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कुलपिता और भविष्यवक्ता - Contents
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    अध्याय 35—कोरह का विद्रोह

    यह अध्याय गिनती 16 और 17 पर आधारित है

    इज़राइल पर आई दण्डाज्ञाओं ने कुछ समय के लिये उनकी कुड़कुड़ाहट और दुर्विनीतता पर प्रतिबन्ध तो लगाया, लेकिन जो विद्रोह की भावना अभी भी उनके हृदय में थी, अन्ततः अत्यन्त कटु परिणाम लेकर आई। पहले हुए विद्रोह केवल जनसाधारण का उत्पात रहे थे जो उत्तेजित भीड़ के आकस्मिक आवेग से उत्पन्न होते थे, परन्तु अब एक गहरा षड़यन्त्र रचा गया, जो स्वयं परमेश्वर द्वारा नियुक्त अगुवों के अधिकार को उखाड़ फेंकने के निश्चित उद्देश्य का फल था। PPHin 399.1

    कोरह, इस आन्दोलन का मुखिया, एक लैवी था, कोहात के परिवार से था, और मूसा का सम्बन्धी था; वह एक योग्य और प्रभावशाली मनुष्य था। हालाँकि वह पवित्र मण्डप के कार्य के लिये नियुक्त था, वह अपने पद से असन्तुष्ट हो गया था और याजकता के गौरव के लिये महत्वाकाँक्षी था। हारूनऔरउसकेपरिवार को दिया गयायाजकता के प्रभारने, जो पहले के समय में प्रत्येक परिवार के पहलौठे पुत्रको दिया जाताथा ईर्ष्या और असन्तुष्टि को जन्म लिया, और कुछ समय से कोरह गुप्त रूप से मूसा और हारून के अधिकार काविरोध कर रहा था, हालाँकि उसने प्रत्यक्ष रूप से विद्रोह का प्रयत्न नहीं किया था। आखिरकार उसने धार्मिक और नागरिकता सम्बन्धी दोनों ही आधिपत्योंकोउखाड़ फेंकने का दुस्साहसी षड़यन्त्र रचा। उससे सहानुभूति रखने वाले ढूंढने में वह असफल नहीं रहा। मिलापवाले तम्बू के दक्षिण में कोरह और कहातों के तम्बुओं के पास, रूबेनीयों का डेरा, अबीरम और दातान के तम्बू थे और कुल के यह दो प्रधान कोरह के करीब थे। ये प्रधान तत्परता से कोरह की महत्वाकांक्षी योजनाओंमें सम्मिलित हो गए। याकूब के सबसे बड़े पुत्र के वंशज होने के नाम पर इन्होंने दावा किया कि नागरिक सम्बन्धी आधिपत्य उनका होना चाहिये और उन्होंने याजकता के कर्तव्यों को कोरह के साथ बॉटने का संकल्प किया।PPHin 399.2

    लोगों की भावना की अवस्था ने कोरह के षड़यन्त्र का साथ दिया। उनकी निराशा की कड़वाहट में, उनके पहले वाले सन्देह, ईर्ष्या और घृणा लौट आए थे, और फिर से उनकी शिकायतों ने उन्हीं के धेर्यवान अगुवे के विरूद्ध निशाना लगाया। इज़राइली लगातार इस तथ्य को भूल रहे थे कि वे प्रभु के मार्गदर्शन में थे। वे भूल गए कि वाचा का स्वर्गदूत उनका अदृश्य अगुवा था, और यह कि बादल के स्तम्भ में आवृत, मसीह की उपस्थिति उनके आगे-आगे जाती थी, और मूसा उसी से सारे निर्देश प्राप्त करता था।PPHin 399.3

    भीड़ में मृत्यु को प्राप्त होने की भयंकर दण्डाज्ञा के आगे समर्पण करने को वे तैयार नहीं थे, और इस कारण वे प्रत्येक उस बहाने को पकड़ने को तैयार थे जो उन्हें विश्वास दिलाता था कि परमेश्वर नहीं वरन्‌ मूसा था जो उनकी अगुवाई कर रहा था और जिसने उनके सर्वनाश की घोषणा की थी। पृथ्वी पर वास करने वाले सबसे दीनमनुष्य के अति उत्तम प्रयत्न इन लोगों की दुर्विनीतता को दबा नहीं सके, और हालाँकि उनकी घटी हुई संख्या और खंडित टुकड़ियों में, उनकी पहले दिखाई गई भ्रष्टता पर परमेश्वर की अप्रसन्‍नता के चिन्ह, अभी भी उनके सामने थे, फिर भी उन्होंने हृदय से सबक नहीं सीखा। वे फिर से प्रलोभन में बह गए। उत्पाती प्राणियों की विशाल सभा का अगुवा होने की उसकी वर्तमान पदवी से अधिक, मूसा का दीन चरवाहे वाला जीवन इस जीवन से अधिक शान्तिपूर्ण और खुशहाल था। लेकिन मूसा ने दोनों में से एक को चुनने का दुस्साहस नहीं किया। चरवाहे की लाठी के स्थान पर उसे राजदण्ड थमा दिया गया था, जिसे वह तब तक नीचे नहींरख सकता था जब तक परमेश्वर उसे इस कर्तव्य से मुक्त ना करता ।PPHin 400.1

    जो हृदय की गुप्त बातों को पढ़ता है, उसने कोरह और उसके साथियों के प्रयोजन को भाँप लिया था, और उसने अपने लोगों को ऐसे चेतावनी और निर्देश दिये थे कि वे इन षड़यन्त्रकारियों के चँगुल से बच निकलने के योग्य हो जाते। मूसा के विरूद्ध ईर्ष्या और शिकायतों के कारण, मरियम पर आई परमेश्वर की दण्डाज्ञा को उन्होंने देखा था। प्रभु ने घोषित किया था कि मूसा नबी से सर्वश्रेष्ठ है। “उसके साथ में आमने-सामने होकर बात करूंगा ।” और उसने कहा, “क्या तुम मेरे दास मूसा के विरूद्ध बोलने से नहीं डरे?”गिनती 12:8। यह निर्देश केवल हारून और मरियम के लिये ही नहीं, वरन्‌ समस्त इज़राइल के लिये थे।PPHin 400.2

    कोरह और उसके सह-षड़यन्त्रकारी वे मनुष्य थे जिन पर परमेश्वर के सामर्थ्य और उसकी महानता के विशेष प्रदर्शनों द्वारा कृपा-दृष्टि थी। वे उनमें से थे जो मूसा के साथ पर्वत पर गए और जिन्होंने पवित्र तेज का दर्शन किया। लेकिन उस समय के तत्पश्चात एक परिवर्तन आया। एक प्रलोभन, जो पहले नगण्य था, विकसित होने दियागया था, और वह सशक्त हुआ और उसे तब तक प्रोत्साहित किया गया, जब तक सशक्त हुआ और उसे तब तक प्रोत्साहित किया गया, जब तक उनके मन शैतान द्वारा नियन्त्रित हो गए, और उन्होंने विद्रोह करने का अपना कार्य प्रारम्भ किया। लोगों की समृद्धि में रूचि रखने का दावा कर, उन्होंने आपस में पहले अपनी असन्तुष्टि प्रकट की और फिर उसे इज़राइल के प्रतिष्ठत मनुष्यों तक पहुँचाई । उनके परोक्ष संकेतों को इतनी तत्परता से ग्रहण किया गया कि वे विद्रोह कार्य में और आगे बड़े और अंत में स्वयं को, परमेश्वर के लिये जोश से, प्रेरित समझने लगे।PPHin 400.3

    वे ढाई सौ प्रधानों को, जो प्रजा में प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, अलग करने में सफल हुए। इन सशक्त और प्रभावशाली समर्थकों के होते हुये वे हारून और मूसा के शासन प्रबन्ध में सुधार लाने के लिये और शासन में सुधारवादी परिवर्तन करने के लिये निश्चित महसूस करने लगे।PPHin 401.1

    सन्देह ने ईर्ष्या को जन्म दिया था, और ईर्ष्या ने विद्रोह का जन्म दिया। उन्होंने मूसा के इतने अधिक सम्मान और अधिकार के प्रश्न पर परिचर्चा की थी और वे इस निष्कर्ष पर पहुँच गए थे कि मूसा एक वांछनीय पद पर आसीन था, जिसकी आपूर्ति उचित रूप से उनमें से कोई भी कर सकता था। ऐसा सोचने में उन्होंने स्वयं कोऔर एक-दूसरे को इस भ्रम में डाल दिया कि मूसा और हारून ने स्वयं उन पदों पर अधिकार जमा जिला जिन पर वे आसीन थे। असन्तुष्ट जन कहने लगे कि इन अगुवों ने संचालन और याजकता का दायित्व अपने ऊपर लेने में, स्वयं को प्रभु की प्रजा से ऊँचा पद दे दिया था, लेकिन उनके परिवार अन्य इज़राइलियों से अधिक विशिष्टता के लिये अधिकृत नहीं थे, वे प्रजा से अधिक पवित्र नहीं थे, और उनके लिये इतना पर्याप्त होना चाहिये कि वे अपने भाई-बन्धुओं के समान स्तरीय रहे, जो परमेश्वर की विशेष उपस्थिति और सुरक्षा से अनुग्रहीत थे।PPHin 401.2

    षड़यन्त्रकारियों का अगला कार्य लोगों से सम्बन्धित था। जो दोषी होते है, और दण्ड के योग्य होते है, वे प्रशंसा और सहानुभूति पाकर अत्यन्त प्रसन्‍न होते हैं। इस प्रकार कोरह और उसके समर्थकों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया और प्रजा का समर्थन प्राप्त किया। उस आरोप को, कि लोगों की कुड़कड़ाहट के कारण परमेश्वर का कोप भड़क उठा था, एक गलती घोषित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि प्रजा का कोई दोष नहीं था क्योंकि वे केवल अपने अधिकारों की कामना कर रहे थे, लेकिन मूसा एक दमनकारी शासक था और उसने लोगों को पापियों समान दण्डित किया था, जबकि वे पवित्र लोग थे और प्रभु उनके बीच में था।PPHin 401.3

    कोरह ने उनकी भीड़ में आरम्भ से लेकर अन्त तक की यात्रा के इतिहास की समीक्षा की, कहाँ उन्हें कठिन स्थानोंमें लाया गया, और कई अपनी कड़कुड़ाहट और अनाज्ञाकारिता के कारण नष्ट हुए। उसके सुनने वालों ने सोचा कि उन्होंने स्पष्ट रूप से देखा कि यदि मूसा ने कोई दूसरा मार्ग लिया होता तो वे इन विपत्तियों से बच सकते थे। वे कतसंकल्प थे कि उन पर आईं समस्त कठिनाईयों के लिये मूसा दोषी था, और कनान से उनका बहिष्कार हारून और मूसा के कुशासन का परिणाम था, और यह कि यदि कोरह उनका अगुवा होगा, और उन्हें अच्छे कर्मों पर ध्यान देने को प्रोत्साहित करेगा, बजाय इसके कि उनके पापों के लिये दण्डित करे, तो उनकी यात्रा शान्तिपूर्ण व सुखद होगी, भीड़ में इधर-उधर भटकने के बजाय वे सीधे प्रतिज्ञा के देश की ओर प्रस्थान करेंगे।PPHin 401.4

    विद्रोह के इस कार्य में प्रजा के असंगत तत्वों में, पहले से अधिक, एकता और सामन्जस्य था। लोगों के बीच कोरह की सफलता ने उसके आत्म-विश्वास में वृद्धि की और उसके इस विश्वास की पुष्टि की, कि यदि मूसा द्वारा अधिकार के हड़पने को अनदेखा किया गया, तो वह इज़राइल की स्वतन्त्रता के लिये घातक सिद्ध होगा, उसने यह भी दावा किया कि परमेश्वर ने इस विषय को उसके सम्मुख रखा था, और उसे अधिकृत किया था, कि बहुत देर होने से पहले वह शासन में परिवर्तन करे। लेकिन कई लोग कोरह के मूसा के विरूद्ध आरोपों को स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं थे। उसके धेरयशील, आत्म-त्यागी परिश्रम की स्मृति उनके समक्ष आ खड़ी हुईं और उनकी अन्तरात्मा बैचेन हो उठी। इस कारण यह अनिवार्य हो गयाकि इज़राइल के लिये उसकी गहरी रूचि को उसके किसी स्वार्थपूर्ण प्रयोजन के साथ जोड़ा जाए। पुराने आरोप को दोहराया गया कि वह उन्हें भीड़ में नष्ट करने के लिये लाया, ताकि वह उनकी धन-सम्पत्ति को लूट सके।PPHin 402.1

    कुछ समय तक यह कार्य गुप्त रूप से किया गया। लेकिन जैसे ही आन्दोलन प्रत्यक्ष अतिक्रमण की दस्तक देने के लिये पर्याप्त रूप से प्रबल हो गया, कोरह उपद्रवी दल के सिरे पर प्रकट हुआ और उसने सार्वजनिक तौर पर, मूसा और हारून पर उस अधिकार को हड़पने का अरोप लगाया, जिसका प्रयोग करने के लिये स्वयं कोरह और उसके सहयोगी अधिकृत थे। इसके अतिरिक्त यह आरोप भी लगाया गया किलोगों को उनकी स्वतन्त्रता से वंचित किया गया था। षड़यन्त्रकारियों ने कहा, तुमने बहुत किया, अब बस करो, क्‍योंकि सारी मण्डली का एक-एक मनुष्य पवित्र है, और यहोवा उनके मध्य में रहता है, इसलिये तुम यहोवा की मण्डली में ऊँचे पदवाले क्यों बन बैठे हो?” PPHin 402.2

    मूसा ने इस गहरे षड़यन्त्र का सन्देह भी नहीं किया था, और जब इसका भयानक अभिप्राय उसके सामने उभर कर आया परमेश्वर से चुपचाप विनती करते हुए वह मुँह के बल गिर पड़ा। उसे ईश्वरीय मार्गदर्शन प्रदान किया गया था। उसने मण्डली से कहा, “सवेरे यहोवा दिखला देगा कि उसका कोन है, और पवित्र कौन है, और उसको अपने समीप बुला लेगा, जिसको वह आप चुन लेगा, उसी को समीप बुला भी लेगा।” इस परीक्षा को सुबह तक के लिये स्थगित किया गया, ताकि सभी को विचार करने का समय मिल सके।जो याजकता की चाह रखते थे, उनमें से प्रत्येक को अपना-अपना धूपदान लाना था, और प्रजा की उपस्थिति में पवित्र मण्डप में धूप-बलि चढ़ानी थी। नियम एकदम सुस्पष्ट था कि जो इस पवित्र कार्य के लिये अभिषिक्‍त थे केवल वही मिलापवाले तम्बू की सेवा टहल करें। और नादाब और अभीहू भी, जो स्वयं याजक थे, सनातन आज्ञा की अवमानना करते हुए, बलि की विधि में ऊपरी आग’ का प्रयोग करने के कारण नाश को प्राप्त हुए। फिर भी मूसा ने उस पर आरोप लगाने वालों को चुनौती दी, कि यदि वे ऐसे खतरनाक आकर्षण से प्रभावित होने का दुस्साहस कर रहे थे, तो वे इस विषय को परमेश्वर के सुपुर्द करें।PPHin 402.3

    कोरह और उसके सह-लैवियों को मूसा ने विशेष रूप से कहा, “क्या यह तुम्हें छोटी बात जान पड़ती है कि इज़राइल के परमेश्वर ने तुम को इज़राइल की मण्डली से अलग करके अपने निवास की सेवा करने, और मण्डली के सामने खड़े होकर उसकी भी सेवा टहल करने के लिये अपने समीप बुला लिया है, और तुझे और तेरे सब लैवी भाईयों को भी अपने समीप बुला लिया है? फिर भी तुम याजक पद लेना चाहते हो? और इसी कारण तूने अपनी सारी मण्डली को यहोवा के विरूद्ध इकट्ठा किया है, हारून कौन है कि तुम उस पर बुड़बुड़ाते हो?”PPHin 403.1

    दातान और अबीराम ने इतना दुस्साहसी निर्णय नहीं लियाथा जैसा कि कोरह ने लिया था, और मूसा ने, यह आशा करते हुए कि षड़यंन्त्र में सम्मिलित हो जाने के बावजूद वे पूर्णतया भ्रष्ट नहीं हुए होंगे, उन्हें अपने सम्मुख बुलाया ताकि वह उन आरोपों को सुन सके जो उन्होंने मूसा पर लगाए थे। लेकिन वे नहीं आए और उन्होंने घृष्टता से मूसा के आधिपत्य को मानने से इन्कार कर दिया। प्रजा के सुनने में आने वाला उनका उत्तर था, “क्या यह एक छोटी बात है कि तू हम को ऐसे देश से, जिसमें दूध और मधु की धाराएँ बहती है, इसलिये निकाल लाया है कि हमें भीड़ में मार डाले, सिवाय इसके कि तू हमारे ऊपर प्रधान बनकर अधिकार जताता है? फिर तूने हमें ऐसे देश में जहाँ दूध और मधु की धाराएँ बहती है नहीं पहुँचाया, और न हमे खेतों और दाख की बारियों की धरोहर सौंपी, क्या तू इन लोगों की आंखो में धूल झोंकेगा? हम तो ऊपर नहीं आएँगे।”PPHin 403.2

    इस प्रकार उन्होंने अपने दासत्व के दृश्य में उसी भाषा का प्रयोग किया जिसका परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की मीरास का वर्णन करने में किया था। उन्होंने मूसा पर ईश्वरीय मार्गदर्शन के अनुसार कार्य करने का दिखावा करने का आरोप लगाया, जिससे वह अपना आधिपत्य स्थापित कर सके, और उन्होंने घोषणा कि वे अंधे व्यक्तियों की तरह, मूसा के महत्वाकांक्षी योजनाओं के अनुकूल, कभी कनान की और, कभी भीड़ की और उसके पीछे-पीछे नहीं चलेंगे। इस प्रकार जो एक विनम्र पिता और धीरजवन्त चरवाहे की तरह रहा था, उसे एक हड़पनेवाले और तानाशाह के दुष्टतापूर्ण चरित्र वाला बताया गया। उनके अपने निजी पापों के दण्ड के रूप में कनान से उनके बहिष्कार का आरोप भी मूसा पर लगाया गया।यह स्पष्ट था कि लोगों का समर्थन विरोधी दल के साथ था, लेकिन मूसा ने स्वयं को निर्दोष प्रमाणित करने का कोई प्रयत्न नहीं किया। प्रजा की उपस्थिति में, अपने आचरण की धार्मिकता और अपने प्रयोजनों की निर्मलता के साक्ष्य के तौर पर, उसने संजीदगी से परमेश्वर से विनती की और उससे याचना की कि वह उसका न्यायी हो।PPHin 403.3

    सवेरा होने पर, कोरह के नेतृत्व में, ढाई सौ प्रधान अपने-अपने धूपदान लेकर प्रस्तुत हुए । उन्हें मिलापवाले तम्बू के प्रॉगंण में लाया गया और परिणाम की प्रतीक्षा में लोग बाहर एकत्रित हुए। वह मूसा नहीं था जिसने कोरह और उसकी मण्डली की पराजय को देखने के लिये प्रजा को एकत्रित किया, बल्कि वे उपद्रवी थे, जिन्होंने अपनी निराधार परिकल्पना में, उन्हें अपनी विजय के साक्षी होने के लिये एक स्थान पर इकट्ठा किया था। मण्डली का बहुत बड़ा भाग खुलकर कोरह का पक्ष ले रहा था, जो हारून के विरूद्ध अपना दृष्टिकोण प्रमाणित करने के लिये आशान्वित था।PPHin 404.1

    इस प्रकार जब वे परमेश्वर के सम्मुख एकत्रित थे, “तब यहोवा का तेज सारी मण्डली को दिखाई दिया।” मूसा और हारून को चेतावनी दी गई, “उस मण्डली के बीच में से अलग हो जाओं ताकि मैं उन्हें क्षण भर में भस्म कर डालूँ।” लेकिन वे मुहँ के बल गिरकर प्रार्थना करने लगे, “हे ईश्वर, हे सब प्राणियों के आत्माओं के परमेश्वर, क्या एक पुरूष के पाप के कारण तेरा कोध सारी मण्डली पर होगा”?PPHin 404.2

    जब मूसा, सत्तर पुरनियों के साथ, उन मनुष्यों के पास आखिरी चेतावनी लेकर गया, जिन्होंने उसके पास आने में मना कर दिया था, तब कोरह, दातान और अबीराम के साथ जुड़ने के लिये सभा से पीछे हट गया था। भीड़ पीछे-पीछे गई, और सन्देश देने से पूर्व, पवित्र निर्देश द्वारा, मूसा ने लोगों से कहा, “तुम उन दुष्ट मनुष्यों के डेरों के पास से हट जाओ, और उनकी कोई वस्तु न छुओ, कहीं ऐसा न हो कि तुम भी उनके सब पापों में फँसकर मिट जाओ।” चेतावनी का पालन किया गया क्‍योंकि आने वाली दण्डाज्ञा का भय सभी पर छाया हुआ था। मुख्य उपद्रवियों ने स्वयं को उनसे परित्यक्त पाया, जिनको उन्होंने भ्रमित किया था लेकिन उनका साहस अविचलित था। वे अपने परिवारों के साथ अपने तम्बुओं के द्वार पर खड़े रहे, मानो ईश्वरीय चेतावनी को ललकार रहे हों।PPHin 404.3

    इज़राइल के परमेश्वर के नाम में, मूसा ने घोषणा की, जो प्रजा ने सुनी, “इस से तुम जान लोगे कि यहोवा ने मुझे भेजा है कि यह सब काम करूँ, क्‍योंकि मैं ने अपनी इच्छा से कुछ नहीं किया। यदि ये मनुष्यसभी मनुष्यों के समानसामान्य मृत्यु को प्राप्ततोे, और उनका दण्ड सब मनुष्यों के समान हो, तब जानो कि मैं यहोवा का भेजा हुआ नहीं हूँ। परन्तु यदि यहोवा अपनी अनोखी शक्ति प्रकट करे, और पृथ्वी अपना मुहँ पसारकर उनको, और उनका सब क॒छ निगल जाए, और वे जीते जी अधोलोक में जा पड़े, तो तुम समझ लो कि इन मनुष्यों ने यहोवा का अपमान किया है!”PPHin 404.4

    सभी आँखे मूसा पर टिकी हुई थी, और वे घटना की प्रतीक्षा में भय और अपेक्षा के साथ खड़े थे। जब वह ये सब बातें कह चुका, भूमि फट गईं और उपद्रवी गढ़हे में जीते जी समा गए और उनके साथ वह भी जो उनसे सम्बन्धित था और “वे मण्डली के बीच में से नष्ट हो गए।” पाप में भागीदार के तौर पर स्वयं को दोषी मान लोग वहाँ से भाग खड़े हुए।PPHin 405.1

    लेकिन दण्डाज्ञाएं समाप्त नहीं हुई । बादल के भीतर से आग निकली, और उन ढाई सौ धूप चढ़ानेवालों को भस्म कर डाला.ये व्यक्ति, मुख्य षड़यन्त्रकारियों के साथ नष्ट नहीं किये गए। क्योंकि ये उपद्रव में प्रथम नहीं थे। उन्हें अपना अन्त देखने की अनुमति दी गई और पश्चताप का अवसर दिया गया, लेकिन इनकी सहानुभूति विद्रोहियों के साथ थी, और इस कारण इनका अन्त भी वैसा ही हुआ।PPHin 405.2

    जब मूसा इज़राइल से आने वाले विनाश से भाग जाने की विनती कर रहा था, ईश्वरीय दण्डाज्ञा स्थगित हो सकती थी, यदि कोरह और उसकी मण्डली ने प्रायश्चित कर लिया होता और क्षमा मांगी होती। लेकिन उनकी हठी दृढ़ता ने उनका विनाश निश्चित कर दिया। पूरी प्रजा उनके पाप में सहभागी थी, क्योंकि सभी ने, चाहे थोड़ी चाहे बहुत, उनके साथ सहानुभूति रखी थी। लेकिन फिर भी करूणामय परमेश्वर ने विद्रोह के अगुवों और उनके द्वारा मार्गदर्शित लोगों में अन्तर दिखाया। स्वयं को भ्रमित होने देने की अनुमति देने वालों को प्रायश्चित का समय प्रदान किया। मूसा के सही होने का और उनके गलत होने का ठोस प्रमाण दिया गया था। परमेश्वर की सामर्थ्य के संकेतात्मक प्रदर्शन ने सम्पूर्ण संदिग्धता को मिटा दिया था।PPHin 405.3

    यीशु, वह स्वर्गदूत जो इब्रियों के आगे-आगे जाता था, उन्हें विनाश से बचाना चाहता था। क्षमा उनके लिये ठहरी हुईं थी। परमेश्वर का न्याय निकट था और उनसे पश्चताप की याचना कर रहा था। स्वर्ग की ओर से एक विशेष प्रबल हस्तक्षेप में विद्रोह को थाम लिया था। अब, यदि वे परमेश्वर द्वारा किये गए बीच बचाव पर प्रतिक्रिया दिखाते, तो वे बच सकते थे। लेकिन विनाश के डर से वे दण्डाज्ञा से भाग तो गए, लेकिन उनका विद्रोह ठीक नहीं हुआ। उस रात वे डरेहुए अपने तम्बुओं में लौट, लेकिन उन्हें पछतावा नहीं था। PPHin 405.4

    कोरह और उसकी मण्डली ने उनकी मिथ्या प्रशंसा करके उन्हें आश्वस्त कर दिया था कि वे भले लोग थे और उनका मूसा द्वारा शोषण किया गया था और उनके साथ गलत हुआ था। यदि वे स्वीकार करते कि कोरह और उसकी मण्डली गलत थे और मूसा सही था, तो भीड़ में मृत्यु का दण्ड वे उसी प्रकार ग्रहण करते जैसे कि परमेश्वर का वचन। वे इस बात को मानने के लिये तैयार नहीं थे और उन्होंने विश्वास करने का प्रयास किया कि मूसा ने उन्हें धोखा दिया था। उन्होंने बड़े चाव से इस आशा को संजोए रखा था कि एक नयी शासन प्रणाली का संस्थापन होगा जिसमें दण्ड के स्थान पर प्रशंसा और चिंता और कलहके स्थान पर विश्राम होगा। जो मनुष्य विनाश को प्राप्त हो गए थे उन्होंने प्रशंसापूर्ण शब्द कहे थे और उनके लिये अत्यन्त प्रेम और गहरी रूचि का दावा किया था और सुनने वाले लोगों ने इस निष्कर्ष पर पहुँच गए थे कि कोरह और उसके सहयोगी भद्र पुरूष रहे होंगे, और यह कि मूसा किसी प्रकार से उनके विनाश का कारण रहा था। PPHin 405.5

    मनुष्य के लिये परमेश्वर का इससे अधिक अपमान करना कदाचित ही सम्भव है कि वह उन्हीं के उद्धार के लिये परमेश्वर द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले माध्यमों को तिरस्क्त और अस्वीकार करे। इज़राइलियों ने केवल यह ही नहीं किया, वरन्‌ मूसा और हारून दोनों को मार डालने की भी योजना बनाई। फिर भी उन्‍होंने परमेश्वर से अपने जघन्य पाप के लिये क्षमा माँगने की आवश्यकता को नहीं समझा । परख अवधि कीवह रात पश्चताप और पापों का अंगीकार करने में नहीं, वरन्‌ उन्हें पापियों में सबसे श्रेष्ठ बताने वाले प्रमाणों का प्रतिरोध करने के उपायों को ढूंढने में व्यतीत की गई। वे अभी भी परमेश्वर द्वारा नियुक्त व्यक्तियों के लिये घृणा पाले हुए थे, और उनके आधिपत्य का प्रतिरोध करने के लिये उन्होंने स्वयं को तैयार किया। उनके निर्णय को विकृत करने और उन्हें.उनकी आँखों पर पट्टी बाँधकर,विनाश की ओर ले जाने के लिये शैतान आस-पास ही था।PPHin 406.1

    जो अधोलोक में समा गए थे, उन दण्डित पापियों की चिल्‍लाहट पर समस्त इज़राइल भाग खड़ा हुआ था, क्योंकि, वे कहने लगे, “हमें भी भूमि निगल ना ले।” लेकिन “दूसरे दिन इज़राइलियों की सारी मण्डली यह कहकर मूसा और हारून पर बड़बड़ाने लगी कि यहोवा की प्रजा को तुमने मारा है।” और वे अपने निष्ठावान, आत्म-त्यागी अगुवों के विरूद्ध हिंसा पर उतरने वाले ही थे।PPHin 406.2

    मिलापवाले तम्बू के ऊपर बादल में पवित्र तेज का प्रदर्शन दिखाई दिया और बादल में से एक आवाज ने मूसा और हारून को सम्बोधित किया, “तुम मण्डली के बीच में से निकल जाओ, ताकि मैं इन्हें क्षण-भर में भस्म कर दूँ।”PPHin 406.3

    पाप का दोष मूसा पर नहीं था, इसलिये उसे डर नहीं था और वह मण्डली को नष्ट होने देने के लिये छोड़ कर नहीं गया। इस भयावह संकट के समय भी वह विलम्ब करता रहा, और उसने उसकी देखरेख में की भेड़ो में अच्छे चरवाहे की रूचि का प्रमाण दिया। उसने परमेश्वर से विनती की कि परमेश्वर का कोप उसके चुने हुए लोगों की पूरी तरह नष्ट न करे। अपनी मध्यस्थता के द्वारा मूसा ने प्रतिशोध के हाथ को थाम लिया, ताकि अनाज्ञाकारी, उपद्रव इज़राइल का सर्वनाश न हो।PPHin 406.4

    लेकिन कोप का कर्मक आगे बड़ चुका था, महामारी मृत्यु देने का काम कर रही थी। अपने भाई के निर्देशानुसार, हारून ने एक धूपदान लिया और वह ‘उनके लिये प्रायश्चित करने” मण्डली के बीच में गया। “वह मृतकों और जीवित लोगों के बीच में खड़ा हुआ।” धूप के धुएं के साथ मिलापवाले तम्बू से मूसा की प्रार्थनाएं भी परमेश्वर के पास ऊपर गई, और महामारी को स्थगित कर दिया गया, लेकिन तब तक चौदह हजार इज़राइली मरे पड़े थे, और यह बड़बड़ाहट और विद्रोह के पाप का प्रमाण था।PPHin 407.1

    याजकता का हारून के परिवार में स्थापित होने का अतिरिक्त प्रमाण भी दिया गया। पवित्र निर्देश के द्वारा प्रत्येक गोत्र ने एक-एक छड़ी तैयार की और उस पर गोत्र या घराने का नाम लिखा। हारून का नाम लैवी के नाम वाली छड़ी पर था। सभी छड़ियों को मिलापवाले तम्बू में “वाचा के सन्दूक के सामने” रखा गया। किसी भी छड़ी पर कलियों और फल-पत्तों का उभर आना इस बात का प्रतीक था कि परमेश्वर ने उस गोत्र या परिवार को याजकता के लिये चुना है। सुबह होने पर, “हारून की वह छड़ी जौ लैवी वंश की थी, एक मात्र ऐसी थी जिससे नयी पत्तियाँ उगनी आरम्भ हुई थी।” उस छड़ी को लोगों को दिखाया गया, और उसके पश्चताप उसे आने वाली पीढ़ियों के लिये साक्षी के तौर पर मिलाप वाले तम्बू में रख दिया गया। इस चमत्कार ने याजकता के विवादित विषय का समाधान कर दिया।PPHin 407.2

    अब यह पूरी तरह प्रमाणित हो गया था कि मूसा और हारून ने ईश्वरीय अधिकार से बाते कही थी, और लोग, भीड़ मेंमृत्यु को प्राप्त होने के कटु सत्य पर विश्वास करने के लिये विवश हो गए। वे बोले, “हमारे प्राण निकले जाते है, हम नष्ट हुए, हम सब के सब नष्ट हुए जाते है।” उन्होंने अंगीकार किया कि अपने अगुवों के विरूद्ध विद्रोह में उन्होंने पाप किया था, और यह कि कोरह और उसके सहयोगियों ने परमेश्वर का न्यायसंगत दण्ड भुगता था।PPHin 407.3

    कोरह के विद्रोह में, एक छोटे प्रदर्शन मंच पर, उसी भावना का कियाशील होना दिखाई देता है, जिसके प्रभाव में शैतान ने स्वर्ग में विद्रोह किया। वह घमण्ड और महत्वाकांक्षा ही थे जिन्होंने लूसिफेर को परमेश्वर की सत्ता के विरूद्ध शिकायत करने को उकसाया और स्वर्ग में स्थापित शासन-प्रणाली को उखाड़ फेंकने का प्रयास करवाया । उसके पतन के समय से उसका लक्ष्य रहा है कि वह मनुष्य के मन में असन्तोष और ईर्ष्या की उसी भावना, पद और सम्मान की उसी महत्वाकांक्षा को जागृत करे। इसी प्रकार उसने कोहर, दातान और अबीराम के मनों में डाह, अविश्वास और विद्रोह को उकसाया और आत्म-उनन्‍नति की अभिलाषा को जागृत किया। शैतान के प्रभाव में आकर उन्होंने परमेश्वर द्वारा नियुक्त मनुष्यों को तिरस्कार किया और इस प्रकार परमेश्वर का उनका अगुवा होने का भी तिरस्कार किया। मूसा और हारून के विरूद्ध कुड़कड़ाने में उन्होंने परमेश्वर की निंदा की और इसमें वे इतने भ्रमित हो गए थे कि वे स्वयं को धर्मी और उनके पापों को धिक्‍्कारने वालों को शैतान द्वारा प्रेरणा प्राप्त समझने लगे थे। कोरह के विनाश का कारण, ये बुराईयाँ, क्‍या वर्तमान में विद्यमान नहीं है? घमण्ड और महत्वाकांक्षा व्यापक है, और जब इन्हें संजोया जाता है, तो यह ईर्ष्या के लिये और आधिपत्य के प्रयास के लिये द्वार को खोल देते है, औरमनुष्य परमेश्वर से अलग हो जाता है और अनजाने में शैतान की मण्डली में खिंच जाता है। कोरह और उसके सहभागियों की तरह कई लोग, वे भी जो यीशु के तथाकथित अनुयायी हैं, स्वयं के उत्थान या पदोन्‍नति के लिये इतनी व्यग्रता से सोच-विचार कर रहे हैं, योजना बना रहे हैं और प्रयास कर रहे हैं कि परमेश्वर के दासों का गलत प्रतिनिधित्व करके उहें झूठा ठहरा कर, और उन पर ऐसे नीच और स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों का आरोप लगाकर, जो स्वयं उनके हृदयों को प्रेरित करते है, वे लोगों का समर्थन और सहानुभूति पाने के लिये सत्य को विकृत करने के लिये तैयार है। सभी प्रमाणों के विरूद्ध मिथ्या को लगातार दोहराने से, वे अनन्त: उसे ही सत्य मानने लगते है। परमेश्वर द्वारा नियुक्त व्यक्तियों पर से लोगों का विश्वास उठा देने का प्रयास करने में, वे वास्तव में विश्वास करते हैं कि वे एक अच्छे काम में व्यस्त है, और तत्परता से परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं।PPHin 407.4

    इब्री परमेश्वर के प्रतिबन्धों और निर्देशों का पालन करने के लिये तैयार नहीं थे। वे नियन्त्रित किये जाने पर अधीर हो जाते थे और फटकार प्राप्त करने के लिये अनिच्छुक मूसा के विरूद्ध उनकी कड़कुड़ाहट का यही रहस्य था। यदि उन्हें अपनी ही इच्छाएं पूरी करने के लिये छोड़ दिया जाता तो उनके अगुवे के विरूद्ध उनकी शिकायतें कम होती। कलीसिया के इतिहास में आरम्भ से अन्त तक परमेश्वर के दासों को इसी भावना का सामना करना पड़ा है।PPHin 408.1

    पापमय अतिभोग के माध्यम ही से मनुष्य शैतान को अपने मन में आने देता हैं और वे दुष्टता के एक चरण से दूसरे चरण में चला जाते हैं। प्रकाश का तिरस्कार बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है और हृदय को कठोर बना देता है,जिससे मनुष्य के लिये पाप में अग्रसर होना और बेहतर प्रकाश का तिरस्कार करना आसान हो जाता है जब तक कि उनकी कुकर्म करने की आदतें जड़ पकड़ लेती हैं। पाप उन्हें पाप प्रतीत नहीं होता है। जो परमेश्वर के वचन का श्रद्धापूर्वक प्रचार करता है और उसके द्वारा उनके पापों को धिक्कारता हैं, वो उनकी घृणा का पात्र हो जाता है। सुधार के लिये अनिवार्य त्याग और कष्ट को सहन करने के लिये विमुख वे परमेश्वर के दास के विरूद्ध हो जाते है, और उसकी फटकार को कठोर और नागवार ठहराते हैं। कोरह के समान वे लोगों के निर्दोष होने की घोषणा करते है और डॉटने वाले को सारे कष्टों का कारण बताते हैं। उनकी अन्तरात्मा को इस भ्रम से शान्त करते हुए, कलीसिया में असामन्जस्य का बीज बोने के लिये और कलीसिया के प्रत्याशित समर्थकों के हाथों को शक्तिहीन करने के लिये, ईर्ष्यालु और असंतुष्ट लोग एक हो जाते है।PPHin 408.2

    जिन्हें परमेश्वर ने उसके काम में अगुवाई करने के लिये चुना है, उनके प्रत्येक प्रयास ने सन्देह को उत्पन्न किया है, उनके हर कार्य को ईर्ष्यालु और मीन-मेक निकालने वालों द्वारा तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया है। ऐसा ही लूथर, वेसली और अन्य सुधारकों के समय में था, आज भी ऐसा होता है।PPHin 409.1

    कोरह ने वह मार्ग नहीं चुना होता जो उसने चुना यदि उसने विश्वासमें यह जाना होता कि इज़राइल को दिये गए सभी निर्देश और ताड़ना परमेश्वर की ओर से थे ।काश कि उसने यह जाना होता। परमेश्वर ने ठोस प्रमाण दिया था कि इज़राइल की अगुवाई वह स्वयं कर रहा था। लेकिन कोरह और उसके सहयोगी प्रकाश का तब तक तिरस्कार करते रहे, जब तक कि वे इतने अन्धे हो गए कि परमेश्वर के सामर्थ्य के सबसे प्रभावशाली प्रदर्शन भी उन्हें विश्वास दिलाने के लिये पर्याप्त नहीं थे, उन सभी प्रदर्शनों का श्रेय उन्होंने मानवीय या शैतानी शक्ति को दिया। ऐसा ही उन लोगों ने किया जो कोरह के विनाश के तत्पश्चात मूसा और हारून के पास से कहते हुए, आए, “तुमने परमेश्वर के लोगों को मार डाला है।” बावजूद इसके कि उन्हें भ्रमित करने वालो लोगों के विनाश में, उनके पास उनके चुने हुए मार्ग पर परमेश्वर की अप्रसन्‍नता का सबसे अधिक विश्वसनीय प्रमाण था, यह घोषणा करते हुए कि शैतान की शक्ति के माध्यम से मूसा और हारून ने सिद्ध और भले मनुष्यों को मारा था, उन्होंने परमेश्वर की दण्डाज्ञाओं का उत्तरदायी शैतान को ठहराया। उनके इसी कृत्य ने उनके विनाश पर मुहर लगा दी। उन्होंने पवित्र आत्मा के विरूद्ध पाप किया था, वह पाप जिसके द्वारा, ईश्वरीय अनुग्रह के प्रभाव के प्रति, मनुष्य का हृदय प्रभावोत्पादक ढंग से कठोर हो जाता है। मत्ती 12:32में लिखा है, “जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहेगा, उसका यह अपराध क्षमा किया जाएगा, परन्तु जो कोई पवित्र आत्मा के विरोध में कुछ कहेगा, उसका अपराध न तो इस लोक में और न परलोक में क्षमा किया जाएगा।” ये शब्द हमारे उद्धारकर्ता द्वारा तब कहे गए जब परमेश्वर की सामर्थ्य के द्वारा जो अनुग्रह के कार्य उसने किये थे, उनका श्रेय यहूदियों ने शैतान को दिया। पवित्र आत्मा के माध्यम से परमेश्वर मनुष्यके साथ संपर्क करता है, और जो इस माध्यम से शैतानी मानकर जानबूझकर अस्वीकार करते है, वे स्वर्ग और प्राणी के बीच संपर्क का साधन नष्ट कर देते हैं।PPHin 409.2

    परमेश्वर पापी को उसके पाप का एहसास दिलाने और उसको फटकारने के लिये अपनी पवित्र आत्मा की अभिव्यक्ति के द्वारा काम करता है, और यदि पवित्र आत्मा के कार्य को अन्तत: अस्वीकार कर दिया जाता है तो परमेश्वर मनुष्य के लिये और कुछ नहीं कर सकता। अनुग्रह का अन्तिम स्रोत भी उपयोग हो गया। अपराधी स्वयं को परमेश्वर से अलग कर लेता है और पाप के पास स्वयं को निरोग करने की कोई उपाय नहीं। ऐसी कोई आरक्षित शक्ति नहीं जिसके द्वारा परमेश्वर पापी के परिवर्तन और दोष-सिद्धि के लिये काम कर सके। पवित्र आज्ञा यह है कि “उसे अकेला छोड़ दो।” होगी 4:17, फिर “पापों के लिये कोई बलिदान बाकी नहीं! हां, दण्ड की भयानक प्रतीक्षा और कोध की भीष्ण अग्नि ही शेष रह जाते हैं, जो परमेश्वर के विरोधियों को भस्म कर देंगे ।”-इब्रानियों 10:26,27PPHin 410.1

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