Loading...
Larger font
Smaller font
Copy
Print
Contents
कुलपिता और भविष्यवक्ता - Contents
  • Results
  • Related
  • Featured
No results found for: "".
  • Weighted Relevancy
  • Content Sequence
  • Relevancy
  • Earliest First
  • Latest First

    अध्याय 72—अबशालोम का विद्रोह

    यह अध्याय 2 शमूएल 13—19 पर आधारित है

    “वह चार गुना वापस करेगा” नातान भविष्यवक्ता से दृष्टांत सुनने पर दाऊद की स्वयं पर ये सबसे सांयोगिक दण्डाज्ञा थी, और स्वयं अपनी दण्डाज्ञा के अनुसार उसका न्याय होना था। उसके चार पुत्रों की मृत्यु निश्चित थी, और प्रत्यूके की हानि का कारण उनके पिता का पाप था।PPHin 763.1

    दाऊद ने अपने पहले पुत्र अम्नोन के कुकर्म को बिना दण्ड दिये या बिना फटकार लगाए जाने दिया। व्यवस्था के अनुसार व्यभिचार करने वाले को मृत्यु दण्ड दिया जाता था, और अम्नोन के अस्वाभाविक अपराध ने उसे दो गुना दोषी ठहराया था। लेकिन दाऊद जो अपने निजी पाप के कारण स्वयं को दोषी मानता था, अपराधी का न्याय नहीं कर सका। दो वर्षो तक अबशालोम, जो अपनी बहन का, जिसके साथ अनर्थ हुआ था, स्वाभाविक रक्षक था, प्रतिशोध के अपने उद्देश्य को छुपाए बैठा था, क्‍योंकि अन्त में वह निश्चित वार करना चाहता था। राजा के पुत्रों के भोज के समय, अगम्यगामी व उनमत्त अम्नोन को अपने ही भाई के आदेशानुसार मार डाला गया। PPHin 763.2

    दाऊद को दो गुना दण्ड दिया जा चुका था। यह भयानक सन्देश उसके पास पहुँचाया गया, “अबशालोम ने सब राजकुमारों को मार डाला, और उनमें से एक भी नहीं बचा। तब दाऊद ने उठकर अपने वस्त्र फाड़े और भूमि पर गिर पड़ा, और उसके सब कर्मचारी वस्त्र फाड़े हुए उसके पास खड़े रहे।” आश्चर्यवकित होकर जब राजा के पुत्र घर लौटे तो उन्होंने अपने पिता को सच्चाई से अवगत कराया, केवल अम्नोन मारा गया था “और वे चिल्ला चिललाकर रोने लगे, और राजा भी अपने सब कर्मचारियों के साथ बिलख-बिलख कर रोने लगा।” लेकिन अबशालोम गशूर के राजा, अम्मीहूर के पुत्र तल्में के पास चला गया, तल्में अबशालोम का नाना था।PPHin 763.3

    दाऊद के अन्य पुत्रों की तरह, अम्नोन को भी अपनी मनमानी करने की अनुमति दे दी गईं थी। उसने अपने हृदय की प्रत्येक अभिलाषा को समन्तुष्ट करना चाहा था, और वह परमेश्वर के नियमों के प्रति उदासीन था। अपने महापाप के बावजूद, परमेश्वर ने उसे बहुत दिनों के लिये सहन किया था। दो वर्षो तक उसे प्रायश्चित का अवसर प्रदान किया गया, लेकिन वह पाप करता रहा, और उसके दोष के साथ ही उसे न्याय के दिन के न्याय की प्रतीक्षा करने के लिये मार दिया गया।PPHin 763.4

    दाऊद ने अम्नोन के अपराध को दण्डित करने के कर्तव्य की उपेक्षा की थी और पिता व राजा की अविश्वसनीयता और पुत्र के अपश्चतापी होने के कारण परमेश्वर ने घटनाओं को स्वाभाविक तरीके से होने की अनुमति दे दी, और अबशालोम को बाधित नहीं किया। जब माता-पिता या शासक अधर्म को दण्डित करने के कर्तव्य की उपेक्षा करते हैं, परमेश्वर उस विषय को अपने हाथ में ले लेता है। उसकी नियन्त्रकारी शक्ति उस उपाय में होगी जो पाप के सूत्रधारों से दूर है, ताकि परिस्थितियों का ऐसा ताॉँता उत्पन्न होगा जो पाप को पाप द्वारा दण्डित करेगा।PPHin 764.1

    अम्नोन के प्रति दाऊद के अन्यायपूर्ण दयालुतापूर्ण व्यवहार के दुष्परिणाम समाप्त नहीं हुए थे, क्‍योंकि यहाँ से अबशालोम की अपने पिता से विमुखता प्रारम्भ हुईं। अबशालोम के गशूर भाग जाने के बाद, दाऊद को लगा कि उसका पुत्र दण्ड का पात्र है, और उसने उसे लौट कर आने की स्वीकृति न दी। इससे जिन जटिल विपदाओं में वह पड़ने वाला था, कम होने के बजाय बढ़ने वाली थी। राज्यों के मामलों में सहभागिता से उसके प्रवास के कारण बाहर किये जाने पर कर्मठ, महत्वकांक्षी और सिद्धान्तहीन अबशालोम खतरनाक षड़यन्त्र रचने लगा। PPHin 764.2

    दो वर्ष बीत जाने पर योआब ने पिता और पुत्र क बीच पुनर्मिलन कराने का निश्चय किया। इस लक्ष्य को दृष्टि में रखते हुए उसने बुद्धिमानी के लिये प्रख्यात एक स्त्री, तकोआ की सहायता ली। योआब के निदेश से इस स्त्री ने दाऊद के सम्मुख अपना प्रतिनिधित्व एक विधवा के तौर पर किया, जिसके दो पुत्र ही उसका एकमात्र सहारा रहे थे। एक लड़ाई में एक ने दूसरे को मार दिया, और अब परिवार के सभी परिजन यह माँग कर रहे थे कि उत्तरजीवी को उन्हें सौंप दिया जाए। माँ ने कहा, “इस तरह वे मेरे अंगारे जो भी बच गये है बुझाएँगे, और मेरे पति का नाम और संतान धरती पर से मिटा देंगे।” इस विनती ने राजा की भावनाओं को छुआ और उसने उस स्त्री को उसके पुत्र की राजसी सुरक्षा देने का आश्वासन दिया। PPHin 764.3

    राजा ने नौजवान की सुरक्षा की आवर्ती प्रतिज्ञाएं कराने के बाद, उसने राजा की सहिष्णुता की विनती की, और राजा को दोषी घोषित किया, क्‍योंकि वह अपने द्वारा निष्काषित को वापस लेकर नहीं आया था। उसने कहा, “हम को तो मरना है, और हम भूमि पर गिरे हुए जल के समान हहरेंगे, तो फिर उठाया नहीं जाता; ना ही परमेश्वर किसी व्यक्ति का पक्ष लेता है ;फिरभी वह ऐसी युक्ति करता है कि उसके निर्वासित, उससे दूर न हो।” पापी के प्रति परमेश्वर के प्रेम का ऐसा संवेदनशील चित्रांकन- वह भी उसके अशिष्ट योद्धा योआब की ओर से आया हुआ- इस बात का प्रमाण है कि इज़राइल उद्धार महान सत्य से परिचित थे। राजा ने स्वयं के लिये परमेश्वर की करूणा की आवश्यकता को महसूस किया और वह निवेदन का प्रतिकार न कर सका। योआब को आज्ञा दी गई, “तू जाकर उस नौजवान अबशालोम को लौटा ला।”PPHin 764.4

    अबशालोम को यरूशलेम लौटने की अनुमति दे दी गई, लेकिन उसे दरबार में उपस्थित होने या अपने पिता से मिलने की अनुमति नहीं थी। दाऊदने अपनी संतान के प्रति अपने दयालुतापूर्ण व्यवहार के दुष्परिणाम देखने आरम्भ कर दिये थे, और क्‍योंकि वह अपने इस सुदर्शन और गुण-सम्पन्न पुत्र से अत्यन्त प्रेम करता था, उसने यह आवश्यक समझा कि ऐसे अपराध के प्रति घृणा को अबशालोम और प्रजा के लिये सबक के तौर पर प्रकट किया जाए। अबशालोम दो वर्षो तक अपनी निजी निवास में रहा, लेकिन वह दरबार से निष्काषित रहा। उसकी बहन उसके साथ थी, और उसकी उपस्थिति ने उस पर किये गए अप्रतिकार्य दुष्कर्म की समृति को जीवित रखा। लोकप्रिय अनुमान में राजकुमार अपराधी न होकर नायक था। इस अनुकूल परिस्थिति के होते हुए, उसने लोगों के हृदयों को जीतना आरम्भ किया। उसका व्यक्तिगत आविर्भावऐसा था कि वह देखने वालों को आकर्षित करता था। “समस्त इज़राइल में सुन्दरता के कारण, बहुत प्रशंसा योग्य अबशालोम के तुल्य और कोई न था: उसमे सिर से पांव तक कोई दोष नहीं था।” राजा के लियेयह विवेकपूर्ण नहीं था कि अबशालोम जैसे स्वभाव वाले महत्वाकांक्षी, अति संवदेनशील और आवेशपूर्ण व्यक्ति को दो वर्ष से अधिक समय तक तथाकथित उलाहना पर चिंतन करने के लिये छोड़ दिया जाए। और अबशालोम को यरूशलेम वापसी की अनुमति देकर भीउसे राजा की उपस्थिति में होने से वंचित रखने में, दाऊद के निर्णय ने, लोगों को अबशालोम के प्रति संवेदनशील बनाया।PPHin 765.1

    परमेश्वर की व्यवस्था के प्रति आज्ञा-उल्लंघन की स्मृति हर पल युद्ध के सम्मुख थी, और इस कारण वह नैतिक रूप से शक्तिहीन हो गया था, वह दुर्बल और अनिश्चित था, जबकि अपने पाप से पहले वह साहसी और कृतसंकल्प था। लोगो पर उसका प्रभाव घट गया। इस सब ने उसके अस्वाभाविक पुत्र के षड़यन्त्रों को बढ़ावा दिया।PPHin 765.2

    योआब के प्रभाव से, अबशालोम को अपने पिता की उपस्थिति में प्रवेश मिला, और हालाँकि एक दिखावटी पुनर्मिलन था, अबशालोम ने अपनी महत्वाकांक्षी युक्तियाँ जारी रखीं। अब उसने एक राजसी शान अपना ली, उसके पास रथ और घोड़े थे और पचास पुरूष उसके आगे-आगे भागते थे। और जब राजा एकान्त और कार्य निवृति की इच्छा के प्रति प्रवृत्त था, अबशालोम ने तत्परता से लोक-सम्मत समर्थन प्राप्त किया।PPHin 766.1

    दाऊद की उदासीनता और अनिश्चितता उसके अधीनस्थों तक फैल गई, और न्याय के शासन-दप्रबन्ध में उपेक्षा और विलम्ब के लक्षण दिखाई देने लगे। अबशालोम ने असन्तोष के प्रत्येक कारण को धूर्तता से अपने लाभ के लिये प्रयोग किया। प्रतिदिन यह शालीन व्यक्तित्व वाला पुरूष नगर के फाटक पर दिखाई देता था, जहाँ भारी संख्या में प्रार्थी अपने कष्टों को निवारण के लिये प्रस्तुत करने की प्रतीक्षा करते थे। अबशालोम उनके साथ मेल-मिलाप करता और उनकी शिकायतों को सुनता, उनके दुखों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करता और शासन की अयोग्यता पर खेद-प्रकट करता । इस प्रकार एक इज़राइली पुरूष की कहानी को सुनकर राजकुमार उत्तर देता, “तेरा पक्ष तो ठीक और न्याय का है परन्तु राजा की ओर से तेरी सुनने वाला कोई नहीं है, भला होता कि मैं इस देश में न्‍न्यायी ठहराया जाता, तब जितने मुकद्दमेवाले होते वे सब मेरे ही पास आते, और मैं उनका न्याय चुकाता। फिर जब कोई उसे दण्डवत करने को निकट आता, तब वह हाथ बढ़ाकर उसको पकड़ के चूम लेता था।”PPHin 766.2

    राजकुमार के धूर्ततापूर्ण उकसाव से उत्तेजित, सरकार के प्रति असन्तोष तेजी से फैल रहा था। सभी के होठों पर अबशालोम की प्रशंसा थी। सामान्य तौर पर उसे राज्य का उत्तराधिकारी माना जाने लगा, लोग गर्व से उसे इस उच्च पद के योग्य मानते थे, और उनमें उसके सिंहासन पर विराजमान होने की अभिलाषा उत्पन्न हुई। “इस प्रकार अबशालोम ने इज़राइली मनुष्यों के मन को हर लिया।* पुत्र के प्रेम में अंधे, दाऊद को तनिक भी सन्देह नहीं हुआ। दाऊद का मानना था कि अबशालोम ने पुनर्मिलन पर प्रसन्‍नता की अभिव्यक्ति के तौर पर दरबार को सम्मान देने के लिये राजसी शान को अपनाया था।PPHin 766.3

    जो होने वाला था, उसके लिये लोगों के मनों को तैयार कर, अबशालोम ने सभी गोत्रों में गुप्त रूप से चुने हुए व्यक्तियों को विद्रोह के लिये उपाय जानने के लिये भेजा। और अब उसने राजद्रोही युक्तियों को छुपाए रखने के लिये धर्मनिष्ठा के आवरण को धारण किया। बहुत समय पहले, प्रवास के दौरान की गई प्रतिज्ञा को हेब्रोन में पूर्ण होना था। अबशालोम ने राजा से कहा, “मुझे हेब्रोन जाकर अपनी उस प्रतिज्ञा को पूर्ण करने दे, जो मैंने यहोवा के सामने की थी। तेरा दास जब अराम के गशूर में रहता था, तब मैंने यहोवा से प्रतिज्ञा की कि यदि यहोवा मुझे सचमुच यरूशलेम को लौटा ले जाए तो मैं यहोवा की उपासना करूँगा ।” अपने पुत्र में धार्मिकता के इस प्रमाण से सांत्वना पाकर, प्रेमी पिता ने उसे आशीर्वाद के साथ विदा किया। षड़यन्त्र अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुका था। अबशालोम के पाखंड का सर्वोच्च अभिनय ना केवल राजा को धोखा देने के लिये तैयार किया गया था, वरन्‌ लोगों के विश्वास को स्थापित कर, उन्हें परमेश्वर द्वारा चुने हुए राजा के विरूद्ध विद्रोह करवाने के लिये था।PPHin 767.1

    अबशालोम, हेब्रोन के लिये निकल पड़ा और उसके “संग दो सौ आमन्त्रित पुरूष यरूशलेम से गए, वे साफ मन से उसका भेद बिना जाने गए।” ये पुरूष अबशालोम के साथ गए पर इन्होंने कभी नहीं सोचा था कि पुत्र के लिये प्रेम उन्हें पिता के विरूद्ध उपद्रव करने की ओर ले जा रहा था। हेब्रोन पहुँचकर अबशालोम ने दाऊद के प्रमुख सलाहकार को बुलवाया । अहतोपेल अपनी बुद्धिमानी के लिये विख्यात था और उसकी राय को भविष्यवक्ता की सम्मति के समान विश्वसनीय और ज्ञानपूर्ण माना जाता था। अहीतोपेल षड़यन्त्रकारियों के पक्ष में हो गया, और उसके समर्थन से अबशालोम के अभियान की सफलता निश्चित प्रतीत होने लगी, जिससे देश के सभी भागों से प्रभावशाली पुरूष उसके मोरचे की ओर आकर्षित होने लगे। जैसे ही विद्रोह के नरसिंगे का शब्द सुनाई दिया, राजकुमार के भेदियों ने देश भर से अबशालोम के राजा होने का समाचार फैला दिया और कई लोग उसके पक्ष में एकत्रित हो गए।PPHin 767.2

    तब किसी ने यरूशलेम में राजा के पास यह सन्देश पहुँचाया। दाऊद मानो अचानक नींद से जागा, जब उसने अपने सिंहासन के पास ही विद्रोह की उत्पन्न होते देखा। उसका अपना पुत्र, जिससे उसने इतना प्रेम किया था, और जिस पर उसने विश्वास किया था, उसका ताज छीनने की और निःसन्देह उसे प्राण लेने की योजना बनाता रहा था। इस घोर संकट में दाऊद ने उस पर लम्बे समय से ठहरी हुई उदासी को दूर हटाया और अपने प्रारम्भिक वर्षों वाली भावना के साथ इस भयानक आपात स्थिति की सामना करने के लिये तैयार हुआ। केवल बीस मील की दूरी पर अबशालोम हेब्रोन में अपनी सेना में वृद्धि कर रहा था। विद्रोही शीघ्र ही यरूशलेम के फाटकों पर पहुँचने वाले थे।PPHin 767.3

    अपने महल से दाऊद ने अपनी राजधानी को देखा-“'सुन्दर और सारी पथ्वी के हर्ष का कारण........राजाधिराज का नगर” (भजन संहिता 48:2)-उसे नरसंहार और सर्वनाश को प्राप्त हो जाने के लिये छोड़ देने के विचार से वह कॉप उठा। क्‍या उसे उसके सिंहासन के प्रति अभी भी सत्यनिष्ठ लोगों को अपनी सहायता के लिये बुलाना चाहिये और राजधानी को अपने अधीकृत रखने का निश्चित निर्णय लेना चाहिये? क्या उसे यरूशलेम को लहू में डूब जाने देना चाहिये? उसने निर्णय ले लिया। चुने हुए नगर पर युद्ध की वीभत्सता का साया नहीं पड़ेगा। वह यरूशलेम छोड़कर, अपने लोगों को उसके समर्थन में संगठित होने का अवसर प्रदान करके उनकी स्वामिभक्ति की परीक्षा लेगा। इस महासंकट के समय उसका परमेश्वर और अपने लोगों के प्रति यह कर्तव्य था कि वह उस अधिकार को कायम रखे जो स्वर्ग ने उसे प्रदान किया था संघर्ष की समस्या को परमेश्वर के भरोसे छोड़ देगा। PPHin 768.1

    दुःख और दीनता के साथ दाऊद यरूशलेम के फाटक से बाहर निकल गया- अपने लाडले पुत्र के विद्रोह द्वारा अपने सिंहासन से, अपने महल से,परमेश्वर के सन्दूक से दूर कर दिया गया। एक उदास मण्डली उसके पीछे-पीछे हो ली मानो किसी का जनाजा उठ रहा हो। दाऊद के अंगरक्षक करेती और पलेती, गत से आए छ: सौ गती, इते के नेतृत्व में राजा के साथ हो लिये, पर दाऊद जो कि स्वभाव से निःस्वार्थी था, इस बात से सहमत न हो सका कि जो परदेशी उसकी शरण में आए थे इस विपत्तिमें सम्मिलित हों। उसके लिये इस बलिदान के लिये उन्हें तैयार देखकर उसने आश्चर्य व्यक्त किया। तब राजा ने गती इते से पूछा, “हमारे संग तू क्‍यों चलता है? अपने स्थान पर लौट और राजा के साथ रह, क्‍योंकि तू परदेशी है और प्रवासी भी। तू तो कल ही आया है, क्‍या मैं आज ही तुझे मारा-मारा फिराऊं? मै तो जहाँ जा सकेगा वहाँ जाऊगा। तू लौट जा और अपने भाईयों को भी लौटा दे, ईश्वर की करूणा और सच्चाई तेरे संग रहे। PPHin 768.2

    इते ने उत्तर दिया, “यहोवा के जीवन की शपथ और मेरे प्रभु राजा के जीवन की शपथ, जिस किसी स्थान में मेरा प्रभु राजा रहेगा, चाहे मरने के लिये हो, चाहे जीवित रहने के लिये हो, उसी स्थान में तेरा दास भी रहेगा।” ये पुरूष मूर्तिपूजा को छोड़कर यहोवा की आराधना करने लगे थे, और शिष्टता से उन्होंने अपने परमेश्वर और अपने राजा के प्रति अपनी स्वामिभक्ति को प्रमाणित किया। कृतज्ञतापूर्ण हृदय से दाऊद ने अपने डूबते प्रतीत हो रहे मनोरथ के प्रति उनकी श्रद्धा को स्वीकार गया, और वे सब किद्रोन नदी को पार कर, बीहड़ के मार्ग पर हो लिये।PPHin 768.3

    जन मण्डली फिर से रूक गई। पवित्र वस्त्र धारण किये एक दल उनकी ओर चला आ रहा था। “और क्या देखने में आया कि सादोक भी और उसके संग सब लेवी परमेश्वर की वाचा उठाए हुए है।” दाऊद के अनुयायियों ने इसे अच्छा शगुन माना। उनके लिये उस पवित्र प्रतीक की उपस्थिति उनके छुटकारे और विजय की प्रतिज्ञा थी। उससे लोगों को राजा के समर्थन के लिये साहस जुटाने की प्रेरणा मिली। यरूशलेम में उसकी अनुपस्थिति अबशालोम के समर्थकों में भय उत्पन्न करने वाली थी।PPHin 769.1

    संदूक को देखकर एक क्षण के लिये दाऊद का हृदय हर्ष और आशा से प्रफुल्लित हो गया। लेकिन शीघ्र ही उसके मन में अन्य विचार आए ।धरोहर का नियुक्त शासक होने के नाते उस पर एक महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व था। इज़राइल के राजा के मन में सबसे ऊपर निजी लाभ नहीं, वरन्‌ परमेश्वर की महिमा और अपने लोगों की भलाई होनी चाहिये थी। करूबों के बीच वासकरने वाले परमेश्वर ने यरूशलेम के संदर्भ में कहा था, “यह मेरा विश्राम स्थान है”-भजन संहिता 132:14; और ईश्वर की आज्ञा के बिनाPPHin 769.2

    ना तो याजक और ना ही राजा को उसकी उपस्थिति के प्रतीक को वहाँ से हटाने का अधिकार था। दाऊद जानता था कि उसके जीवन और हृदय का पवित्र सिद्धान्तों के साथ सामंजस्य होना चाहिये, नही तो संदूक सफलता का नहीं वरन्‌ महाविपदा का साधन होगा। उसका महापाप सदैव उसके सामने था। इस षड़यन्त्र में उसने परमेश्वर का न्यायसंगत निर्णय देखा । जो तलवार उसके घर से नहीं निकली थी, वरन्‌ म्यान से बाहर आ गई थी। वह नहीं जानता था कि संघर्ष का परिणाम क्या होने वाला था। उसके लिये यह उचित नहीं था कि वह राज्य की राजधानी से उन पवित्र आज्ञाओं को हटाए, जिनमें उनके पवित्र प्रभु की इच्छा समाविष्ट थी जो राज्य का संविधान और उसकी समृद्धि का आधार थे।PPHin 769.3

    दाऊद ने सादोक को आदेश दिया, “परमेश्वर के सन्दूक को नगर में लौटा ले जा। यदि यहोवा के अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो तो वह मुझे लौटाकर उसको और अपने वास स्थान को भी दिखाए, परन्तु यदि वह मुझ से ऐसा कहे, मैं तुझ से प्रसन्‍न नहीं, तौभी में हाजिर हूँ. जैसा उसको भाए वैसा ही वह मेरे साथ बर्ताव करे।”PPHin 770.1

    दाऊद ने आगे कहा, “क्या तू दर्शी नहीं है? इसलिये कुशल-क्षेम से नगर को लौट जा, और तेरा पुत्र अहीमास, और एब्यातार का पुत्र योनातान, दोनो तुम्हारे संग लौटे। सुनों मैं जँगल के घाट के पास तब तक ठहरा रहूँगा, जब तक मुझे तुम लोगों से हाल का समाचार न मिले।” नगर में याजक आततायियोंके प्रयोजन और गतिविधियाँ जानकर उन्हें अपने पुत्रों, अहीमाज़ और योनातन के माध्यम से राजा तक पहुँचाने हेतु दाऊद के लिये यह अच्छा कार्य कर सकते थे।PPHin 770.2

    जैसे ही याजक यरूशलेम की ओर पीछे मुड़े, प्रस्थान करती जन-मण्डली पर एक गहरी परछाई सी छा गईं। उनका राजा एक पलायक, स्वयं वे निष्कासित, परमेश्वर के सन्दूक से भी त्याग दिये गए- पूर्वाभास और भय से भविष्य अन्धकारमय था। “तब दाऊद जैतून के पहाड़ की चढ़ाई पर सिर ढॉके नंगे पाँव, रोता हुआ चढ़ने लगा, और जितने लोग उसके संग थे, वे भी सिर ढॉके, रोते हुए चढ़ गए। तब दाऊद को यह समाचार मिला कि अबशालोम के संगी राजद्रोहियों के साथ अहीतोपेल भी था।” फिर से दाऊद को उसकी विपत्तियों में उसके पाप के परिणामों को देखने के लिए विवश किया गया। राजनैतिक अधिकारियों में सबसे चतुर और सबसे योग्य, अहीतोपेल का पक्ष त्याग उसकी अपनी पोती बतशेबा के साथ हुए अनर्थ से जुड़े पारिवारिक अपमान के लिये प्रतिशोध से प्रेरित था। PPHin 770.3

    “और दाऊद ने कहा, “हे यहोवा, अहीतोपेल की सम्मति को मूर्खता बना दे।” चोटी पर पहुँच कर दाऊद अपनी आत्मा का बोझ प्रभु पर डालकर, दीन होकर परमेश्वर की करूणा में याचना करते हुए, प्रार्थना के लिये नतमस्तक हुआ। ऐसालगा मानों उसकी प्रार्थना का तत्काल ही उत्तर आया। एरेकी हूशै, एक बुद्धिमान और योग्य सलाहकार, जिसने स्वयं को दाऊद का विश्वसनीय मित्र प्रमाणित किया था, अपना अंगरखा फाड़े, सिर पर मिट्टी डाले हुए अपदस्थ और पलायक राजा के साथ अपनी नियति को दाव पर लगाने आया। दाऊद ने मानो ईश्वरीय प्रबोधन से देखा कि हूशै जैसे विश्वसनीय और निर्मल हृदय व्यक्ति की राजधानी में होने वाली सभाओं में राजा के हित में कार्य करने के लिये आवश्यकता थी। दाऊद के निवेदन पर हूशै अबशालोम की अपनी सेवाएँ देने और अहीतोपेल की कूटिल सम्मति को निष्फल करने के लिये यरूशलेम को लौट गया।PPHin 770.4

    अन्धकार में प्रकाश की इस किरण के साथ, राजा और उसके समर्थक जैतून पूर्वी ढलान से उतरकर, एक पहाड़ी निर्जन स्थान और खड़ी घाटियों से होते हुए, पथरीले और ढलान वाले मार्ग के किनारे-किनारे यरदन की ओर गए। “और जब राजा, दाऊद बहूरीम पहुँचा, तब शाऊल का एक कूठम्बी वहाँ से निकला, वह गेरा का पुत्र शिमी था, और वह कोसता हुआ आया। वह दाऊद पर, और राजा दाऊद के सब कर्मचारियों पर पत्थर फेंकने लगा, और शूरवीरों समेत सब लोग उसकी दाहिनी और बाईं दोनो ओर थे। शिमी कोसता हुआ यो बकता गया, “दूर हो खूनी, दूर हो ओछे, निकल जा, निकल जा। यहोवा ने तुझ से शाऊल के घराने के खून का पूरा बदला लिया है, जिसके स्थान पर तू राजा बना है, यहोवा ने राज्य को तेरे पुत्र अबशालोम के हाथ कर दिया है। और इसलिए कि तू खूनी है, तू अपनी बुराई में आप फंस गया।PPHin 771.1

    दाऊद की समृद्धि के समय शिमी ने बोल और कर्म से कभी भी यह नहीं जताया था कि वह एक एक स्वामिभकत व्यक्ति नहीं था। लेकिन राजा के कष्ट में इस बिन्यामीन ने अपना वास्तविक चरित्र प्रकट किया। जब दाऊद सिंहासन पर विराजमान था उसने दाऊद का सम्मान किया था, लेकिन उसकी मानहानि में उसे उसे श्राप दिया। नीच और स्वार्थी, वह दूसरों को भी अपने PPHin 771.2

    जैसा आचारभ्रष्ट समझता था, और शैतान से प्रेरणा पाकर, उसने उस पर अपनी घृणा को उडेला, जिसे परमेश्वर ने ताड़ा था। जो कष्ट में होता है, उसे घिक्‍्कारने में या उसकी दुर्गति में या उस पर विजयी होने की भावना शैतान की भावना होती है।PPHin 772.1

    दाऊद के विरूद्ध शिमी के आरोप सरासर झूठे थे,एक निराधार विद्देषपूर्ण लॉछन । दाऊद शाऊल और उसके घराने के प्रति अनर्थ का दोषी नहीं था। जब शाऊल पूर्ण रूप से दाऊद के अधीन था और वह उसे मार सकता था, उसने केवल उसके चोगे का सिरा काटा और परमेश्वर के अभिषिक्त के प्रति इस निरादर को दिखाने के लिये स्वयं को दोषी माना। PPHin 772.2

    जब उसे अहेर के पशु जेसा मानकर उसका पीछा किया जा रहा था, तब भी दाऊद ने मनुष्य के जीवन के लिये पवित्र सम्मान का स्पष्ट प्रमाण दिया था। एक दिन जब वह अदुल्लाम की गुफा में छुपा बैठा था, और उसके मन में विचार आए, पलायक ने कहा, “कौन मुझे बेतलहेम के फाटक के पास वाले कुऐँ का पानी पिलाएगा” 2 शमूएल 23:16 । उस समय बेतलेहम पलिश्तियों के अधिकार में था, लेकिन दाऊद के तीन वीर पलिश्तियों के प्रहरियों पर टूट पड़े, और बेतलहेम के फाटक के कुएँ से पानी भरकर दाऊद के पास ले आए। दाऊद उस जल को ग्रहण नहीं कर सका। उसने पुकारकर कहा, “हे यहोवा, मुझ से ऐसा काम दूर रहे। क्या में उन मनुष्यों का लहू पीऊ जो अपने प्राणों पर खेलकर गए थे? और उसने उस जल को परमेश्वर को भेंट के रूप में श्रद्धा से उँडेल दिया। दाऊद एक योद्धा रहा था, उसका जीवन अधिकतर हिंसा के दृश्यों के बीच बीता था, लेकिन जितने भी ऐसी कठिन परीक्षा से निकले हैं, उसमें बहुत कम है वे जो दाऊद की तरह उसके कठोरबना देने वाले और हतोत्साहित कर देने वाले प्रभाव से कम प्रभावित हुए हैं।’PPHin 772.3

    दाऊद का भाजा, अबीशै, जो दाऊद के शूरवीर कप्तानों में से एक था, शिमी के अपमानजनक शब्दों को धेर्य से नहीं सुन सका। उसने कहा, “यह मरा हुआ कृत्ता मेरे प्रभु राजा को क्‍यों श्राप दे? मुझे ऊपर जाकर उसका सिर धड़सेअलगकरनेदे ।” लेकिन राजा ने उसे मना कर दिया। उसने कहा, “जब मेरा निज पुत्र भी मेरे प्राण लेना चाहता है तो यह बिन्यामीन अब ऐसा क्‍यों न करे? उसको अकेला छोड़ दो और श्राप देने दो, क्‍योंकि यहोवा ने उससे कहा है। कदाचित यहोवा इस उपद्रव पर, जो मुझ पर हो रहा है, दृष्टि करके आज के श्राप के बदले मेरा भला करे।” PPHin 772.4

    अन्तरात्मा दाऊद को कटु और अपमानजनक सत्य से कचोट रही थी। उसकी विश्वसनीय प्रजा नियति के इस अप्रत्याशित परिवर्तन पर अचम्भा कर रही थी, लेकिन राजा के लिये यह कोई रहस्य नहीं था। उसे ऐसी घड़ी का प्राय: पूर्वाभास हुआ था। उसे आश्चर्य था कि परमेश्वर ने इतने लम्बे समय के लिये उसके पापों को सहन किया था, और जिस दण्ड के लायक दाऊद था, उसमें विलम्ब किया था और अब अपने इस त्वरित और दुखदायी पलायन में, नंगे पैर, शाही वस्त्र के बजाय सन का वस्त्र धारण किये हुए और जब उसके अनुयायियों का विलाप पहाड़ो में गूंज रहा था, उसने अपनी प्रिय राजधानी के बारे में सोचा- उस स्थान के बारे में सोचा, जो उसके पाप का दृश्य रहा था- और जब उसने परमेश्वर की अच्छाई और चिरसहिष्णुता का स्मरण किया वह पूर्णतया निराश नहीं रहा। उसे महसूस हुआ कि परमेश्वर उस पर अब भी दया करेगा।PPHin 772.5

    अनर्थ करने वाले कई लोग दाऊद के पतन की ओर संकेत करके अपने पाप को क्षम्य मानते है, लेकिन बहुत कम है वे जो दाऊद के प्रायश्चित और उसकी दीनता को प्रकट करते है। कितने कम है वे जो दण्ड और फटकार को दाऊद के से धैर्य और सहनशीलता के साथ सहन करते हैं। दाऊद ने अपने पाप का अंगीकार किया और वर्षो तक वह परमेश्वर के विश्वसनीय दास के तौर पर अपने कर्तव्य का पालन करता रहा, उसने अपने राज्य के उत्थान के लिये श्रम किया और उसके शासन काल में वह शक्ति और समृद्धि की उस ऊँचाईपर पहुँचा, जहाँ पहले कभी नहीं पहुँचा था। उसने परमेश्वर के भवन-निर्माण के लिये बहुतायत से बहुमूल्य सामग्री एकत्रित की थी, और क्‍या अब उसके जीवन भर का श्रम व्यर्थ होने जा रहा था? क्या समर्पित श्रम के वर्षों का परिणाम, शासन कला और समर्पण और प्रतिभा केकार्य उस देशद्रोही और घृष्ट पुत्र के हाथ में चले जाएँ, जिसने ना ही परमेश्वर के सम्मान का और ना ही इज़राइल की समृद्धि का लिहाज किया? कितना स्वाभाविक प्रतीत होता, इस यातना में परमेश्वर के विरूद्ध दाऊद का कूड़कूड़ाना? PPHin 773.1

    लेकिन दाऊद ने अपने निजी पाप में अपने कष्ट का कारण देखा। भविष्यवक्ता मीका के शब्द में वही भावना है जिसने दाऊद के हृदय को प्रेरणा दी। “ज्योंही में अन्धकार में पड़ूँगा, त्यों ही यहोवा मेरे लिये ज्योति का काम देगा। मैंने यहोवा के विरूद्ध पाप किया है, इस कारण मैं उस समय तक उसके कोध को सहता रहूँगा, जब तक वह मेरा मुकद्दमा लड़कर मेरा न्याय न चुकाएगा ।”-मीका 7:8,9। और परमेश्वर ने दाऊद को छोड़ा नही। उसके अनुभव का यह अध्याय, जब उसने सबसे निर्दयी अनर्थ और अपमान की स्थिति में स्वयं को दीन, निःस्वार्थी, उदार और विनम्र प्रमाणित किया, उसके सम्पूर्ण अनुभव में श्रेष्ठ था। इज़राइल का राजा कभी भी परमेश्वर की दृष्टि में वास्तव में इतना महान नहीं था, जितना कि वह अपनी सार्वजनिक दीनता की घड़ी में ठहरा।PPHin 773.2

    यदि परमेश्वर ने दाऊद को बिना फटकारे पाप करते रहने दिया होता और पवित्र आज्ञाओं का उल्लंघन करते हुए भी सिंहासन पर शान्ति और समृद्धि के साथ रहने दिया होता, तो अविश्वासी ओर नास्तिक को बाइबल के धर्म को, निंदा के तौर पर दाऊद के इतिहास का विवरण देने का बहाना मिल जाता। लेकिन जिस अनुभव से उसने दाऊद को गुजरने के लिये विवश किया, उसमे प्रभु दिखाता है कि वह पाप को ना ही बिना दण्ड जाने दे सकता है और ना ही सहन कर सकता है। और दाऊद का इतिहास हमें उन महान उद्देश्यों को देखने के लिये योग्य बनाता है, जो पाप से सम्बन्धित व्यवहार में परमेश्वर की दृष्टि में है। वह हमें कड़ी से कड़ी दण्डाज्ञा के माध्यम से भी, परमेश्वर की करूणा और उपकार के उद्देश्यों के कियान्वन का संकेत पाने के योग्य बनाता है। उसने दाऊद को दण्ड भुगतने दिया, लेकिन उसने दाऊद को नष्ट नहीं किया, आग की भटटी निर्मल या शुद्ध करने के लिये होती है, भस्म करने के लिये नहीं। प्रभु कहता है, “यदि वे मेरी विधियों का उल्लंघन करे, और मेरी आज्ञाओं को न माने तो मैं उनके अपराध का दण्ड सोंटे से और उनके अधर्म का दण्ड कोड़े से दूँगा। परन्तु में अपनी करूणा उस पर से न हटाऊंगा, और न सच्चाई त्यागकर झूठा ठहरूँगा। - भजन संहिता 89:31-33।PPHin 773.3

    दाऊद के यरूशलेम छोड़ने के तुरन्त बाद, अबशालोम और उसकी सेना ने प्रवेश किया और बिना संघर्ष के इज़राइल के गढ़ को अधीकृत कर लिया। नया-नया मुकुट पहने सम्राट का अभिवादन करने में सर्वप्रथम हूशे था, और राजकुमार अपने पिता के पुराने मित्र और सलाहकार के आगमन से प्रसन्‍न और चकित हुआ। अबशालोम को विश्वास का कि वह सफल होगा। यहाँ तक उसकी युक्तियाँ सफल हुई थी और अपने सिंहासन को स्थिर करने और प्रजा के विश्वास को जीतने के लिये उत्सुक, उसने हूृशै का अपने दरबार में स्वागत किया। PPHin 774.1

    अबशालोम अब एक विशाल सेवा से घिरा था, लेकिन उसमे अधिकतर पुरूषोंने युद्ध में भाग नहीं लिया था। अहीतोपेल जानता था कि दाऊद की स्थिति इतनी निराशाजनक नहीं थी। प्रजा का बड़ा भाग अभी भी उसके पक्ष में था, वह अनुभवी योद्धाओं से घिरा हुआ था जो अपने राजा के प्रति सत्यनिष्ठ थे, और उसकी सेना योग्य और अनुभव प्राप्त सेनापतियों के नेतृत्व में थी। अहीतोपेल जानता था कि नए राजा के पक्ष में उत्साह के पहले प्रवाह के बाद, एक प्रतिक्रिया होगी। यदि उपद्रव असफल रहा, तो अबशालोम की ओर से अपने पिता के साथ पुर्नमिलन करने की सम्भावना थी, फिर प्रमुख सलाहकार होने के नाते, अहीतोपेल को उप्रदव का सबसे बड़ा दोषी माना जाएगा, और उसे सबसे कठोर दण्डाज्ञा मिलेगी ।अबशालोम को कदम पीछे हटाने से रोकने के लियेअहीतोपेल ने उसे ऐसा काम करने का सुझाव दियाजो सम्पूर्ण राष्ट्र की दृष्टि में पुनर्मिलन असम्भव बना देता। नारकीयचातुर्य के साथ इस धूर्त और सिद्धान्तहीन राजनेता ने अबशालोम को विद्रोह के अतिरिक्त कोटुम्बिक व्यभिचार के लिये उत्तेजित किया। सम्पूर्ण इज़राइल की दृष्टि में, पूर्वी राष्ट्रों की परम्परा के अनुसार,अबशालोम ने अपने पिता की सहवासनियों को अपनाना था, और इस प्रकार अपने पिता के सिंहासन का उत्तराधिकारी होने की घोषणा करनी थी। अबशालोम ने इस घधूर्ततापूर्ण सलाह के अनुसार किया और इस प्रकार भविष्यवक्ता द्वारा दाऊद को दिया गया परमेश्वर का वचन पूरा हुआ, “सुन, मैं तेरे घर में से विपत्ति उठाकर तुझ पर डालूँगा, और तेरी पत्नियों को तेरे सामने होकर तूझ से दूसरे को दूँगा, और वह दिन दोपहर में तेरीपत्नियों के साथ कुकर्म करेगा ।” - 2 शमूएल 12:11,12। ऐसा नहीं था कि परमेश्वर ने इन दुष्टतापूर्ण कृत्यों को प्रेरित किया, लेकिन दाऊद के पाप के कारण उसने इन्हें रोकने के लिये अपनी समार्थ्य का अभ्यास नहीं किया। अहीतोपेल को अपनी बुद्धिमत्ता के लिये उच्च सम्मान प्राप्त था, लेकिन परेमश्वर की ओर से आने वाले प्रलोभनों से अभावग्रस्त था। नीतिवचन 9:10में लिखा है, “यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है” और इसी का अहीतोपेल में अभाव था, नहीं तो वह देशद्रोही की सफलता कौटुम्बिक व्यभिचार पर आधारित नहीं करता। दुष्ट-हृदय मनुष्य दुष्टता के षड़यन्त्र रचते है, मानो उनकी युक्तियों को निष्फल करने के लिये कोई ईश्वरीय रक्षा नहीं है, लेकिन “वह स्वर्ग में विराजमान हैः: हमेशा प्रभु उनको टठठों में उड़ाएगा। -भजन संहिता 2:4। नीतिवचन 1:30-32 में लिखा है, “उन्होंने मेरी सम्मति न चाही, वरन्‌ मेरी सब ताड़नाओं को तुच्छ जाना। इसलिये वे अपनी करनी का फल आप भोगेंगे, और अपनी युक्तियों के फल के अधीन हो जायेंगे। क्योंकि भोले लोगो का भटक जाना, उनके घात किये जाने का कारण होगा, और निश्चित रहने के कारण मूढ़ लोग नष्ट होंगे।’PPHin 774.2

    अपनी निजी सुरक्षा को सुरक्षित करने के षड़यन्त्र में सफल होने के पश्चात, अहीतोपेल ने अबशालोम पर दाऊद के विरूद्ध तत्काल कार्यवाही करने की आवश्यकता का दबाव डाला।” मुझे हजार पुरूष छाँटने दे और मैं उठकर आज ही रात को दाऊद का पीछा करूँगा और जब वह थका-माँदा और निर्बल होगा,तब में उसको पकड़ूँगा और उसको डराऊंगा, और जितने लोग उसके साथ है सब भागेंगे। में राजा ही को मारूँगा, और मैं सब लोगों को तेरे पास लौटा लाऊंगा [इस योजना को राजा के सभी सलाहकारों ने स्वीकृति दे दी। यदि इसका पालन किया गया होता और परमेश्वर ने उसे बचाने को हस्तक्षेप न किया होता, तो दाऊद अवश्य ही मारा जाता। लेकिन सुप्रसिद्ध अहीतोपेल की बुद्धि से श्रेष्ठ बुद्धि घटनाओं को निर्देशित कर रही थी। “यहोवा ने तो अहीतोपेल की अच्छी सम्मति को निष्फल करने की ठान ली थी कि वह अबशालोम ही पर विपत्ति डाले।PPHin 775.1

    हूशे को सभा में नही बुलाया गया, और वह बिना बुलाए प्रवेश नहीं करना चाहता था, क्‍योंकि ऐसा करने पर उसपर गुप्तचर होने का सन्देह किया जा सकता था,लेकिन सभा के समाप्त होने पर अबशालोम ने उसके समक्ष अहीतोपेल की योजना प्रस्तुत की, क्‍योंकि वह अपने पिता के सलाहकार के निर्णय का सम्मान करता था। हूशै ने देखा कि यदि प्रस्तावित योजना का पालन किया गया, तो दाऊद की हार तय थी। और उसने कहा, “जो सम्मति अहीतोपेल ने इस बार दी वह अच्छी नहीं है, क्‍योंकि तू अपने पिता और उसके जनों को जानता है कि वे शूरवीर है, और बच्चा छीनी हुई रीछनी के समान कोधित होंगे । तेरा पिता योद्धा है, और अन्य लोगों के साथ रात नहीं बिताता। इस समय वह किसी गडढे या किसी अन्य स्थान में छुपा होगा। उसने तक रखा कि यदि अबशालोम की सेना दाऊद का पीछा करेगी, वे राजा को बन्दी नहीं बना पाएँगे, और यदि विजय के बजाय उनकी हार हुई तो उसका साहस टूट जाएगा और उससे अबशालोम के अभियान को बहुत हानि पहुँचेगी। उसने कहा, “समस्त इज़राइल जानता है कि तेरा पिता वीर है, और उसके संगी बड़े योद्धा है।” और उसने एक योजना का सुझाव दिया जो शक्ति प्रदर्शन को पसन्द करने वाले अभिमानी और स्वार्थपूर्ण स्वभाव के लिये आकर्षक था।PPHin 776.1

    “इसलिये मेरी सम्मति यह है कि दान से लेकर बैशेबा तक रहने वाले समस्त इज़राइली तेरे पास समुद्र्तीर की बालू के किनकों के समान इकटू्‌ठे किये जाएँ, और तू आप हीयुद्ध को जाए। इस प्रकार जब हम उसको किसी न किसी स्थान में जहाँ वह मिले जा पकड़ेगे, तब जैसे ओस भूमि पर गिरती है वैसे ही हम उस पर टूट पड़ेगे, तब न तो वह बचेगा और न उसके संगियों में से कोई बचेगा। यदि वह किसी नगर में घुसा हो, तो सब इज़राइली उस नगर के पास रस्सियाँ ले आएँगे, और हम उसे नदी में खीचेंगे, यहाँ तक कि उसक एक छोटा सा पत्थर भी न रह जाएगा।’PPHin 776.2

    “तब अबशालोम और सब इज़राइली पुरूषों ने कहा, “एरेकी हृशे की सम्मति अहीतोपेल की सम्मति से उत्तम है।” लेकिन एक था जो धोखे में नहीं आया- जिसने अबशालोम की प्राणघातक गलती के परिणाम का पुर्वानुमान लगाया। अहीतोपेल जानता था कि विद्रोही अपना अभियान हार चुके। और वह ये भी जानता था कि राजकूमार की नियति कुछ भी हो, उस सलाहकार के लिये कोई आशा नही थी जिसने उसके सबसे बड़े अपराधों को उत्तेजित किया था। अहीतोपेल ने अबशालोम को विद्रोह के लिये प्रोत्साहित किया था। उसने अबशालोम को सबसे घृणास्पद दुष्टता- अपने पिता का निरादर करने की सलाह दी थी, उसी ने दाऊद को मार डालने की सलाह दी थी और इस कार्य के उपलब्धि की योजना तैयार की थी, उसने दाऊद के साथ अपने निजी पुर्नमिलन की सम्भावना को समाप्त कर दिया था, और उसके सामने, अबशालोम द्वारा भी किसी और को वरीयता दी जा रही थी। कोधित, द्वेषपूर्ण और मायूस अहीतोपेल, ‘अपने नगर में जाकर अपने घर में गया, और अपने घराने के विषय जो जो आज्ञा देनी थी वह देकर अपने को फाँसी लगा ली, और वह मर गया।” ऐसा था उसकी बुद्धिमत्ता का परिणाम, जो इतना प्रतिभावान था, लेकिन जिसने परमेश्वर को अपना सलाहकार नहीं बनाया। शैतान मनुष्य को प्रसन्‍न करने वाली प्रतिज्ञाओं से भरमाता है, लेकिन अन्त में प्रत्येक प्राणी को ज्ञात होगा कि “पाप की मजदूरी मृत्यु है ।-रोमियों 6:23। PPHin 777.1

    हूशै को चचंल राजा के द्वारा अपनी सम्मति के अनुसरण किए जाने का यकीन नही था, इस कारण उसने दाऊद को सचेत करने में देर नहीं की ताकि वह अविलम्ब यरदन पार बच कर निकल जाए। उन याजकों को, जिन्हें अपने पुत्रों के माध्यम से आगे भेजना था, हूृशै ने सन्देश भेजा, “अहीतोपेल ने तो अबशालोम और इज़राइली पुरनियों को इस प्रकार की सम्मति दी, और मैंने इस प्रकार की सम्मति दी है। इसलिये अब.....आज रात जँगली घाट के पास न ठहरना, अवश्य पार हो जाना, ऐसा न हो कि राजा और जितने लोग उसके संग हो, सब नष्ट हो जाएँ।” PPHin 777.2

    नौजवान सन्देह के घेरे में आ गए और उनका पीछा किया गया, लेकिन फिर भी वे अपने खतरनाक विशेष कार्य को सम्पन्न करने में सफल रहे। पहले दिन के पलायन पश्चात थके हुए और दुखी दाऊद को यह सन्देश प्राप्त हुआ कि उसे उसी रात यरदन को पार करना था, क्योंकि उसका पुत्र उसके प्राणों का प्यासा हो गया था।PPHin 777.3

    इस घोर संकट के समय उस पिता और राजा की भावनाएँ क्‍या रही होंगी जिनके साथ इतना गलत हुआ था? ” एक पराक्रमी शूरवीर” रणक॒शल राजा, जिसका कथन ही नियम था, जिसे उस पुत्र ने धोखा दिया, जिससे उसने प्रेम किया, जिसके साथ दयालुतापूर्ण व्यवहार किया था, जिसमें अंधा विश्वास किया, जिसकी प्रजा के, उन सदस्यों ने विश्वासघात किया और उसे छोड़ दिया, जो उसके साथ सम्मान और स्वामिभक्ति के अटूट बन्धनों से बन्धे थे- किन शब्दों में दाऊद ने अपने हृदय की भावनाओं को अभिव्यक्त किया? अपने सबसे अन्धकारमय परीक्षा की घड़ी में दाऊद का हृदय परमेश्वर पर स्थिर था और उसने गीत गाया -PPHin 778.1

    “हे यहोवा, मेरे को सतानेवाले कितने बढ़ गए है,
    वे जो मेरे विरूद्ध उठते है बहुत है।
    बहुत से मेरे प्राण के विषय में कहते हैं कि
    उसका बचाव परमेश्वर की ओर से नहीं हो सकता
    परन्तु हे यहोवा, तू तो मेरे चारों ओर मेरी ढाल है,
    तू मेरी महिमा और मेरे मस्तक का ऊँचे करने वाला है।
    में ऊंचे शब्द से यहोवा को पुकारता हूँ
    और वह अपने पवित्र पर्वत पर से मुझे उत्तर देता है।
    में लेटकर सो गया, फिर जाग उठा
    क्योंकि यहोवा मुझे सम्भालता है
    में उन दस हजार मनुष्यों से नहीं डरता,
    जो मेरे विरूद्ध चारों ओर पांति बाँधे खड़े है।
    उठ, हे यहोवा हे मेरे परमेश्वर मुझे बचा ले!
    क्यों तूने मेरे सब शत्रुओं के जबड़ो पर मारा है।
    और तूने दुष्टों के दांत तोड़ डाले है।
    उद्धार यहोवा ही से होता है,
    हे यहोवा तेरी आशीष तेरी प्रजा हो।
    PPHin 778.2

    -भजन संहिता 3:1-8।

    दाऊद और उसकी सम्पूर्ण मण्डली-योद्धा और नीतिज्ञ, वृद्ध और नौजवान, स्त्रियाँ और छोटे बालक सभी ने रात के अंधेरे में गहरी और तीव्र गति से बहती नदी को पार किया। “पौ फटने तक उनमें से एक भी न रहा जो यरदन के पार न हो गया हो।”PPHin 778.3

    तब दाऊद और उसकी सेना महनैम पहुँचे जो इश्बोशेत का शाही निवास रहा था। पहाड़ी प्रदेश से घिरा हुआ यह एक सशक्त किलेबन्द शहर था, जो युद्ध के समय में शरण के लिये अनुकूल स्थान था। यह एक सामग्री सम्पन्न देश था, और लोग दाऊद के अभियान के प्रति सहायक थे। यहाँ उसके साथ कई समर्थक जुड गए और धनवान कृट॒म्बी बहुतायत से खाद्य सामग्री और आवश्यकता की वस्तुएँ लेकर आए।PPHin 778.4

    हूशै के परामर्श ने दाऊद के लिये बच निकलने के अवसर का लक्ष्य प्राप्त कर लिया था, लेकिन उतावले और अविवेकी राजकुमार को अधिक समय के लिये नियन्त्रित नहीं रखा जा सका, और वह शीघ्र ही अपने पिता का पीछा करने निकल पड़ा। “और अबशालोम सब इज़राइली पुरूषों समेत यरदन के पार गया।” अबशालोम ने दाऊद की बहन अबीगेल के पुत्र अमासा को अपनी सेनाओं का सेनापति बनाया। उसकी सेना विशाल थी, लेकिन वह उसके पिता के अनुभवी सैनिकों का समाना करने के लिये अनुशासनहीन थी और पर्याप्त रूप से तैयार नहीं थी।PPHin 779.1

    दाऊद ने अपनी सेना को अबीशे और गतवासी इतै के नेतृत्व में तीन टुकड़ियों में विभाजित कर दिया। वह रणभूमि में सेनाओं का नेतृत्व स्वयं करना चाहता था, लेकिन सेना के अधिकारियों, सलाहकारों और लोगों ने इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा, “तू जाने न पाएगा। क्योंकि चाहे हम भाग जाएँ, वे हमारी चिन्ता न करेंगे, वरन्‌ हम में से आधे मारे भी मारे जाएँ, तो भी वे हमारी चिन्ता न करेंगे। परन्तु तू हमारे जैसे दस हजार पुरूषों के बराबर है, इसलिये अच्छा यह है कि तू नगर में से हमारी सहायता करने को तैयार रहे। “और राजा ने उनसे कहा, ‘जो कुछ तुम्हे भाए, वही मैं करूँगा ।” - 2 शमूएल 18:3,4।PPHin 779.2

    नगर की प्राचीरों से विद्रोही की लम्बी कतारे पूरी तरह दृश्यमान थी। दाऊद की सेना बलातग्राही के साथ आईं विशाल सेना की तुलना में मुटठी मर प्रतीत हो रही थी। लेकिन जब राजा ने विद्रोही सेना पर दृष्टि डाली, उसके मन के सर्वापरि विचार राज्य और सिंहासन के बारे में नहीं थे, और न ही उसके जीवन के बारे में, जो युद्ध के परिणाम पर निर्भर थे। पिता का हृदय अपने विद्रोही पुत्र के लिये प्रेम और दया से परिपूर्ण था। जैसे-जैसे पंक्तिबद्ध सेना नगर के फाटकों से बाहर निकली दाऊद ने अपने विश्वसनीय सैनिकों को इस विश्वास के साथ, कि इज़राइल का परमेश्वर उन्हें विजयी करेगा, आगे बढ़ने को कहते हुए प्रोत्साहित किया। लेकिन यहाँ भी वह अबशालोम के लिये अपने प्रेम को दबा न सका। जब योआब प्रथम सैन्य दल का नेतृत्व करता राजा के पास से निकला, सौ रणभूमियों के विजेता ने सम्राट का अन्तिम सन्देश सुनने के लिये अपना ऊंचा सिर नीचे झुकाया, ओर कॉँपते स्वर में राजा ने कहा, “मेरे निमित्त उस नौजवान, अर्थात अबशालोम के साथ कोमलता से व्यवहार करना।” लेकिन राजा की चिन्ता से ऐसा प्रतीत हुआ मानो अबशालोम उसे अपने राज्य और उसकी राजशक्ति के प्रति निष्ठावान प्रजा से भी प्रिय था, और इससे अस्वाभाविक पुत्र के प्रति उनका कोध और भी बढ़ गया।PPHin 779.3

    युद्ध का स्थान, यरदन के पास एक जंगल था, जिसमें अबशालोम की सेना की भारी संख्या उसके लिये केवल असुविधा थी। जंगल की झाड़ियों और दलदल में यह अनुशासनहीन सैन्य-दस्ता असंगत और बेकाबू हो गया। और “दाऊद की सेना ने इज़राइलियों को हरा दिया। उस दिन भारी नरसंहार हुआ और बीस हजार व्यक्ति मारे गए।” अबशालोम यह देखते हुए कि उसकी सेना हार चुकी थी, भागने के लिये पीछा मुड़ा और जब वह खच्चर पर सवार एक बड़े बांज वृक्ष के नीचे से निकल रहा था तो उसका सिर अटक गया और उसका खच्चर उसके नीचे से निकल गया, वह असहाय होकर अधर में लटका रहा और अपने शत्रुओं का शिकार हो गया। इस स्थिति में उसे एक सैनिक ने देखा, लेकिन राजा का अप्रसन्‍न करने के डर से, उसने अबशालोम को छोड़ दिया लेकिन यह आँखो देखा हाल योआब को सुनाया। योआब को नैतिकता के आधार पर कोई झिझक नहीं थी। उसने दो बार अबशालोम का दाऊद के साथ पुनर्मिलन कराने में अबशालोम की सहायता की थी और उसके विश्वास को दोनों बार तोड़ा गया था। योआब की मध्यस्थता के माध्यम से अबशालोम को मिली सुविधाओं के अभाव में यह उपद्रव कभी भी घटित नहीं होता। अब इस कृकृत्य के प्रवर्तक को एक झटके में नष्ट करना योआब के वश में था। “उसने तीन लकड़ी के तीर हाथ में लेकर, अबशालोम के हृदय को छेद डाला......तब लोगों ने अबशालोम को उतार कर उस वन के एक बड़े गडढे में डाल दिया, और उस पर पत्थरों का एक बड़ा ढेर लगा दिया।”PPHin 780.1

    इस प्रकार इज़राइल में विद्रोह के प्रवर्तकों का विनाश हुआ। अहीतोपेल अपने ही हाथों से मरा था। चिरकालीन निन्दा के प्रतीक के रूप में, राजवंशी अबशालोम, जिसका तेजस्व सौन्दर्य इज़राइल की शान था, नौजवानी में काट डाला गया था, उसके शव को एक गडडढ़े में फेंक दिया गया था, और पत्थरों के देर से ढाँक दिया गया था। अपने जीवनकाल में अबशालोम ने राजा की तराईं में अपने लिये एक स्तम्भ खड़ा किया था, लेकिन जँगल में वह पत्थरों का ढेर, उसकी कब्र को चिन्हित करने वाला एकमात्र स्मारक था।PPHin 780.2

    विद्रोह के अगुवा के मारे जाने के बाद, योआब ने तुरही के स्वर पर भागती हुई सेना का पीछा करती अपनी सेना को वापस बुलाया और राजा तक यह समाचार पहुँचाने के लिये तुरन्त ही सन्देशवाहकों को भेजा गया।PPHin 781.1

    नगर की प्राचीर पर से रणभूमि की ओर देखते हुए, प्रहरी ने एक व्यक्ति को अकेले दौड़ते हुए आते देखा। उसके पीछे एक और व्यक्ति दिखाई दिया। जब पहला व्यक्ति पास आया, प्रहरी ने फाटक के पास प्रतीक्षा करते हुए राजा से कहा, “मुझे तो ऐसा दिखाई पड़ता है कि पहले का दौड़ना सादोक के पुत्र अहीमास का सा है। राजा ने कहा वह भला मनुष्य है, तो भला सन्देश लाया होगा। तब अहीमास ने पुकार कर राजा से कहा, सब कुशल है। फिर उसने भूमि पर मुहँ के बल गिर राजा को दण्डवत करके कहा, तेरा परमेश्वर यहोवा धन्य है, जिसने मेरे प्रभु राजा के विरूद्ध हाथ उठानेवाले मनुष्य को तेरे वश में कर दिया है।” राजा की उत्सुकता भरे प्रश्न, क्या वह नौजवान अबशालोम कुशल है? अहीमास ने अस्पष्ट उत्तर दिया।PPHin 781.2

    दूसरा सन्देशवाहक ऊंचे स्वर में पुकारते हुए आया, “मेरे प्रभु राजा के लिये यह समाचार है। यहोवा ने आज न्याय करके तुझे उन सब के हाथ में बचाया है जो तेरे विरूद्ध उठे थे।” फिर से पिता के होठों से वही अवशोषक प्रश्न आया, ‘क्या वह नौजवान अबशालोम कुशल है?” उस दुःखद समाचार का छुपाए रखने में असमर्थ, दूत ने उत्तर दिया, “मेरे प्रभु राजा के शत्रु, और जितने भी तेरी हानि के लिये उठें, उनकी दशा उस नौजवान की सी हो।” यह पर्याप्त था। दाऊद ने आगे प्रश्न नहीं किया, लेकिन सिर झुकाए वह, “फाटक के ऊपर की अटारी पर रोता हुआ चढ़ने लगा, और चलते चलते यों कहता गया, ‘हाय मेरे बेटे अबशालोम! मेरे बेटे हाय! मेरे बेटे अबशालोम! भला होताकि मैं आप तेरे बदले मरता, हाय अबशालोम! मेरे बेटे, मेरे बेटे।”PPHin 781.3

    रणभूमि में लोटते हुए, विजयी सेना नगर के निकट आ पहुँची और उनकी जयजयकार से पहाड़ गूँज उठे। लेकिन नगर के फाटढकों में प्रवेश करते ही जयजयकार शान्त हो गया, उनकी पताकाएँ नीचे हो गईं, और दृष्टि नीचे किये हुए वे विजेताओं के बजाय पराजित हुओं की तरह आगे बढ़े। क्योंकि राजा उनका स्वागत करने की प्रतीक्षामें नहीं खड़ा था, वरन्‌ फाटक के ऊपर की अटारी से उसका विलाप सुनाई दे रहा था, “हे मेरे बेटे अबशालोम मेरे बेटे अबशालोम! भला होता कि मैं आप तेरे बदले मरता, हाय अबशालोम बेटे, मेरे बेटे।PPHin 781.4

    “इसलिये उस दिन की विजय सब लोगों की समझ में विलाप ही का कारण बन गई, क्योंकि लोगों ने उस दिन सुना कि राजा अपने बेटे के लिये खेदित है। इसलिये उस दिन लोग ऐसा मुहँ चुराकर नगर में घुसे, जैसे लोग युद्ध से भाग आने से लज्जित होकर मुँह चुराते हैं।’PPHin 782.1

    योआब कोध और घृणा से भर गया कि राजा अपने बेटे के लिये खेदित है। इसलिये लोग ऐसा मुह चुराकर नगर में घुसे, जैसे लोग युद्ध से भाग आने से लज्जित होकर मुहँ चुराते है।’PPHin 782.2

    योआब कोध और घृणा से भर गया। परमेश्वर ने उन्हें विजयोल्लास और हर्ष का कारण दिया था; इज़राइल की जानकारी में यह सबसे महत्वपूर्ण विद्रोह था जिसे दबा दिया गया था, और फिर भी यह महान विजय उसके सन्दर्भ में शोक में परिवर्तित हो गई, जिसके अपराध ने हज़ारों योद्धाओं के प्राण ले लिये थे। उस अशिष्ट और मुहँफट कप्तान ने राजा की उपस्थिति में घुसकर निर्भीकता से कहा, “तेरे कर्मचारियों ने, तेरा और तेरे बेटे-बेटियों और पत्नियों और सहवासनियों का प्राण बचाया है, परन्तु तूने आज के दिन उन सभों का मुहँ काला किया है, इसलिये कि तू अपने बैरियों से प्रेम और अपने मित्रों से बैर रखता है। तूने आज यह प्रकट किया कि तुझे हाकिमों और कर्मचारियों की कुछ चिंता नहीं, वरन्‌ मेने आज जान लिया, कि यदि हम सब आज मारे जाते और अबशालोम जीवित रहता, तो भी तू बहुत प्रसन्‍न होता। इसलिये अब उठकर बाहर जा, और अपने कर्मचारियों को शान्ति दे, नहीं तो मैं यहोवा की शपथ खाकर कहता हूँ कि यदि तू बाहर न जाएगा, तो आज रात को एक मनुष्य भी तेरे संग न रहेगा, और तेरे बचपन से लेकर अब तक जितनी विपित्तयाँ तुझ पर पड़ी है उन सब से यह विपत्ति बड़ी होगी।PPHin 782.3

    हृदय से दुखी राजा के लिये यह उलाहना कर्कश और निर्दयी भी थी, लेकिन राजा ने बुरा नहीं माना। यह देखते हुए कि उसका सेनापति सही था, वह नीचे उतरकर फाटक तक गया, और जैसे-जैसे सैनिक उसके पास से निकले, उसने साहस और सराहना भरे शब्दों के साथ उनका स्वागत किया ।PPHin 782.4