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कुलपिता और भविष्यवक्ता - Contents
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    अध्याय 16—याकूब और एसाव

    यह अध्याय उत्पत्ति 25:19-24, 27 पर आधारित है

    याकूब और एसाव, इसहाक के जुड़वां पुत्र, चरित्र और व्यवहार में असाधारण भिन्‍नता व्यक्त करते है। इस असमानता की भविष्यद्वाणी उनके जन्म से पूर्व ही स्वर्गदूतों द्वारा की गई थी। रिबका की दुखभरी प्रार्थना के उत्त्तर में उसने घोषणा की कि उसे दो पुत्र प्राप्त होंगे, उसने उनका आगामी इतिहास भी बताया कि दोनों एक शक्तिशाली वंश के मुखिया बनेंगे, लेकिन एक दूसरे से महान होगा और यह कि छोटा पुत्र श्रेष्ठ होगा। PPHin 173.1

    ऐसाव आत्म-सन्तोष को चाहते हुए बड़ा हुआ और उसकी सारी रूचि वर्तमान में केन्द्रित थी। नियंत्रण उसे घेर्यहीन बना देता था, अत: वह आखेट की निरंकुश स्वतन्त्रता में आनन्दित होता था और उसने जल्द ही शिकारी का जीवन चुन लिया। फिर भी वह अपने पिता का लाडला था। वह शांत, शान्तिप्रिय चरवाहा अपने ज्येष्ठ पुत्र के दुस्साहस और प्रबलता से आकर्षित हो गया, जो निडर होकर पहाड़ और रेगिस्तान का भ्रमण करता और अपने जोखिम भरे जीवन की रोमांचक कथाओं और पिता के लिये शिकार लिये घर लौटता था। याकूब जो विचारशील, मेहनती, देखभाल करने वाला, वर्तमान की तुलना में भविष्य के बारे में ज्यादा सोचने वाला था, घर पर रहने में सन्तुष्ट था और भेड़ो के झुण्ड की देखभाल और धरती को जोतने में व्यस्त रहता था। उसकी मां उसकी धीरजवन्त दृढ़ता, मितव्ययीता और दूरदर्शिता का सम्मान करती थी। उसका लगाव घनिष्ठ और मजबूत था और ऐसाव की उद्यमी और अनियमित दयालुता की तुलना में उसे याकूब का उसकी ओर नम्नतापूर्वक नित्य ध्यान देना अधिक प्रसन्नता देता था। रिबका को याकूब अधिक प्रिय था। PPHin 173.2

    अब्राहम से की हुई और उसके पुत्र को आश्वस्त की हुई प्रतिज्ञाएं इसहाक और रिबका के लिये उनकी इच्छाओं ओर आशाओं का महान उद्देश्य था। इन प्रतिज्ञाओं से याकूब और एसाव परिचित थे। उन्हें जन्मसिद्ध अधिकार को अधिकमहानता का विषय मानने की शिक्षा दी गई थी क्योंकि इसमें न केवल सांसारिक धन की विरासत, बल्कि आध्यात्मिक सर्वश्रेष्ठा भी सम्मिलित थी। इसे प्राप्त करने वाला परिवार का धर्मगुरू होता था और उसके वंशजो की श्रंखला से जगत के उद्धारकर्ता को आना था। दूसरी ओर जन्मसिद्ध अधिकार के स्वामी पर बहुत से दायित्व थे। उसकी आशीषों को प्राप्त करने वाले को अपने जीवन को परमेश्वर की सेवा में समर्पित करना होता था। अब्राहम की तरह उसे पवित्र आज्ञाओं के प्रति आज्ञाकारी होना होता था। विवाह, पारिवारिक सम्बन्धों, सार्वजनिक जीवन में उसे परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलना होता था।PPHin 173.3

    इसहाक ने अपने पुत्रों को इन विशेषाधिकारों और प्रतिबन्धों से अवगत कराया और स्पष्ट रूप से बताया कि ज्येष्ठ होते हुए एसाव, जन्मसिद्ध अधिकार का हकदार था। लेकिन एसाव को न धर्मनिष्ठा से प्रेम था, और ना ही धार्मिक जीवन के प्रति लगाव। आध्यात्मिक जन्मसिद्ध अधिकार से जुड़ी अपेक्षाएं उसके लिये अप्रिय, यहां तक कि घृणित रूकावट थी। परमेश्वर की व्यवस्था, जो अब्राहम के साथ बंधी वाचा की शर्त थी, ऐसाव के लिये दासत्व का जुआ थी। आत्ममुग्धता में डूबा, मनमानी करने की स्वतन्त्रता से ज्यादा और किसी चीज की उसे अभिलाषा नहीं थी। हर्ष से उसका अभिप्राय अधिकार और धन-दौलत, दावतों और आमोद-प्रमोद से था। वह अपने घुमक्कड़ी, निरंकुश जीवन की मर्यादाहीन स्वाधीनता में गौरवान्वित था। रिबका कोस्वर्गदूत के शब्द याद थे और उसने अपने पुत्रों के स्वभाव को अपने पति से बेहतर अंतर्दृष्टि से ताड़ा। उसे विश्वास था कि ईश्वरीयवचन की विरासत याकूब के लिये थी। उसने इसहाक के सम्मुख स्वर्गदूत के सन्देश को दोहराया लेकिन पिता का प्रेम ज्येष्ठ पुत्र पर केन्द्रित था और वह अपने उद्देश्य में दृढ़ था। याकूब को अपनी माता से यह ज्ञात हुआ था कि पवित्र आदेश अनुसार जन्मसिद्ध अधिकार उसका होगा और वह उससे जुड़े विशेषाधिकारों की अनुच्चारित अभिलाषा से भर गया। उसे अपने पिता की धन-दौलत पर अधिकार की लालसा नहीं थी, उसकी तृष्णा का लक्ष्य आध्यात्मिक जन्मसिद्ध अधिकार था। धर्मी अब्राहम की भांति परमेश्वर सेसंगत करना, अपने परिवार के लिये प्रायश्चित के लिये बलि की भेंट चढ़ाना, प्रतिश्रुत मसीहा और चुने हुए लोगों का मूल होने के लिये और वाचा के वरदान से जुड़ी अनश्वर विरासत- ये सब वे सम्मान और विशेषाधिकार थे, जिन्होंने उसकी तीव्र अभिलाषाओं को जागृत किया। उसका विवेक हमेशा भविष्य की कल्पना करता था और अनदेखी आशीषों को प्राप्त करने को प्रयत्नशील था। PPHin 174.1

    गुप्त लालसा के साथ उसने वह सब सुना जो उसके पिता ने जन्मसिद्ध अधिकार के बारे में कहा, माता से ज्ञात हुईं बातों को भी उसने ध्यानपूर्वक संजोये रखा। दिन और रात उसके विचार इसी विषय से जुड़े होते, जब तक कि यह उसके जीवन की अवशोषक रूचि बन गया। यद्यपि याकूब आलौकिक आशीर्वाद को सांसारिक आशीर्वाद से श्रेष्ठ मानता था, उसे अपने आराध्य परमेश्वर का प्रयोगात्मक ज्ञान नहीं था। पवित्र अनुग्रह से उसके हृदय का नवीनीकरण नहीं हुआ था। उसका मानना था कि जब तक पहलौठे का अधिकार एसाव के पास था तब तक उससे सम्बन्धित प्रतिज्ञा का पूरा होना असम्भव था और वह लगातार अपने भाई द्वारा तुच्छ समझे जाने वाले अधिकार को प्राप्त करने का उपाय ढूंढता रहा क्‍योंकि वह अधिकार उसके लिये अनमोल था। PPHin 174.2

    एक दिन एसाव आखेट से थका-मांदा लौटा और उसने खाने की मांग की जो याकब तैयार कर रहा था। याकूब, जिसके लिये एक ही विचार सबसे ऊपर था, अवसर का लाभ उठाते हुए, जन्मसिद्ध अधिकार के मूल्य पर अपने भाई की भूख को तृप्त को तैयार हुआ। “देख, मैं तो अभी मरने पर हूँ इसलिये पहलौठे के अधिकार से मेरा क्‍या लाभ होगा”? दुस्साहसी, आत्ममुग्ध शिकारी ने कहा। और लाल शोरबे के व्यंजन के लिये अपना जन्मसिद्ध अधिकार बेच दिया और शपथ द्वारा इस सौदे का पुष्टिकरण किया। उसे कुछ ही समय बाद अपने पिता के तम्बुओं में खाना मिल जाता, लेकिन उस क्षण की इच्छा को सन्तुष्ट करने के लिये उसने उस गौरवपूर्ण विरासत का लापरवाही से सौदा कर दिया जिसकी परमेश्वर ने स्वयं उसके पूर्वजों को आश्वासन दिया था। उसका समूचा ध्यान वर्तमान में था। वह सांसारिक के लिये स्वरगगीय का त्याग करने को तैयार था; क्षणिक तुष्टि के लिये आगामी कल्याण का आदान-प्रदान करने को तैयार था। PPHin 175.1

    “यों एसाव ने अपना पहलौठे का अधिकार तुच्छ जाना।” उसे बेचकर उसे राहत की भावना का आभास हुआ। अब उसका मार्ग अबाधित था, वह जैसा चाहे वैसा कर सकता था। इस प्रकार के मर्यादाहीन आमोद-प्रमोद व झूठी स्वतन्त्रता के लिये कितने ही लोग स्वर्ग में अनन्त, शुद्ध व पवित्र विरासत के जन्मसिद्ध अधिकार को बेच रहे हैं। हमेशा बाहरी और सांसारिक आकर्षणों के अधीन एसाव ने हेत की दो पुत्रियों को अपनी पत्नियाँ बनाया। वे कृत्रिम देवी देवताओं की उपासक थी और उनकी मूर्तिपूजा से इसहाक और रिबका खेदित थे। PPHin 175.2

    एसाव ने वाचा के उस प्रतिबन्ध का खण्डन किया था जिसके अनुसार चुने हुए और नास्तिकों के बीच अंतर्विवाह निषिद्ध था, लेकिन इसहाक अभी भी उसे जन्मसिद्ध अधिकार देने के संकल्प में अविचलित था। रिबका के तक का, आशीर्वाद के लिये याकूब की तीव्र इच्छा का, और उसके दायित्व के प्रति एसाव की उदासीनता का पिता के उद्देश्य में परिवर्तन लाने के लिये कोई प्रभाव नहीं पड़ा।PPHin 175.3

    समय बीतता गया और वृद्ध और अच्धे, मृत्यु की प्रतीक्षा में इसहाक ने निश्चय किया कि वह अपने ज्येष्ठ पुत्र को आशीर्वाद देने में और विलम्ब नहीं करेगा। लेकिन रिबका और याकूबका विरोध जानते हुए उसने निर्णय लिया कि वह उस पवित्र विधि का पालन गुप्त रखेगा। परम्परागत ऐसे अवसरों पर भोजपान कराने के लिये कुलपिता ने एसाव से कहा, “अब तू अपना तरकश और धनुष आदि हथियार लेकर मैदान में जा और मेरे लिये अहेर लेआ, तब मेरी रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाकर मेरे पास ले आना कि मैं उसे खाकर मरने से पहले तुझे जी भर के आशीर्वाद दूँ। PPHin 176.1

    रिबका ने उसके उद्देश्य को भांप लिया। उसे विश्वास था कि परमेश्वर ने उसकी इच्छा के रूप में जो प्रकट किया था, उस उद्देश्य के विपरीत था। इसहाक ईश्वरीय कोध को उकसाने और अपने छोटे पुत्र को उस पद से, जिसके लिये परमेश्वर ने उसे बुलाया था, वंचित रखने के खतरे में था। उसने व्यर्थ में इसहाक के साथ तके॑ के प्रभाव को परखा था और उसने कपट का सहारा लेने का निश्चय किया ।PPHin 176.2

    जैसे ही ऐसाव अपने काम पर निकला, रिबका ने अपने उद्देश्य को परिपूर्ण करने की तैयारी शुरू की। ऐसाव की अन्ततः व स्थायी आशीर्वाद प्राप्ति को रोकने हेतु तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता का आग्रह करते हुए, रिबका ने याकूब को वह सब बताया जो घटित हुआ था। और उसने अपने पुत्र को आश्वस्त किया कि यदि वह उसके निर्देशों का पालन करेगा, तो वह उस अधिकार को परमेश्वर की प्रतिज्ञा के अनुसार प्राप्त करेगा।याकूब ने उसकी प्रस्तावित योजना को आसानी से सहमति नहीं दी। अपने पिता को धोखा देने के विचार से उसे अत्याधिक पीड़ा हुईं। उसे लगा कि ऐसा पाप आशीर्वाद के स्थान पर शाप लेकर आएगा। लेकिन उसकी शंकाओं को दबा दिया गया और वह अपनी मां के सुझावों को क्रियान्वित करने के लिये आगे बढ़ा। प्रत्यक्ष झूठ बोलने का उसका कोई इरादा नहीं था, लेकिन पिता की उपस्थिति में आकर उसे लगा कि वापस लौटने के लिये वह बहुत दूर आ चुका था और उसने छल से वह प्रतिष्ठित आशीर्वाद को प्राप्त कर लिया।PPHin 176.3

    याकूब और रिबका अपने उद्देश्य में सफल तो हो गए, लेकिन उनके धोखे के बदले उन्हें केवल कठिनाईयाँ और कष्ट मिले। परमेश्वर ने याकब को जन्मसिद्ध अधिकार मिलने की घोषणा की थी और उसका वचन उसके समय में पूरा होता यदि वे विश्वास के साथ परमेश्वर को उनके लिये काम करने के लिये रूके होते। लेकिन तथाकथित परमेश्वर की संतानों की तरह वे इस विषय को उसके हाथों में छोड़ने के लिये तैयार न थे। रिबका को अपने पुत्र को गलत सलाह देने पर घोर पछतावा हुआ, वह उसका अपने बेटे से अलग होने का कारण बना और उसने उसका चेहरा फिर कभी नहीं देखा। जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्ति के समय से याकब स्व-भर्तसना से भर गया। उसने अपने पिता, भाई, स्वयंआत्मा व परमेश्वर के प्रति पाप किया था। एक घण्टे की छोटी सी अवधि घण्टे में उसने जीवनभर के प्रायश्चित योग्य काम किया था। आगामी वर्षो में, जब उसके पुत्रों के दुष्टापूर्ण कत्यों ने उसकी आत्मा को उत्पीड़ित किया, यह दृश्य उसके सम्मुख आ खड़ा होता था।PPHin 176.4

    जैसे ही याकूब अपने पिता के तम्बू से गया, एसाव ने प्रवेश किया। हालांकि उसने अपना जन्मसिद्ध अधिकार बेच दिया था और पवित्र शपथ द्वारा लेन-देन की पुष्टि की थी, अपने भाई के दावे के बावजूद वह आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिये दृढ़ निश्चयी था। आध्यात्मिक के साथ सांसारिक जन्मसिद्ध अधिकार संलग्न था जो उसे परिवार का आधिपत्य और पिता की सम्पत्ति के दोगुना भाग पर अधिकार देता। ये वह आशीषें थी जिनका मोल वह जानता था। उसने कहा, “हे मेरे पिता, उठकर अपने पुत्र के अहेर का मांस खा, ताकि मुझे जी से आशीर्वाद दे।” PPHin 177.1

    विस्मय और पीड़ा से थरथर कांपते हुए, बूढे व अन्धे पिता को उसके साथ हुए धोखे कापता चला। उसकी दीर्घ॑कालीन प्रेम से संजोयी आशाओं को नाकाम कर दिया गया था, और इस कारण अपने ज्येष्ठ पुत्र को होने वाली निराशा को अनुभव कर रहा था। लेकिन फिर भी उसे विश्वास था कि उसके प्रयोजन के पराजित होने में ईश्वर की इच्छा है इसलिये उसने वह हो जाने दिया जिसे इसहाक निश्चय ही रोकना चाहता था। उसने स्वर्गदूत द्वारा रिबका को कहे शब्दों का स्मरण किया और याकूब के द्वारा किये गए पाप, जिसके लिये वह दोषी था, के बावजूद, उसमें परमेश्वर की योजना को सम्पन्न करने वाला उचित व्यक्ति देखा । उसके होठों पर आशीर्वाद का वचन था, और वह प्रेरणा की भावना याकूब को अनजाने में दिये गए वचन की पुष्टि की, “मैंने उसे आशीर्वाद दिया है, हाँ और वह आशीषित होगा।”PPHin 177.2

    जब आशीर्वाद उसकी पहुँच में प्रतीत हो रहा था, तब ऐसाव ने उसे तुच्छ माना, अब जब वह उससे दूर हो गया वह उसे पाना चाहता था। उसके आवेगपूर्ण भावुक स्वभाव के प्रवृति पूरी तरह जागृत हो गईऔर वह अत्याधिक खेद और कोध से भर गया। अत्यन्त ऊंचे और दुःख भरे स्वर से चिललाकर उसने कहा, “हे मेरे पिता, मुझको भी आशीर्वाद दे।” “क्या तूने मेरे लिये भी कोई आशीर्वाद नहीं सोच रखा है?” लेकिन जो वचन दे दिया गया था वापस नहीं लिया जा सकता था। जिस जन्मसिद्ध अधिकार को तुच्छ समझ उसने बेच दिया था, उसे वह वापस प्राप्त नहीं कर सकता था, “मांस के एक टुकड़े के लिये” कभी संयमित नहीं की गईं भूख की क्षणिक सन्तुष्टि के लिये, एसाव ने अपनी धरोहर को बेच दिया, लेकिन जब उसने अपनी मूर्खता को पहचाना, तब आशीर्वाद की पुनः प्राप्ति के लिये बहुत देर हो चुकी थी। इब्रानियों 12:16,17में लिखा है, “आँसू बहा बहा कर खोजने पर भी मन-फिराव का अवसर उसे नहीं मिला।” पश्चताप द्वारा परमेश्वर की करूणा पाने के विशेषाधिकार से एसाव वंचित नहीं था, लेकिन उसे जन्मसिद्ध अधिकार को वापस पाने को कोई साधन नहीं मिला। उसका दुख पाप की दोषसिद्धि से उत्पन्न नहीं हुआ था, वह ईश्वर के साथ सामन्जस्य स्थापित करने का इच्छुक नहीं था। वह अपने पाप के परिणामों के कारण दुःखी हुआ, लेकिन पाप के लिये नहीं ।PPHin 178.1

    ईश्वरीय आशीर्वाद और अपेक्षाओं के प्रति उसकी उदासनीता के कारण एसाव को पवित्र-शास्त्र में ‘अधर्मी’ कहा गया है। वह उन लोगों का प्रतीक है जो मसीह द्वारा खरीदे गए उद्धार को तुच्छ मानते हैं, और पृथ्वी की नश्वर चीजों के लिये स्वर्ग में उनके उत्तराधिकार का त्याग करने के लिये तैयार हैं। अधिकांश लोग वर्तमान के लिये जीते हैं, भविष्य के बारे में ना वो सोचते है और ना ही परवाह करते हैं। ऐसाव के तरह वे कहते है, “आओ, खांए-पीएंक्योंकि कल तो मर ही जाएंगे।” 1 कुरिन्थियों 15:32। वे अपनी प्रवृति द्वारा नियन्त्रित होते हैं और आत्मत्याग का अभ्यास करने के बजाय वे महत्वपूर्ण विचारों को त्याग देते हैं। यदि किसी को तृप्त किया जाए, विकृत भूख की सन्तुष्टि या आत्म-त्यागी और परमेश्वर का भय मानने वालों को प्रतिज्ञाबद्ध आशीषें की सन्तुष्टि, तो भूख के दावे की जीत होती है और स्वर्ग और परमेश्वर का वस्तुतः तिरस्कार किया जाता है। यहांतक कि तथाकथित मसीही भी विलासिता पकड़े रहते हैं जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होती है और आत्मा की संवेदनाओं को शान्त कर देता है। जब उन्हें, परमेश्वर का भय मानकर पवित्रता को सिद्ध बनाने हेतु आत्मा और शरीर की अशुद्धता को साफ करने का काम दिया जाता है तो उन्हें ठेस पहुँचती है। वे जानते है कि इन कष्टदायक सन्तुष्टियों के साथ स्वर्ग को नहीं पा सकते, और वे निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि शाश्वत जीवन का मार्ग अति कठिन है और वे उस पर नहीं चलेंगे।PPHin 178.2

    अधिकांश लोग कामुक विलासिताओं के लिये अपने जन्मसिद्ध अधिकार को बेच रहे है। क्षणिक आमोद-प्रमोद के लिये स्वास्थ्य को दाव पर लगाया जाता है, मानसिक संकायों को निर्बल होने दिया जाता है और स्वर्ग का भी परित्याग किया जाता है। यह विलासिता स्वभाव से ही भ्रष्ट और शक्तिहीन करने वाली होती है। जब एसाव अपने अविवेकपूर्ण विनिमय की मूर्खता को देखने के लिये जागा तब नुकसान की भरपाई के लिये बहुत देर हो चुकी थी, ऐसा ही परमेश्वर के दिन उनके साथ होगा, जिन्होंने स्वार्थी सन्तुष्टियों के लिये स्वर्ग के उत्तराधिकार को बेच दिया है।PPHin 179.1