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कुलपिता और भविष्यवक्ता - Contents
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    अध्याय 64—दाऊद, एक पलायक

    यह अध्याय 1 शमूएल 18—22 पर आधारित है

    गोलियत के मारे जाने पश्चात्‌ शाऊल ने दाऊद को अपने पास ही रखा और उसे उसके पिता के घर लौटने की अनुमति नहींदी ।और ऐसा हुआ कि “योनातन का मन दाऊद पर ऐसा लग गया कि योनातन उसे अपने प्राणों के समान प्रेम करने लगा।” योनातन और दाऊद ने भाईयों जैसे एक होने की वाचा बॉधी और राजा के पुत्र ने “अपना बागा जो वह स्वयं पहनेहुए था उतारकर अपने वस्त्र समेत दाऊद को दे दिया, वरन्‌ अपनी तलवार और धनुष और कटिबन्ध भी उसके दे दिए।” दाऊद को महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व सौंपे गए, लेकिन उसने अपनी विनम्रता को संरक्षित रखा और लोगों का और राजसी परिवार दोनों का प्रेम जीत लिया। PPHin 679.1

    “और जहाँ भी शाऊल दाऊद को भेजता था वहाँ वह जाकर बुद्धिमानी के साथ काम करता था, अतः शाऊल ने उसे योद्धाओं का प्रधान नियुक्त किया।” दाऊद बुद्धिमान और ईमानदार था, और यह प्रमाणित था कि परमेश्वर का आशीर्वाद उसके साथ था। शाऊल को कभी-कभी एहसास होता था कि इज़राइल के शासन के लिये वह स्वयं अयोग्य है, और उसे लगता था कि राज्य परमेश्वर से निर्देशप्राप्त करने वाले के साथ जुड़े रहने में अधिक सुरक्षित रहेगा । शाऊल को आशा थी कि दाऊद के साथ उसका सम्बन्ध उसके लिये भी सुरक्षा होगा। क्‍योंकि दाऊद पर परमेश्वर की कृपा-दृष्टि थी और परमेश्वर उसकी ढाल था, युद्ध के समय वह शाऊल के लिये बचाव हो सकता था।PPHin 679.2

    यह परमेश्वर का प्रयोजन था जिसने दाऊद का सम्बन्ध शाऊल से जोड़ा था। यह उसे राष्ट्र का विश्वास प्राप्त करने के योग्य ठहराता।। शाऊल की शत्रुता के माध्यम से जो कठिनाईयाँ उसके जीवन में आईं, उनसे उसने परमेश्वर पर निर्भर होना और अपना पूरा विश्वास उसमें रखना सीखा। दाऊद और योनातन की मित्रता भी, इज़राइल के भावी राजा के जीवन को सुरक्षित रखने के लिये, परमेश्वर की योजना थी। इन सभी बातों में परमेश्वर दाऊद और इज़राइलियों के लिये अनुग्रहकारी उद्देश्य कार्यान्वित कर रहा था। PPHin 679.3

    लेकिन शाऊल ज्यादा दिनों तक दाऊद के प्रति मित्रवत नहीं रहा। जब शाऊल और दाऊद पलिश्तियों से युद्ध करके लौट रहे थे, “तब स्त्रियाँ सब इज़राइली नगरों से, नाचती और गाती हुई प्रसन्नतापूर्वक, डफ और वाद्य-झऑयंत्रों के साथ, शाऊल राजा के स्वागत के लिये निकलकर आई।” एक समूह न गाया, “शाऊल ने तो हजारों को मारा”, और दूसरे समूह ने राग को पकड़ते हुए जबाव दिया, “परन्तु दाऊद ने लाखों को मारा है।” ईर्ष्या की दुष्टात्मा ने राजा के हृदय में प्रवेश किया। वह कोधित हुआ क्योंकि इज़राइल की स्त्रियों के गीत में दाऊद की उससे अधिक प्रशंसा की गई थी। इस द्वेषपूर्ण भावनाओं को दबाने के बजाय, उसने अपने चरित्र की कमजोरी का प्रदर्शन किया और वह बोला, “उन्होंने दाऊद के लिये लाखों और मेरे लिये हजारों कोही ठहराया, इसलिये राज्य को छोड़ अब उसेऔरक्या मिलना बाकी है?PPHin 679.4

    अनुमोदन या प्रशंसा की चाह शाऊल के चरित्र का सबसे बड़ा दोष था। इस गुण का उसके विचारों और कृत्यों पर नियन्त्रणकारी प्रभाव था, हर चीज प्रशंसा और आत्म-उत्थान की अभिलाषा से चिन्हित थी । लोकप्रिय वाहवाही का निम्न स्तर, सही और गलत का उसका स्तर था। जो मनुष्य को प्रसन्‍न रखने के लिये जीता है, वह मनुष्य सुरक्षित नहीं रहता, और वह परमेश्वर की प्रशंसा को पहला स्थान नहीं देता। शाऊल मनुष्य के अनुमान में प्रथम होने का महत्वाकांक्षी था, और जब यह प्रशंसा गीत गाया गया, शाऊल के मन में दृढ़ विश्वास हो गया कि दाऊद लोगों का मन जीत लेगा और उसके स्थान पर राज करेगा।PPHin 680.1

    शाऊल ने ईर्ष्या की भावना को अपने हृदय में स्थान दिया जिससे उसकी आत्मा विषाक्त हो गई। भविष्यद्बक्ता शमूएल ने उसे शिक्षा दी थी कि परमेश्वर जो चाहता है वह करता है और उसे कोई नहीं रोकता, लेकिन इसके बावजूद शाऊल ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसे परमेश्वर की योजनाओं या सामर्थ्य का सच्चा ज्ञान नहीं था। इज़राइल का राजा अपनी इच्छा को सनातन परमेश्वर की इच्छा के विरूद्ध खड़ा कर रहा था। इज़राइल राज्य पर राज करते हुए शाऊल ने अपनी स्वयं की भावना को नियन्त्रित करना नहीं सीखा था। उसने अपने निर्णय को अपने आवेग द्वारा तब तक नियन्त्रित होने दिया, जब तक कि वह आवेग की आग में न कूद पड़ा। उसे कोध के दोरे पड़ते थे, जब वह उसकी इच्छा का विरोध करने वाले की जान लेने को तैयार हो जाता था। इस पागलपन से वह निराशा और आत्म-अवमानना की अवस्था में आ जाता और पश्चताप उसकी आत्मा पर हावी हो जाता। PPHin 680.2

    उसे दाऊद का वीणा-वादन सुनना अच्छा लगता था और उस समय के लिये दुष्टात्मा उससे दूर हो जाती थी, लेकिन एक दिन जब नौजवान उसकी सेवा-टहल कर रहा था और अपनी वीणा के मधुर संगीत के साथ परमेश्वर की स्तुति में गीत गा रहा था, शाऊल ने अचानक से संगीतज्ञ पर अपना भाला दे मारा; उसका उद्देश्य दाऊद की जान लेना था। परमेश्वर के हस्तक्षेप से दाऊद सुरक्षित रहा, और बिना घायल हुए झुँझलाए हुए राजा के कोध से बचने के लिये भाग गया। PPHin 681.1

    जैसे-जैसे शाऊल की दाऊद के प्रति नफरत बढ़ती गई, वह उसकी जान लेने के अवसर को ढूंढने के लिये और भी अधिक सतक॑ हो गया, लेकिन परमेश्वर द्वारा अभिषिक्त के विरूद्ध उसकी कोई भी योजना सफल नहीं हुईं। शाऊल ने स्वयं को उस पर अधिकार करने वाली दुष्टात्मा के नियन्त्रण में दिया, जबकि दाऊद उसमें विश्वास रखता था जो सम्मति देने में सामथ्थ्यवान है और बचा कर निकाल लाने में बलवन्त है। नीतिवचन 9:10 में लिखा है, “प्रभु का भय ज्ञान की शुरूआत है” और दाऊद परमेश्वर से लगातार उसके आगे-आगे चलने की प्रार्थना करता था। PPHin 681.2

    अपने प्रतिद्वंद्वी की उपस्थिति से मुक्त होने की इच्छा से, राजा ने उसे अपने पास से हटाकर, एक हजार से भी अधिक के ऊपर योद्धाओं का प्रधान नियुक्त किया......लेकिन सम्पूर्ण इज़राइल और यहूदा दाऊद से प्रेम करते थे। लोगों शीघ्र ही भाप लिया कि दाऊद एक सक्षम व्यक्ति था और यह कि उसके हाथों के सुपुर्द किये कार्यों को वह बुद्धिमानी और कौशल से प्रबन्धित करता था। नवयुवक के परामर्श प्रबुद्ध और विवेकशील थे और अनुकरण के लिये सुरक्षित प्रमाणित हुए, जबकि शाऊल का निर्णय कभी-कभी अविश्वसनीय और अविवेकी होते थे । PPHin 681.3

    हालाँकि शाऊल, दाऊद को नष्ट करने के अवसर के लिये हमेशा सतक रहता था, वह उससे डरता भी था क्‍योंकि यह स्पष्ट था कि प्रभु उसके साथ था। दाऊद के दोषरहित चरित्र ने राजा के कोध को जागृत किया, उसने मान लिया कि दाऊद की उपस्थिति व जीवन ही उसके लिये तिरस्कार थे, क्योंकि तुलना किये जाने पर उसका अपना चरित्र तुच्छ प्रतीत होता था। इसी ईर्ष्या ने शाऊल को दयनीय बना दिया और उसके सिंहासन के विषय को संशय में डाल दिया। चरित्र के इस दोष ने हमारे संसार में कितनी अनकहा अनर्थ किया है। जिस शत्रुता ने कैन के हृदय को उसके भाई हाबिल के विरूद्ध कर दिया क्‍योंकि हाबिल के कार्य धर्म के थे और परमेश्वर ने उसका मान रखा और उसके अपने कार्य बुराई के थे जिसके कारण प्रभु ने उसे आशीषित नहीं किया, वही शत्रुता शाऊल के हृदय में विद्यमान थी। ईर्ष्या अभिमान की संतान है, और यदि इसे बढ़ावा दिया जाता है तो यह घृणा और अनन्त: प्रतिशोध और हत्या की ओर ले जाती है। शाऊल के कोध को उसके विरूद्ध उत्तेजित करने में, जिसने उसे कोई हानि नही पहुँचाई थी, शैतान ने अपने निज चरित्र का प्रदर्शन किया।PPHin 681.4

    राजा ने दाऊद पर कड़ी निगरानी रखी, अविवेकहीनता या उतावलेपन के किसी अवसर की आशा में जिसे वह उसका अपमान करने के लिये, बहाने के रूप में उपयोग कर सकता था। उसे लगा कि वह तभी सन्तुष्ट होगा जब नौजवान के प्राण ले लेगा और उसके बावजूद अपने दुष्कर्म के लिये प्रजा के सम्मुख न्यायसंगत ठहराया जाएगा। उसने दाऊद से पलिश्तियों के विरूद्ध और अधिक शक्ति के साथ युद्ध करने का आग्रह कर, और उसकी बहादुरी के लिये पारितोषिक के रूप में राज घराने की ज्येष्ठ पुत्री का विवाह उसके साथ करने की प्रतिज्ञा कर, उसके लिये एक जाल बिछाया। इस प्रस्ताव पर दाऊद ने कहा, “में क्या हूँ और मेरा जीवन क्‍या है, और इज़राइल मे मेरे पिता का कुल कया है, कि मैं राजा का दामाद हो जाऊं? राजा ने अपनी पुत्री का विवाह किसी अन्य पुरूष से करवाकर अपनी निष्ठाहीनता प्रकट की । PPHin 682.1

    शाऊल की सबसे छोटी बेटी मीकल दाऊद से प्रीति रखने लगी, जिससे शाऊल को अपने प्रतिद्वंद्वी के विरूद्ध षड़यन्त्र रचने का एक और अवसर मिल गया । मीकल का हाथ दाऊद के हाथ में देने का प्रस्ताव रखा गया और शर्त यह थी उसे राष्ट्र के शत्रुओं की एक निर्धारित संख्या की पराजय व हत्या का प्रमाण देना था। “शाऊल की योजना थी कि पलिश्तियों से दाऊद को मरवा डाले” लेकिन पमरेश्वर ने अपने दास की रक्षा की। दाऊद राजा का दामाद बनने के लिये युद्ध में विजयी होकर लौटा। “शाऊल की पुत्री मीकल उससे प्रीति रखती थी” और कोधित राजा ने देखा कि उसका षड़यन्त्र उसके उत्थान में परिणामित हुआ जिसे वह नष्ट करना चाहता था। उसका इस बात में विश्वास और दृढ़ हो गया कि दाऊद की वह व्यक्ति था जिसे परमेश्वर ने उससे उत्तम कहा था, और जो उसके स्थान पर इज़राइल के सिंहासन पर बैठकर राज करेगा। अपना मुखौटा उतार कर, उसने योनातन और दरबार के अधिकारियों को अपनी घृणा के पात्र दाऊद को मार डालने का आदेश दिया। PPHin 682.2

    योनातन ने दाऊद को राजा के प्रयोजन से अवगत करया और उसे तब तक छुपने को कहा, जब तक वह अपने पिता से इज़राइल को छुटकारा दिलाने वाले के प्राण न लेने की विनती करे। योनातन ने राजा के सम्मुख राष्ट्र का अस्तित्व और सम्मान संरक्षित करने में दाऊद का योगदान प्रस्तुत किया, और उस जघन्य अपराध के बारे में भी कहा जिसका दोषी वह होगा जो उस व्यक्ति की हत्या करेगा जिसका परमेश्वर ने शत्रुओं को तितर-बितर करने के लिये उपयोग किया था। राजा का अंत: करण प्रभावित हुआ और उसका हृदय नग्र हुआ। “तब शाऊल ने शपथ ली, यहोवा के जीवन की शपथ, दाऊद मार डाला न जाएगा।” दाऊद को शाऊल के पास लाया गया, और वह पहले की तरह उसके सामने रहकर उसकी सेवा टहल करने लगा।PPHin 683.1

    तब इज़राइलियों और पलिश्तियों के बीच युद्ध फिर से होने लगा, और दाऊद ने शत्रुओं के विरूद्ध सेना का नेतृत्व किया। इब्रियों की बहुत बड़ी विजय हुई, और राज्य के लोगों ने दाऊद की बुद्धिमत्ता और वीरता की प्रशंसा की। इस कारण दाऊद के प्रति शाऊल की पहले वाली कड़ावहट उभर आईं। जब नौजवान राजा के सम्मुख वीणा-वादन कर, महल को मधुर संगीत से भर रहा था, शाऊल का जुनून उस पर हावी हो गया, और उसने दाऊद पर भाला फेंका, यह सोचकर कि भाला उसे बेधता हुआ दीवार में धैँस जाएगा, लेकिन परमेश्वर के स्वर्गदूत ने उस घातक हथियार की दिशा बदल दी। दाऊद बच कर निकल गया और अपने घर भाग गया। शाऊल ने गुप्तचरों को भेजा जिससे के प्रातः:काल को जब वह बाहर निकल कर आए तो वे उसे पकड़ ले और उसका जीवन समाप्त कर दे। PPHin 683.2

    मीकल ने दाऊद को अपने पिता के उद्देश्य के बारे में सूचित किया। उसने दाऊद से आग्रह किया कि वह अपने प्राणों की रक्षा के लिये वहाँ से भाग जाए, और उसने उसे खिड़की के रास्ते नीचे उतारा, ताकि वह भाग सकं। वह भागकर रामा में शमूएल के पास गया, और भविष्यद्क्ता ने पलायक का स्वागत किया क्योंकि उसे राजा की अप्रसन्‍नता का डर नहीं था। राजमहल की तुलना में शमृूएल का घर एक शान्त स्थान था। यहाँ पर पहाड़ के बीच, प्रभु द्वारा सम्मीनित दास ने अपना कार्य चालू रखा। भविष्यद्वक्ताओं का एक समूह उसके साथ था और उनन्‍्होंनें परमेश्वर की इच्छा का गहन अध्ययन किया और शमूएल के मुख से निकलने वाले निर्देशों के शब्दों को श्रद्धापूर्वक सुना। इज़राइल के शिक्षक से प्राप्त शिक्षा दाऊद के लिये अनमोल थी। दाऊद को विश्वास था कि शाऊल की सेना को इस पवित्र जगह पर आक्रमण करने की आज्ञा नहीं दी जाएगी, लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उस कोधित राजा के प्रकाशहीन मन को कोई स्थान पवित्र नहीं लगता था। दाऊद के साथ शमूएल के सम्बन्ध ने शाऊल की ईर्ष्या को जागृत किया, यह सोचकर कि सम्पूर्ण इज़राइल में परमेश्वर भविष्यद्वक्ता के रूप में श्रद्धा प्राप्त के प्रभाव से उसके के प्रतिद्वंद्धी की उन्‍नति होती। जब राजा को पता चला कि दाऊद कहाँ है, उसने अपने अधिकारियों को भेजकर उसे गिबा लाने को कहा, जहाँ वह उसे मरवा डालना चाहता था।PPHin 683.3

    दूत दाऊद के प्राण लेने के अभिप्राय से वहाँ से गए। लेकिन शाऊल से जो ‘महान’ था अर्थात परमेश्वर ने उन्हें नियन्त्रित किया। रास्ते में उनका सामना अदृश्य स्वर्ग॑दूतों से हुआ, जैसा कि इज़राइल को श्रापित करने जाते समय बिलाम के साथ हुआ था। वे भविष्य में घटित होने वाले भविष्यसूचक कथनों का उच्चारण करने लगे, और उन्होंने यहोवा के तेजस्व और गौरव की घोषणा की। परमेश्वर ने मनुष्य के कोध का खण्डन किया और बुराई को बाधित करने के उसके सामर्थ्य को प्रकट किया, और अपने दास को स्वर्गदूतों की सुरक्षा के घेरे में रखा।PPHin 684.1

    दाऊद को अधीकत करने के लिये उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा था, जब उसे सूचना मिली, लेकिन परमेश्वर की फटकार का आभास होने की बजाय, वह और भी भड़क गया, और उसने अन्य दूत भेजे। इन्हें भी परमेश्वर के आत्मा ने अपने वश में किया, और वे भी पहले वाले दूतों की तरह भविष्यद्वाणी करने लगे। राजा ने तीसरा दूतगण भेजा, लेकिन भविष्यद्वक्ताओं की संगत में आकर वे भविष्यद्वाणी करने लगे, क्‍योंकि परमेश्वर का प्रभाव उन पर भी हुआ। शाऊल ने स्वयं जाने का निश्चय किया, क्योंकि उसकी भयानक शत्रुता अदम्य हो गई थी। वह दाऊद को मारने के लिये एक और अवसर के लिये न रूकने के लिये संकल्पित था। वह चाहता था कि जैसे ही दाऊद उसकी पहुँच में आए, परिणाम की विंता किये बगैर वह उसे मार डाले।PPHin 684.2

    लेकिन रास्ते में उसका सामना एक स्वर्गदूत से हुआ जिसने उसे नियन्त्रित किया। पमरेश्वर के आत्मा ने उसे अपनी शक्ति में जकड़ लिया, और वह परमेश्वर से प्रार्थना करता हुआ आगे बड़ज्ञ और बीच-बीच में भविष्यवाणी करता गया और पवित्र धुन गुनगुनाता गया। उसने मसीह के संसार के उद्धारकर्ता के रूप में आने की भविष्यद्वाणी की। जब वह रामा में शमूएल के घर आया, उसने अपने पद की प्रतीकात्मक बाहरी वस्त्र अलग रखे और दिन-भर पवित्र आत्मा के प्रभाव में शमूएल और उसके शिष्यों के आगे लेटा रहा। लोग इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिये एकत्रित हो गए और राजा के अनुभव का वृतांत सब जगह सुनाया गया। इस प्रकार फिर से उसके राज के समाप्त होने के समय इज़राइल में यह लोकोक्ति बन गई कि शाऊल भी भविष्यद्वक्ताओं की श्रेणी में था।PPHin 684.3

    एक बार फिर सताने वाला अपने प्रयोजन में विफल रहा। उसने दाऊद को आश्वस्त किया कि उसके प्रति उसकी कोई शत्रुता नहीं, लेकिन दाऊद को राजा के पश्चताप में थोड़ा ही विश्वास था। अवसर पाते ही वहबच निकला, इस डर से कि हीं राजा को मनोदशा बदल कर पहले सी ना हो जाए। उसकाह्ृददय उसके भीतर घायल हो गया और वह योनातन को एक बार देखने के लिये तड़प उठा। अपने निर्दोष होने के प्रति सचेत, वह राजा के पास गया और उसने एक भावुक निवेदन किया। उसने पूछा, “मैंने क्या किया है? मुझ से क्या पाप हुआ? मैंने तेरे पिता की दृष्टि में ऐसा कौन सा अपराध किया है कि वह मेरे प्राण लेने की ताक में रहता है?” योनातन का विश्वास था उसके पिता ने अपना लक्ष्य बदल लिया था और अब वह दाऊद के प्राण नही लेना चाहता था। और योनातन ने दाऊद से कहा, “ऐसी बात नहीं है, तू मारा न जाएगा। सुन मेरा पिता मुझ को बिना बताए न तो कोई बड़ा काम करता है और न कोई छोटा, फिर वह ऐसी बात को मुझसे क्‍यों छिपाएगा? ऐसी कोई बात नहीं है।” पमरेश्वर की शक्ति के इतने अपूर्व प्रदर्शनों के पश्चात्‌ योनातन को अपने पिता द्वारा दाऊद को हानि पहुँचाये जाने का विश्वास नहीं हो रहा था, क्‍योंकि ऐसा करना परमेश्वर के प्रति विरोध प्रकट करता। लेकिन दाऊद को विश्वास न था। अत्यन्त गम्भीरता से उसने योनातन से कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ और तेरे जीवन की शपथ, निःसन्देह मेरे और मृत्यु के बीच डग भर का ही अन्तर है।”PPHin 685.1

    नये चाँद के समय इज़राइल में एक पवित्र पर्व मनाया जाता था। यह पर्व योनातन और दाऊद के साक्षात्कार के अगले दिन पड़ा। इस भोज पर दोनो नौजवानों को राजा की मेज पर उपस्थित होने की अपेक्षा थी,लेकिन दाऊद उपस्थित होने से डर रहा था; और इसलिये यह प्रबन्ध किया गया कि दाऊद बेतलहम में अपने भाईयों से मिलने जाए।PPHin 685.2

    लौटने पर उसे भोज-स्थल से कुछ ही दूरी पर खेत में तीन दिनों तक राजा की दृष्टि से छिपे रहना था, और योनातन को इस बात का शाऊल पर प्रभाव को देखना था। यदि यिशै के पुत्र के ठौर-ठिकाने के बारे में पूछताछ हो तो योनातन को कहना था कि वह अपने पिता के कल द्वारा बलि की विधि में उपस्थित होने के लिये गया था। यदि राजा कोध प्रकट ना करके कहे, “ठीक है” तो दाऊद का दरबार में आना सुरक्षित था। लेकिन यदि वह उसकी अनुपस्थिति पर कोधित हो, तो यह दाऊद के लिये भाग जाने को चिन्ह होगा।PPHin 686.1

    भोज के प्रथम दिन राजा ने दाऊद की अनुपस्थिति के बारे में कोई पूछताछ नहीं की, लेकिन जब दूसरे दिन भी उसका स्थान खाली देखा, तो उसने पूछा “क्या कारण है कि यिशै का पुत्र न तो कल भोजन पर आया था, और न आज ही आया है?” योनातन ने शाऊल को उत्तर दिया कि “दाऊद ने बेतलहम जाने के लिये मुझ से विनती करके छूटटी माँगी और कहा, मुझे जाने दे, क्योंकि उस नगर में हमारे कल का यज्ञ है, और मेरे भाई ने मुझ को उपस्थित होने की आज्ञा दी है। और यदि मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो तो मुझे जाने दे कि मैं अपने भाईयों से भेंट कर आऊँ। इसी कारण वह राजा की मेज पर नहीं आया।” जब शाऊल ने यह सुना उसका कोध आपे से बाहर हो गया। उसने घोषणा की कि जब तक दाऊद जीवित रहेगा, योनातन इज़राइल के सिंहासन पर नहीं बैठे और उसे दाऊद को तुरन्त बुलवाने का आदेश दिया, ताकि उसे मृत्यु के घाट उतारा जा सके। “वह क्‍यों मारा जाए? उसने क्‍या किया है?” राजा से की गईं विनती ने उसके कोध में भी शैतानी बना दिया और जिस भाले से वह दाऊद को बेधना चाहता था, उसने वही भाला अपने ही पुत्र पर दे मारा। PPHin 686.2

    राजपुत्र दुखित होकर कोध में, राजा की उपस्थिति से चला गया, और भोज में अतिथि न रहा। उसकी आत्मा दुख के बोझ से भारी थीजब वह नियत समय पर उस स्थल पर पहुँचा जहाँ दाऊद को उसके प्रति राजा के प्रयोजनों की जानकारी मिलनी थी। दोनो एक-दूसरे के गले लगकर बहुत रोए। राजा के आवेग के अनच्धेपन ने नौजवानों के जीवन पर काली छाया सी डाल दी और उनका दुख की गहराई अवर्णनीय थी। जब वे अलग-अलग रास्तों पर जाने के लिये अलग हुए योनातन के अन्तिम शब्द दाऊद के कानों में पड़े “कुशल से चला जा, क्योंकि हम दोनों ने एक-दूसरे से यह कहकर यहोवा के नाम की शपथ खाई है, कि यहोवा मेरे और तेरे मध्य और मेरे और तेरे वंश के मध्य में सदा रहे।PPHin 686.3

    राजा का पुत्र गिबा को लौट गया और दाऊद शीघ्रता से कुछ ही मील की दूरी पर, बिन्यामीन के गोत्र के नगर नोब पहुँचा। मिलाप वाले तम्बू को शिलो से इस स्थान पर लाया गया था और यहाँ पर महायाजक अहीमेलेक पुरोहिती करता था। दाऊद नहीं जानता था कि परमेश्वर के दास के अलावा, वह शरण के लिये किसके पास भाग कर जाए। जब दाऊद चेहरे पर दुख और चिन्ता के भाव लिये, अकेला और जल्‍दी में महायाजक के पास आया, तो वह उसे अचरज से देखने लगा। उसने दाऊद से वहाँ आने का कारण पूछा। नौजवान में पकड़े जाने का भय बना हुआ था, और इस परमसंकट में उसने झूठ का सहारा लिया। उसने महायाजक से कहा कि उसे राजा द्वारा एक गुप्त कार्य के लिये भेजा गया था, और इस कार्य को अत्यन्त शीघ्रता से किया जाना था। यहाँ पर उसने परमेश्वर में उसके विश्वास की कमी दिखाई, और उसके पाप के कारण महायाजक की मृत्यु हो गईं। यदि तथ्यों को स्पष्ट रूप से बता दिया गया होता, अहीमेलेक को ज्ञात होता कि उसके जीवन की सुरक्षा के लियेकौन सा रास्ता अपनाना था। परमेश्वर बड़े से बड़े खतरे में भी अपने लोगों से सत्यनिष्ठा की अपेक्षा करता है। दाऊद ने याजक से पाँच रोटी माँगी। परमेश्वर के दास के पास पवित्र रोटी की छोड़ और कुछ न था, लेकिन दाऊद उसका सन्देह दूर करने में सफल रहा, और अपनी भूख शान्त करने के लिये उसने रोटी प्राप्त कर ली। PPHin 687.1

    अब एक नया खतरा सामने आया। शाऊल के चरवाहों का मुखिया दोएग, जो इब्रियों के विश्वास को मानता था, आराधना के स्थान पर अपनी शपथ पूरी करने आया। दोएग को देखते ही दाऊद ने शीघ्र ही शरण के लिये कोई अन्य स्थान सुरक्षित करने का और बचाव की आवश्यकता पड़ने पर अपनी सुरक्षाके लिये कोई हथियार प्राप्त करने का संकल्प किया। उसने अहीमेलेक से तलवार माँगी और उससे कहा गया कि उसके पास गोलियत की तलवार के अलावा दूसरी तलवार न थी, और उसने वह पवित्र स्थान में स्मारक के रूप में रखी थी। दाऊद ने उत्तर दिया, “उसके तुल्य कोई नहीं, वही मुझे दे।” जिस तलवार का उपयोग उसने पलिश्तियों के श्रवीर को नष्ट करने में किया था, उसे हाथ में पकड़ते ही उसका साहस पुनः उत्पन्न हो गया। PPHin 687.2

    वहाँ से भागकर, दाऊद गत के राजा आकीश के पास गया, क्‍योंकि उसे लगता था कि शाऊल के अधीकृत क्षेत्र से अधिक वह अपने लोगों के शत्रुओं के बीच सुरक्षित था। लेकिन आकीश का सूचित किया गया कि दाऊद वही व्यक्ति था जिसने वर्षा पूर्व पलिश्ती श्ूरवीर को मार डाला था, और अब जिसने इज़राइल के शत्रुओं से शरण माँगी थी, उसने स्वयं को खतरे में पाया। लेकिन पागलपन का ढोंग करते हुए, उसने अपने शत्रुओं को धोखा दिया और वहाँ से बच कर निकल गया।PPHin 688.1

    दाऊद की पहली गलती थी कि उसने नोग में परमेश्वर पर विश्वास नहीं किया, और उसकी दूसरी गलती आकीश के सम्मुख उसका धोखा था। दाऊद ने अपने चरित्र के उत्कृष्ट विशेषताओं का प्रदर्शन किया था, और उसकी नैतिकता ने उसे लोकप्रिय बनाया था, लेकिन जब उस पर विपत्ति आईं, उसका विश्वास हिल गया और उसकी मानुषिक कमजोरी सामने आ गयी। वह प्रत्येक व्यक्ति में एक धोखेबाज और गुप्तचर देखता था। एक घोर संकट के समय दाऊद ने परमेश्वर की ओर विश्वास की दृष्टि डालीथी , और पलिश्ती राक्षस को नष्ट कर दिया था। वह परमेश्वर में विश्वास करता था, और उसके नाम से आगे बड़ा। लेकिन जब उसका पीछा किया गया और उसे सताया गया, दुविधा और दुख ने उसकी दृष्टि से स्वर्गीय पिता को दूर कर दिया।PPHin 688.2

    लेकिन यह अनुभव दाऊद को बुद्धिमान बना रहा था, क्‍योंकि इसने उसको उसकी कमजोरी का और पमरेश्वर पर अपनी स्थायी निर्भरता की आवश्यकता का एहसास कराया। निराश और खिन्‍न आत्माओं पर पमरेश्वर के आत्मा का मीठा प्रभाव कितना अनमोल है, जो हतोत्साहितों को प्रोत्साहित करता है, निर्बल को बलवन्त बनाता है और परमेश्वर के परखे हुए दासों को साहस और सहायता प्रदान करता है। कितना महान है, हमारा परमेश्वर जो दोषियों के साथ नग्रता से व्यवहार करता है और कठिनाई में जब हम अत्यन्त दुखी हो जाते है वह अपनी धैर्यशशीलता और नम्रता प्रकट करता है।PPHin 688.3

    परमेश्वर की संतान की ओर से प्रत्येक विफलता उनमें विश्वास की कमी के कारण होती है। जब हमारी आत्माको अन्धकार की परछाईयाँ घेर लेती है, जब हमें मार्गदर्शन और प्रकाश की आवश्यकता होती है, हमें ऊपर की ओर देखना चाहिये, अन्धकार के परे प्रकाश होता है। दाऊद को एक क्षण के लिये भी परमेश्वर में अविश्वास नहीं दिखाना चाहिये था। उसके पास परमेश्वर में विश्वास करने का कारण था, वह प्रभु का अभिषिक्त था, और खतरों के बीच उसकी सुरक्षा स्वर्गदूतों द्वारा की गई थी, वह अदभूत कार्य करने के लिये साहस की हथियार से लैस था, और यदि वह अपने मन से, उसे कठिन परिस्थिति का निकाल देता, जिसमें उसे डाला गया था, और परमेश्वर के सामर्थ्य और तेज पर विचार करता तो वह मृत्यु की परछाईयों के मध्य भी शांति से रहता; उसे विश्वास के साथ परमेश्वर की इस प्रतिज्ञा को दोहराना चाहिये था, “चाहे पहाड़ हट जाएँ और पहाड़ियाँ टल जाएँ, तौभी मेरी करूणा तुझ पर से कभी न हटेगी, और मेरी शान्तिदायक वाचा न टलेगी यहोवा, जो तुझ पर दया करता है, उसका वही वचन है ।”-यगयाह 54:10।PPHin 688.4

    यहूदा के पहाड़ों के बीच, शाऊल द्वारा उसका पीछा किये जाने से शरण प्राप्त की। दाऊद वहाँ से चला, और बच कर अदुल्लाम की गुफा में पहुँच गया, जो ऐसा स्थान था, जहाँ से एक छोटी सी सेना, एक विशाल सेना के विरूद्ध खड़ी रह सकती थी। “यह सुनकर उसके भाई, वरन्‌ उसके पिता का समस्त घराना वहाँ उसके पास गया।” यह जानते हुए कि दाऊद के उनके साथ सम्बन्ध के कारण किसी भी समय शाऊल के निराधार सन्देह उनकी ओर निर्देशित हो सकते थे, दाऊद का परिवार सुरक्षित नहीं महसूस कर सकता था। अब उन्हें ज्ञात हो चुका था- जो इज़राइल में सार्वजनिक तौर पर ज्ञात होने को था- कि परमेश्वर ने अपने लोगों के भावी शासक के रूप में दाऊद को चुना था, और उन्हें विश्वास था कि उसके एक एकांत गुफा में पलायक होने के बावजूद, वे एक ईष्यालु राजा के विवेकशून्य पागलपन के समक्ष होने से अधिक उसके साथ सुरक्षित होंगे। PPHin 689.1

    अबदुल्लाम की गुफा में वे प्रेम और करूणा में एक हो गए। यिशै का पुत्र अपनी आवाज और वीणा से मधुर संगीत उत्पन्न करता और गाता, “देखो, यह क्या ही भली और मनोहर बात है कि भाई लोग आपस में मित्र रहे है।”-भजन संहिता 133:1। उसने अपने ही भाईयों के अविश्वास की कड़ावहट को चखा था, और असामंजस्य का स्थान लेने वाले सामजस्यने पलायक के हृदय को प्रसन्‍न किया। यहाँ पर दाऊद ने सतावनवां भजन लिखा।PPHin 689.2

    कुछ ही समय में वे लोग भी दाऊद की टोली के साथ जुड़ गए जो राजा की बलपूर्वक वसूली से बचाना चाहते थे। कई ऐसे थे जिनका इज़राइल के राजा पर से विश्वास उठ गया था, क्योंकि वे देख सकते थे कि उसे प्रभु के आत्मा का मार्गदर्शन प्राप्त नहीं था। “और जितने संकट में पड़ थे, और जितने ऋणी थे, और जितने उदास थे, वे सब उसके पास इकट॒ठे हुए, और वह उनका प्रधान हुआ। और कोई चार सौ पुरूष उसके साथ हो गए।” यहाँ दाऊद के पास अपना छोटा सा राज्य था और उसमें व्यवस्था और अनुशासन प्रचलित था। लेकिन पहाड़ों के इस विश्राम स्थल में भी वह सुरक्षित महसूस नहीं करता था, क्योंकि उसे लगातार प्रमाण मिलते थे कि राजा ने उसकी हत्या का प्रयोजन समाप्त नहीं किया था। PPHin 689.3

    उसने मोआब के राजा के पास अपने माता-पिता के लिये शरण स्थान दूँढा और फिर परमेश्वर के एक भविष्यद्वक्ता के द्वारा खतरे की चेतावनी पाकर वह अपने छुपने के स्थान से निकलकर हेरेत के जंगल में चला गया। जिस अनुभव से दाऊद गुजर रहा था, वह अनावश्यक या व्यर्थ नहीं था। पमरेश्वर उसे एक बुद्धिमान योद्धा और एक न्यायसंगत व दयालु राजा बनने के सुयोग्य करने की शिक्षा दे रहा था। पलायकों की टोली के साथ वह शाऊल के कार्यभार को लेने की तैयारी प्राप्त कर रहा था, क्योंकि शाऊल अपने हिंसक आवेग और अन्धी मूर्खता के कारण सरासर अयोग्य हो रहा था। परमेश्वर की सम्मति से दूर होकर वह उस बुद्धिमत्ता और धीरता को कायम नहीं रख सकता, जो उसे न्यायसंगत और बुद्धिमानी से कार्य करने के योग्य बनाते है। पमरेश्वर की बुद्धिमता द्वारा अनियन्त्रित, मनुष्य की बुद्धिमता का अनुसरण करने से बढ़कर भयानक और निराशाजनक कोई भी मूर्खता नहीं हो सकती। PPHin 690.1

    शाऊल दाऊद को अबदुल्लम की गुफा में जाल में फंसा कर बन्दी बनाने की तैयारी कर रहा था, और जब पता चला कि दाऊद ने अपना शरण स्थान छोड़ दिया है, राजा अत्यन्त कोधित हुआ। दाऊद का पलायन शाऊल के लिये रहस्य था। उसे विश्वास हो गया कि उसकी छावनी में देशद्रोही थे, जिन्होंने यिशै के पुत्र को उसके षड़यन्त्र निकटता की सूचना दी थी।PPHin 690.2

    उसने अपने प्रधानों को इस बात की पुष्टि की कि उसके विरूद्ध षड़यन्त्र रचा गया था और उसने उन्हें सम्मानीय पद और मूल्यवान उपहारों की भेंट की घूस देकर उनसे दाऊद की सहायता करने वालों के नाम जानने का प्रयत्न किया। एदोमी दोएग भोदियं बन गया। महत्वाकांक्षा और लालच, और उसके पापों की निंदा करने वाले याजक के प्रति घृणा से प्रभावित होकर, दोएग ने दाऊद की अहीमेलेक से भेंट करने की सूचना दी, और इस बात को ऐसे प्रस्तुत किया, जिससे परमेश्वर के दास के प्रति शाऊल का कोध भड़क उठा। उस हानिप्रद जीभ के नरक की आग से प्रज्वलित शब्दों ने शाऊल के हृदय के सबसे बुरे आवेग को उत्पन्न किया। कोध में पागल होकर, उसने घोषणा की कि याजक के सम्पूर्ण परिवार को नष्ट कर दिया जाए। और उस भयानक आज्ञा का पाजन किया गया। केवल अहीमेलेक ही नहीं,वरन उसके पिता के घराने के-“सन के वस्त्र का एपोद पहिने हुए पचासी पुरूषों का” राजा के आदेश पर दोएग के हत्यारे हाथों द्वारा घात किया गया।PPHin 690.3

    “और याजकों के नगर नोब को उसने स्त्रियों, पुरूषों और बाल-बच्चों, और दृधपीतों, और बेलों, गधों और भेड़-बकरियों समेत तलवार से मार डाला ।” यह था वह जो शाऊल शैतान के नियन्त्रण में होकर कर सकता था। जब परमेश्वर ने कहा था कि अमेलिकियों के पापों का घड़ा भर चुका था और उसने उन्हें पूर्णतया नष्ट करने की आज्ञा दी थी, तो शाऊल ने विनाश किए जाने वालों पर तरस खाकर उन्हें छोड़ दिया था, लेकिन अब परमेश्वर की आज्ञा के बिना, शैतान के मार्गदर्शन में उसने परमेश्वर के याजकों को मरवा डाला और नोब वासियों का विनाश किया। पमरेश्वर के मार्गदर्शन को अस्वीकार करने वाले मानुषिक हृदय की विकता ऐसी होती है।PPHin 691.1

    इस कत्य ने समस्त इज़राइल को भयभीत कर दिया। यह अत्याचार उस राजा ने किया था जिसे उन्होंने चुना था, और यह उसने परमेश्वर का भय न मानने वालों राज्यों के राजाओं की तरह किया था। पवित्र सन्दूक उनके पास था, लेकिन जिन याजकों से उन्होंने पूछताछ की थी, वे तलवार से मार डाले गए थे। आगे क्‍या होना था? PPHin 691.2

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