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कुलपिता और भविष्यवक्ता - Contents
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    अध्याय 46—आशीष और श्राप

    यह अध्याय यहोशू 8 पर आधारित है

    आकान पर दण्डादेश के कियान्वन के पश्चात, यहोशू को योद्धाओं का संचालन करने की और ऐ प्रदेश के विरूद्ध अग्रसर होने का आदेश दिया गया। परमेश्वर का सामर्थ्य उसके लोगों के साथ था, और उन्होंने जल्द ही ऐ हो अपने अधिकार में ले लिया।PPHin 511.1

    सामरिक गतिविधियाँ तब स्थगित कर दी गई, ताकि सभी इज़राईली एक पवित्र धार्मिक समारोह में सम्बद्ध हो सके। लोग कनान में उपनिवेश प्राप्त करने के लिये उत्सुक थे, अभी तक उनके पास अपने परिवारों के लिये भू-खण्ड या घर नहीं थे, और इन्हें प्राप्त करने हेतु उन्हें कनानियों को बाहर भगाना आवश्यक था, लेकिन इस महत्वपूर्ण कार्य को आस्थगित करना उचित था, क्‍योंकि उन्हें इससे श्रेष्ठतर कर्तव्य पर पहले ध्यान देना था।PPHin 511.2

    अपनी धरोहर का स्वामित्व लेने से पूर्व, उन्हें परमेश्वर के साथ अपनी सत्यनिष्ठा की वाचा को दोहराना था। मूसा द्वारा दिये गए अन्तिम निर्देशों में, परमेश्वर की व्यवस्था के प्रति औपचारिक मान्यता के लिये शेकेम में, एबाल और गिरिज्जीम पर्वतों पर गोत्रों के दीक्षान्त समारोह के लिये दो बार निर्देश दिए गए थे। इन आज्ञाओं का पालन करने के लिये इज़राइल की सारी मण्डली, केवल पुरूष ही नहीं, वरन्‌ “स्त्रियाँ बाल बच्चे और उसके साथ रहने वाले परदेसी लोग” गिलगल में अपने डेरे छोड़कर, अपने शत्रुओं के देश में से होकर शेकेम की घाटी पहुँचे, जो प्रदेश के बीच में थी। हालाँकि के अपराजित शत्रुओं से घिरे हुए थे, जब तक वे परमेश्वर के प्रतिईमानदार थे, वे परमेश्वर की सुरक्षा में सुरक्षित थे। अब, जैसे कि याकूब के दिनों में, “उनके चारों ओर नगर निवासियों के मन में परमेश्वर की ओर से भय समा गया” (उत्पत्ति 35:5)और इब्रियों को सताया नहीं गया। PPHin 511.3

    इस विधिवत धर्म किया के लिये नियुक्त स्थान, उनके पूर्वजों के साथ उसके सम्बन्ध के कारण पहले से ही पवित्र था। यही पर अब्राहम ने कनान में यहोवा के लिये पहली वेदी खड़ी की थी। अब्राहम और याकूब, दोनो ने अपने तम्बू यहीं गाड़े थे। यहीं पर याकूब ने वह खेत खरीदा जिसमें गोत्रो को यूसुफ के मृत शरीर को मिट्टी देनी थी। यही पर वह क॒आँ था जो याकूब ने खोदा था और ओक का वह वृक्ष जिसके नीचे उसने अपने घराने की मूर्तिपूजक आकृतियों को गाड़ा था।PPHin 511.4

    चुना हुआ स्थान पूरे फिलिस्तीन के सबसे सुन्दर स्थानों में से एक था और इस भव्य और प्रभावशाली दृश्य के अभिनीत होने के लिये मंच होने योग्य था। वह सुन्दर घाटी, जैतून की वृक्ष वाटिकाओं से छितराए हुए हरे मैदान, बहते झरनो से निकली नदियों से तरित और अदभुत फलों से रत्नजड़ित बंजर पहाड़ो के बीच लुभाते हुए फैली हुई थी। तराई में आमने-सामने एबल और गिरिज्जिम लगभग एक-दूसरे के बिल्कुल समीप है, और निचले पर्वत स्कन्ध स्वाभाविक उपदेश मंच सा रूप देते प्रतीत होते हैं, जहां एक पहाड़ से बोले गए शब्द दूसरे पहाड़ पर स्पष्ट सुनाई देते है और पीछे की पहाड़ी ढाल विशाल जनसमूह के लिये स्थान प्रदान करती है।PPHin 512.1

    मूसा के निर्देशानुसार, ऐबाल पर्वत पर बड़े-बड़े पत्थरों का स्मारक खड़ा किया गया था। पलस्तर के प्रावरण से पहले से तैयार, इन पत्थरों पर, व्यवस्था लिखी हुई थी- ना केवल सिने पर्वत पर बोली गईं और पत्थर की पटियाओं पर उत्कीर्ण की हुई दस आज्ञाएं, लेकिन मूसा को संचारित किये गए और उसके द्वारा पुस्तक में लिखे गए नियम भी। इस स्मारकके समीप अपरिकष्त पत्थर की एक वेदी बनाई गई थी, जिस पर परमेश्वर के लिये बलि की भेंट चढ़ाई जाती थी। यह तथ्य कि वेदी को ऐबाल पर्वत पर खड़ा किया गया, वह पर्वत जो श्रापित था, महत्वपूर्ण था, यह दर्शाते हुए कि परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन करने के कारण, इज़राइल पर परमेश्वर का प्रकोप न्यायसंगत था और बलिदान की वेदी पर दर्शाए गए मसीह के प्रायश्चित के अभाव में यह उसी समय भुगतान पड़ सकता था।PPHin 512.2

    गोत्रों में से छः गोत्र लिया और राहेल के वंशज थे और ये गिरिज्जिम पर्वत पर ठहरे थे, और जो दासियों से उत्पन्न हुए थे, उन्होंने रूब्रेन और जेबुलून सहित, ऐबाल पर्वत पर स्थान ग्रहण किया, और सन्दूक उठाने वाले याजकों ने बीच की घाटी का स्थान लिया। संकेतक तुरही के स्वर द्वारा शान्त हो जाने की घोषण की गई, और फिर संपूर्ण निस्तब्धता में विशाल सभा की उपस्थिति में, पवित्र संदूक के पास खड़े हुए, यहोशू ने परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करने से मिलने वाली आशीषों को पढ़ कर सुनाया। गिरिज्जिम पर स्थित सभी गोत्रों ने ‘आमीन’” कहकर उत्तर दिया। फिर उसने श्रापों को पढ़ा और ऐबाल पर्वत पर ठहरे गोत्रों ने इसी प्रकार सहमति दी; सैंकड़ों आवाजें एक मनुष्य के स्वरसमान इस औपचारिक उत्तर के लिये मिल गए। इसके बाद मूसा द्वारा उनपर प्रकट किये गए अधिनियम और दण्डादेशों सहित, परमेश्वर की व्यवस्था को पढ़ा गया।PPHin 512.3

    इज़राइल ने सिने पर्वत पर व्यवस्था को प्रत्यक्षतः परमेश्वर के मुहँ से प्राप्त किया था, और उसके अपने हाथों से लिखे गए व्यवस्था के पवित्र सिद्धान्त अभी भी सन्दूक में संरक्षित थे। अब उन्हें दोबारा लिखा गया था, जहां उन्हें सब पढ़ सकते थे। सभी को कनान पर स्वामित्व को बनाए रखने से सम्बन्धित वाचा के प्रतिबन्धों को स्वयं देखने का विशेषाधिकार प्राप्त था ।सभी को वाचा के नियमों से सहमत होने को प्रकट करना था और आशीषों और श्रापों के पालन या उपेक्षा के सन्दर्भ में अपनी सहमति देनी थी। व्यवस्था को केवल स्मारक-पत्थरों पर ही नहीं लिखा गया, वरन्‌ समस्त इज़राइल के सुनने के लिये स्वयं यहोशू द्वारा पढ़ा गया। क॒छ ही सप्ताह पूर्व मूसा ने लोगों को उपदेश देते समय व्यवस्था विवरण की पूरी पुस्तक दी थी, लेकिन फिर भी यहोशू ने व्यवस्था को दोबारा पढ़ा।PPHin 513.1

    व्यवस्था के पढ़े जाने को केवल इज़राइली पुरूषों ने ही नहीं, वरन्‌ “सभी स्त्रियों और बाल बच्चों” ने भी सुना, क्योंकि यह आवश्यक था कि वे अपने कर्तव्य को जाने और उसका पालन करे। अपने नियमों से सम्बन्धित परमेश्वर ने इज़राइल को आदेश दिया था, “इसलिये तुम मेरे ये वचन अपने मन और प्राण में धारण किये रखना और चिन्ह के रूप में अपने हाथों पर बॉाँधना और वे तुम्हारी आखों के मध्य में टीके का काम दे। और तुम इनकी चर्चा करके अपने बच्चों को सिखाना.........जिससे कि जिस देश के विषय में यहोवा ने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर कहा था मैं उसे तुम्हें दूंगा, उसमें तुम और तुम्हारे बच्चे दीर्घायु होंगे और जब तक पृथ्वी के ऊपर आकाश बना रहे तब तक वे भी बने रहें ।PPHin 513.2

    प्रत्येक सातवें वर्ष पूरी व्यवस्था को समस्त इज़राइल की सभा में पढ़ कर सुनाया जाना था, जैसे कि मूसा ने आज्ञा दी थी, “सात वर्ष के बीतने पर, अर्थात छुटकारे के वर्ष की धार्मिक किया में झोपड़ीवाले पर्व पर जब सब इज़राइली तेरे परमेश्वर यहोवा के उस स्थान पर, जिसे वह चुन लेगा, आकर इकटटठे हों, तब यह व्यवस्था सब इज़राइलियों को पढ़कर सुनना। क्‍या पुरूष, क्‍या स्त्री, क्‍या बालक, क्‍या तुम्हारे फाटकों के भीतर रहने वाले परदेसी, सब लोगों कोइकट्‌ठा करना कि वे सुनकर सीखें और तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय मानकर इस व्यवस्था के सारे वचनों के पालन करने में चौकस रहें और उनके बच्चे जो ये बातें नहीं जानते, वे भी सुनें और, जब तक तुम उस देश में जीवित रहो, जिसके अधिकारी होने को तुम यरदन पार जारहे हो, परमेश्वर यहोवा का भय मानना सीखें।PPHin 513.3

    शैतान परमेश्वर की कही बातों को विकृत करने, समझ को अन्धकारमय और विवेक को अंधा कर मनुष्य को पाप में ले जाने के प्रयत्न में सर्वदा कार्यरत रहता है। इसी कारण यहोवा इतना सुस्पष्ट है और अपनी अपेक्षाओं को इतना प्रत्यक्ष बना देता है कि कोई भी गलती नहीं करे। परमेश्वर मनुष्य को अपनी सुरक्षा की छत्र-छाया में खींचने की लगातार कोशिश करता है, ताकि शैतान उन पर अपनी निमर्म'कपटी शक्ति का अभ्यास न करे। उसने उनके साथ अपनी ही आवाज में अर्थात प्रत्यक्ष रूप से बोल कर बताने और विद्यमान व्यवस्था को अपने हाथों से लिखने की कृपा की। और यह धन्य कथन, सत्य से सुबोधगम्य और आचरण से सहज-प्रवृति वाले, उत्तम मार्गदर्शक के रूप में मनुष्य के सुपुर्द किये गए। क्‍योंकि शैतान बुद्धि को वश में करके उसे परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं और अपेक्षाओं से लगाव को दूसरे मार्ग पर ले आने को इतना तैयार रहता है, कि उन्हें बुद्धि या मन में स्थिर करने और हृदय में अंकित करने के लिये अतिरिक्त लगन की आवश्यकता है।PPHin 514.1

    लोगों को परमेश्वर की अपेक्षाओं और चेतावानियों, और बाईबल इतिहास के पाठ और तथ्यों सम्बन्धित शिक्षा देने में धर्म के शिक्षकों द्वारा अतिरिक्त ध्यान दिया जाना चाहिये। इन्हें बच्चों की समझ के अनुरूप बनाकर, साधारण भाषा में प्रस्तुत किया जाना चाहिये। यह अभिभावकों और याजकों दोनो के कर्तव्यों का हिस्सा होना चाहिये कि वे देखे कि बच्चे पवित्रशास्त्र की शिक्षा ग्रहण करें।PPHin 514.2

    अभिभावक अपने बच्चों को पवित्र पृष्ठों में मिलने वाले विविध प्रकार के ज्ञान में रूचि दिलाएँ । लेकिन यदि वे चाहते हैं कि उनके बच्चे परमेश्वर के वचन में रूचि रखें तो उन्हें उसमें स्वयं रूचि रखनी होगी। उन्हें वचन की शिक्षा से परिचित होना चाहिये और जैसे कि परमेश्वर ने इज़राइल को आज्ञा दी, उसके बारे में, “घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते” बच्चों को सिखाना चाहिये। व्यवस्थाविवरण 11:19।जो यह इच्छा रखते है कि उनके बच्चे परमेश्वर से प्रेम करे और उसका आदर करे, तो उन्हें उसकी सृष्टि की कृतियों और उसके वचन में प्रकट उसकी सामर्थ्य, उसकी महानता और उसकी अच्छाई की चर्चा करना चाहिये।PPHin 514.3

    बाइबल का प्रत्येक पद और प्रत्येक अध्याय परमेश्वर से मनुष्य के लिये सन्देश है। हमें उसके सिद्धान्तों को चिन्ह की तरह अपने हाथों पर बाँधना चाहिये और आखों के बीच टीके जैसे धारण करना चाहिये। यदि इसे पढ़ा गया और इसका पालन किया गया, तो यह दिन में बादल के स्तम्भ के रूप में औररातमेंअग्निके स्तम्भ के रूप मेंपरमेश्वर के लोगों का नेतृत्व करेगा, जैसा कि इज़राइलियों के लिये किया।PPHin 515.1

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