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कुलपिता और भविष्यवक्ता - Contents
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    अध्याय 52—वार्षिक पर्व

    यह अध्याय लैवव्यवस्था 23 पर आधारित है

    पवित्र स्थान पर आराधना के लिये सम्पूर्ण इज़राइल की तीन वार्षिक पवित्र सभाएं होती थी-निर्गमन 2:1-16। कुछ समय के लिये इन सभाओं का स्थान शीलो था, लेकिन बाद में यरूशलेम राष्ट्र की आराधना का केन्द्र बन गया, और पवित्र पर्वो के लिये गोत्र यहाँ एकत्रित होते थे।PPHin 553.1

    प्रजा उग्र व लड़ाकू जनजातियों से घिरी हुई थी, जो उनके भूभागों को हड़पने के लिये उतावले थे, लेकिन फिर भी वर्ष में लोगों में तीन बार सभी स्वस्थ शरीर वाले पुरूषों और यात्रा करने योग्य लोगों को निर्देश दिया गया कि वे अपने-अपने घरों से निकलकर देश के मध्य भाग के पास सभा स्थान पर पहुँचे। उनके असुरक्षित घरानों को आक्रमण द्वारा आग और तलवार से नष्ट करने को, उनके शत्रुओं को क्‍या बाधित कर सकता था? देश पर उस आक्रमण को जो इज़राइल को दोबारा किसी परदेशी शत्रु के अधीनस्थ कर देता, क्‍या रोक सकता था?परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की कि वह उसके लोगों का रक्षक होगा। भजन संहिता 34:7 में लिखा है, “यहोवा का दूत उसके भक्त जनों के चारों ओर डेरा डाले रहता है। और यहोवा का दूत उनकी रक्षा करता है। जब इज़राईली आराधना के लिये जाते, ईश्वरीय शक्ति उनके शत्रुओं पर रोक लगाता था। परमेश्वर की प्रतिज्ञा थी, “मैं अन्य जातियों को तेरे आगे से निकालकर तेरी सीमाओं को बढ़ाऊंगा, और जब तू अपने परमेश्वर यहोवा को अपना मुहँ दिखाने के लिये वर्ष में तीन बार आया करे, तब कोई तेरी भूमि का लालच न करेगा ।”-निगर्मन 34:24। PPHin 553.2

    इन पर्वां में सर्व प्रथम, फसह और अखमीरी रोटी का पर्व, यहूदी वर्ष के प्रथम वर्ष, अबीब में मनाया जाता था, यह समय मार्च के अन्त और अप्रैल के प्रारम्भ के समतुल्य था। शीत ऋतु की ठण्ड जा चुकी थी,उत्तरवर्ती वर्षा समाप्त हो गई थी, और सारी प्रकृति बसनन्‍्त ऋतु के सौन्दर्य और उसकी ताजगी में आनन्दित थ। तराईयों और पहाड़ों पर घास हरी थी, और गली फूल मैदानों की शोभा बढ़ा रहे थे। चन्द्रमा, जो पूरी होने को था, संध्या को आनन्दपूर्ण बना रहा था। इस ऋतु को सुन्दरता से चित्रित किया गया है- PPHin 553.3

    देख, जाड़ा जाता रहा,
    वर्षा भी हो चुकी और जाती रही।
    पृथ्वी पर फूल दिखाई देते हैं,
    चिड़ियों के गाने का समय आ पहुँचा है,
    और हमारे देश में पिन्डुक का शब्द सुनाई देता है।
    अंजीर के वृक्ष पर अंजीर पकने लगे है,
    और दाखलताएं फल रही है,
    वे सुगन्ध बिखरे रही है।
    PPHin 554.1

    - श्रेष्ठगीत 2:11-13

    देश के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक तीर्थयात्रियों के समूह यरूशलेम की ओर बढ़ रहे थे। चरवाहे अपने भेड़ बकरियों को छोड़, पहाड़ो से पशुपालक, गलील के समुद्र से मछुवारे, खेतों से किसान, और धार्मिक संस्थाओं से भविष्यद्वक्ताओं के पुत्र सभी ने उधर का रूख किया, जहाँ परमेश्वर की उपस्थिति प्रकट हुई । उन्होंने कई चरणों में यात्रा की, क्योंकि कई पैदल यात्री थे। कारवां में लोग लगातार जुड़ रहे थे, और पवित्र नगरी पहुँचने से पहले वे प्रायः बहुत बड़े हो जाते थे।PPHin 554.2

    प्रकृति की मनोहरता ने इज़राइलियों के हृदयों में प्रसन्‍नता, और भलाई के दाता के प्रति कृतज्ञता को जागृत किया। श्रेष्ठ इब्री भजन गाकर, यहोवा के गोरव ओर महिमा की स्तुति की गईं। तुरही के स्वर पर झांझ के संगीत के साथ, सैकड़ो की आवाजों में धन्यवाद का गीत गाया गया।PPHin 554.3

    जब लोगों ने मुझ से कहा, “आओ,
    हम यहोवा के भवन को चले”
    तब मैं आनन्दित हुआ।
    हे यरूशलेम, तेरे फाटकों के भीतर,
    हम खड़े हो गए है।
    वहाँ यहोवा के गोत्र गोत्र के लोग
    यहोवा के नाम का धन्यवाद करने को जाते है, यरूशलेम की शान्ति का वरदान माँगो,
    तेरे प्रेमी कुशल से रहे।
    PPHin 554.4

    - भजन संहिता 122:1-6।

    जब उन्होंने अपने चारो ओर उन पहाड़ो को देखा, जहाँ मूर्तिपूजक अपनी वेदी की आग जलाने के अभ्यस्त थे, इज़राइलियों ने गाया,PPHin 555.1

    “में अपनी आंखो पर्वतों की ओर लगाऊंगा?
    मुझे सहायता कहाँ से मिलेगी?
    मुझे सहायता यहोवा की ओर से मिलती है,
    जिसने आकाश और पृथ्वी को बनाया।”
    PPHin 555.2

    -भजन संहिता 121:1,2।

    जो यहोवा पर भरोसा रखते है,
    वे सिय्योन पर्वत के समान है,
    जो टलता नहीं, वरन्‌ सदा बना रहता है।
    जिस प्रकार यरूशलेम के चारो ओर पहाड़ है,
    उसी प्रकार यहोवा अपनी प्रजा के चारों ओर
    अब से लेकर सर्वदा तक बना रहेगा।
    PPHin 555.3

    -भजन संहिता 25:1,2 ।

    पवित्र नगरी के सदृश्य पहाड़ों के ऊपर से, उन्होंने मन्दिर की ओर बढ़ते हुए उपासकों के विशाल समूहों को श्रद्धायुक्त भय के साथ देखा। उन्होंने लोबान के उठते धुएँ को देखा, और पवित्र धर्म-किया का सन्देश देते लैवियों की तुरहियों का शब्द सुना, और इस घड़ी से प्रेरणा पाकर उन्होंने गया-PPHin 555.4

    “हमारे परमेश्वर के नगर में, और अपने पवित्र पर्वत पर
    यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है
    सिय्योन पर्वत ऊँचाई में सुन्दर और सारी
    पृथ्वी के हर्ष का कारण है, राजाधिराज का नगर उत्तरी सिरे पर है।”
    PPHin 555.5

    -भजन संहिता 48:1,2।

    “तेरी शहरपनाह के भीतर शान्ति
    और तेरे महलों में कुशल होवे”
    “मेरे लिये धर्म के द्वार खोलो
    मैं उन से प्रवेश करके यहोवा का धन्यवाद करूंगा ।’
    मैं यहोवा के लिये अपनी मन्नतें,
    प्रगट में उसकी सारीप्रजा के सामने
    यहोवा के भवन के आँगनों में,
    हे यरूशलेम, तेरे भीतरपूरी करूंगा
    यहोवा की स्तुति करो।”
    PPHin 556.1

    -भजन संहिता 112:7, 118:19, 116:18,19।

    यरूशलेम के सभी घर, तीर्थयात्रियों के लिये खोल दिये जाते थे, और कक्षों को निःशुल्क दिया जाता था,लेकिन यह सब मिलाकर भी विशाल सभा केलिये पर्याप्त नहीं होता था, ओर आस-पास के पहाडों, शहर में प्रत्येक सम्भव स्थान पर तम्बू खड़े किये जाते थे।PPHin 556.2

    महीने के चौदहवें दिन, संध्या होने पर, फसहका पर्व मनाया जाता था, उसके प्रभावशाली अनुष्ठान, मिस्र में इज़राइलियों के दासत्व का स्मरण कराते थे ओर उस बलिदान की ओर संकेत करते थे, जो उन्हें पाप के बन्धन से मुक्त करेगा । जब उद्धारकर्ता ने कलवरी पर अपने प्राण न्‍यौछावर किये, फसह के पर्व का महत्व समाप्त हो गया, और जिसका फसह का सर्व प्ररूप रहा था, इसी कार्यकम के रूप में प्रभु भोज की विधि स्थापित की गई।PPHin 556.3

    फसह के पर्व के बाद अखमीरी रोटी का सात दिन का पर्व मनाया जाता था। पहला और सातवाँ दिन पवित्र दीक्षान्त समारोह के दिन थे,जब कोई दास्तव वाला कार्य नहीं किया जाना था। पर्व के दूसरे दिन, वर्ष की उपज के पहले फल परमेश्वर के सम्मुख प्रस्तुत किये जाते थे। जौ फिलिस्तीन का सबसे पहले तैयार होने वाला अन्न था, और पर्व के प्रारम्भ में यह पकने पर आता था। अन्न की एक बाली याजक द्वारा परमेश्वर की वेदी के सम्मुख लहराई जाती थी, जो इस बात की स्वीकृति थी कि सब कुछ परमेश्वर का था। जब तक यह विधि सम्पन्न नहीं होती थी। उपज को इकट॒ठा नहीं किया जाता था।PPHin 556.4

    पहले फलों की भेंट चढ़ाने के पचास दिनों बाद पिन्तेकुस्त, जिसे कटन का पर्व और सप्ताहों का पर्व भी कहा जाता था। भोजन के रूप में तैयार किये गए अन्न के लिये आभार की अभिव्यक्ति के रूप में परमेश्वर के सम्मुख दो अखमीरी रोटियों की भेंट चढ़ाई जाती थी। पिन्तेकुस्त केवल एक ही दिन के लिये होता था, जो धार्मिक विधि को समर्पित था। PPHin 557.1

    सातवें महीने मे झोपड़ियों का पर्व या एकत्रित होने का पर्व मनाया जाता था। यह पर्व अंगूर के बागों, जैतून की वृक्ष-वाटिकाओं और फलोद्यानों में परमेश्वर की ओर से बहुतायत की आशीष के लिये आभार प्रकट करता था। यह वर्ष का सर्वोच्च उत्सव सम्बन्धी सम्मेलन होता था। भूमि अपनी अतिरिक्त उपज उत्पन्न करती थी, कटी हुई उपज को खाद्य-भण्डारों में इकट्ठा कर दिया जाता था, फलों, तेल और दाखरस को संचित कर दिया जाता था, पहले फलों को आरक्षित किया जाता था, और फिर लोग उस परमेश्वर के लिये जिसने उन्हें इतनी आशीषें दी थी, धन्यवाद की भेंट लेकर आते थे।PPHin 557.2

    पर्व को विशेष रूप से हर्षोल्लास का अवसर होना था। यह प्रायश्चित के दिन के तुरन्त बाद मनाया जाता था, जब यह आश्वासन दे दिया जाता था कि उनका अधर्म भुला दिया जाएगा। परमेश्वर के साथ सुलह होने पर, अब वे उसके सम्मुख उसकी भलाई का अंगीकार करने और उसकी दया के लिये उसकी प्रशंसा करने आते थे। कटनी का परिश्रम की समाप्ति पर, और नये वर्ष के कठिन श्रम का प्रारम्भ ना होने पर, लोग चिन्तामुक्त होते थे, और अपने आप को उस समय के पवित्र, आनन्दमयी प्रभावों को समर्पित कर सकते थे। हालाँकि, केवल पिताओं और पुत्रों को पर्व में आने का आदेश होता था, फिर भी, जहाँ तक सम्भव होता था, सम्पूर्ण घराना इन पर्वाों के लिये उपस्थित हो सकता था और उसके अतिथि सत्कार के लिये दास, लैवी, परदेशियों और निर्धनों का स्वागत किया जाता था।PPHin 557.3

    फसह के पर्व के समान, झोपड़ियों का पर्व भी संस्मारक है। बीहड़ों में बिताए जीवन की स्मृति में लोग अपने-अपने घरों से निकलकर “अच्छे-अच्छे वृक्षों की उपज और खजूर के पत्ते और घने वृक्षकों की डालियाँ और नदियों के किनारे लगे पेड़ों” से बने अस्थायी आश्रयों या झोपड़ियों में रहते थे। - लैवव्यवस्था 23:40,42,43।PPHin 557.4

    पहला दिन पवित्र सम्मेलन होता था और पर्व के सात दिनों में आठवाँ दिन जोड़ा जाता था, जिसे उसी तरह मनाया जाता था।PPHin 558.1

    इन वार्षिक सभाओं में वृद्धि व नौजवानों के हृदय परमेश्वर की सेवा के लिये प्रोत्साहित होते थे, और देश के विभिन्‍न भागों से आए लोगों का मेल-जोल उन बन्धनों को मजबूत करता था जो उन्हें परमेश्वर से और एक दूसरे से बाँध कर रखते थे। अच्छा होता कि वर्तमान में भी परमेश्वर के लोग झोपड़ियों का पर्व मनाते- परमेश्वर की उन पर आशीषों का आनन्दमयी स्मरणोत्सव! जैसे इज़राईली परमेश्वर द्वारा उनके पूर्वजों को दिलाए छुटकारे और मिस्र से उनकी यात्राओं के दौरान उनका आश्चर्यजनक संरक्षक के स्मरण में उत्सव मनाते थे, इसी प्रकार हमें भी उन विभिन्‍न तरीकों का कृतज्ञतापूर्ण स्मरण करना चाहिये जोउसने हमें संसार से बाहर निकालनेऔर पाप के अन्धकार से अपने अनुग्रह और सच्चाई के बहुमूल्य प्रकाश में लेकर आने के लिए अपनाए।PPHin 558.2

    जो पवित्र स्थान से कुछ दूरी पर रहते थे उनके लिये प्रत्येक वर्ष का एक महीना वार्षिक पर्वों में उपस्थित होना अनिवार्य था। भक्ति का यह उदाहरण धार्मिक धर्म-कियाओं की महत्ता और हमारे सात्विक और आध्यात्मिक रूझान को स्वार्थपूर्ण, सांसारिक रूचियों के ऊपर रखने की आवश्यकता पर जोर देता है। जब हम परमेश्वर की सेवा के लिये एक दूसरे को प्रोत्साहित करने और सशक्त बनाने के लिये मेल-जोल के विशेषाधिकार की उपेक्षा करते हैं तो हमें नुकसान होता है। हमारे हृदय उसके पवित्र प्रभाव से जागृत और प्रबद्ध होना बन्द कर देते हैं और आध्यात्मिक पतन होने लगता है।PPHin 558.3

    मसीही होते हुए हमारे पारस्पारिक व्यवहार में, एक दूसरे के प्रति सहानुभूति के अभाव में हम बहुत कुछ खो देते हैं। वह जो स्वयं को अपने तक ही सीमित रखता है, वह उस स्थान को नहीं भरता जो परमेश्वर ने उसके लिये ठहराया है। हम सभी एक पिता की संतान है, और प्रसन्‍नता के लिये एक दूसरे पर निर्भर है। परमेश्वर और मानवता, दोनों का हम पर अधिकार है। हमारे स्वभाव के सामाजिक भाव है वह हमारे मन में अपने भाईयों के लिये सहानुभूति उत्पन्न करते है और दूसरों को आशीषित करने के लिये हमारे प्रयत्नों में आनन्दित करता है।PPHin 558.4

    झोपड़ियों का पर्व ना केवल संस्मारक था वरन्‌ प्रतीकात्मक भी था। वह केवल बीहड़ के पड़ाव की ओर ही संकेत नहीं करता था, वरन्‌ कटनी के उत्सव के तौर पर, यह संकेत करता था निर्णायक संचयन के दिन की ओर, जब फसल का प्रभु आग में भस्म करने के लिये जंगली घाँस के पूले बनाने और गेहूँ को उसके गोदाम में इकट॒ठा करने को अपने फसल काटने वालों को भेजता है। उस समय सभी दुष्टों को नष्ट कर दिया जाएगा। वे ऐसे हो जाएंगे, “जैसे कभी थे ही नहीं”-ओबद्याह 16। सम्पूर्ण सृष्टि की प्रत्येक आवाज परमेश्वर की आनन्दपूर्ण स्तुति करने में एक हो जाएगी। प्रकाशितवाक्य 5: 13में लिखा है, “फिर मैंने स्वर्ग में और पृथ्वी पर और पृथ्वी के नीचे और समुद्र की सब सृजी हुई वस्तुओं को, और सब कुछ को जो उनमें यह कहते सुना” जो सिंहासन पर बैठा है उसका और मेम्ने का धन्यवाद और आदर और महिमा और राज्य युगानुयुग रहे।”PPHin 559.1

    बीहड़ में उनके पथिक समान जीवन के दौरान परमेश्वर की नग्रतापूर्ण देखभाल और मिस्र में उनके दास्तव से छुटकारे में उसकी करूणा का स्मरण करते हुए, इज़राइल के लोगों ने झोपड़ियों के पर्व पर परमेश्वर की स्तूति की । हाल ही में समाप्त हुईं प्रायश्चित के दिन की धर्म-किया के माध्यम से मिली स्वीकृति और क्षमा का बोध होने पर वे आनन्दित हुए। लेकिन जब प्रभु के बचाए लोग स्वर्गीय कनान में सुरक्षित एकत्रित हो जाएँगे व उस श्राप की अधीनता से सर्वदा के लिये छुटकारा पा लेंगे, जिसके प्रभाव में, “सारी सृष्टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है-रोमियों 8:22, वे अकथनीय प्रसन्‍नता के साथ परमेश्वर की स्तुति करेंगे। मनुष्य के प्रायश्चित का मसीह का महान कार्य उस समय तक समाप्त हो चुका होगा और उनके पाप हमेशा के लिये मिटा दिये गए होंगे।PPHin 559.2

    “जंगल और निर्जल देश प्रफुल्लित होंगे,
    मरूभूमि मगन होकर केसर के समान फूलेगी,
    वह अत्यन्त प्रफुल्लित होगी और आनन्द के साथ
    जय-जयकार करेगी। उसकी शोभा लबानोन की सी होगी और
    वह कार्मेल और शारोन के तुल्य तेजोमय हो जाएगी।
    “तब अँधो की आँखे खोली जाएगी और
    बहरों के कान भी खोले जाएँगे
    तब लँगड़ा हिरण की सी चौकड़ियाँ भरेगा और
    गूँगे अपनी जीभ से जय-जयकार करेंगे ।
    क्योंकि जंगल में जल के सोते फूट निकलेंगे
    और मरूभमि में नदियाँ बहने लगेंगी ।
    और प्यासी प्थ्वी तालाब बन जाएगी
    और सूखी भूमि में सोते फटेगें
    वहाँ एक सड़क अर्थात राजमार्ग होगा
    और उसका नाम पवित्र मार्ग होगा
    कोई अशुद्ध जन उस पर से चलने न पाएगा,
    वह तो उन्हीं के लिये रहेगा-
    पैदल यात्रा करने वाले पुरूष,
    चाहे मूर्ख भी हों, तो भी कभी नहीं भटकेंगे ।
    वहाँ सिंह नहीं होगा और कोई हिंसक जन्तु उस पर न चढ़ेगा,
    और न ही वह वहाँ पाया जाएगा
    परन्तु छुड़ाए हुए उस पर नित चलेंगे ।
    यहोवा के छुड़ाए हुए लोग लौटकर जयजयकार करते हुए
    सिय्योन में आएँगे, और उनके सिर पर
    सदा का आनन्द होगा वे हर्ष और आनन्द पाएँगे और
    शोक और लम्बी साँस का लेना जाता रहेगा।
    PPHin 559.3

    याशायाह 35:1,2,5-10