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कुलपिता और भविष्यवक्ता - Contents
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    अध्याय 49—यहोशू का अन्तिम संदेश

    यह अध्याय यहोशू 23 और 24 पर आधारित है

    युद्ध के समाप्त होने पर, यहोशू तिम्नत्सेहर में अपने घर के शान्तिपूर्ण एकान्त स्थान में चला गया था। ““इसक बहुत दिनों के बाद, जब यहोवा ने इज़राईलियों को उनके चारों और के शत्रुओं से विश्राम दिया, तब यहोशू ने सब इज़राईलियों को, अर्थात पुरनियों, मुख्य पुरूषों, न्‍्यायियों और सरदारों को बुलवाया।”PPHin 534.1

    प्रजा को अपने-अपने निज भाग में बसे हुए कुछ ही बर्ष बीते थे, और वही बुराईयों उत्पन्न होने लगी थी जिनके कारण इज़राइल को दबण्डाज्ञा मिली थी। जैसे-जैसे यहोशू को आयु सम्बन्धित दुर्बलता महसूस होने लगी, और उसे लगा कि उसका कार्य काल सामप्त होने को था, वह अपनी प्रजा के लोगों के भविष्य को लेकर चिन्ता से भर गया। जब वे अपने वृद्ध मुखिया के चारों ओर इकट्‌ठे हुए, तो उसने एक पिता से अधिक रूचि के साथ उन्हें सम्बोधित किया, “तुम ने देखा है कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे निमित्त इन सब जातियों के लिये क्या क्‍या किया, क्योंकि जो तुम्हारी ओर से लड़ता आया है वह तुम्हारा परमेश्वर यहोवा है।’PPHin 534.2

    हालाँकि कनानियों को अधीकृत कर लिया गया था, लेकिन अभी भी इज़राइल को प्रतिश्रुत देश का काफी बड़ा भाग उनके अधिकार में था, और यहोशू ने अपने लोगों से आग्रह किया कि वे आराम से न बैठ जाएँ और ना ही उन मूर्तिपूजक जातियों को पूरी तरह अनाधिकृत करने के परमेश्वर के आदेश को भूले।PPHin 534.3

    सामान्य रूप से प्रजा मूर्तिपूजकों को बाहर करने के कार्य को समाप्त करने में ढीले थे। गोत्र अपने-अपने निज भागों में तितर-बितर हो गए थे, सेना भंग हो गई थी, और युद्ध दोबारा छेड़े जाना एक कठिन और सन्देहजनक कार्य प्रतीत हो रहा था। लेकिन यहोशू ने घोषणा की, “तुम्हारा परमेश्वर यहोवा उनको तुम्हारी सामने से उनको देश से निकाल देगा, और तुमअपने परमेश्वर यहोवा के वचन के अनुसार उनके देश के अधिकारी हो जाओगे। इसलिये हियाव बांधकर, जो कुछ मूसा की व्यवस्था की पुस्तक में लिखा है, उसको पूरा करने में चौकसी करना, उससे न तो दाहिने मुड़ना और न बाएं।’PPHin 534.4

    यहोशू ने लोगों को ही साक्षी मान अनुरोध किया कि जब तक वे नियमों से सहमत थे, परमेश्वर ने उनसे की हुईप्रतिज्ञाओं को पूरा किया। “तुम सब अपने-अपने हृदय और मन में जानते हो, कि जितनी भलाई की बातें हमारे पमरेश्वर यहोवा ने हमारे विषय में कहीं उनमे से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही ।” उसने घोषणा की कि “जैसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की कही हुईं भलाई की सब बातें तुम पर घटी है, वैसे हीयहोवा विपत्ति की सब बातें भी तुम पर लाएगा.........जब तुम उस वाचा का उल्लंघन करोगे, तब यहोवा का कोप तुम पर भड़केगा, और तुम इस अच्छे देश में से जिसे उसने तुम को दिया है, शीघ्र नष्ट हो जाओंगे। PPHin 535.1

    शैतान इस संभावित मत से बहुतों को बहकाता है कि लोगों के लिये परमेश्वर का प्रेम इतना महान है कि परमेश्वर के वचन में दी गई चेतावनियाँ उसके नैतिक शासन में एक विशेष उद्देश्य के लिये है, लेकिन वे यथाशब्द कभी पूरी नहीं होगी। लेकिन परमेश्वर ने मनुष्य के अपने सभी कार्यों में सिद्धान्तों को कामय रखा है, और उदाहरण सहित यह समझाया है कि उसके परिणामस्वरूप कष्ट और मृत्यु निश्चित है। पाप की अप्रतिबंधित क्षमा न कभी हुई है और ना कभी होगी। इस प्रकार की क्षमा धार्मिकता के सिद्धान्तों का परित्याग प्रकट करेगी, वे सिद्धान्त जो परमेश्वर की सत्ता का आधार हैं। यह अपतित ग्रहों को आश्चर्यचकित कर देगी । परमेश्वर ने सच्चाई से पाप के परिणामों की ओर संकेत किया है, और यदि ये चेतावनियाँ सत्य नहीं थी, तो उसकी प्रतिज्ञाओं के पूरे होने के बारे में हम कैसे निश्चित होते, वह तथाकथित उदारता जो न्याय को परे रख देती है वह उदारता नहीं दुर्बलता है। PPHin 535.2

    परमेश्वर जीवनदाता है। प्रारम्भ से ही उसके सारे नियम जीवन के लिये नियुक्त थे। लेकिन परमेश्वर द्वारा स्थापित कम को पाप ने भंग कर दिया, और परिणाम था असामन्जस्य। जब तक पाप विद्यमान रहेगा, दुख औरपाप निश्चित है। केवल इसलिये कि उद्धारकर्ता ने हमारे लिये पाप के श्राप का वहन किया, मनुष्य पाप के परिणाम से छुटकारे की आशा कर सकता है।PPHin 535.3

    यहोशू की मृत्यु से पहले, उसकी आज्ञा का पालन कर, गोत्रों के प्रतिनिधि और प्रधान फिर से शेकेम में एकत्रित हुए। पूरे देश में कोई भी स्थान ऐसा नहीं था जहाँ इतने सारे पवित्र संसर्ग थे, जो उन्हें अब्राहम और याकूब के साथ बाँधी वाचा का स्मरण कराते थे और कनान में उनके प्रवेश के समय ली गई उनकी शपथ की भी याद दिलाते थे। ऐबाल और गिरिज्जिम पर्वत उन शपथों के मूक साक्षी थे, जिन्हें दोहराने के लिये वे अपने मरते हुए अगुवे की उपस्थिति में इकट॒ठे हुए थे। चारों ओर प्रमाण थे उन कार्यों के जो परमेश्वर ने उनके लिये किये थे, किस तरह उसने उन्हें वह देश जिसके लिये उन्होंने श्रम नहीं किया, वे नगर जिनका निर्माण उन्हों नहीं किया, दाख की बारियाँ जिनको उन्‍होंने नहीं रोपा दिये थे। यहोशू ने एक बार फिर परमेश्वर के आश्चर्यजनक कार्यों का वर्णन करते हुए इज़राइल के इतिहास को दोहराया, जिससे कि सबको उसकी दया और उसके प्रेम का आभास हो और वे “आत्मा और सच्चाई से” उसकी आराधना करे।PPHin 535.4

    यहोशू के निदंश द्वारा सन्दूक शीलो से लाया जा चुका था। यह एक विधिवत समारोह था, और परमेश्वर की उपस्थिति का यह प्रतीक उन पर उस प्रभाव को गहरा कर सकताथाजिसे वह करना चाहता था। परमेश्वर की भलाई को इज़राइल पर प्रकट करने के पश्चात, उसने यहोवा के नाम में उन्हें चयन करने को कहा कि वे किसकी उपासना करेंगे। मूर्तियों की पूजाअभी भी गुप्त रूप से किसी हद तककी जाती थी और यहोशू ने उन्हें निर्णय पर पहुँचाने का प्रयत्न किया, जिससे वे इज़राइल के इस पाप को निर्वांसित कर दे। उसने उनसे कहा, “यदि यहोवा की सेवा करना तुम्हें बुरा लगे, तो आज चुन लो कि तुम किस की सेवा करोगे।” यहोशू चाहता था कि वे परमेश्वर की सेवा, दबाव में आकर नहीं, वरन्‌ स्वेच्छा से करें। परमेश्वर के लिये प्रेम धर्म का आधार है। प्रतिफल की उपेक्षा में या दण्ड के भय से उसकी सेवा में व्यस्त होने से कोई लाभ नहीं। निरी औचारिक आराधना और पाखंड परमेश्वर के लिये उतना ही दुखदायी है जितना कि प्रत्यक्ष अधर्मी।PPHin 536.1

    वृद्ध अगुवे ने लोगों से आग्रह किया कि जो भी उसने उनके सम्मुख प्रस्तुत किया था, उससे संबंधित सब बातों पर सोच-विचार कर निष्कर्ष पर पहुँचे कि क्‍या वे वास्तव में अपने चारों ओर के पतित मूर्तिपूजक जातियों की तरह अपना जीवन व्यतीत करना चाहते थे। यदि उन्हीं आशीष के सोते, शक्ति के स्रोत, यहोवा की सेवा करना बुरा लगता था, तो वे उसी दिन चुनाव करे कि वे किसी सेवा करेंगे-- “उन देवताओं की जिनकी सेवा उनके पुरखा करते थे” जिनमें से अब्राहम को बुलाया गया था, “या एमोरियों के देवताओं की, जिनके देश में वे रहते थे।” ये अन्तिम शब्द इज़राइल के लिये कड़ी निन्दा थे। ऐमोरियों के देवता अपने उपासकों की रक्षा नही कर पाए थे। उनके छृणास्पद और भ्रष्ट करने वाले पापों के कारण, इस दुष्ट राज्य को नष्ट कर दिया गया था और उनका अधिकृत समृद्ध प्रदेश परमेश्वर के लोगों को देदिया गया था। यह इज़राइलियों की कैसी मूर्खता थी कि उन्होंने उन देवी-देवताओं को चुना जिनके जिनके लिये एमोरियों को नष्ट कर दिया गया था। “मैं ओर मेरा घराना तो यहोवा की सेवा करेगा”, यहोशू ने कहा। जो पवित्र उत्साह अगुवे के हृदय को प्रेरणा देता था, उसी उत्साह का प्रजा में संचार हुआ। उसके निवेदन का उन्होंने बिना हिचकिचाहट के उत्तर दिया, “यहोवा को त्याग कर, दूसरे देवताओं की सेवा करने से परमेश्वर हमें दूर रखे।”PPHin 536.2

    यहोशू ने कहा, “तुम यहोवा की सेवा नहीं कर सकते, क्योंकि वह पवित्र परमेश्वर है, वह तुम्हारे अपराध और पाप क्षमा नहीं करेगा।” स्थायी दोषनिवृत्ति होने से पूर्व लोगों को परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी होने की अपनी असमर्थता का आभास करवाना आवश्यक है। उन्होंने उसकी व्यवस्था को भंग किया था, वह उन्हें आज्ञा का उल्लंघन करने का दोषी ठहराती थी, और वह बचने का कोई उपाय नहीं प्रदान करती थी। जब तक उन्हें अपने निजी समार्थ्य और धार्मिकता में विश्वास था, उनके लिये क्षमा दान प्राप्त करना असम्भव था; वे परमेश्वर की पवित्र व्यवस्था की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सकते थे, और उनका परमेश्वर की सेवा करने की शपथ लेना ब्थर्थ था। उन्हें उद्धार के लिये अपने निजी प्रयत्नों पर निर्भर करना छोड़ना होगा और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत होने के लिये पूर्णतया प्रतिश्रुत उद्धारकर्ता की योग्यता में पूरी तरह विश्वास करना होगा।PPHin 537.1

    यहोशू ने प्रयत्न किया कि उसके श्रोता उसके शब्दों पर गौर करें और ऐसी शथप लेने से पीछे रहे जिन्हें पूरी करने के लिये वे तैयार नहीं थे। उन्होंने गम्भीरतापूर्वक अपने कथन को दोहराया, “नहीं, हम यहोवा की ही सेवा करेंगे।” आप ही अपनी साक्षी होकर कि उन्होंने यहोवा को चुना था, उन्होंने एक बार फिर स्वामिभक्ति की शपथ खाई, “हम तो अपने परमेश्वर यहोवा ही की सेवा करेंगे, और उसी की बात मानेंगे।”PPHin 537.2

    “तब यहोशू ने उसी दिन उसी दिन उन लोगों के साथ वाचा बाँधी, और शकम में उनक लिये विधि और नियम ठहराए ।” इस विधिवत कार्यवाही के वृतान्त को लिखकर, उसने इसे “व्यवसाय की पुस्तक’ के साथ, सन्दूक में एक किनारे रख दिया। और स्मारक के प्रतीक के रूप में एक पत्थर की शिला को खड़ा किया, और कहा कि “यह पत्थर हम लोगों का साक्षी रहेगा, क्योंकि जितने वचन यहोवा ने हमसे कहे हैं, उन्हें इसने सुना है, इसलिये यह तुम्हारा साक्षी रहेगा, ऐसा न हो कि तुम अपने परमेश्वर से मुकर जाओ।” तब यहोशू ने लोगों को अपने निज भाग पर जाने के लिये विदा किया।PPHin 537.3

    इज़राइल के लिये यहोशू का कार्य समाप्त हुआ। उसने “सम्पूर्णता से प्रभु का अनुसरण किया था” और परमेश्वर की पुस्तक में उसे, “यहोवा का दास” कहकर लिखा गया है। प्रजा के अगुवे के रूप में उसके चरित्र का श्रेष्ठतम साक्ष्य है, उन पीढ़ियों का इतिहास, जिन्होंने उसके श्रम का आनन्द लिया, ‘यहोशू के जीवन भर, और जो वृद्ध लोग यहोशू के मरने के बाद जीवित रहे, उनके भी जीवन भर इजराइली यहोवा ही की सेवा करते रहे।”PPHin 538.1

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