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कुलपिता और भविष्यवक्ता - Contents
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    अध्याय 53—पूर्व न्यायाधीश

    यह अध्याय न्यायियों 6-8;10 पर आधारित हैPPHin 562.1

    कनान में बस जाने के पश्चात, गोत्रों ने देश की विजय को सम्पूर्ण करने के लिये कोई सशक्त प्रयत्न नहीं किया। जीते हुए भू-खण्ड से सन्तुष्ट, उनका उत्साह घट गया और युद्ध को समाप्त कर दिया गया। “परन्तु जब इज़राईली सामर्थी थे, तब उन्होंने कनानियों से बेगारी ली, परन्तु उन्हें पूरी रीति से न निकाला।” - न्यायियों 1:28। PPHin 562.2

    प्रभु ने अपनी ओर से, इज़राइल से की गई प्रतिज्ञाओं को ईमानदारी से पूरा कर दिया था, यहोशू ने कनानियों की शक्ति को समाप्त कर दिया था, और भूमि को गोत्रों में विभाजित कर दिया था। अब परमेश्वर की सहायता से, उस देश से वहाँ के निवासियों को निर्वासित करना, उनका काम था। लेकिन ऐसा करने में वे असफल रहे। कनानियों के साथ सन्धि करने उन्‍होंने प्रत्यक्ष रूप से परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया, और इस प्रकार वे उस शर्त को पूरा करने में असफल रहे, जिसके आधार पर परमेश्वर ने उन्हें कनान का स्वामित्व देने का आश्वासन दिया था।PPHin 562.3

    सिने पर परमेश्वर के साथ उनके प्रथम संपर्क से, उन्हें मूर्तिपूजा के प्रति चेतावनी दी गईं थी। व्यवस्था की घोषणा के तुरन्त बाद उन्हें कनान की जातियों से सम्बन्धित मूसा द्वारा संदेश भेजा गया था, “उनके देवताओं को दण्डवत न करना, और न उनकी उपासना करना, और न उनके से काम करना, वरन्‌ उन मूर्तियों का पूरी रीति से सत्यनाश कर डालना और उनकेप्रस्तर पिण्डों को तोड़ देना। तू अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करना, तब वह तेरे अन्न जल पर आशीष देगा, और तेरे बीच में से रोग दूर करेगा।”-निर्गमन 23:24,25।PPHin 562.4

    उन्हें आश्वासन दिया गया कि जब तक वे आज्ञाकारी रहेंगे, परमेश्वर उनके शत्रुओं को उनके सामने वश में कर लेगा। “जितने लोगों के बीच तू जाएगा उन सभी के मन में मैं अपना भय पहले से ऐसा बैठा दूँगा कि वे व्याकुल हो जाएँगे, और मैं तुझे सब शत्रुओं की पीठ दिखाऊँगा। और में तुझ से पहले बड़ो को भेजूँगा जो हिब्बी, कनान और हित्ती लोगों को तेरे सामने से भाग कर दूर कर देगें। मैं उनको तेरे आगे से एक ही वर्ष में नहीं निकाल दूँगा, ऐसा न हो देश उजाड़ हो जाए, और बनैले पशु बढ़कर तुझे दुःख देने लगे। जब तक तू फल-फूलकर देश को अपने अधिकार में न कर ले तब तक मैं उन्हें तेरी आरे से थोड़ा-थोड़ा करके निकालता रहूँगा। मैं उस देश के निवासियों को भी तेरे वश में कर दूँगा, और तू उन्हें अपने सामने से बरबस निकालेगा। तू न तो उनसे वाचा बाॉँधना और न उनके देवताओं से। वे तेरे देश में रहने न पाएँ, ऐसा न हो कि वे तुझ से मेरे विरूद्ध पाप कराएँ, क्‍योंकि यदि तू उनके देवताओं की उपासना करे, तो यह तेरे लिये फंदा बनेगा।”-निर्गमन 23:27-33।PPHin 562.5

    परमेश्वर ने काना में अपने लोगों की नैतिक बुराईयों के ज्वार को रोकने के लिये एक सशक्त वक्षमीत की तरह स्थापित किया था, ताकि संसार में बुराईयों की बाढ़ न आ सके। यदि इज़राइल परमेश्वर के प्रति सत्यनिष्ठ होता तो परमेश्वर चाहता था कि वे विजय प्राप्त करते रहें और देशों को जीतें। वह उनके हाथों में कनानियों से अधिक सशक्त और महान जातियों को दे देगा। परमेश्वर की प्रतिज्ञा थी, “यदि तुम इन सब आज्ञाओं के मानने में जो तुम्हें सुनाता हूँ सावधानी बरतोगे....तो यहोवा उन सब जातियों को तुम्हारे आगे से निकाल डालेगा, औरतुम अपने से बड़ी और सामर्थी जातियों के अधिकारी हो जाओगे। जिस भी स्थान पर तुम्हारे पैर पड़ेंगे वे सब तुम्हारे हो जाएँगे, अर्थात बीहड़ से लेकर लबानोन तक, फरात नदी से लेकर पश्चिम के समुद्र तक तुम्हारी सीमा होगी। तुम्हारे सामने कोई भी खड़ा न रह सकेगा, क्‍योंकि जितनी भूमि पर तुम्हारे पाँव पड़ेंगे उन सब पर रहने वालों के मन में तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अपने वचन के अनुसार तुम्हारे कारण उनमें डर और थरथराहट उत्पन्न कर देगा ।”-व्यवस्थाविवरण 11:22-25।PPHin 563.1

    लेकिन अपने उत्कृष्ट भविष्य से उदासीन, उन्होंने सुगमता और आत्मतुष्टि का मार्ग चुना, देश पर विजय को पूरा करने के अवसर को उन्‍होंने जाने दिया, और कई पीढ़ियों तक इन बचे हुए मूर्तिपूजक लोगों द्वारा परेशान रहे जैसे कि भविष्यद्वक्ता ने भविष्यवाणी की थी कि वे उनकी आखों में ‘चुभन’ और उनकी पसली में ‘काँटे” के समान होंगे। (गिनती 35:55)PPHin 563.2

    इज़राइली “उन्हीं जातियों से हिलमिल गए और उनके व्यवहारों को सीख लिया ।-भजन संहिता 106:35। उन्होंने कनानियों के साथ अंतर्जातीय विवाह किये, और मूर्तिपूजा पूरे देश में महामारी की तरह फैल गई। “उन्होंने कनान की मूर्तियों पर बलि चढ़ाई, जो उनके लिये जाल समान थी। उन्होंने अपने बेटे-बेटियों को पिशाचों के लिये बलिदान किया.......और देश लहू से दूषित हो गया.........तब यहोवा का कोध अपनी प्रजा पर भड़का और उसको अपने निज भाग से घृणा आईं।” भजन संहिता 106:6-40।PPHin 563.3

    जब तक कि यहाोशू द्वारा निर्देश प्राप्त पीढ़ी विलुप्त न हुई, मूर्तिपूजा ने कम प्रगति की, लेकिन अभिभावकों ने अपने बच्चों के स्वधर्मत्याग का मार्ग तैयार कर दिया था। कनान पर अधिकार पाने वालों की ओर से परमेश्वर के प्रतिबन्धों की अवमानना ने बुराई का बीज बो दिया जो कई पीढ़ियों तक कड़वा फल देती रही। इब्रियों की सीधी-सीधी आदतों ने उनके शारीरिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखा था, लेकिन मूर्तिपूजकों की संगति में वे भूख और लालसा में लिप्त हो गए, जिससे उनकी शारारिक शक्ति कम होती चली गईं और उनकी मानसिक व सात्विक शक्तियाँ कमजोर हो गई। अपने पापों के कारण इज़राइली परमेश्वर से दूर हो गए, उसकी शक्ति से वे वंचित हो गए, और अब वे अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में असमर्थ हो गए। इस कारण वे उन जातियों के अधीन हो गए, जिनको परमेश्वर की सहायता से वे अपने अधीन कर सकते थे।PPHin 564.1

    उन्होंने “अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया जो उन्हें मिस्र देश से निकाल लायाथा” “और जंगल में उनकी अगुवाई भेड़ो व बकरियों के झुण्ड की सी की थी।” “उन्होंने ऊंचे-ऊँचे पूजा स्थल बनाकर उसके कोध को भड़काया, और देवी-देवताओं की मूर्तियों द्वारा उसे इर्ष्या करने को विवश किया । “फिर परमेश्वर ने शिलोह के पवित्र तम्बू को त्याग दिया, यह वही तम्बू था जहाँ परमेश्वर लोगों के बीच रहता था। फिर उसने अपने लोगों को दूसरी जातियों का बंदी बनने दिया और परमेश्वर के ‘गौरव’ को शत्रुओं ने छीन लिया ।”-न्यायियों 2:12, भजन संहिता 78:52,58,60,61। फिर भी उसने अपने लोगों को पूरी तरह से नहीं छोड़ा। एक बकिया कलीसिया, जो यहोवा के प्रति सत्यनिष्ठ थी, सर्वदा रही, और समय-समय पर परमेश्वर ने इज़राइलियों को उनके शत्रुओं से छुड़ाने के लिये और मूर्तिपूजा को दूर करने के लिये बहादुर और विश्वसनीय मनुष्यों को खड़ा किया। लेकिन जब छुटकारा दिलाने वाला मृत्यु को प्राप्त हो जाता था, और लोग उसके अधिकार से मुक्त हो जाते थे, वे धीरे-धीरे पुनः मूर्तिपूजा करने लगे थे। और इस प्रकार, पुनपतन और सुधारदण्ड की, पापों के अंगीकार और छुटकारे की कहानी बार-बार दोहराई जाती थी।PPHin 564.2

    मेसोपोतामिया और मोआब के राजा, और इनके पश्चात पलिश्ती, और सिसेरा के नेतृत्व में, हाज़ोर के कनानी कम से इज़राइलियों के तानाशाह बने। ओत्नीएल, शमगर, एहूद, दबोरा और बाराक को उनके लोगों के मुक्तिदाता के रूप में खड़ा किया गया। लेकिन फिर से, “इजराइली वह करने लगे जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और प्रभु ने उन्हें मिद्यान के हाथों में जाने दिया।” इससे पहले यरदन के पूर्व में रहने वाले गोत्रों पर दमनकारियों का हाथ हल्का ही रहा था, लेकिन वर्तमान विपत्तियों में वे पहले कष्टभोगी थी।कनान के दक्षिण में अमालेकी और उसकी पूर्वी सीमा और सीमापार मरूस्थल में मिद्यानी अभी इज़राइल के कट्टर शत्रु थे। मूसा के समय मे मिद्यानी इज़राईलियों द्वारा लगभग नष्ट कर दिये गए थे, लेकिन उसके बाद से ही उनमें बहुत वृद्धि हुईं थी, और वे सशक्त और बहुसंख्यक हो गए थे। वे प्रतिशोध के प्यासे थे, और अब जब परमेश्वर की सुरक्षा वाला हाथ इज़राइल पर से उठ गया था, उनके पास अवसर उपलब्ध हो गया। ना केवल यरदन के पूर्व में बसने वाले गोत्र, वरन्‌ समस्त देश ने विध्वंस के कारण कष्ट उठाया। मरूभूमि के असभ्य, कर निवासी “टिडिडयों के दल” के समान (न्यायियों 6:5)अपने मवेशियों और भेड़ बकरियों सहित प्रदेश में घुस आए और भक्षक महामारी की तरह, यरदन नदी से लेकर पलिशिती तराई तक फैल गए। उपज ने पकना प्रारम्भ ही किया था, जब वे आए और जब तक पृथ्वी के अन्तिम फल इकटठे न कर लिये गए, वे वहीं रहे। उन्होंने खेतों की अतिरिक्त उपज को लूट लिया, निवासियों के साथ दुर्व्यवहार किया और उन्हें भी लूट लिया और, मरूस्थल को लौट गए। इस प्रकार खुले प्रान्त में रहने वाले इज़राइलियों को अपने घर छोड़कर प्राचीरों से सुरक्षित शहरों में इकट्ठा होना पड़ा, गढ़ों में या पहाड़ी गुफाओं और पहाड़ी किलों में शरण लेनी पड़ी। सात वर्षो तक यह दमन चलता रहा, और फिर जब लोगों ने दु:खी होकर परमेश्वर की ताड़ना पर ध्यान दिया, और अपने पापों का अंगीकार किया, तो परमेश्वर ने फिर से उनके लिये सहायक को खड़ा किया। गिदोन, मनश्शे के गोत्र से, योआश का पुत्र था। जिस वर्ग से उसका परिवार सम्बन्धित था, उसका कोई प्रमुख स्थान नहीं था, लेकिन योआश का घराना साहस और निष्ठा के लिये माना जाता था। उसके साहसी पुत्रों के लिये कहा गया है, “एक-एक का रूप राजकुमार का सा था।” मिद्यानों के विरूद्ध संघर्ष में सिवाय एक के सभी मारे गए थे, और गिदोन के नाम से घुसपैठिए भय ये भर जाते थे। गिदोन को उसके लोगों को मुक्ति दिलाने के लिये पवित्र आदेश मिला। उस समय वह गेहूँ झाड़ रहा था। अन्न की कुछ मात्रा उसने छुपा कर रखी थी और सामान्य खलिहान में झाड़ने का दुस्साहस न कर, उसने दाखरस के क॒ण्ड के पास एक स्थान को इस काम के लिये चुना, अंगूर पकने की ऋतु अभी दूर थी, इसलिये दाख की बारियों पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता था। जब गिदोन निस्तब्धता और एकांत में परिश्रम करता था, वह उदास होकर इज़राइल की स्थिति के बारे में चिन्तन करता और विचार करता कि किस प्रकार वह अपने लोगों पर से दमनकारियों के जुए को तोड़ सकता था।PPHin 564.3

    अचानक से उसको यहोवा के दूत ने दर्शन देकर कहा, “हे शूरवीर सूरमा, यहोवा तेरे संग है।”PPHin 566.1

    गिदोन ने उत्तर दिया, “हे मेरे प्रभु, यदि यहोवा हमारे संग होता, तो हम पर विपत्ति क्‍यों आती? और जितने आश्चर्यकर्मों का वर्णन हमारे पुरखा यह कहकर करते थे, ‘क्या यहोवा हम को मिस्र देश से छूड़ा नहीं लाया’ वे कहाँ रहे? अब तो यहोवा ने हमको त्याग दिया और मियद्यानियों के हाथ कर दिया है।”PPHin 566.2

    स्वर्ग के सन्देहवाहक ने कहा, “अपनी इसी शक्ति में जा, और तू इज़राईलियों को मिद्यानियों के हाथ से छड़ाएगा। क्या मैंने तुझे नही भेजा?PPHin 566.3

    गिदोन कोई प्रतीक चाहता था कि उसे सम्बोधित करने वाला वाचा का स्वर्गदूत था, जिसने बीते समय में इज़राइल के लिये कार्य किये थे। अब्राहम के साथ बातचीत करने वाले परमेश्वर के दूत उसके आतिथ्य का मान रखने के लिये रूके थे, और अब गिदोन ने पवित्र दूत से विनती की कि वह उसका अतिथि बनकर रहे। वह शीघ्र ही अपने तम्बू में गया और उसने अपनी सीमित सामग्री में से बकरी का एक बच्चा और अखमीरी रोटियाँ तैयार की और उसके सामने लाकर रखी। लेकिन स्वर्गदूत ने उससे कहा, “मास और अखमीरी रोटियों को लेकर, इस चटटान पर रख दे, और शोरबे को उण्डेल दे।” गिदोन ने ऐसा ही किया और फिर उसका वांछनीय चिन्ह उसे दिया गया, यहोवा के दूत ने अपने हाथ की लाठी को बढ़ाकर मास और अखमीरी रोटियों को छुआ, और चटटान से आग निकली जिससे मास और अखमीरी रोटियाँ भस्म हो गई, और यहोवा का दूत उसकी दृष्टि से ओझल हो गया।PPHin 566.4

    गिदोन के पिता योआश ने, जो अपने देशवासियों की मूर्तिपूजा में भागीदार था, ओप्र में, जहाँ वह रहता था, बाल देवता के लिये एक बड़ी सी वेदी तैयार की थी, जहाँ शहर के लोग आराधना करते थे। गिदोन को आदेश दिया गया कि वह उस वेदी को नष्ट कर दे और उस चट्‌टान पर, जहाँ भेंट भस्म हो गई थी, यहोवा के लिये एक वेदी तैयार करे और परमेश्वर के लिये बलि चढ़ाए। परमेश्वर के लिये बलि की भेंट चढ़ाने का कार्य याजकों को सौंपा गया था और शिलोह की वेदी तक सीमित था: लेकिन जिसने व्यवाहारिक विधि का संस्थान किया, और जिसकी ओर उसकी सारी भेंटे संकेत करती थी, उसके पास उसकी आवश्यकताओं को बदलने का अधिकार था। इज़राइल के छुटकारे से पहले बाल की आराधना के विरूद्ध एक विधिवत प्रतिवाद होना था। अपने लोगों के शत्रुओं के साथ युद्ध करने से पहले गिदोन को मूर्तिपूजा पर युद्ध घोषित करना था।PPHin 566.5

    पवित्र निर्देश का निष्ठापूर्वक पालन किया गया। यह जानते हुए कि प्रकट रूप से उसका पालन करने से उसका विरोध किया जाएगा, गिदोन ने यह कार्य गुप्त रूप से किया, और अपने दासों की सहायता से, पूरा काम एक रात में समाप्त कर दिया। दूसरे दिन जब ओप्र के पुरूष बाल देवता की उपासना करने आए तो वे अत्यन्त कोधित हुए। यदि योआश, जिसे स्वर्गदूत के प्रकट होने की जानकारी दे दी गई थी, अपने पुत्र के बचाव में खड़ा नहीं हुआ होता तो उन्‍होंने गिदोन के प्राण ले लिये होते। योआश ने कहा, “क्या तुम बाल के लिये वाद विवाद करोगे? क्‍या तुम उसे बचाओगे? जो कोई उसके लिये वाद-विवाद करे वह मार डाला जाएगा। सवेरे तक ठहरे रहो, तब तक यदि वह परमेश्वर हो, तो जिस ने उसकी वेदी गिराई है उससे वह आप ही अपना वाद-विवाद करे।” यदि बाल अपनी निजी वेदी का बचाव नहीं कर पाया, उस पर उसके उपासकों को सुरक्षा के लिये कैसे विश्वास किया जाता?PPHin 567.1

    गिदोन के प्रति हिंसा के सभी विचारों को रद्द कर दिया गया, और जब युद्ध का बिगुल बजाया गया, ओप्र के पुरूष उसके झण्डे के पास एकत्रित होने वालो में सबसे आगे थे। मनरशे के गोत्र को, जो उसका निजी गोत्र था, और आशेर, जबूलून और नप्ताली के पास सन्देश भेजा गया ओर सभी ने बुलावे का उत्तर दिया। PPHin 567.2

    अतिरिक्त प्रमाण के अभाव में की परमेश्वर ने उसे इस कार्य के लिये बुलाया था और यह कि वह उसके साथ रहेगा गिदोन ने स्वयं को सेना का मुख्या होने का दुस्साहस नहीं किया। उसने प्रार्थना की, “यदि तू अपने वचन के अनुसार इज़राइल को मेरे द्वारा छुड़ाएगा, तो सुन, में खलिहान के फर्श पर एक भेड़ का ऊन रखता हू। यदि भेड़ के ऊन पर ओस की बूंदे होगी, जबकि सारी भूमि सूखी है, तब में समझूंगा कि तू अपने कहने के अनुसार मेरा उपयोग इज़राइल की रक्षा करने में करेगा।” सुबह होने पर ऊन गीली थी और भूमि सूखी थी। लेकिन अब एक सन्देह उत्पन्न हुआ, ऊन प्राकृतिक रूप से नमी को सोख लेता है, इसलिये परीक्षण निर्णायात्मक नहीं हो सकता। इस कारण उसने विनती की कि चिन्ह को उलट दिया जाए, और उसने विनती की कि उसकी अत्यधिक सतकता प्रभु को अप्रसन्‍न न करे। उसका निवेदन स्वीकार कर लिया गया। PPHin 567.3

    इस प्रकार प्रोत्साहन पाकर, गिदोन ने घुसपैठियों से युद्ध करने के लिये अपनी सेना का नेतृत्व किया। “मिद्यानी और अमालेकी और सब पूर्वी लोग एकत्रित हुए, और पार आकर यित्रेल की तराई में डेरे डाले।” गिदोन के दस्ते में केवल बत्तीस हजार पुरूष थे, लेकिन उसके सामने फैली हुई शत्रुओं की विशाल सेना के साथ ही, परमेश्वर का वचन उसके पास आया, “जो लोग तेरे संग है वे इतने हैं कि मैं मिद्यानियों को उनके हाथ नहीं कर सकता, नहीं तो इज़राईली यह कहकर अपनी प्रशंसा करने लगेंगे कि वे अपने भुजबल के द्वारा बचे हैं। इसलिये तू जाकर लोगों में यह प्रचार करके सुना दे, जो कोई डर के मारे थरथरता हो, वह गिलाद पहाड़ से लौटकर चला जाए।” जो कठिनाईयों और खतरों का सामना करने के लिये सहमत नहीं थे, या जिनके सांसारिक रूझान उनके हृदयों को परमेश्वर के काम से दूर करे, वे इज़राइल की सेनाओं को सशक्त नहीं बना सकता था। उनकी उपस्थिति केवल शक्तिहीनता का कारण प्रमाणित होती। PPHin 568.1

    इज़राइल में यह नियम बनाया गया था कि युद्ध में जाने से पहले पूरी सेना में यह घोषणा की जाए, “तुम में से कौन है जिसने नया घर बनाया और अब तक उसे अर्पित नहीं किया है? उस व्यक्ति को अपने घर लौट जाना चाहिये। वह युद्ध में मारा जा सकता है और तब दूसरा व्यक्ति उसके घर को अर्पित करेगा। क्‍या कोई व्यक्ति ऐसा है जिसने अंगूर के बाग लगाए है, किन्तु अभी तक उससे कोई अंगूर नहीं लिया है? उस व्यक्ति को घर लौट जाना चाहिये। यदि वह व्यक्ति युद्ध में मारा जाता है तो दूसरा व्यक्ति उसके बाग के फल को भोगेगा। क्या यहाँ कोई ऐसा व्यक्ति है जिसके विवाह की बात पक्की हो चुकी है। उस व्यक्ति को घर लौट जाना चाहिये। यदि वह युद्ध में मारा जाता है तो दूसरा उस व्यक्ति स्त्री से विवाह करेगा जिसके साथ उसके विवाह की बात पक्‍की हो चुकी है। “और अधिकारियों को लोगों से यह कहना था, “क्या यहाँ कोई ऐसा व्यक्ति है जो साहस खो चुका है और भयभीत है। उसे घर लौट जाना चाहिये ऐसा न हो कि उसकी देखदेखी उसके भाईयों का भी हियाव टूट जाए।”-व्यवस्थाविवरण 20:5-8।PPHin 568.2

    उसके शत्रुओं की सेना की तुलना में, उसकी सेना में सैनिकों की संख्या कम थी, इसलिये गिदोन ने सामान्य घोषणा नहीं की। वह आश्चर्यचकित रह गया, जब यह घोषणा की गई कि उसकी सेना बहुत विशाल थी। लेकिन परमेश्वर ने अपने लोगों के ह्दयों में विद्यमान घमण्ड और अविश्वास को देखा। गिदोन के भावोत्तेजक निवेदन से जागृत होकर, वे सहयोग देने को तैयार हो गए थे, लेकिन मियद्यानियों की संख्या देखकर कई भयभीत हो गए थे। लेकिन, यदि इज़राईली विजयी हो जाते, तो इन्होंने ही परमेश्वर को विजय का श्रेय देने के बजाय सारी महिमा स्वयं को दी होती।PPHin 569.1

    गिदोन ने परमेश्वर के निर्देश का पालन किया, और भारी मन से बाईस हजार, अर्थात उसकी सम्पूर्ण सेना के दो-तिहाई से अधिक पुरूषों को अपने अपने घरों के लिये प्रस्थान करते देखा। फिर से परमेश्वर का आदेश उसके पास पहुँचा, “अब भी लोग अधिक है, उन्हें सोते के पास नीचे चल, वहाँ मैं उन्हें तेरे लिये परखूँगा, और जिस जिसके विषय में में तुझ से कहूँ, ‘यह तेरे संग चले,’ वह तो तेरे संग चले, और जिस जिसके विषय में कहूँ, “यह तेरे संग न जाए, वह न जाए।” तब वह उनको सोते के पास नीचे ले गया, इस अपेक्षा में कि वे शत्रु पर शीघ्र ही चढ़ाई करेंगे। कुछ लोगों ने बिना विलम्ब किए थोड़ा सा पानी हाथों में लिया और चलते-फिरते उसे चुसकियाँ लेकर पीते गए, लेकिन अधिकतर अपने घुटनों पर गए और उन्होंने झुककर आराम से नदी की सतह से जल को ग्रहण किया। जिन्होंने जल को अपने हाथों में लिया वे दस हजार में से तीन सौ थे, लेकिन फिर भी इन्हें चुन लिया गया, बाकी सब को घर लौटने की अनुमति दे दी गई। PPHin 569.2

    अत्यन्त साधारण तरीकों से चरित्र को परखा जाता है। जो संकटकाल में अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने को तत्पर थे, वे मनुष्य आपातकालीन स्थिति में विश्वास योग्य नहीं थे।PPHin 569.3

    परमेश्वर के पास आलसी और आत्म-भोगी मनुष्यों के लिये कोई स्थान नहीं। उसके द्वारा चुने हुए पुरूष वे थोड़ी से थे जिन्होंने अपनी आवश्यकताओं को, उनके कर्तव्य के पालन करने में विलम्ब करने की अनुमति नहीं दी। वे तीन सौ चुने हुए पुरूष ना केवल साहस और आत्म संयम के स्वामी थे, वरन्‌ विश्वास रखने वाले भी थे। उन्होंने स्वयं को मूर्तिपूजा से दूषित नहीं किया था। परमेश्वर उन्हें निर्देशित कर सकता था, और उनके द्वारा इज़राइल को छुटकारा भी दिला सकता था। सफलता संख्या पर निर्भर नहीं होती। परमेश्वर थोड़ो के द्वारा और बहुतों के द्वारा छुटकारा दिला सकता है। वह भारी सख्या से इतना सम्मानित नहीं होता, जितना कि उनके आचरण से जो उसकी सेवा करते हैं।PPHin 569.4

    तराईं में घुसपैठियों की सेना ने पड़ाव डाला हुआ था और इज़राइली पर्वत-श्रू पर डेरा डाले थे। “मिद्यानी और अमालेकी और सब पूर्वी लोग टिडिडयों के समान तराई में फैले पड़े थे, और उनके ऊंट समुद्र तट की बालू के किनको के समान अंसख्या थे”-न्यायियों 7:12। आगामी दिन के संघर्ष के बारे में सोचते हुए गिदोन कॉँप उठा। लेकिन परमेश्वर ने रात में उससे बात की ओर उसे उसके सेवक फ्रा के साथ मिशद्यानियों की छावनी के पास जाने को कहा और उसे बताया कि वहाँ पहुँचने पर वह कुछ ऐसासुनेगा जिससे उसे प्रोत्साहन मिलेगा। वह गया, और, जब वह चुपचाप अंधेरे में रूका हुआ था, उसने एक सैनिक को अपने साथी को यह स्वप्न सुनाते हुए सुना, “सुन जौ की एक रोटी लुढ़कते लुढ़कते मिद्यान की छावनी में आई, और डेरे को ऐसी टक्कर मारी कि डेरा पलट गया और चौड़ा होकर गिर गया ।” दूसरे ने ऐसे शब्दों में उत्तर दिया, जिन्होंने उस अदृश्य श्राता केह्ददय को झकझोर दिया “यह योआश के पुत्र गिदोन नामक एक इज़राइली पुरूष की तलवार को छोड़ कुछ नहीं है, उसी के हाथ में परमेश्वर ने मिद्यान को सारी छावनी समेत दे दिया है।” गिदोन ने उन मिद्यानी अपरिचितों के माध्यम से उससे बात करते हुए परमेश्वर की वाणी को पहचान लिया। अपने दस्ते के थोड़े से पुरूषों के पास लौटकर उसने कहा, “उठो, यहोवा ने मिद्यानी सेना को तुम्हारे वश में कर दिया है।’PPHin 570.1

    पवित्र निर्देश द्वारा उसे आक्रमण की योजना का सुझाव दिया गया जिसे क्रियान्वित करने के लिये वह तुरन्त निकल पड़ा। तीन सौ पुरूषों को तीन टुकड़ियों में विभाजित किया गया। प्रत्येक पुरूष को मिट्टी के घड़े में छुपाकर एक मशाल और हाथ में नरसिंगा दिया गया। सैनिकों को इस प्रकार ठहराया गया कि वे अलग अलग दिशाओं से चढ़ाई कर सकते थे। बहुत रात होने पर, गिदोन द्वारा युद्ध नरसिंगे के संकेत पर, तीनों टुकड़ियों ने अपने नरसिंगे फके, और फिर अपने घड़े तोड़कर जलती हुईं मशालों को प्रदर्शित करते हुए, वे शत्रु पर युद्ध की ललकार के साथ टूट पड़े, “यहोवा की और गिदोन की तलवार।” PPHin 570.2

    सोती हुई सेना चौंक कर जाग गई। उन्होंने अपने चारों और जलती हुई मशालों के प्रकाश को देखा। प्रत्येक दिशा में तुरही का स्वर और आक्रमणकारियों की पुकार सुनाई दे रहे थे। स्वयं को एक अपरिहार्य शक्ति की दया पर निर्भर मानकर, मिद्यानी घबरा गए। खतरे की सूचना की पुकार देते हुए वे अपने प्राण बचाने के लिये भाग खड़े हुए और अपने ही साथियों को शत्रु समझकर, उन्हें एक-दूसरे को मार डाला। विजय का समाचार पाकर, हजारों इज़राइली, जिन्हें घर भेज दिया गया था, लौट आए और अपने भागते हुए शत्रुओं का पीछा करने में जुट गए। नदी के पार अपने निजी भू-खण्ड मे पहुँचने की आशा में मिद्यानी यरदन की ओर जा रहे थे। गिदोन ने एप्रैमी लोगों के पास दूत भेजे और उन्हें दक्षिणी घाट पर भागने वालों का अवरोध करने को उकसाया। इसी दौरान अपने तीन सौ “थक मन्दे’ पुरूषों के साथ गिदोन ने नदी को पार किया और उसका पीछा करते रहे जो बहुत आगे निकल चुके थे। जेबह और सल्मुन्ना नामक राजा, जो समस्त सेना के ऊपर थे, जो पन्द्रह हजार पुरूषों की सेना के साथ बच निकले थे, गिदोन द्वारा पराजित कर दिये गए, उनकी सेना को तितर-बितर कर दिया गया, और प्रधानों को जीतकर मार डाला गया।PPHin 571.1

    इस महत्वपूर्ण पराजय में एक लाख बीस हजार घुसैपेठिये नष्ट हुए। मिद्यानियों को सामर्थ्यहीन कर दिया गया था, जिससे कि वह इज़राइल पर फिर कभी चढ़ाई नहीं कर पाए। यह सन्देश तेजी से चारो ओर प्रसारित हो गए, कि इज़राइल का परमेश्वर फिर से अपने लोगों के पक्ष में लड़ा था। शब्द वर्णन नहीं कर सकते आस-पास की जातियों के मनों के भय का जब उन्हे ज्ञात हुआ कि दुस्साहसी, रणकुशल लोगों को इतने सामान्य साधनों द्वारा पराजित कर दिया गया था।PPHin 571.2

    जिस अगुवे को परमेश्वर ने मिद्यानियों को पराजित करने के लिये चुना था उसका इज़राइल में कोई विशिष्टि स्थान नहीं था। वह ना ही शासक था, ना याजक, और ना ही वह लेैवी था। वह स्वयं को अपने पिता के घर में सबसे न्यूनतम समझता था। लेकिन परमेश्वर उसमें एक साहसी और सत्यनिष्ठ मनुष्य देखता था। उसे स्वयं पर विश्वास नहीं था और वह प्रभु के मार्गदर्शन में चलने को तत्पर था। परमेश्वर अपने काम के लिये हमेशा ही अत्यन्त प्रतिभासम्पन्न मनुष्यों को नहीं चुनता, लेकिन वह उन्हें चुनता है। जिनका वह भली भाँति उपयोग कर सकता है। नीतिवचन में लिखा है, “महिमा से पहले नम्रता आती है।” प्रभु उनके माध्यम से सफलतापूर्वक कार्य कर सकता है जिन्हें अपनी अपर्याप्तता का एहसास होता है और जो उसे अपना अगुवा और अपनी सामर्थ्य का स्रोत मानकर उस पर निर्भर करते है। अपने सामर्थ्य को उनकी निर्बलता के साथ जोड़कर वह उन्हें सबल बनाता है, और उनकी अज्ञानता का संपर्क अपनी बुद्धिमता से कराकर उन्हें बुद्धिमान बनाता है।PPHin 571.3

    यदि वे सच्ची दीनता को संजोए, प्रभु अपने लोगों के लिये बहुत कुछ कर सकता है लेकिन बहुत कम है ऐसे लोग जो सफलता या बहुत भारी उत्तरदायित्व दिये जाने पर आत्मविश्वासी नहीं बनते या परमेश्वर पर उनकी निर्भरता को नहींझेलते। इस कारण, अपने काम के लिये, माध्यमों चुनाव में, संसार द्वारा महान, प्रतिभासम्पन्न और मेघावी माने जाने वाले सम्मानीय व्यक्तियों को छोड़ देता है। वे प्रायः घमण्डी और आत्म-सम्पन्न होते है। वे स्वयं को परमेश्वर के मार्गदर्शन के बिना कार्य करने के योग्य समझते हैं।PPHin 572.1

    यरीहों की परिकमा करते हुए यहोशू की सेना द्वारा नरसिंगा फूकने का साधारण कृत्य, और मिद्यान के सेनाओं के चारो तरफ गिदोन की छोटी से टुकड़ी द्वारा अपनाए गए इसी तरीके को, परमेश्वर की सामर्थ्य द्वारा, उसके शत्रुओं को पराजित करने के लिये कारगर बनाया गया। परमेश्वर की सामर्थ्य और बुद्धिमता को छोड़ कर, मनुष्य द्वारा बनाया गया सबसे उत्कृष्ट प्रणाली भी असफल प्रमाणित होगी, जब कि विश्वास और दीनता के साथ अपनाए गए और परमेश्वर द्वारा नियुक्त सबसे निराशामय तरीके सफल हो जाते हैं। परमेश्वर में विश्वास और उसकी इच्छा का पालन आध्यात्मिक युद्ध में मसीहों के लिये उतना ही आवश्यक है जितना कि कनानियों के साथ युद्ध करने में गिदोन और यहोशू के लिये आवश्यक था। इज़राइल के पक्ष में अपने सामर्थ्य के लगातार प्रदर्शनों के द्वारा, परमेश्वर उन्हें उस पर विश्वास रखना सिखा रहा था, ताकि वे प्रत्येक आपातकालीन स्थिति में विश्वास के साथ उससे सहायता माँगे। आज भी वह लोगों के प्रयत्नों में सहयोगी होने और बलहीन साधनों के माध्यम से महान उपलब्धिाँ प्राप्त करने के लिये सहमत है। सम्पूर्ण स्वर्ग प्रतीक्षा में है कि हम उसके विवेक और सामर्थ्य की माँग करें। परमेश्वर “ऐसा सामर्थी है कि हमारी विनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है।”-इफिसियों 3:20।PPHin 572.2

    गिदोन अपनी प्रजा के शत्रुओं की पीछा करके लौटा ही था, कि उसे अपने ही देशवासियों द्वारा निन्दा और आरोपों का सामना करना पड़ा। जब उसके बुलाने पर इज़राइलियों ने मिद्यानियों के विरूद्ध शक्ति प्रदर्शन किया था, एप्रैम का गोत्र पीछे रह गया था। उन्हें यह प्रयत्न एक खतरनाक कार्य लगा था, और क्योंकि गिदोन ने उन्हे कोई विशिष्ट बुलावा नहीं भेजा, इस कारण, अवसर का फायदा उठाते हुए, उन्होंने अपने भाईयों के साथ सम्मिलित ना होने का बहाना बनाया। लेकिन जब एप्रेमियों के पास इज़राइल की विजय का समाचार पहुँचा, तो वे इर्ष्या से भर गए कि वे इसमें सहभागी न थे। मिद्यानियों को खदेड़ देने के पश्चात गिदोन के निर्देशानुसार एप्रैमियों ने यरदन के घाटों पर अधिकार कर लिया था, ताकि पलायकों को भाग जाने से रोका जा सके। इस युक्‍्ति से भारी संख्या में शत्रु मारे गए, जिनमें ओरेब और जेब दो हाकिम भी थे। इस प्रकार एप्रैम के पुरूषों ने युद्ध की आगे की कार्यवाही की और विजय को सम्पूर्ण किया। लेकिन वे द्वेषपूर्ण और कोधित थे, मानों गिदोन स्वयं की इच्छा और निर्णय का अनुसरण कर रहा हो। इज़राइल की विजय में वे परमेश्वर के योगदान को न समझ पाए, उनके छुटकारे में उसकी दया और उसके सामर्थ्य के प्रति उन्होंने आभार प्रकट नहीं किया, और इस तथ्य ने उन्हें परमेश्वर के विशेष माध्यम के रूप में चुने जाने के लिये अयोग्य ठहराया। विजय के जयचिन्हों के साथ लोटकर, वे कुछ अवस्था में गिदोन के पास आए और बोले, “तूने हमारे साथ ऐसा व्यवहार क्‍यों किया है कि जब तू मिद्यान से लड़ने को चला तब हम को नहीं बुलवाया?’PPHin 572.3

    गिदोन ने उनसे कहा, “तुम्हारी तुलना में, मैंने अब क्‍या किया? क्‍या एप्रेम की छोड़ी हुई दाख भी अबीएजेर की सब फसल से अच्छी नहीं है? तुम्हारे ही हाथों में, परमेश्वर ने ओरेब और जेब नामक मिथ्यान के हाकिमों को दे दिया है, तब तुम्हारे बराबर में कर ही क्या सका?”PPHin 573.1

    ईर्ष्या की भावना कलह में भड़क सकती थी जिसके कारण रक्‍तपात और संघर्ष होता, लेकिन गिदोन के नम्रतापूर्ण उत्तर ने एप्रैमियों के कोध को शान्त कर दिया, और वे शान्तिपूर्वक अपने घरों को लौट गए। सिद्धान्तों के सन्दर्भ में दृढ़ और अटल और युद्ध में ‘शूरवीर सूरमा’ गिदोन शिष्टाचार की भावना का भी धनी था जो कम ही देखने को मिलती है।PPHin 573.2

    मिद्यानियों से छुटकारे के लिये आभारी होकर, इज़राइलियों ने प्रस्ताव रखा कि गिदोन को उनका राजा बनना चाहिये और उसके वंशजों के लिये सिंहासन निश्चित किया जाना चाहिये। यह प्रस्ताव धर्मतन्त्र के सिद्धान्तों का प्रत्यक्ष खंडन था। परमेश्वर इज़राइल का राजा था, और उनके द्वारा सिंहासन पर एक मनुष्य को विराजमान करना उनके स्वर्गीय सम्राट का तिरस्कार करना था। गिदोन इस तथ्य को पहचानता था, उसका उत्तर प्रमाणित करता है कि उसका उद्देश्य कितना सत्य और उत्कृष्ट था। उसने घोषणा की, “मैं तुम्हारे ऊपर प्रभुता न करूँगा, और न मेरा पुत्र तुम्हारे ऊपर प्रभुता करेगा, यहोवा ही तुम पर प्रभुता करेगा।PPHin 573.3

    लेकिन गिदोन एक अन्य गलती कर बैठा जिसके कारण उसके घराने पर और सम्पूर्ण इज़राइल पर विपत्ति आ पड़ी। महान संघर्ष के पश्चात निष्कियता का काल संघर्ष की कालावधि से भी अधिक खतरों से भरपूर होता है। अब गिदोन के सम्मुख यह खतरा था। बैचेनी की भावना ने उसे घेर लिया। इससे पहले वह परमेश्वर द्वारा दिये गए निर्देशों का पालन करने में सन्तुष्ट था, लेकिन अब पवित्र मार्गदर्शन के लिये रूकने के बजाए, उसने स्वयं के लिये योजना बनाना आरम्भ कर दिया। जब परमेश्वर की सेनाओं को महत्वपूर्ण विजय प्राप्त होती है, शैतान परमेश्वर के कार्य को विफल करने के अपने प्रयत्नों को दुगना कर देता है। इस प्रकार गिदोन के मन में वे विचार और योजनाएँ सुझाई गई, जिनके द्वारा इज़राइल की प्रजा पथग्रष्ट हो गई।PPHin 574.1

    गिदोन को स्वर्गदूत के प्रकट होने के स्थान पर बलि की भेंट चढ़ाने की आज्ञा दी गई थी, इसलिये वह इस निष्कर्ष पर पहुँच गया कि उसे याजक के तौर पर कार्यरत होने को नियुक्त किया गया है। पवित्र सहमति के लिये रूके बिना, उसने उचित स्थान प्रदान करने का और उस पवित्र स्थान पर वैसी ही आराधना की व्यवस्था को स्थापित करने का निश्चय किया। सशक्त लोकप्रिय भावना उसके पक्ष में थी, इसलिये अपनी योजना को क्रियान्वित करने में उसे कोई कठिनाई नहीं हुई। उसके निवेदन पर मिशद्यानियों से लिये सोने के कर्ण आभूषण उसे लूट के उसके हिस्से के तौर पर दिये गए। लोगों ने इसके अलावा भी कई बहुमूल्य वस्तुएँ और मिद्यान के हाकिमों के सुसज्जित वस्त्र भी इकट्ठे किये। जुटाए गए सामान से गिदोन ने एक एपोद, जो महायाजक द्वारा पहने जाने वाले एपोद का प्रतिरूप था, बनवाया। उसका यह कत्य स्वयं उसके लिये, उसके परिवार के लिये और इज़राइल के लिये एक फन्दा प्रमाणित हुआ। इस अनधीक॒त आराधना के कारण कई लोगों ने अन्तत: प्रभु को बिल्कुल त्याग दिया, और मूर्तियों को पूजने लगे। गिदोन की मृत्यु पश्चात, भारी संख्या में लोगों ने, जिनमें उसका परिवार भी था, स्वधर्म त्याग किया। जिस व्यक्ति ने उनमें से मूर्तिपूजा को उखाड़ फेंका था, उसी के द्वारा वे परमेश्वर से दूर कर दिये गए।PPHin 574.2

    बहुत कम हैं वे लोग जिन्हे एहसास होता है कि कर्मा और शब्दों का प्रभाव कितना व्यापक होता है। कितनी बार माता-पिता की गलतियाँ उकी संतान और संतान की सन्तानों पर दुष्प्रभाव डालती है, कार्य करने वाले कब्र में चले जाते है, पर प्रभाव छोड़ जाते है। सभी दूसरों पर प्रभाव डालते है, और उस प्रभाव के परिणाम के लिये वे उत्तरदायी होते है। कर्मा और शब्दों में प्रभावशाली शक्ति होती है, और इसके बाद का लम्बा समय हमारे यहाँ के जीवन का प्रभाव दिखाएगा। हमारे शब्दों और कर्मा के प्रभाव की प्रतिक्रिया हम ही पर आशीष या श्राप के रूप में होती है। यह धारणा जीवन को अत्यन्त गम्मैरता प्रदान करती है, और हमें दीनता भरी प्रार्थनाओं द्वारा परमेश्वर की ओर खींचती है ताकि वह हमें उसकी बुद्धिमता से मार्गदर्शित कर सके।PPHin 575.1

    जो उच्चतम पदों पर खड़े है, वे हमें पथग्रष्ट कर सकते है। सबसे बुद्धिमान गलती करते है, सबसे शक्तिशाली डगमगा सकते हैं, और ठोकर खा सकते हैं। हमारी सुरक्षा इसी में है कि जिस मार्ग पर हम चलेंउस परमेश्वर पर विश्वास रखते हुए चलें जिसने कहा है, “मेरे पीछे हो ले।PPHin 575.2

    गिदोन के मरणोपरांत इज़राइलियों ने अपने परमेश्वर यहोवा को, जिसने उन्हें चारों ओर के सब शत्रुओं के हाथ से छूड़ाया था, स्मरण न रखा। और ना उन्होंने यरूब्बाल अर्थात गिदोन की उस सारी भलाई के अनुसार जो उसने इज़राइलियों के साथ की थी उसके घराने को प्रति दिखाई ।” उनके न्‍यायी और मुक्तिदाता, गिदोन को देय सब कुछ भूलकर, इज़राइल के लोगो ने उसके अकूलीन पुत्र अबीमेलक को अपने राजाके रूप में स्वीकार किया, जिसने अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिये, एक को छोड़कर गिदोन क सभी वैध सन्तानों की हत्या कर दी। जब मनुष्य परमेश्वर का भय मानना समाप्त कर देते हैं तो वे सम्मान और अखण्डता से अलग होने में बिलम्ब नहीं करते। परमेश्वर की दयालुता के प्रति आभारी होने से, हम उन लोगों के भी आभारी होंगे, जिन्हें गिदोन की तरह लोगों को आशीषित करने के साधन के रूप में उपयोग किया गया है। गिदोन के घराने के प्रति इज़राइल का निदयतापूर्ण व्यवहार उन लोगों से अपेक्षित किया जा सकता है जिन्होंने परमेश्वर के प्रति घोर अकृतज्ञता प्रकट की थी। PPHin 575.3

    अबीमेलेक की मृत्यु के बाद मूर्तिपूजा पर रोक लगाने के लिये कुछ समय तक न्यायियों का शासन रहा, लेकिन कुछ ही समय पश्चात लोग उनके चारों और की अधर्मी जातियों के रीति-रिवाजों में लौट गए। उत्तर में बसे गोत्रों में सीरिया और सिदोन के देवी-देवताओं के बहुत उपासक थे। दक्षिण में पलिश्तियों की मूर्तियाँ, पूर्व में मोआब और अम्मोन की मूर्तियों ने इज़राइलियों के हृदय को उनके पूर्वजों के परमेश्वर से फिरा दिया। लेकिन स्वधर्म त्याग शीघ्र ही अपना दण्ड लेकर आया। अम्मोनियों ने पूर्वी गोत्रों को अधीकत किया और यरदन को पार करके, यहूदा और एप्रेम के राज्य क्षेत्र पर चढ़ाई की। पश्चिम में पलिश्ती समुद्र के किनारे की तराई से ऊपर की ओर व्यापक रूप से लूटपाट करते ओर आगजनी करते हुए आए। एक बार फिर इज़राइली निर्दयी, शत्रुओं के द्वारा अधीकत होने के लिये छोड़ दिये गए प्रतीत हो रहे थे।PPHin 575.4

    फिर से लोगों ने उससे सहायता माँगी जिसे उन्होंने छोड़ दिया था और अपमानित किया था। “तब इज़राइलियों ने यह कहकर यहोवा की दुहाई दी, हम ने जो अपने परमेश्वरको तयागकर बाल देवताओं की उपासना की है, यह हमने तेरे विरूद्ध महापाप किया है।” लेकिन दुख ने उनसे सच्चा प्रायश्चित नहीं करवाया। वे इसलिये शोकित थे क्योंकि उनके पापों के कारण उन पर कष्ट आए थे, लेकिन इसलिये नहीं कि उन्होंने परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लघंन करके उसका अपमान किया था। सच्चे प्रायश्चित का तात्पर्य केवल पाप के लिये दुख नहीं है, यह पाप से मुहँ फेर लेने का दृढ़ संकल्प है।PPHin 576.1

    परमेश्वर ने अपने एक भविष्यद्वक्ता के माध्यम से उन्हे उत्तर दिया, “क्या मैंने तुम को मिस्रियों, एमोरियो, अम्मोनियो और पलिश्तियों के हाथ से न छड़ाया था? फिर जब सीदोनी और अमालेकी, और माओनी लोगों ने तुम पर अन्धेर किया, और तुमने मुझे पुकारा, तब मैंने तुम को उनके हाथ से भी न छड़ाया, तौमी तुम ने मुझे त्यागकर पराए देवताओं की उपासना की है, इसलिये मैं फिर तुम को न छुड़ाऊंगा। जाओ, अपने माने हुए देवताओं की दुहाई दो, तुम्हारे संकट के समय वे ही तुम्हे छूड़ाएँ।PPHin 576.2

    यह गम्भीर और भयावह शब्द विवेक को एक अन्य दृश्य की ओर ले जाते है-- अन्तिम निर्णय का महान दिन-जब परमेश्वर की दया का तिरस्कार करने वाले और उसके अनुग्रह को ठुकराने वालों का सामना उसकी दण्डाज्ञाओं से होगा। जिन्होंने भी परमेश्वर द्वारा दिए गए समय, साधनों और विवेक की क्षमता को इस संसार के देवी-देवताओं की उपासना में समर्पित किया है, उन्हें उस न्यायालय में जबाव देना होगा। सांसारिक आमोद-प्रमोद और सुख-सुविधाओं के मार्ग पर चलने के लिये उन्होंने अपने सच्चे और प्रिय मित्र को छोड़ दिया है। किसी समय वे परमेश्वर के पास लौटना चाहते थे, लेकिन संसार ने अपने छलावों और मूढ़ता से ध्यान-मग्न कर दिया। चंचल मनोरंजन, वस्त्रों के घमण्ड, स्वाभाविक इच्छाओं की पूर्ति ने उनके हृदयों को कठोर और अन्तरात्मा को सुन्न कर दिया, जिससे सत्य की आवाज सुनी न गईं। कर्तव्य का तिरस्कार किया गया। असीम महत्व की बातों को बहुत कम मान्यता दी जाती थी, जब तक कि मनुष्य के ह्दय से परमेश्वर के लिये, जिसने मनुष्य के लिये इतना कुछ दिया था, बलिदान करने की अभिलाषा समाप्त हो गई। लेकिन कटनी के समय वे वही काटेंगे जो उन्होंने बोया है।PPHin 576.3

    परमेश्वर कहता है, “मैंने तो पुकारा, परन्तु तुम ने इन्कार किया, और मैंने हाथ फैलाया, परन्तु किसी ने ध्यान नहीं दिया, वरन्‌ तुम ने मेरी सारी सम्मति को अनसुना किया, और मेरी ताड़ना का मूल्य न जाना, इसलिये मैं भी तुम्हारी विपत्ति के समय हसूँगा, और जब तुम पर भय आ पड़ेगा, वरन्‌ तुमपर आँधी के समान भय आ पड़ेगा, और विपत्ति बवण्डर के समान आ पड़ेगी और तुमपर संकट और यातनाएँ आएँगी। उस समय वे मुझ यत्न से तो ढूँढेगे, परन्तु न पाएँगे। क्‍योंकि उन्होंने ज्ञान से बैर किया, और यहोवा का भय मानना उनको न भाया। उन्होंने मेरी सम्मति न चाही, वरन्‌ मेरी सब ताड़नाओं को तुच्छ जाना। इसलिये वे अपनी करनी का फल आप भोगेंगे और अपनी युक्तियों के फल को भोंगेंगे और अपनी योजनाओं के कफल से अघाएँगे।” “परन्तु जो मेरी सुनेगा, वह निडर बसा रहेगा, और बेखटके सुख से रहेगा। - नीतिवचन 1:24-31,33PPHin 577.1

    अब इज़राईलियों ने स्वयं को प्रभु के सम्मुख दीन किया “तब वे पराए देवताओं को अपने मध्य में से दूर करके यहोवा की उपासना करने लगे।” और प्रभु का प्रेमपूर्ण हृदय खेदित हुआ- “इज़राईलियों के कष्ट के कारण खेदित हुआ।” आह, हमारे परमेश्वर की चिरसहिष्णु करूँगा! जब उसके लोगों ने उन पापों को त्याग दिया जिनके कारण परमेश्वर की उपस्थिति बाहर हो गईं थी, उनकी प्रार्थनाओं को सुना और उनके लिये कार्य करना आरंभ कर दिया। गिलाद के यिप्ताह नामक व्यक्ति को उनके मुक्तिदाता के रूप में खड़ा किया गया, जिसने अम्मोनियों पर चढ़ाई करक उनकी शक्ति को नष्ट किया।PPHin 577.2

    इस समय इज़राइल ने अठारह वर्षों तक अपने शत्रुओं के अत्याचार को सहन किया था, लेकिन वे फिर से उस सबक को भूल गए जो कष्ट ने उन्हें सिखाया था।PPHin 578.1

    जब परमेश्वर की प्रजा बुराई के मार्ग पर लौट गई, तो उसने उन्हें उनके शक्तिशाली पलिशिती शत्रुओं द्वारा उत्पीड़ित होने दिया। कई वर्षो तक उन्हें लगातार सताया गया और किसी किसी समय इस निर्दयी, लड़ाक्‌ जाति द्वारा पूर्ण रूप से अधीकृत कर लिया गया। इज़राइली इन मूर्तिपूजकों के साथ मिलजुल गए थे, उनके आमोद-प्रमोद और आराधना में सम्मिलित हो गए थे जब तक कि वे रूचि और स्वभाव में उनके साथ एक हो गए। फिर इज़राइल के ये तथाकथित मित्र उनके कट्टर शत्रु बन गए और प्रत्येक साधन से उनका विनाश करने में जुट गए।PPHin 578.2

    इज़राइल के समान, मसीही भी प्रायः संसार के प्रभाव को समर्पण कर देते है और अधर्मियों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रखने के लिये उसके सिद्धान्तों और रीति-रिवाजों को मानने लगते है, लेकिन अन्त में ज्ञात होगा यही तथाकथित मित्र, शत्रुओं में सबसे खतरनाक है। बाईबल स्पष्ट रूप से सिखाती है कि परमेश्वर के लोगों और संसार में कोई सामंजस्य नहीं हो सकता। “हे भाईयों, यदि संसार तुम से बेर करता है तो अचम्भा न करना ।”यहुन्ना 3:14। हमारा उद्धारकर्ता कहता है, “यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो कि उसने तुम से पहले मुझ से बैर रखा ।”-यहुन्ना 15:18 । परमेश्वर के लोगों को भरमाने के लिये, शैतान दिखावटी मित्रता की आढ़ में, अधर्मियों के माध्यम से कार्य करता है, ताकि वह उन्हें परमेश्वर से अलग कर सके, और जब वे बचाव से वंचित हो जाते है, तब वह अपने कर्मकों को उसके विरूद्ध कर देता है और उसके विनाश को परिपूर्ण करने में जुट जाता है।PPHin 578.3

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