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कुलपिता और भविष्यवक्ता - Contents
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    अध्याय 44—यरदन को पार करना

    यह अध्याययहोशू 1-5:12 पर आधारित है

    इज़राइली ने अपने दिवंगत अगुवे का शोक मनाया, और उसकी स्मृति के उपलक्ष्य में तीस दिन विशेष धर्म-किया को समर्पित किए गए। मूसा को उनसे अलग कर दिए जाने से पूर्व कभी भी उन्होंने उसके ज्ञानपूर्ण सुझावों, उसकी पिता समान नम्रता और उसके दृढ़ विश्वास के मोल को नहीं जाना था। एक अलग और अति आभार के साथ उन्होंने उस बहुमूल्य शिक्षा का स्मरण किया जो उसने उनके साथ रहते हुए दी थी।PPHin 493.1

    मूसा मृत्यु को प्राप्त हो चुका था, लेकिन उसका प्रभाव उसके साथ समाप्त नहीं हुआ। प्रभाव को लोगों के हृदयों में पुनजीवित होकर, जीवित रहना था। उसके जीते जी कहे शब्दों की उपेक्षा करने वालों के जीवन को ढालने वाली शान्त शक्ति के साथ, उस पवित्र, निःस्वार्थ जीवन की स्मृति को दीर्घकाल तक संजोया जाना था। जैसे कि पहाड़ों के पीछे से, सूर्यास्त के बाद भी डूबते सूर्य का प्रकाश पर्वत के शिखरों को उज्जवल करता है, वैसे ही कर्ताओं के मर्णापरांत, उन पवित्र, ध्मी और भले मनुष्यों के कर्म दीरघकाल तक संसार पर प्रकाश डालते हैं। उनके कर्म, उनके कथन, उनके उदाहरण सदा जीवित रहेंगे । “धर्मी का स्मरण सदा तक बना रहेगा ।”-भजन संहिता 112:6।PPHin 493.2

    यद्यपि इस गहरी क्षति से वे अत्यन्त दुःखी हुए, लेकिन वे जानते थे कि उन्हें अकेला नहीं छोड़ा गया था। बादल का स्तम्भदिन में मिलापवाले तम्बू पर ठहरा रहता था, और रात में आग के स्तम्भ के रूप में यह एक आश्वासन था कियदि वे परमेश्वर की आज्ञानुसार चलेंगे तो वह अभी भी उनका सहायक और मार्गदर्शक होगा।PPHin 493.3

    यहोशू अब इज़राइल का अभिस्वीकत अगुवा था। उसे मुख्यतः योद्धा होने की मान्यता प्राप्त थी, और उसके लोगों के इतिहास के इस चरण में उसके गुण और योग्यता विशेष रूप से महत्वपूर्ण थे। साहसी, दृढ़, निरन्तर प्रयत्नशील, तत्पर, सच्चरित्र, उसके प्रभार के सुपुर्द किये हुओं की देख-रेख से अपने स्वार्थपूर्ण लाभ के प्रति अनजान और इन सब से बढ़कर परमेश्वर में सक्रिय विश्वास से प्रेरित-प्रतिज्ञा के देश, कनान में प्रवेश करने पर इज़राइलियों की सेनाओं का संचालन करने वाले परमेश्वर द्वारा नियुक्त मनुष्य का चरित्र ऐसा था। बीहड़ में पड़ाव के दौरान उसने मूसा के लिये प्रधान-मन्त्री के तौर पर कार्य किया था, और अपनी शान्त और आंडबररहित स्वामिभक्ति से, दूसरों के लड़खड़ाने पर भी दृढ़ रहने से, संकटकाल में भी सत्य को कायम रखने से, उसने परमेश्वर द्वारा इस पद के लिये बुलाए जाने से पहले ही, मूसा को उत्तराधिकारी होने की योग्यता का प्रमाण दिया था।PPHin 493.4

    बहुत उत्सुक्ता और आत्म-अविश्वास के साथ यहोशू ने उसके सम्मुख रखे गए कार्य की अपेक्षा की थी, किन्तु परमेश्वर के आश्वासन ने उसकी झिझक को दूर किया, “जैसे में मूसा के साथ रहा वैसे ही तेरे साथ रहूंगा, और न तो मैं तुझे धोखा दूंगा, और न तुझे छोडूंगा। जिस देश के देने की शपथ मैं ने इन लोगों के पूर्वजों से खाई थी उसका अधिकारी तू इन्हें करेगा।” “जो मैंने मूसा से कहा, जिस-जिस स्थान पर तुम पॉवघरोगे, वह सब मैं तुम्हे देता हूँ। सुदूर लेबनान की पहाड़ियों से लेकर परात महानद तक, और महासमुद्र के तट तक सारा देश उनका होना था। PPHin 494.1

    इस प्रतिज्ञा के साथ आज्ञा दी गई, “इतना हो कि तू हियाव बाँधकर और बहुत दृढ़ होकर जो व्यवस्था मेरे दास मूसा ने तुझे दी है उसका पालन निश्चय के साथ करना ।” यहोवा का निदेश था, “व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित से कभी न उतरने पाए, तुम उस पुस्तक का अध्ययन दिन-रात करो,” “और उससे न तो दाहिने मुड़ना और न बाएं” “क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सफल होंगे और तू प्रभावशाली होगा।”PPHin 494.2

    इज़राइली अभी भी यरदन के पूरब में पड़ाव डाले हुए थे जो उनके द्वारा कनान के अधिग्रहण में पहली बाधा थी। यहोशू को परमेश्वर का पहला सन्देश था, “अब तू उठ, और इसी सारी प्रजा समेत यरदन पार होकर उस देश को जा जिसे मैं उनको देता हूँ।” जिस प्रकार से उन्हें वहाँ से मार्ग निकालना था, इस बारे में कोई निर्देश नहीं दिया गया था। फिर भी, यहोशू जानता था कि जो भी आदेश परमेश्वर देगा उसकालोगों से प्रालनकरवानेकामार्ग वहअवश्य निकालेगा, और इसी विश्वास में बहादुर अगवे ने तुरन्त कच करने की प्रक्रिया प्रारम्भ की।PPHin 494.3

    यरदन नदी के पार, कुछ ही मीलों की दूरी पर, इज़राइलियों के पड़ाव के सम्मुख स्थित यरीहोका विशाल, सशक्त किलाबंद शहर था। यथार्थ में यह शहर पूरे राष्ट्र के लिये चाबी समान था, और वह इज़राइल की सफलताक मार्ग में सबसे दुर्जय बाधा प्रस्तुत करता। इस कारण यहोशू ने दो नौजवान गुप्तचरों कोनिरीक्षण करने और उसकी जनसंख्या, संसाधनों और उसके किलेबन्दी की ताकत के संदर्भ में कुछ सुनिश्चित करनेभेजा । उस नगर के वासी भयभीत और संदेहजनक, लगातार सावधान रहते थे, और सन्देशवाहक बहुत खतरे में थे। फिर भी, यरीहो की एक स्त्री, राहब ने, अपने प्राण दाव पर लगाकर उनको बचाया। उसकी कृपा के बदले उस नगर पर अधिकार करने के समय उन्होंनेउसे सरंक्षण का आश्वासन दिया। PPHin 494.4

    गुप्तवर इस समाचार के साथ वापस सुरक्षित पहुँचे, “निःसन्देह यहोवा ने वह सारा देश हमारे हाथ में कर दिया है, फिर इसके सिवाय उसके सारे निवासी हमारे कारण घबरा रहे है।” यरीहो में उनसे कहा गया था, “हम ने सुना है कि यहोवा ने तुम्हारे मिस्त्र से निकलने के समय तुम्हारे सामने लाल समुद्र का जल सुखा दिया। और तुम लोगों ने सीहोन और ओग नामक यरदन पार रहने वाले एमोरियों के दोनों राजाओं का विनाश कर डाला है। यह सुनते ही हमारा मन पिघल गया, और तुम्हारे कारण किसी के जी में जी नहीं रहा, क्‍योंकि तुम्हारापरमेश्वर यहोवा ऊपर के आकाश का और नीचे की पृथ्वी का परमेश्वर है।PPHin 495.1

    कूच करने की तैयारी के आदेश जारी किये गए। लोगों को तीन दिनों के खाने के लिये खाद्य सामग्री तैयारी करनी थी, और सेना को युद्ध के लिये तैयार होना था। सभी अपने अगुवा की योजनाओं से प्रसन्‍नतापूर्वक सहमत हो गए और उन्होंने अपने समर्थन और विश्वास का आश्वासन दिया।”जो कुछ तू ने हमें करने की आज्ञा दी है वह हम करेंगे, और जहाँ कहीं तू हमें भेजे वहाँ हम जाएँगे। जैसे हम सब बातों में मूसा की मानते थे वैसे ही तेरी भी माना करेंगे, इतना हो कि तेरा परमेश्वर यहोवा जैसा मूसा के साथ रहता था, वैसे ही तेरे साथ भी रहे।” PPHin 495.2

    अपनी छावनी को शित्तीम के बबूल की वृक्ष वाटिकाओं में छोड़कर, सेना यरदन की सीमा पर उतरी। लेकिन, सब जानते थे कि बिना ईश्वरीय सहायता के वे रास्ता निकालने की आशा भी नहीं कर सकते थे। वर्ष के इस समय पर बसनन्‍्त ऋतु में पहाड़ो से पिघलती बफ यरदन का स्तर इतना बढ़ा देती थी कि पानी किनारों से ऊपर बहने लगता था और सामान्य पार होने वाले स्थानों से पार होना असम्भव कर देता था। परमेश्वर की इच्छा थी कि यरदन पर से इज़राइल के पारगमन चमत्कारी ढंग से यहोशू ने ईश्वरीय निर्देश द्वारा लोगो को स्वयं को पवित्र करने को कहा, उन्हें अपने पापों को अलग करके स्वयं को बाहरी अशुद्धता से भी मुक्त करना था, क्योंकिउसने कहा “कल के दिन यहोवा तुम्हारे मध्य में आश्चर्यकर्म करेगा ।” “वाचा के सन्दूक को सेना के आगे-आगे चलकर मार्गदर्शन करना था। जब वे यहोवा की उपस्थिति के प्रतीक को, छावनी के मध्य से उसके स्थान से हटाकर, याजको द्वारा उठाया जाकर, नदी की तरफ बढ़ता देखे, तो उन्हें भी अपने स्थान से हटना था, और उसके पीछे-पीछे जाना था। पारगमन की परिस्थितियों की सूक्ष्मता से भविष्यवाणी की गई थी, और यहोशू ने कहा, “इससे तुम जान लोगों कि जीवित ईश्वर तुम्हारे मध्य में है, ओर वह तुम्हारे सामने से निःसन्देह कनानियोंहित्तियों, हिब्बयों, परिज्जयों, गिर्गाशियों, ऐमोरियों, और यबूसियों को उनके देश्ज्ञ में से निकाल देगा। सुनो, पृथ्वी भर के प्रभु की वाचा का सन्दूक तुम्हारे आगे-आगे यरदन में जाने पर है।”PPHin 495.3

    निर्धारित समय पर, याजकों के काँधो पर सवार, वाचा के सन्दूक के नेतृत्व में, सेना ने अपने आगे की गतिविधि प्रारम्भ की। लोगों को पीछे हटने का निर्देश दियागया, ताकि सन्दूक के आस-पास लगभग आधे-मील का खाली स्थान हो। सभी गहरी उत्सुकता से याजकों को यरदन के किनारे की तरफ बढ़ते हुए देखते रहे। उन्होंने याजकों को उमड़ती हुई नदी की ओर, वाचा का सन्दूक लिये, नियमित रूप से आगे बढ़ते देखा, जब तक कि वाहकों के पैर पानी में उतरे। उसी समय ज्वार पीछे हट गया, जबकि नीचे की जल धारा वहती रही, और नदीतल दिखाई देने लगा।PPHin 496.1

    पवित्र आदेश पर याजक नहर के बीच तक गए और वहाँ खड़े रहे, जबकि पूरी सेना उतरकर दूसरी ओर पार हो गई। इस प्रकार इज़राइलियों के मनों में इस तथ्य को अंकित किया गया कि जिस शक्ति ने यरदन के पानी को रोक कर था, उसी शक्ति ने चालीस वर्ष पूर्व उनके पूर्वजों के लिये लाल समुद्र को दो हिस्सों में बाॉँट दिया था। जब सभी लोग पार हो गए, वाचा के सन्दूक को पश्चिमी छोर पर लाया गया। जैसे ही वह सुरक्षित स्थान पर पहुँचा, याजकों के पाँवों के तले उठकर स्थल पर पड़े, थमा हुआ जल, छूटकर, नदी की प्राकृतिक धारा में एक अबाध्य बाढ़ के रूप में पहले जैसे बहने लगा।PPHin 496.2

    आगामी पीढ़ियों को इस आश्चर्यकर्म के साक्ष्य से वंचित नहीं रहना था। जब सन्दूक उठाए याजक यरदन के बीच में ही थे, प्रत्येक घराने से एक-एक अर्थात कुल बारह पुरूष जिन्हें पहले से ही चुना लिया गया था, नदीतल से, जहां याजक खड़े रहे थे, एक-एकपत्थर उठाकर पश्चिमी छोर पर ले गए। नदी के पार पहले पड़ाव के स्थान पर इन पत्थरों को स्मारक के रूप में व्यवस्थित किया गया। लोगों को आदेश दिया गया कि परमेश्वर द्वारा छुटकारे की कहानी, उनके बच्चों को और बच्चों के बच्चों को दोहराई जाए, जैसे कि यहोशू ने कहा, “इसलिये कि पृथ्वी के सब देशों के लोग जान लें कि यहोवा का हाथ बलवन्‍न्त है, और तुम सर्वदा अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानते रहो।”PPHin 496.3

    इस आश्चर्यकर्म का प्रभाव, इब्रियों व उनके शत्रुओं पर, अत्यन्त महत्वपूर्ण था। वह इज़राइल के लिये परमेश्वर की स्थायी उपस्थिति और सुरक्षा का आश्वासन था-एक प्रमाण की वह यहोशू के माध्यम से उनके लिये काम करेगा, जैसा कि उसने मूसा के माध्यम से किया था। देश पर चढ़ाई करने के प्रारम्भ में, उनके हृदयों को मजबूत करने के लिये ऐसे आश्वासन की आवश्यकता थी-जिस महान कार्य ने चालीस वर्ष पूर्व उनके पूर्वजों के विश्वास को झंझोड़ दिया था। पारगमन से पहले परमेश्वर ने यहोशू को घोषणा की थी, “आज के दिन में मैं सब इज़राइलियों के सम्मुख तेरी प्रशंसा करना आरम्भ करूँगा, जिससे वे जान लें कि जैसे में मूसा के साथ रहता था वैसे ही मैं तेरे साथ भी हूँ।” और परिणाम ने प्रतिज्ञा को परिपूर्ण किया। “उस दिन यहोवा ने सब इज़राइलियों के सामने यहोशू की महिमा बढ़ाई और जैसे वे मूसा का भय मानते थे वैसे ही यहोशू का भी भय उसके जीवन भर मानते रहे।’ PPHin 497.1

    इज़राइल के पक्ष में ईश्वरीय शक्ति का अभ्यास, पड़ोसी देशों के उनके प्रतिभय में वृद्धि करने के लिये था, ताकि उनकीसम्पूर्ण और आसान विजय के लिये मार्ग तैयार हो सके। जब कनानियों और ऐमोरियों के राजाओं के पास यह सूचना पहुँची कि परमेश्वर ने इज़राइलियों के सम्मुख यरदन के पानी को थाम लिया था, तो उनके हृदय भय के कारण पिघल गए। इब्री, मिद्यान के पांच राजाओं को, शक्तिशाली सिहोन, ऐमोरियों के राजा, बाशान के ओग का वध कर चुके थे, और अब तीव्र जल-प्रवाह वाली यरदन के पारगमन ने पड़ोसी देशों को भय से भर दिया। कनानियों, समस्त इज़राइल और स्वयं यहोशू को ठोस प्रमाण दिया गया था कि पृथ्वी और आकाश का राजा, जीवित परमेश्वर, अपने लोगों के बीच में था, और वह कभी भ उन्हें धोखा नहीं देगा और न ही उन्हें छोड़ेगा। PPHin 497.2

    यरदन से कुछ ही दूरी पर इब्रियों ने कनान में पहला पड़ाव डाला। यहाँ यहोशू ने “इज़राइलियों का खतना किया।” और “इज़राइलियों ने गिलगल में पड़ाव डाला और फसह का पर्व मनाया।” कादेश के विद्रोह पश्चात खतना की विधि का निलम्बन, इज़राइल के लिये स्थायी साक्ष्य था कि परमेश्वर की उनके साथ वाचा, जिसका प्रतीक खतना था, टूट गई थी। और मिस्र से छुटकारे के स्मारक, फसह के पर्व की समाप्ति, इज़राइलियों की दासत्व के देश में लौट जाने की अभिलाषा पर परमेश्वर की अप्रसन्‍नता का प्रमाण था। अब, उपेक्षा के वर्ष समाप्त हो गए थे। एक बार फिर परमेश्वर ने इज़राइल को उसके लोगों के रूप में स्वीकार किया, और वाचा का चिन्ह पुन: स्थापित किया गया। खतना की विधि उन सब पर अपनाईं गई जिनका जन्म बीहड़ में हुआ था। और यहोवा ने यहोशू कोघोषणा की, “तुम्हारी नामधराई जो मिस्नियों में हुई है उसे मैंने आज दूर की है” और इसके सांकेतिक प्रसंग में उनके पड़ाव के इस स्थान का नाम गिलगल रखा गया, जिसका अर्थ है, “दूर कर देना।” PPHin 497.3

    अधर्मी जातियों ने यहोवा और उसके लोगों की नामधराई की थी क्‍योंकि इब्री कनान पर अधिकार पाने में असमर्थ रहे थे, जैसे कि मिस्र छोड़ने के पश्चात्‌ उनकी इच्छा थी। उनके शत्रुओं की विजय हुईं थी, क्योंकि इज़राइली इतने लम्बे समय तक बीहड़ में भटके थे, और उन्होंने उपहास करते हुए घोषणा की थी कि इब्रियों का परमेश्वर उन्हें प्रतिज्ञा के देश में लाने में असमर्थ था। अपने लोगों के सम्मुख यरदन से मार्ग निकालने में, परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से अपनी सामर्थ्य का प्रदर्शन किया था और अब उनके शत्रु उनकी नामधराई नहीं कर सकते थे। PPHin 498.1

    “महीने के चौदहवें दिन संध्या को”, यरीहो की तराई में फसह का पर्व मनाया गया। “और फसह के दूसरे दिन वे उस देश की उपज में से अखमीरी रोटी और उसी दिन से भुना हुआ दाना भी खाने लगे। और जिस दिन वे उस देश की उपज में से खाने लगे, उसी दिन सवेरे को मन्‍ना बन्द हो गया, और इज़राइलियों को आगे फिर कभी मनन्‍ना नहीं मिला, परन्तु उस वर्ष उन्होंने कनान देश की उपज में से खाया।” बीहड़ में भटकने के लम्बे वर्ष भटकने में व्यतीत हुए थे। आखिरकार इज़राइलियों के पैर प्रतिज्ञा के देश पर चल रहे थे। PPHin 498.2

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