही अपना जाल बिछाना आरम्भ किया। याकूब की संतानों को अधर्मियों के साथ वेवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने व उनकी मूर्तियों की पूजा करने का प्रलोभन दिया गया। लेकिन युसुफ परमेश्वर के प्रति निष्ठावान था और उसकी स्वाभिभक्ति उस सत्यनिष्ठा की स्थायी साक्षी थी। इस प्रकाश को समाप्त करने के लिये शैतान ने युसुफ के भाईयों की ईर्ष्या के द्वारा उसे एक अधर्मी देश में दास के तौर पर बेचा जाना सम्भव उसके बारे में मिस्र के लोगों को ज्ञान दिया जा सके। पोतिफेर के घर में और कारागार में भी युसुफ ने वह शिक्षा और प्रशिक्षण पाया, जिसने परमेश्वर के भय के साथ, उसको राज्य के प्रधानमंत्री के ऊँचे पद के लिये तैयार किया। फिरीन के महल से उसके प्रभाव का आभास सम्पूर्ण मिस्र में था और परमेश्वर का ज्ञान चारों ओर फैल गया। मिस्र में इज़राइली भी समृद्ध व धनवान हो गए औरजो परमेश्वर के प्रति सच्चे थे उन्होंने वहाँ के लोगों को व्यापक रूप से प्रभावित किया। नये धर्म को समर्थन मिलता देखकर मूर्तिपूजक याजकों में खलबली मचगई। शैतान की परमेश्वर के प्रति निजी शत्रुता से प्रेरित होकर, वे स्वयं इस प्रकाश को बुझाने में लग गए। सिंहासन के उत्तराधिकारी की शिक्षा का दायित्व याजकों पर था और भावी सम्राट के चरित्र कोामूर्तिपूजा के लिये जोश और परमेश्वर के प्रति निर्धारित प्रतिरोध हालता था और उसे इब्रियों के प्रति उत्पीड़न और करता उत्पन्न करता था।PPHin 334.2

    मिस्र से मूसा के चले आने के बाद चालीस वर्षों के दौरान, ऐसा प्रतीत हुआ कि मूर्तिपूजा ने विजय प्राप्त कर ली है। वर्ष के बाद वर्ष बीत जाने के साथ इज़राइलियों की आशाएँ मंद पड़ गईं। राजा और प्रजा दोनों ही शक्तिशाली होने के कारण फले न समा रहे थे और इज़राइल के परमेश्वर की हँसी उड़ा रहे थे। यह बढ़कर फिरौन के पास जाकर समाप्त हुआ जब उसका सामना मूसा से हुआ। जब यह इब्री अगुवा “इज़राइल के परमेश्वर, यहोवा” का सन्देश लेकर फिरौन के सम्मुख आया, वह सच्चे परमेश्वर के प्रति अज्ञानता नहीं, वरन्‌ उसके आधिपत्य के प्रति अनादर था जिसके कारण फिरौन ने उत्तर दिया, “यहोवा कौन है जो मैं उसका कहा मानूँ? मैं यहोवा को नहीं जानता।” प्रारम्भ से लेकर अन्ततक, पवित्र आज्ञा के प्रति फिरौन का विरोध, अज्ञानता का नहीं, वरन्‌ घृणा और तिरस्कार का परिणाम था।PPHin 335.1

    हालाँकि कि अब तक मिस्रियों ने परमेश्वर के ज्ञान को स्वीकार नहीं किया था, फिर भी प्रभु ने उन्हें पश्चताप का अवसर प्रदान किया। युसुफ के समय, मिस्र इज़राइल के लिये शरणस्थान रहा था, उसके लोगों पर की गई दया से परमेश्वर का सम्मान हुआ था, और अब ‘उस चिरसहिष्णु’ दयावान, और धेर्यवान ने प्रत्येक दण्डाज्ञा को समय दिया, जो अपना काम कर सके; मिस्री, जो स्वयं की ही पूजी गईं वस्तुओं के कारण शापित थे यहोवा की शक्ति को जानते थे और चाहते तो परमेश्वर के आगे आत्म-समर्पणकरके उसकी दण्डाज्ञा से बच सकते थे। राजा के हठीलेपन और धर्मान्धता के कारण परमेश्वर के ज्ञान का प्रचार हुआ, और कई मिस्री प्रभु की सेवकाई के लिये समर्पित हो गये।PPHin 335.2

    इज़राइली अधर्मियों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने और मूर्तिपूजा को अपनाने के आदी हो चुके थे, इसलिये परमेश्वर ने उन्हें मिस्र जाने की अनुमति दे दी थी जहाँ युसुफ का प्रभाव का व्यापक रूप से आभास होता था और जहाँ उनके ऐसे विशिष्ट जाति बने रहने के लिये परिस्थितियाँ अनुकूल थी। यहाँ पर भी मिस्रियों की निर्लज्ज मूर्तिपूजा और इब्रियों के अल्पवास के उत्तरार्ध के दौरान, उनकी करता और अत्याचार के कारण उनमें मूर्तिपूजा के प्रति घृणा उत्पन्न होनी चाहिये थी और उन्हें अपने पूर्वजों के परमेश्वर में शरण लेनी चाहिये थी। इसी घटना को शैतान ने अपना उद्देश्य प्राप्त करने का साधन बनाया, उसने इज़राइलियों के मनों को अन्धकार से भर दिया और उन्हें उनके अधर्मी स्वामियों के रीति-रिवाजों को अपनाने के लिये विवश कर दिया। अंधविश्वास से प्रेरित, पशुओं के प्रति मिस्रियों को श्रक्रा के कारण, इब्रियों को, उनके दासत्व काल के दौरान बलि की भेंट चढ़ाने की अनुमति नहीं दी गई । इस प्रकार उनके मन-मस्तिष्क में इस विधि के अभाव में उस महान बलिदान का प्रभाव नहीं पड़ा और उनका विश्वास घट गया। शैतान परमेश्वर के प्रयोजन का प्रतिरोध करने पर उतारू हो गया। यह उसका संकलप था कि उन महान लोगों को जो संख्या में दो लाख से अधिक थे, अज्ञान और अंधविश्वास में रखा जाए । वे लोग जिन्हें परमेश्वर ने आशिषित करनेऔर बड़ाने और प्थ्वी पर एक महान शक्ति बनाने की प्रतिज्ञा की थी,और जिनके द्वारा वही अपनी इच्छा को प्रकट करने वाला था, वे लोग जिन्हें वह अपनी व्यवस्था का रक्षक बनाने वाला था, इन्हीं लोगों को शैतान अँधेरे और दास्तव में रखना चाहता था ताकि वह उनके मन से परमेश्वर की स्मृति को मिटा दे।PPHin 335.3

    जब राजा के सम्मुख चमत्कार किये गए, तब शैतान उन चमत्कारों की शक्ति को निष्प्रभाव करने और फिरौन को परमेश्वर के प्रभुत्व को स्वीकार करने और उसके जनादेश का पालन करने से रोकने के लिये वहीं पर था। अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ शैतान ने परमेश्वर के चमत्कारों की नकल करने और उसकी इच्छा का प्रतिरोध करने की चेष्ठा की।। लेकिन इसके फलस्वरूप ईश्वरीय शक्ति और महिमा के महानतम प्रदर्शनों के लिये मार्ग तैयार हो गया और इज़राइलियों और समस्त मिस्र को जीवित और सच्चे परमेश्वर की सार्वभौमिकता और अस्तित्व और स्पष्ट हो गए।PPHin 336.1

    परमेश्वर ने अपनी शक्ति के श्रेष्ठ प्रदर्शों और मिस्र के सभी देवी-देवताओं को दण्डाज्ञा के द्वारा इज़राइल को छुटकारा दिलाया। भजन संहिता 105:43-45में लिखा है, “वह अपनी प्रजा को हर्षित करके और अपने चुने हुओं से जयजयकार कराके निकाल लाया, ताकि वे उसकी विधियों को माने और उसकी व्यवस्था को पूरी करें।” उसने उन्हें दासों जैसी अवस्था से मुक्त कराया, ताकि वह उन्हें एक समृद्ध देश में ला सके- वह जगह जिसे उसकी देख-रेख में उनके शत्रुओं से उनकी सुरक्षा के लिये तैयार किया गया था, जहाँ वे उसके पंखो की छाया तले वास कर सके। वह उन्हें अपनाकर, अपनी अनश्वर बाहों में लेना चाहता था, और उसकी करूणा और भलाई के बदले में उनसे परमेश्वर की यहीउपेक्षा थी कि वे उसे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न माने और पृथ्वी पर उसके नाम को ऊंचा करे और महिमा पहुँचाए।PPHin 336.2

    मिस्र में अपने दासत्व के दौरान अधिकांश इज़राइली, परमेश्वर की व्यवस्था के ज्ञान को लगभग खो चुके थे, और उन्होंने उसके सिद्धान्तों को मूर्तिपूजकों के रीति-रिवाजों और परम्पराओं में मिला दिया। परमेश्वर उन्हें सिने पर्वत लेकर आया, और वहाँ अपनी आवाज में व्यवस्था की घोषणा की।PPHin 337.1

    शैतान और उसके दुष्ट दूत पृथ्वी पर ही थे। जब परमेश्वर अपने लोगों के सम्मुख अपनी व्यवस्था की घोषणा कर रहा था, तब भी शैतान उन लोगों को पाप करने के लिये बहकाने का षड़यन्त्र रच रहा था। स्वर्ग के बिल्कुल सामने से वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को छीन कर ले जाना चाहता था। उन्हें मूर्तिपूर्जा में अग्रसर करके, वह आराधना के प्रभाव को समाप्त कर देना चाहता था, क्‍योंकि मनुष्य का धार्मिक उत्थान कैसे हो सकता है यदि वह उसकी उपासना करें जो उसी के तुल्य है या जिसका प्रतीक उसकी अपनी हस्तकला हो? जब मनुष्य सनातन परमेश्वर के सामर्थ्य गौरव और महिमा के प्रति इतना अंधा हो जाता कि गढ़ी हुईं मूर्ति से या जीव-जन्तु से उसका प्रतिनिधित्व करता, जब वह अपने पवित्र पवित्र सम्बन्ध को भूल जाता कि उसे अपने सृष्टिकर्ता के स्वरूप में बनाया गया है और उन घृणित, निजीव वस्तुओं को दण्डवत करने लगता, तब नियम का उललघंन करने का मार्ग खुल जाता, हृदय की पापी अभिलाषाएँ अनियन्त्रित हो जाती, और शैतान को पूरा अधिकार मिल जाता। PPHin 337.2

    सिने पर्वत के नीचे ही शैतान ने परमेश्वर की व्यवस्था को पलट देने की अपनी योजना को क्रियान्वित करना आरम्भ किया और इस प्रकार उसी काम को आगे बढ़ाया जो उसनेस्वर्ग में प्रारम्भ किया था। उन चालीस दिनों के दोरान जब मूसा परमेश्वर के साथ पहाड़ पर था, शैतान सन्देह, अधर्म और विद्रोह को उकसाने में व्यस्त था। जब परमेश्वर अपनी वाचा वाली प्रजा को देने के लिये अपनी व्यवस्था को लिख रहा था, इज़राइली यहोवा के प्रति अपनी निष्ठा को त्यागकर, सोने के देवी-देवताओं की मांग कर रहे थे। जब मूसा व्यवस्था के सिद्धान्तों के साथ, जिनका पालन करने की उन्‍होंने प्रतिज्ञा की थी, ईश्वरीय महिमा की उपस्थिति से लौटा तो उसने उन्हें उसकी आज्ञाओं को प्रत्यक्ष रूप से अनादर करते हुए, एक स्वर्णिम आकृति के सामने दण्डवत करते हुए पाया।PPHin 337.3

    इज़राइलियों द्वारा यहोवा का चुनौतीपूर्ण अपमान और ईश-निंदा करवाकर, शैतान ने उनके विनाश की योजना बनाई थी। चूंकि उन्होंने स्वयं को, इतना गिरा हुआ, परमेश्वर द्वारा दिये गए आशीर्वाद और विशेषाधिकारों के आभास, और निष्ठा की पवित्र व दोहरायी हुई अपनी प्रतिज्ञाओं के प्रति उदासीन प्रमाणित कर दिया था, शैतान को विश्वास था कि प्रभु उनसे सम्बन्ध-विच्छेद करके उन्हें विनाश को समर्पित कर देगा। इस प्रकार अब्राहम की संतान का सर्वनाश निश्चित था-प्रतिज्ञा की वह संतान जिसके द्वारा उसे आना था जो शैतान पर विजयी होने वाला था। उस महान विद्रोही ने इज़राइल के विनाश की योजना बनाई थी और इस प्रकार परमेश्वर के उद्देश्य को विफल करना चाहा। लेकिन वह फिर से पराजित हुआ। पापी होने के बावजूदइज़राइल के लोगों को नष्ट नहीं किया गया। जो हठपूर्वक शैतान के पक्ष में सम्मिलित हो गये उन्हें काट डाला गया और जो लोग दीन हो गये और जिन्होंने पश्चताप किया उन्हें क्षमा कर दिया गया। इस पाप का इतिहास मूर्तिपूजा के दण्ड और अपराधबोध का और परमेश्वर की चिरसहिष्णु करूणा और न्याय का चिरस्थायी साक्ष्य है।PPHin 338.1

    सिने के दृश्यों का साक्षी सम्पूर्ण नभमण्डल था। इन दो प्रबन्धनों के कियान्वन में परमेश्वर के शासन और शैतान के शासन के बीच भिन्‍नता दिखाई देती है। फिर से अन्य ग्रहों के वासियों ने शैतान के स्वधर्म-त्याग के परिणाम को देखा और यह भी जाना कि यदि उसे अधिकार दे दिया जाता तो वह स्वर्ग में किस प्रकार का शासन स्थापित करता मनुष्य द्वारा दूसरी आज्ञा का उल्लंघन कराक शैतान परमेश्वर को उनकी दृष्टि में नीचा दिखाना चाहता था। चौथी आज्ञा को परे रखकर वह चाहता था कि वे पूरी तरह परमेश्वर को भूल जाए। परमेश्वर का, मूर्तिपूजकों के देवी-देवताओं से बढ़कर आदर और उपासना का दावा, इस बात पर आधारित है कि वह सृष्टिकर्ता है और अन्य सभी प्राणियों के अस्तित्व का श्रेय उसको जाता है। ऐसा बाइबिल में प्रस्तुत किया गया है। यिर्मयाह नबी कहता है, “यहोवा वास्तव में परमेश्वर है, जीवित परमेश्वर और सदा का राजा वही है। वेदेवता जिन्होंने आकाश और पृथ्वी को नहीं बनाया वे पृथ्वी के ऊपर से और आकाश के नीचे से नष्ट हो जाएंगे। उसी ने पृथ्वी को अपनी सामर्थ्य से बनाया, उसने जगत को अपनी बुद्धि से स्थिर किया, और आकाश को अपनी प्रवीणता से तान दिया है।” “सब मनुष्य पशु सरीखे ज्ञान रहित है, प्रत्येक सुनकर बुत के कारण उलझन में है, क्योंकि उनके द्वारा ढाली गई मूर्तियाँ मिथ्या है, और उनमें श्वास नहीं है। वे खोखली और नासमझी के काम है, जब उनके दण्ड का समय आएगा तब वे नष्ट हो जाएंगी। परन्तु याकूब का निज भाग उनके समान नहीं है, क्योंकि वह तो सब का सृजनहार है”-यिर्मयाह 10:10-12, 14-16 [विश्राम दिन, परमेश्वर की सृजनात्मक शक्ति के स्मारक के तौर पर, उसकी ओर आकाश और पृथ्वी के सृष्टिकर्ता होने कीओरसंकेत करता है। इस प्रकार वह उसके अस्तितव का स्थायी साक्ष्य और उसके प्रेम, बुद्धिमता और महानता का स्मृतिपत्र है। यदि विश्राम दिन का पालन पूरी श्रद्धा के साथ किया जाता, तो कभी भी कोई नास्तिक या मूर्तिपूजक नहीं होता।PPHin 338.2

    विश्राम की विधि, जो अदन में आरम्भ हुई, जगत जितनी ही प्राचीन है। सृष्टि से लेकर आगे तक इसका पालन सभी कुलपिताओं ने किया। मिस्र में दासत्व के दौरान, इज़राइलियों को उनके अधिकारियों द्वारा सबत को भंग करने को बाध्य किया गया और वे उसकी पवित्रता को लगभग भूल ही गए। सिने पर्वत में जब व्यवस्था को घोषित किया गया, चौथी आज्ञा कापहला वाक्य था, “तू विश्राम दिन को पवित्र मानने के लिये स्मरण रखाना-इससे ज्ञात होता है कि विश्राम दिन की स्थापना उस समय नहीं वरन्‌ सृष्टि के समय हुईं। मनुष्य के मन मस्तिष्क से परमेश्वर को निकाल देने के लिये, शैतान ने इस स्मारक को समाप्त कर देना चाहा। अपने सृष्टिकर्ता को भूल जाने पर मनुष्य बुराई की शक्तियों का प्रतिरोध करने का कोई प्रयत्न न करता और शैतान अपने शिकार के लिये निश्चित हो जाता। PPHin 339.1

    शैतान की परमेश्वर के प्रति शत्रुता ने उसे दस आज्ञाओं के प्रत्येक सिद्धान्त के विरूद्ध लड़ाई करने को बाध्य कर दिया। परमेश्वर के प्रति निष्ठा और प्रेम के श्रेष्ठ सिद्धान्त के साथ, आज्ञाकारिता और संतानीय प्रेम का सिद्धान्त, जो सबका पिता है, गहरा सम्बन्ध है। माता-पिता की आज्ञाओं की अवहेलना करने करते मनुष्य परमेश्वर की आज्ञाओं की अवहेलना करने लगता है। इस कारण शैतान पॉचवी आज्ञा के आभासं को कम करना चाहता था। मूर्तिपूजकों ने इस नियम के सिद्धान्त पर अधिक ध्यान नहीं दिया। कई देशों में यदि वृद्धावस्था में माता-पिता अपना पालन-पोषण करने में असमर्थ हो जाते तो या तो उनका परित्याग कर दिया जाता था या उन्हें मार दिया जाता था। परिवार में माँ के साथ आदरपूर्ण व्यवहार नहीं किया जाता था और पति की मृत्यु के पश्चात उससे उपेक्षा की जाती थी कि वह अपने ज्येष्ठ पुत्र की अधीनता स्वीकार करें। मूसा ने सन्‍्तानीय आज्ञाकारिता की आज्ञा दी, लेकिन जब इजराइली परमेश्वर से दूर चले गए तो पाँचवीं आज्ञा की मान्यता नहीं रही। शैतान “आरम्भ से ही हत्यारा है (यहुन्ना 8:44)और मानव जाति पर अधिकार प्राप्त करने के तुरन्त बाद, उसने ना केवल उन्हें एक दूसरे से घृणा करने और एक-दूसरे को मार डालने को उकसाया, वरन्‌ परमेश्वर के प्रभुत्व को अधिक निर्भीकता से चुनौती देने के लिये उसने पांचवी आज्ञा के उल्लंघन को उनके धर्म का हिस्सा बना दिया।PPHin 339.2

    ईश्वरीय सदगुणों की विकृत धारणाओं के द्वारा, मूर्तिपूजक राष्ट्रों को विश्वास दिलाया गया कि देवी-देवताओं की कृपा-दृष्टि पाने के लिये मानव-बलि आवश्यक थी, और मूर्तिपूजा के कई रूपों में सबसे अधिक भयानक नशंसता का अभ्यास किया गया। इनमें से एक प्रथा थी कि बच्चों को मूर्तियों के सामने आग में से होकर निकलना होता था। जब उनमें से एक इस अग्नि-परीक्षा को सुरक्षित पार कर लेता था, तब लोगों को विश्वास हो जाता था कि उनकी भेंट स्वीकार की गई। जो इस अवस्था में निकल आते थे उन्हें परमेश्वर का कृपा-दृष्टि प्राप्त माना जाता था, उसे कई सुविधाएं प्रदान की जाती थी और उसके बाद भी उन्हें बहुत सम्मान दिया जाता था, और उनके अपराध, चाहे कितने भी जधन्य हो, कभी भी दण्डित नहीं किये जाते थे। लेकिन जो उस अग्नि परीक्षा में विफल हो जाता था, उसका अन्तिम परिणाम निश्चित हो जाता था। विश्वास किया जाता था कि उसके प्राण लेने से देवी-देवताओं को सन्तुष्ट किया जा सकता था, और इस रीति से उसे बलि की भेंट के रूप में चढ़ा दिया जाता था। स्वधर्म-त्याग के काल में ये घृणित प्रथाएँ प्रचलन में थी और कुछ हद तक इज़राइलियों में भी थी।PPHin 340.1

    धर्म के नाम में सातवीं आज्ञा का भी उल्‍लघंन किया गया। सबसे अधिक घृणित और व्यभिचारी विधियों को मूर्तिपूजा का हिस्सा बना दिया। देवी-देवताओं को अपवित्र दर्शाया जाता था, और उनके उपासक नीचतापूर्ण मनोभावों के अधीन हो गए। असाधारणबुराईयाँ प्रचलन में थी और धार्मिक पर्व और व्यापक अपवित्र से अभिलक्षित थे।PPHin 340.2

    बहुर्विवाह इससे पहले भी प्रचलित था। यह पाप उन कई पापों में से एक था जिसके कारण जल-प्रलय पूर्व जगत पर परमेश्वर का कोप भड़का। लेकिन फिर भी जल-प्रलय के पश्चात यह व्यापक हो गया। विवाह की व्यवस्था को विकृत करना, उसके आभार को क्षीण करना और उसकी पवित्रता को भंग करना, शैतान का सुविचरित प्रयत्न था। इसके अलावा मनुष्य के सामने परमेश्वर के स्वरूप को विकृत करने और बुराई और विपत्ति का मार्ग खोलने का और कोई तरीका नहीं था।PPHin 341.1

    महान विवाद के प्रारम्भ से ही शैतान का यह उद्देश्य रहा है कि वह परमेश्वर के चरित्र को गलत रूप में प्रस्तुत करें और उसकी व्यवस्था के विरूद्ध अतिक्रमण को उकसाए और इस कार्य को मानो सफलता का ताज भी मिला। जनसाधारण शैतान के बहकावे में आकर परमेश्वर के विरूद्ध खड़े हो जाते हैं। लेकिन बुराई के अभ्यास के बीच में भी परमेश्वर के उद्देश्य या प्रयोजन व्यवस्थित रूप से आगे बड़ते हुए सिद्धि प्राप्त करते हैं; सभी सृजित बुद्धिजीवियों के लिये वह अपनी न्यायसंगतता और उदारता प्रकट कर रहा है। शैतान के प्रलोभनों के द्वारा संपूर्ण मानव जाति ने परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन किया, लेकिन उसके पुत्र के बलिदान के माध्यम से उनके लिये परमेश्वर के पास लौटने का मार्ग खुल गया। मसीह के अनुग्रह से वे पिता की व्यवस्था का पालन करने में समर्थ हो जाते है। इस प्रकार प्रत्येक युग में, स्वधर्म त्याग और विद्रोह के वातावरण मेंभी, परमेश्वर उन लोगों को एकत्रित कर लेता है जो उसके प्रति सत्यवान है- वे लोग “जिनके मन में उसकी व्यवस्था है।” ययाह 51:7PPHin 341.2

    शैतान ने धोखे से स्वर्गदूतों को बहकाया, इस तरह उसने मनुष्यों के बीच अपने काम को आगे बढ़ाया और वह अन्त तक इस नीति का प्रयोग करेगा। यदि वह खुले तौर पर परमेश्वर और उसकी व्यवस्था के प्रति युद्धरत रहेगा, तो मनुष्य सावधान हो जाएगा, लेकिन वो अपना भेष बदल लेता है और सत्य को असत्य के साथ मिला देता है। इस प्रकार उन त्रुटियों को ग्रहण कर लिया जाता है जो आत्मा को वशीभूत और नष्ट कर देती हैं। इस माध्यम से शैतान जगत को अपने साथ खींच ले जाता है। लेकिन वह दिन आ रहा है जब उसका पराकम हमेशा के लिये समाप्त हो जाएगा।PPHin 341.3

    परमेश्वर का विद्रोह से निपटने का तरीका उस कार्य को अनावृत कर देगा जो अभी तक आढ़ में किया जा रहा था। शैतान के शासन के परिणाम, पवित्र आज्ञाओं को अनदेखा करने का फल सभी सृजित बुद्धिजीवियों की दृष्टि के सामने नष्ट हो जाएँगे। परमेश्वर की व्यवस्था पूर्ण रूप से दोष मुक्त ठहराई जाएगी। यह देखा जाएगा कि परमेश्वर की सभी कार्य-विधियाँ उसके लोगों की भलाई और उसके द्वारा सृजित अन्य सभी ग्रहों की भलाई के सन्दर्भ में थी। शैतान स्वयं, साक्ष्य विश्व की उपस्थिति में, परमेश्वर की सत्ता की न्यायपरता और उसकी व्यवस्था की पवित्रता का अंगीकार करेगा।PPHin 341.4

    वह समय दूर नहीं जब परमेश्वर अपमानित हुए अपने अधिकार को दोषमुक्त करने के लिये खड़ा होगा। यग्याह 26:21में लिखा है, “यहोवा पृथ्वी के निवासियों को अधर्म का दण्ड देने केलिये अपने स्थान से चला आता है। “परन्तु उसके आने के दिन को कौन सह सकेगा और तब तक वह दिखाई दे, तब कौन खड़ा रह सकंगा?”-मलाकी 3:2। अपने दुराचरण के कारण, इज़राइल के लोगों को सिने पर्वत के पास जाने की मनाही थी जब परमेश्वर उस पर अपनी व्यवस्था की घोषणा करने के लिये उतरने वाला था, नहीं तो वे उसकी उपस्थिति के अग्नि-समान तेज से नष्ट हो जाते है। यदि उसकी व्यवस्था की घोषणा के लिये चुने हुए स्थान पर उसकी सामर्थ्य का इतना प्रभावशाली प्रदर्शन हुआ, तो उसका न्यायाधिकरण कितना भयानक होगा, जब वह इन पवित्र नियमों का निष्पादन करने के लिये आएगा। निर्णायक प्रतिफल के महत्वपूर्ण दिन उसकी महिमा को वे कैसे सहन कर पाएंगे, जिन्होंने उसके सामर्थ्य को पैरों तले कुचल दिया था? सिने की भयावह घटनालोगों के लिये न्याय के दिन के दृश्यों का प्रतीक थी। तुरही के स्वर से लोगों को परमेश्वर से भेंट करने के लिये बुलाया गया। प्रधान स्वर्गदूत की वाणी और परमेश्वर की तुरही, समस्त पृथ्वी पर से, सजीव व निर्जीव प्राणियों को उनके न्यायाधीश की उपस्थिति में बुलाएंगे। पिता और पुत्र, स्वर्गदूतों के समूह के साथ पर्वत पर उपस्थित थे। न्याय के दिन मसीह “अपने स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा में आएगा”-मत्ती 16:27। फिर वह अपनी महिमा के सिंहासन पर बैठेगा, और उसके सामने समस्त राज्य एकत्रित होंगे।PPHin 342.1

    जब सिने पर परमेश्वर की उपस्थिति का प्रकटीकरण हुआ, इज़राइल की दृष्टि में, परमेश्वर की महिमा भस्म कर देने वाली अग्नि के समान थी। परन्तु जब मसीह अपने स्वर्गदूतों सहित महिमा में आएगा, समस्तप्थ्वी उसकी उपस्थिति के प्रचण्ड प्रकाश से प्रज्वलित हो जाएगी। भजन संहिता 50:3,4में लिखा है, “हमारा परमेश्वर आएगा और चुपचाप न रहेगा, आग उसके आगे-आगे भस्म करती जाएगी, और उसके चारों ओर आंधी चलती रहेगी। वह अपनी प्रजा का न्याय करने के लिये ऊपर के आकाश को और पृथ्वी को भी पुकारेगा।” उसके आगे से एक अग्निमय धारा उत्पन्न होकर बहेगी जो प्रचण्ड ताप से वातावरण के पदार्थों को पिघला देगी और पृथ्वी की सब कृतियों को जला देगी। 2 थिस्सलुनीकियों 1:7,8में लिखा है, “प्रभु यीशु अपने सामर्थी दूतों के साथ, धधकती हुईं आग में स्वर्ग से प्रकट होगा और जो परमेश्वर को नहीं पहचानते और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते, उनसे पलटा लेगा।”PPHin 342.2

    मनुष्य की सृष्टि के समय से अब तक पवित्र सामर्थ्य का ऐसा प्रदर्शन नहीं देखा गया, जैसा कि सिने पर व्यवस्था की घोषणा के समय हुआ। भजन संहिता 68:8 में लिखा है, “पृथ्वी कॉँप उठी और आकाश भी परमेश्वर की उपस्थिति में टपकने लगा, सिने पर्वत भी परमेश्वर, इज़राइल के परमेश्वर की उपस्थिति में कांप उठा।” प्रकृति के भयावह उतार-चढ़ाव के बीच बादल में से, तुरही के सामन परमेश्वर का स्वर सुनाई पड़ा। पर्वत ऊपर से लेकर नीचे तक कॉप उठा और इज़राइल की सेना, भय के कारण कांतिहीन और कंपकंपाती हुई, पृथ्वी पर मुहँ के बल गिर पड़ी। जिसकी आवाज ने तब पृथ्वी को हिला दिया, उसने इब्रानियों 12:26में घोषणा की है, “एक बार फिर में ने केवल पृथ्वी को वरन्‌ आकाश को भी हिला दँगा।'यिर्मयाह 25:30 व योएल 3:16में पवित्र शास्त्र कहता है, “यहोवा ऊपर से गरजेगा और अपने उसी पवित्र धाम में से अपना पवित्र शब्द सुनाएगा,” “और आकाशओर पृथ्वी थरथराएँगे।” उसके आगमन के महान दिन आकाश स्वयं, ‘खर्र की तरह जब वह लपेट दिया जाता है’ अपने स्थान से हट जाएगा (प्रकाशित वाक्य 6:14) और हर एक पहाड़ और टापू , अपने अपने स्थान से हटा दिये जाएंगे। यग्याह 24:20में लिखा है, “पृथ्वी मतवाले के समान बहुत डगमगाएगी और एक कूटिया के समान हटा दी जाएगी, वह अपने पाप से दबकर गिर जाएगी और फिर न उठेगी।”PPHin 343.1

    “इस कारण सब के हाथ ढीले पड़ेंगे” सभी के चेहरे “पीले पड़ जाएंगे” “और प्रत्येक मनुष्य का हृदय द्रवित हो जाएगा, और मैं जगत के लोगों को उनकी बुराई के कारण दण्ड दूँगा”। परमेश्वर कहता है, “में अभिमानियों के अभिमान का नाश करूंगा और दिल दहला देने वालों के घमण्ड को नीचे गिरा दूँगा।” यशायाह 13:7,8,11 PPHin 343.2

    जब मूसा पर्वत में परमेश्वर की उपस्थिति से होकर आया, जहाँ उसे साक्षी की पटियाएँ प्राप्त हुई थी, अपराध बोध से ग्रसित इज़राइल उस प्रकाश को सहन नहीं कर सका जो उसकी मुखाकृति को महिमान्वित कर रहा था। जब मनुष्य का पुत्र, स्वर्गीय सेना से घिरा हुआ, उसके प्रायश्चित का तिरस्कार करने वालों और उसकी आज्ञाओं का उल्लंघन करने वालों पर दण्डाज्ञा भेजने आएगा, तब अपराधी मनुष्य के पुत्र को कितना कम देख पाएँगे। जिन्होंने परमेश्वर की व्यवस्था को अमान्य ठहराया और मसीह के लहू को पैरों के नीचे कुचल दिया, “वे पृथ्वी के राजा, और प्रधान, और सरदारऔर धनवान और सामर्थी लोग, “पहाड़ों की खोहों और चटटानों में” जा छिपेंगे, “और पहाड़ों और चटटानों से कहेंगे, “हम पर गिर पड़ो और हमें उसके मुहँ से जो सिंहासन पर बैठा है, और मेम्ने के प्रकोप से छुपा लो क्‍योंकि उसके प्रकोप का भयानक दिन आ पहुँचा है, अब कौन ठहर सकता है”? प्रका।तवाक्य 6:15--17 । “उस दिन लोग अपनी चांदी-सोने की मूर्तियों को जिन्हें उन्होंने दण्डवत करने के लिये बनाया था, छछुँन्दरों और चमगादड़ों के आगे फेंक देगे, और जब यहोवा पृथ्वी को केपकैपाने के लिये उठेगा तब वे उसके भय के कारण और उसके प्रताप के मारे चटटानों की दरारों ओर उबड़-खाबड़ पहाड़ो की चोटियों पर चले जाएंगे।” यशायाह 2:20-21PPHin 344.1

    फिर देखने मेंआएगा कि परमेश्वर के विरूद्ध शैतान के अतिक्रमण के परिणाम स्वरूप उस का और उन सब को जिन्होंने उसकी प्रजा बनना स्वीकार किया, सर्वनगाश हुआ। उसने जताया था कि आज्ञाओं का उललघंन करने से अधिक लाभ होगा, लेकिन इस बात की पुष्टि हो जाएगी कि “पाप का फल मृत्यु है।” “क्योंकि देखो, वह धधकते भट्ठे का सा दिन आता है, जब सब अभिमानी और सब दुराचारी लोग, दठूँठ के समान होंगे, और उस आने वाले दिन में वे ऐसे भस्म हो जाएँगे कि उनका पता तक न रहेगा”-मलाकी 4:1। शैतान, जो हर पाप की जड़ है, और सब दुष्ट कार्यकर्ता, जो उसकी शाखाएँ है, पूर्णतया काट दिये जाएँगे। पाप का और उसके फलस्वरूप आए सारे कष्टों और बर्बादी का अन्त हो जाएगा। भजन संहिता 9:5,6 मेंलिखा है, “तूने जाति-जाति को झिड़का और दुष्ट को नष्ट किया है, तूने उसका नाम अनन्तकाल के लिये मिटा दिया। हे शत्रु, विनाश का चिरस्थायी अन्त हो गया है।’PPHin 344.2

    लेकिन पवित्र दण्डाज्ञा के तूफान के बीच परमेश्वर की संतान को डरने का कोई कारण नहीं। योएल 3:16में लिखा है, “यहोवा अपनी प्रजा के लिये शरणस्थान और इज़राइलियों के लिये गढ़ ठहरेगा।” जो दिन परमेश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन करने वालों के लिये भय और विनाश लाता है, वही दिन आज्ञा पालन करने वालों के लिये “निर्वचनीय आनन्द“लेकर आता है। परमेश्वर कहता है, “मेरे भक्तों को मेरे पास इकटठा करो, जिन्होंने बलिदान चढ़ाकर मुझ से वाचा बाँधी है। स्वर्ग उनके धर्मी होने का प्रचार करेगा, क्‍योंकि परमेश्वर तो आप ही न्यायी है।’PPHin 344.3

    “तब तुम लौटोगे और धर्मी और दुष्ट का भेद अर्थात जो परमेश्वर की सेवा करता है, और जो उसकी सेवा नहीं करता, उन दोनों का भेद पहचान सकोगे” -मलाकी 3:18।” हे धर्म के जानने वालों, जिनके मन में मेरी व्यवस्था है मेरी बातसुनो ।” मै लड़खड़ा देने वाले कटोरे को अर्थात अपनी जलजलाहट के कटारे को तेरे हाथ से ले लेता हूँ. तुझे उस में से फिर कभी पीना न पड़ेगा।” “मैं, में ही तेरा शान्ति-दाता हूँ-ययाह 51:7,22,12। “चाहे पहाड़ हट जाएँ और पहाड़ियाँ टल जाएँ, तो भी मेरी करूणा तुझ पर से कभी न हटेगी, और मेरी शान्तिदायक वाचा न टलेगी, यहोवा, जो तुझ पर दया करता है, उसका यही वचन है।” यायाह 54:10PPHin 345.1

    उद्धार की महान योजना के परिणामस्वरूप, जगत पर पूरी तरह से परमेश्वर की कृपा-दृष्टि हो गई । जो भी पाप के कारण खो गया था, पुनः प्राप्त हो गया। न केवल मनुष्य वरन्‌ समस्त प्थ्वी भी आज्ञाकारियों के लिये पवित्र निवास स्थान होने के लिये, बचाई गई। छः: हजार वर्ष तक शैतान ने पृथ्वी पर अपने स्वामित्व को कायम रखने का संघर्ष किया। अब परमेश्वर का पृथ्वी की सृष्टि का मूल उद्देश्य प्राप्त हुआ। “परन्तु परमप्रधान के पवित्र लोग राज्य को पाएंगे, और युगानयुग उसके अधिकारी बने रहेंगे ।“दानिय्येल 7:18PPHin 345.2

    “उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक, यहोवा का नाम स्तुति के योग्य है”-भजन संहिता 113:3। “उस दिन एक ही यहोवा और उसका नाम भी एक ही माना जाएगा।” “तब यहोवा सारी पृथ्वी का राजा होगा”-जकयाह 14:9 । पवित्र शास्त्र में लिखा है, “हे यहोवा, तेरा वचन आकाश में सदा तक स्थिर रहता है।” “उसके सब उपदेश विश्वासयोग्य है, वे सर्वदा अटल रहेंगे-भजन संहिता 119:89,111:7,8 । उन पवित्र आज्ञाओं का, जिनसे शैतान ने घृणा की और जिन्हें नष्ट करना चाहा, समस्त पापरहित विश्व में सम्मान किया जाएगा। और “जैसे भूमि अपनी उपज को उगाती और बारी में जो कुछ बोया जाता है उसको वह उपजाती है, वैसे ही प्रभु यहोवा सब जातियों के सामने धार्मिकता और प्रशंसा को बढ़ाएगा।” यगयाह 61:11PPHin 345.3