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कुलपिता और भविष्यवक्ता - Contents
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    अध्याय 33—सिने से कादेश तक

    यह अध्याय गिनती 11 और 12 पर आधारित है

    इज़राइल के सिने में आराम के पश्चात्‌ कुछ समय तक पवित्र मण्डप का निर्माण आरम्भ नहीं हुआ, और निर्गमन के दूसरे वर्ष के आरम्भ में इस पवित्र आकार को सबसे पहले खड़ा किया गया। इसके बाद हुआ याजकों का अभिषेक, फसह का पर्व, जनगणना, धार्मिक व नागरिक सम्बन्धी प्रणालियों के लिये अनेक आवश्यक व्यवस्थाओं की निवृति, ताकि सिने के पड़ाव में एक वर्ष बिताया जा सके। यहाँ उनकी आराधना ने एक निश्चित रूप धारण किया; लोगों के संचालन के लिये आज्ञाएँ दी गई और कनान में उनके प्रवेश से पहले एक और अधिक कार्यकुशल संगठन नियोजित किया गया।PPHin 377.1

    इज़राइल की शासन-प्रणाली सुव्यवस्थित प्रबन्धन के लिये प्रख्यात थी और इसी प्रकार अपनी सहजता और सम्पूर्णता में अद्भुत थी। परमेश्वर द्वारा सृजित कृतियों के आयोजन और सर्वोत्कष्टता में आश्चर्यजनक ढंग से व्यक्त सुव्यवस्था इब्रानी अर्थव्यवस्था में स्पष्ट थी। परमेश्वर इज़राइल का संप्रभु, सत्ता और अधिकार का केन्द्र था। परमेश्वर के नाम में नियमों को कार्यान्वित करने के लिये, परमेश्वर द्वारा नियुक्त, मूसा उनके प्रत्यक्ष अगुवे के रूप में खड़ा हुआ। तत्पश्चात घरानों के पुरनियों में से, राष्ट्र के जाति-सम्बन्धी विषयों में मूसा की सहायता करने के लियेसत्तरकी एकसभाचुनी गई। इसके बाद थे याजकजोमिलापवाले तम्बू में परमेश्वर से सम्मति लेते थे।गोत्रों या घरानों पर प्रधानों या राजकूमारों का राज चलता था। उनके नीचे “हजार-हजार, सौ-सौ, पचास-पचास और दस-दस के ऊपर मुखिया थे” और, अन्त में थे वे अधिकारी जो विशेष कार्यों के लिये नियुक्त किये जाते थे। (व्यवस्थाविवरण 1:15) PPHin 377.2

    इब्रानी छावनी को बिल्कुल सही कम में व्यवस्थित किया गया था। वह तीन भागों में विभाजित था, और प्रत्येक का छावनी में नियुक्त स्थान था। मध्य में पवित्र मण्डप था, जो अदृश्य राजा का निवास-स्थान था। इसके चारों ओर याजकों और लैवियों को रखा गया था। इनके परे सभी अन्य गोत्रों के डेरे थे।PPHin 377.3

    लैवियों को, छावनी में और यात्रा के दौरान, पवित्र मण्डप और उससे सम्बद्ध सब कुछ का प्रभार सॉंपा गया। जब शिविर कूच करता था तो पवित्र मण्डप को निकालाजाता था, और ठहरने के स्थान पर आकर वे उसे फिर से जमाते थे। अन्य गोत्र के किसी भी व्यक्ति को, बिना मृत्यु की पीड़ा सहे, उस मण्डप के पास आने की अनुमति नहीं थी। लैवियों को भी तीन वर्गों में बाँटा गया था, ये लैवी के तीन पुत्रों के वंशज थे और प्रत्येक वर्ग का काम और विशिष्ट स्थान नियुकत किया गया। पवित्र मण्डप के सामने और उसके सबसे निकट, हारून और मूसा के तम्बू थे। दक्षिण में कहातियों के कुल का निवास था, और उन पर सन्दूक और अन्य सेवा-टहल के सामान की देख-रेख का उत्तरदायित्व था, उत्त्र में मरारी थे जो स्तम्भों, तख्तो, बेड़ों इत्यादि के प्रभारी बनाए गए, पश्चिम की ओर गेशाौनी थे, जिनको निवास और तम्बू का आवरण और परदों और डोरियों की देख-रेख का उत्त्रदायित्व सौंपा गया।PPHin 377.4

    प्रत्येक घराने का स्थान निर्धारित किया गया। प्रत्येक को कूच करके अपने झण्डे के पास पड़ाव डालना था जैसे कि परमेश्वर ने आदेश दिया था, “इज़राइली मिलापवाले तम्बू के चारों ओर औरउसके सामने अपने-अपनेझण्डे और अपने-अपने पितरों के घराने के निशान के समीप अपने डेरे खड़े करें। जिस कम से वे डेरे खड़े करें, उसी कम से वे अपने-अपने स्थान पर अपने-अपने झण्डे के पास-पास चलें।”-गिनती 2:2,17। मिस्र सेमिश्रित जनसाधारण भी इज़राइलियों के साथ आये। मिश्रित जनसाधारण को घरानों वाले निवासों में रहने की अनुमति नहीं दी गई, लेकिन उनको छावनी के सीमांत पर निवास करना था, और तीसरी पीढ़ी तक उनके वंशजो को इज़राइली सम्प्रदाय से अलग रखा जाना था। (व्यवस्थाविवरण 23:7,8)PPHin 378.1

    छावनी और उसके परिप्रदेश के चारों ओर सम्पूर्ण स्वच्छता और कठोर अनुशासन का भी आदेश दिया गया। स्वास्थ्यप्रद अधिनियम लागू किये गए। किसी भी कारण से अशुद्ध हुए प्रत्येक व्यक्ति का डेरे में प्रवेश करना निषिद्ध था। यह उपाय इतने विशाल मानव समूह में स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिये अत्यावश्यक थे और यह भी आवश्यक था कि शुद्धता अर कठोर अनुशासन कायम रखा जाए ताकि इज़राइल पवित्र परमेश्वर की उपस्थिति का आनन्द ले सकें। उसने घोषणा की, “क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को बचाने और तेरे शत्रुओं को तुझ से हटवाने को तेरी छावनी के मध्य घूमता रहेगा, इसलिये तेरी छावनी पवित्र रहनी चाहिये।”PPHin 378.2

    इज़राइलियों कीसभी यात्राओं में, “यहोवा की वाचा का सन्दूक उनके लिये विश्राम का स्थान दढूंढता हुआ उनके आगे-आगे चलता था ।”-गिनती 10:33 । कहात के पुत्रों द्वारा उठाया हुआ, परमेश्वर की पवित्र व्यवस्था से युक्त सन्दूक अग्र-दल की अगुवाई करता था। उसके आगे मूसा और हारून चलते थे, और याजक, चाँदी की तुरहियाँ लिये पास ही में रहते थे। मूसा से निर्देश पाकर, याजक, तुरहियों के द्वारा उन्हें लोगों तक पहुँचाते थे। प्रत्येक मण्डली के अगुवे का यह कर्तव्य था कि, तुरही द्वारा दी गई सूचना के अनुसार, प्रस्थान से सम्बन्धित निश्चित निर्देश दें। जो भी दिये गए निर्देशोंका पालन नहीं करता था, उसे मृत्यु दण्ड दिया जाता था।PPHin 378.3

    परमेश्वर व्यवस्था का परमेश्वर है। स्वर्ग से सम्बन्धित सब कुछ पूर्ण रूप से कमानुसार है। स्वर्गदूतों की सेना के संचालन में समर्पण और कठोर अनुशासन विद्यमान है। सफलता केवल सुव्यवस्था और सामंजस्यपूर्ण कार्यवाही से मिलतीहै ।परमेश्वरअपनेकार्य में उतनीहीसुव्यवस्था और कम की अपेक्षा करता है जितनी कि इज़राइल के समय में करता था। जो भी परमेश्वर के लिये काम कर रहे हैं, उन्हें अनुत्तरदायी, अव्यवस्थित रीति से नहीं वरन्‌ कुशलता से श्रम करना है। वह अपेक्षा करता है कि उसका काम विश्वास और परिशुद्धता से किया जाए, ताकि वह उस पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा सके।PPHin 379.1

    इज़राइलियों की सभी यात्राओं में परेमश्वर ने स्वयं उनका मार्गदर्शन किया। उनके पड़ाव डालने के स्थान का संकेत बादल के स्तम्भ के उतरान से दिया जाता था, और जब तक उन्हें वहाँ डेरा डाले रहना होताथा, बादल पवित्र मण्डप पर छाया रहता था। जब उन्हें अपनी आगे की यात्रा के लिये प्रस्थान करना होता था तो बादल को पवित्र तम्बू पर से ऊपर उठा लिया जाता था। प्रस्थान व ठहराव के समय पवित्र वंदन किया जाता था। “और जब-जब सन्दूक का प्रस्थान होता था तब-तब मूसा यह कहा करता था, ‘हे यहोवा उठ, तेरे शत्रु तितर-बितर हो जाएँ, और तेरे बैरी तेरे सामने से भाग जाएँ। और जब वह ठहर जाता था तब-तब मूसा कहा करता था, ‘हे यहोवा, हजारों-हजार इज़राइलियों में लौटकर आ जा।।”-गिनती 40:35,36।PPHin 379.2

    कनान की सीमा पर कादेश और सिने के बीच केवल ग्यारह दिनों की यात्रा की दूरी थी, और उस समृद्ध प्रदेश में शीघ्र ही प्रविष्टि होने की संभावना को देखतेहुए,इज़राइल की सेनाओं नेअन्ततःबादल से गतिशील होने का संकेत पाकर,फिर से कच किया। मिस्र से उन्हें निकालकर लाने में परमेश्वर ने कई चमत्कार किये थे, और अब जब उन्‍होंने उसे यथाविधि वाचा द्वारा अपना प्रभु स्वीकार कर लिया था, और उन्हें सर्वोच्च के चुने हुए लोगों के रूप में स्वीकार कर लिया गया था, तो अब ऐसी कौन सी आशीषें थी, जिनकी अपेक्षा वे नहीं करते?PPHin 379.3

    फिर भी लगभग हिचकिचाहट के साथ कई लोगों ने वह स्थान छोड़ा जहां उन्होंने अब तक पड़ाव डाला था। अब वे उसे अपना घर जैसा मानने लगे थे। परमेश्वर ने ग्रेनाइट की उन दीवारों के शरणस्थान के भीतर, सभी अन्य जातियों से दूर, अपने लोगों को इकट्ठा किया था, ताकि वह उनके सम्मुख अपनी पवित्र व्यवस्था को दोहरा सके। वे उस पवित्र पर्वत को निहारते रहते थे, जिसके धवल शिखरों और बंजर टीलों पर पवित्र महिमा को प्रायः प्रदर्शित किया गया था। इस दृश्य का पवित्र स्वर्गदूतों और परमेश्वर की उपस्थिति से इतना गहरा सम्बन्ध था, कि यह इतना पावन प्रतीत होता था कि इस पर विचार किये बिना या प्रसन्नता से इसे छोड़ा नहीं जा सकता था।PPHin 379.4

    तब भी, तुरही फेंकने वालों के संकेत पर, पूरी छावनी आगे बढ़ी, पवित्र मण्डप बीच में, प्रत्येक गोत्र अपने नियुक्त स्थान पर और अपने झण्डे के साथ। सभी आँखे उत्सुक थी यह देखने के लिये कि बादल किस दिशा में लेकर जाएगा। जब उसने पूरब की ओर रूख किया, जहाँ केवल काले व सुनसान असंख्य पहाड़ एकत्रित थे, कई लोगों के हृदयों में भय और सन्देह की भावना उत्पन्न हुई।PPHin 380.1

    जैसे-जैसे वे आगे बड़े, मार्ग और भी कठिन हो गया। उनका मार्ग पथरीली घाटी और बंजर क्षेत्र में से होकर निकलता था। उनके चारों और बीहड़ था-“”मरूभूमि और गहरे गडढों का देश,” “सूखे और अन्धकार का प्रदेश”, “जिसमें से होकर कोई नहीं चलता और जिसमें कोई मनुष्य नहीं रहता ।”-यिर्मयाह 2:6। चट्टानी घाटियाँ, स्त्रियों, पुरूषों, बच्चों, पशुओं, भारवाहनों और मवेशियों और भेड़-बकरियों की लम्बी पक्तियों की भीड़ से भर गईं। उनकी प्रगति आवश्यकतावश धीमी और दुष्कर थी, और लम्बे पड़ाव के बाद, जनसाधारण अब मार्ग की असुविधाओं और संकटों को सहन करने के लिये तैयार नहीं थे।PPHin 380.2

    तीन दिन की यात्रा के पश्चात्‌ शिकायतें सुनाई देने लगी। ये मिश्रित जनसाधारण से आरम्भ हुई, जो इज़राइल के साथ पूर्णतया एकजुट नहीं थे, और आक्षेप के किसी भी कारण के लिये लगातार चौकस रहते थे। शिकायतकर्ता यात्रा की दिशा से सन्तुष्ट नहीं थे और वे मूसा के नेतृत्व में लगातार कमियाँ निकाल रहे थे, हालाँकि उन्हें भली-भाँति यह मालमू था कि मूसा और स्वयं वे भी मार्गदर्शी बादल का अनुसरण कर रहे थे। असंतोष संकामक होता है, और वह जल्द ही छावनी में फैल गया। PPHin 380.3

    वे फिर से खाने के लिये माँस की माँग करने लगे। हालाँकि उन्हें बहुतायत से मन्‍ना दिया जा रहा था, वे सन्तुष्ट नहीं थे। इज़राइली, मिस्र में अपने दासत्व के दौरान, सबसे साधरण खाना खाकर अपना निर्वाह करने को विवश थे, लेकिन कठोर परिश्रम और अभाव से जागृत तेज भूख ने उस खाने को स्वादिष्ट बना दिया था। लेकिन कई मिस्री जो अब उनके बीच थे, सुस्वाद भोजन के अभ्यस्त थे, और शिकायत करने में ये सबसे आगे थे।मनन्‍ना देने के समय, इज़राइल के सिने पहुँचने के ठीक पहले, उनकी शिकायतों के प्रत्युत्तर में परमेश्वर ने उन्हें खाने को माँस दिया, लेकिन यह प्रयोजन केवल एक ही दिन के लिये था।PPHin 380.4

    परमेश्वर उन्हें उतनी ही आसानी से माँस दे सकता था जितनी आसानी से उसने उन्हें मन्‍ना दिया था, लेकिन उन्हीं की भलाई के लिये उन पर यह प्रतिबन्ध लगाया गया था। परमेश्वर का उद्देश्य उन्हें उनकी आवश्यकता के अनुकूल आहारदेनाथा बजाय उस हानिकारक भोजन के जिसके वे मिस्र में अभ्यस्त हो गए थे। विकृत भूख को स्वस्थ अवस्था में लाया जाना था, ताकि वे मनुष्य के लिये प्रारंभ में दिये गए भोजन का आनन्द ले सके-पृथ्वी पर के फल, जो परमेश्वर ने आदम और हवा को अदन में दिये। यही कारण था कि इज़राइलियों को काफी हद तक मॉँसाहारी भोजन से वंचित रखा गया।PPHin 381.1

    शैतान ने उन्हें इस प्रतिबन्ध को अन्यायपूर्ण और निर्दयी मानने के लिये उकसाया। उसने उनमें वर्जित वस्तुओं के लिये लालसा उत्पन्न की, क्‍योंकि वह जानता था कि भूख के प्रति अनियंत्रित झुकाव विलासिता को उत्पन्न करने के प्रवृति रखता है और इस साधन से वह लोगों पर आसानी से नियन्त्रण पा सकता था। कष्ट और रोग का लेखक मनुष्य पर वहीं आक्रमण करता है जहाँ उसे सबसे अधिक सफलता मिल सकती है। उसके बहकावे में आकर हवा द्वारा वर्जित फल खाए जाने के समय से, भूख को सम्बोधित करने वाले प्रलोभनों द्वारा उसने काफी हद तक मनुष्य को पाप में घसीट लिया है। इसी साधन से उसने इज़राइल को परमेश्वर के विरूद्ध बड़बड़ाने को उकसाया खाने पीने में असंयम, जैसा कि वह करता है, तुच्छ भावनाओं की ओर झुकाव कराकर, मनुष्य के लिये सभी नैतिक दायित्व का अनादरकरने के लिये मार्ग तैयार करता है। जब उनपर आजमाइश आती है तो उनमें उसका प्रतिरोध करने की शक्ति नहीं होती। PPHin 381.2

    परमेश्वर इज़राइलियों को मिस्र से निकालकर लाया ताकि वह उन्हें कनान प्रदेश में शुद्ध, पवित्र और खुशहाल जाति के रूप में स्थापित कर सके। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये उसने उनकी और वंशजो की भलाई की खातिर उन्हें अनुशासनविधि के अधीन किया। यदि वे परमेश्वर के ज्ञानवर्धक प्रतिबन्धों का पालन कर, भूख का त्याग करने को तत्पर होते, तो दुर्बलता और रोग से वे अछते होते। उनके वंशज मानसिक और शारीरिक शक्ति के स्वामी होते। उन्हें सत्य व कर्तव्य, सही निर्णय और, सही पहचान का स्पष्ट बोध होता। लेकिन परमेश्वर की अपेक्षाओं और प्रतिबन्धों को स्वीकार करने की अनिच्छा ने काफी हद तक उस उच्च स्तर पर, जो वह चाहता था कि वे पाएँ, पहुँचने से और उन आशीषों की प्राप्ति से, जो वह उन्हें देने की तैयार था, वंचित रखा । PPHin 381.3

    भजन संहिता 78:18-21 में लिखा है, “अपनी चाह के अनुसार भोजन मॉगकर मनही मन ईश्वरकीपरीक्षा की। वे परमेश्वर के विरूद्ध बोले और कहने लगे, “क्या परमेश्वर जंगल में मेज लगा सकता है? उसने चट्टान पर मारकर जल बहा तो दिया, और धाराएँ उमड़ पड़ी, परन्तु क्या वह रोटी भी दे सकता है? क्‍या वह अपनी प्रजा के लिये माँस भी तैयार कर सकता है? यहोवा यह सुनकर कोध से भर गया।” लाल समुद्र से सिने तक की यात्रा के दौरान बड़बड़हाट और कोलाहल नियमित रूप से होते चले आए थे, लेकन उनके अन्धेपन और अज्ञानता पर दया करके परमेश्वर ने उनके पाप पर दण्डाज्ञा नहीं भेजी थी। लेकिन उस समय से होरेब पर उसने स्वयं को प्रकट किया था। उन्हें बहुत प्रकाश प्राप्त हुआ था, क्‍्योंक वे परमेश्वरके गौरव, सामर्थ्य और करूणा के साक्ष्य रहे थे, और उनके अविश्वास और असन्तोषने उनके पाप को और बड़ा कर दिया। और तो और उन्होंने यहोवा को अपने राजा के तौर पर स्वीकार करने की और उसकी आज्ञा मानने की वाचा द्वारा स्वीकृति दी थी। उनकी बड़बड़ाहट उप्रदव के समान थी और इस रीति से उसे तात्कालिक व प्रतीकात्मक दण्ड प्राप्त होना था यदि इज़राइल को विनाश और अराजकता से बचाना था। “यहोवा की आग उनके मध्य में जल उठी, और छावनी के एक किनारे से उन्हें भस्म करने लगी ।” शिकायत करने वालों में सबसे अधिक बड़बड़ाहट करने वाले बादल से प्रवाहित तेज से मारे गए। लोग भयभीत होकर मूसा के पास आए और उससे कहने लगे कि वह उनके लिये परमेश्वर से प्रार्थना करे। उसने वैसा ही किया और आग बुझ गईं। इस दण्डाज्ञा के स्मरण में उसने उस स्थान का नाम “तबेरा’ रखा, ‘ज्वलंत'। PPHin 381.4

    लेकिन यह बुराई पहले से भी अधिक बड़ गई। जो भस्म होने से बच गए थे, उन्हें दीनता और प्रायश्चित के मार्ग पर ले जाने के बजाय, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उनकी बड़बडाहट में वृद्धि हो गई थी। चारों दिशाओं में लोग अपने-अपने तम्बुओं के द्वार पर एकत्रित होकर रो रहे थे और विलाप कर रहे थे।” फिर जो मिली-जुली भीड़ उनके साथ थी , वे ललचाने लगे, और इज़राइली भी फिर रोने और कहने लगे, हमें मांस खाने को कौन देगा। हमें वे मछलियाँ स्मरण है जो हम मिस्र में जी भी कर खाते थे, और वे खीरे, और खरबूजे और गन्दने, और प्याज, और लहसुन भी, लेकिन अब हमारे प्राण सूखगए है, यहाँ पर इस मन्‍ना को छोड़ और कुछ भी दिखाई नहीं देता।” इस प्रकार उन्होंने उस भोजन के प्रति असन्तोष व्यक्त किया जो उनके सृष्टिकर्ता द्वारा उन्हें मुहैया कराया गया था। लेकिन उनके पास स्थायी प्रमाण था कि वह उनकी आवश्यकता के अनुकूल था, क्योंकि उनके द्वारा इतनी कठिनाईयाँ को सहन करे जाने के बावजूद उनके सभी घराने में से एक भी दुर्बल नहीं था।PPHin 382.1

    मूसा का हृदय बैठ गया। उसने विनती की थी कि इज़राइल विनाश न किया जाए, भले ही ऐसा होने पर उसके अपने वंशज एक महान राष्ट्र बन सकते थे। उनके लिये प्रेम के कारण उसने प्रार्थना की कि बजाय इसके कि उनको विनाश के लिए छोड़ दिया जाए, उसका नाम जीवन की पुस्तक से मिटा दिया जाए। उसने अपना सब कुछ उनके लिये संकट में डाला और उनका यह उत्तर था। उन्होंने अपनी सभी कठिनाईयों का और उनकी काल्पनिक पीड़ाओं का भी दोष उसी पर लगाया, और उनकी दुष्टतापूर्ण बड़बड़ाहट ने उत्तरदायित्व और सुरक्षा के भार को, जिसके नीचे वो लड़खड़ा रहा था, दो गुना भारी कर दिया। अपनी निराशा में वह परमेश्वर में भी अविश्वास करने को विवश हो गया, “तू अपने दास से यह बुरा व्यवहार क्‍यों करता है? और क्‍या कारण है कि मैं ने तेरी दृष्टि में अनुग्रह नहीं पाया, कि तू ने इन सब लोगों का भार मुझ पर डाला है? मुझे इतना माँस कहा से मिले कि इन सब लोगों को दूँ? ये यह कह कर मेरे पास रो रहे हैं कि तू हमें माँस खाने को दे। मैं अकला इन सब लोगों का भार नहीं सम्भाल सकता, क्‍योंकि यह मेरे लिये बहुत भारी है।PPHin 382.2

    प्रभु ने उसकी प्रार्थना को स्वीकार किया और उसे इज़राइली पुरनियों में से सत्तर पुरूषों को इकटठा करने का आदेश दिया- ऐसे पुरूष जो ना केवल आयु में बढ़े थे, वरन्‌ मर्यादा, सही निर्णय और अनुभव के धनी हो। “और मिलापवाले तम्बू के पास ले आ कि वे तेरे साथ यहाँ खड़े हों। तब मैं उतरकर तुझ से वहां बातें करूंगा, और जो आत्मा तुझ में है उसमें से कुछ लेकर उन पर डालूँगा, और वे इन लोगों का भार तेरे संग उठाए रहेंगे, और तुझे उसको अकेले उठाना न पड़ेगा।’PPHin 383.1

    प्रभु ने मूसा को अनुमति दी कि वह अपने लिये सबसे निष्ठावान और कार्यकुशल पुरूषों को उसके साथ उत्तरदायित्व बॉटने के लिये चुने। उनका प्रभाव, अतिक्रमण को कुचलने और लोगों की हिंसा को रोक कर रखने में सहायक होता । फिर भी उनकी पदोन्‍नति के परिणामस्वरूप गम्भीर बुराईयाँ उत्पन्न होने को थी। यदि मूसा ने परमेश्वर के सामर्थ्य और, जिनका वह साक्ष्य था, उसकीअच्छाई के प्रमाणों के तदनुरूप विश्वास प्रकट किया होता तो वे कभी भी चुने नहीं जाते, लेकिन उसने अपनी सेवाओं और अपने भार को बढ़ा-चढ़ा कर बताया, और उस तथ्य को लगभग भूल ही गया कि वह केवल एक साधन था जिसके माध्यम से परमेश्वर ने सब कुछ किया। बड़बड़ाहट की भावना, जिसके द्वारा इज़राइल शापित हुआ, उसके लिये मूसा को भी क्षमा नहीं किया जा सकता था। यदि उसने पूरी तरह से परमेश्वर पर निर्भर किया होता, तो प्रभु ने उसे लगातार निर्देशित किया होता और उससे प्रत्येक आपातकालीन स्थिति के लिये शक्ति प्रदान की होती।PPHin 383.2

    मूसा को निर्देश दिया गया कि वह लोगों को उसके लिये तैयार करे जो परमेश्वर उनके लिये करने वाला था। “कल के लिये स्वयं को पवित्र करो, तब तुम्हें माँस खाने को मिलेगा, क्‍योंकि तुम यहोवा के सम्मुख यह कहकर रोए हो, कि हमें मास खाने को कौन देगा? हम मिस्र ही में भले थे। इसलिये यहोवा तुम को माँस खाने को देगा और तुम खाना। फिर तुम एक दिन या दो दिन, या पाँच दिन या दस दिन या बीस दिनही नहीं, परन्तु महीने भर से उसे खाते रहोगे, जब तक कि वह तुम्हारे नथुनों से निकलने न लगे और तुमको उससे घृणा न हो जाए, क्‍योंकि तुम लोगों ने यहोवा को, जो तुम्हारे मध्य में हैं, तुच्छ जाना है, और उसके सामने यह कहकर रोए हो कि हम मिस्र से क्यों निकल आए?”PPHin 383.3

    फिर मूसा ने कहा, “जिन लोगों के बीच मैं हूँउन में से छः: लाख तो प्यादे ही है, और तू ने कहा है कि मैं उन्हें इतना माँस दूंगा कि वे महीने भर उसे खाते ही रहेंगे। क्या वे सब भेड़-बकरी, गाय-बैल उनके लिये मारे जाएँ कि उनको मॉँस मिले? या क्‍या समुद्र की सब मछलियाँ उनके लिये इकट्ठी की जाएँ कि उनको माँस मिले?PPHin 384.1

    उसे उसके अविश्वास के लिये झिड़का गया, “क्या यहोवा का हाथ छोटा हो गया है? अब तू देखेगा कि मेरा वचन जो मैंने तुझ से कहा है वह पूरा होता है कि नहीं।PPHin 384.2

    तब मूसा ने प्रजा के लोगों को यहोवा की कहीं बातें सुनाई और सत्तर पुरनियों की नियुक्ति की घोषणा की। महान अगुवे द्वारा इन चुने हुए व्यक्तियों को दिया गया प्रभार आधुनिक युग के विधायकों और न्यायियों के लिए न्यायिक सत्यनिष्ठा का आदर्श माना जा सकता है। “तुम अपने भाईयों के मुकद्दमे सुना करो, और उनके बीच और उनके पड़ोसियों और परदेशियों के बीच भी धर्म से न्याय किया करो। न्याय करते समय किसी का पक्ष न लेना, जैसा बड़े की वैसे छोटे मनुष्य की भी सुनना, किसी का मुहँ देखकर न डरना, क्योंकि न्याय परमेश्वर का काम है।””-व्यवस्थाविवरण 1:16,17।PPHin 384.3

    मूसा ने अब सत्तर पुरनियों को पवित्र मण्डप के पास बुलाया। “तब यहोवा बादल में होकर उतरा और उसने मूसा से बातें की और जो आत्मा उसमें था उसमें से लेकर उन सत्तर पुरनियों में समवा दिया, और जब वह आत्मा उनमें आ गया तब वे भविष्यद्वाणी करने लगे और वे रूके नहीं ।” जैसे कि पिन्तेकुस्त के दिन, अनुयायियों को “स्वर्ग से सामर्थ्य” प्रदान कीगई वैसे ही इनके साथ भी हुआ। प्रभु उन्हें उनके काम के लिये इस प्रकार तैयार करके और प्रजा की उपस्थिति में सम्मानित करके सन्तुष्ट हुआ, ताकि इज़राइल के शासन में मूसा के सहभागी होने के लिये, ईश्वर द्वारा नियुक्त, मनुष्यों जैसा आत्म-विश्वास उनमें भी समा जाए।PPHin 384.4

    महान अगुवे की उत्कृष्ट निःस्वार्थ भावना का एक बार फिर प्रमाण दिया गया। सत्तर में से दो पुरनिये, जो दीनता में स्वयं को इस उत्तरदायी पद के लिये अयोग्य समझ रहे थे, अपने भाईयों के साथ पवित्र मण्डप पर नहीं आए, लेकिन परमेश्वर का आत्मा उन पर वहीं उतरा जहाँ वे थे और उन्होंने भी भविष्यद्वाणी करने का अभ्यास किया। इस बात की सूचना पाकर, विभाजन होने के डर से, यहोशू ने इस प्रकार की अनियमितता को रोकना चाहा। अपने स्वामी के सम्मान के लिये सतक॑ उसने कहा, “हे मेरे स्वामी मूसा, उनको रोक दे।” मूसा ने उत्तर दिया, “क्या तू मेरे कारण जलता है? भला होता कि यहोवा की सारी प्रजा के लोग नबी होते, और यहोवा अपना आत्मा उनमें समवा देता।PPHin 384.5

    समुद्र से एक तेज आंधी आई और अपने साथ बटेरों के इतने झुण्ड ले आई कि “इधर-उधर एक दिन के मार्ग तक, छावनी के चारों ओर और भूमि पर लगभग दो हाथ ऊँची परत जम गईं ।”-गिनती 11:31 और लोग उस दिन भर और रात भर, और दूसरे दिन भी दिनभर उस खाने को मेहनत से इकट्ठा करतेरहे जो उन्हें चमत्कारी रूप से मुहैया कराया गया था। बड़ी मात्रा में खाना प्राप्त हुआ। “जिसने कम से कम बटोरा उसने दस होमेर बटोरा।” जितना भी उस समय के लिये आवश्यक नहीं था, उसे सुखा कर संरक्षित किया गया , ताकि प्रतिज्ञा के अनुसार यह भोजन एक महीने के लिये पर्याप्त था।PPHin 385.1

    परमेश्वर ने लोगों को वह दिया जो उनके लिये सबसे अच्छा नहीं था क्योंकि वे उसकी माँग करते रहे, वे प्रमाणित हो सकता था। उनकी विद्रोहपूर्ण अभिलाषाओं को तृप्त किया गया, लेकिन उन्हें परिणाम भुगतने के लिये छोड़ दिया गया। वे बिना नियन्त्रण के खाते रहे और उनके असंयम को शीघ्रता से दण्डित किया गया। “यहोवा ने उनको बहुत बड़ी मार से मारा।” भारी संख्या में लोग तेज बुखार के कारण मारे गए, जबकि उनमें सबसे अधिक दोषी लोगों को उस भोजन को चखते ही मार डाला गया, जिस भोजन का उन्होंने लालच किया था।PPHin 385.2

    तबेरा से प्रस्थान करने के बाद, हसेरोत में अगला पड़ाव डालने पर, मूसा के लिये एक और अधिक कठिन परीक्षा प्रतीक्षा में थी। हारून और मरियम इज़राइल में उत्कृष्ट सम्मान और नेतृत्व के पद पर आसीन थे। दोनो भविष्यद्वाणी के फल से आशिषित थे, और दोनों ही ईश्वर द्वारा, इब्रियों के छुटकारे में मूसा के साथ सहयोगी थे। “मैंने तेरी अगुवाई करने मूसा, हारून और मरियम को भेज दिया ।”-मीका 6:4, मीका नबी द्वारा बोला गया यह परमेश्वर का कथन है। मरियम के प्रभावशाली चरित्र का प्रदर्शन तब किया गया जब वह एक छोटी बालिकाथी और उसने नील नदी के किनारे उस टोकरी पर नज़र रखी जिसमें अबोध शिशु मूसा को छपाया गया था। अपने लोगों के मुक्तिदाता को संरक्षित रखने में परमेश्वर ने उसके आत्म संयम और निपुणता को साधन बनाया। काव्यात्मकता और संगीत की धनी मरियम ने लाल समुद्र के तट पर इज़राइली महिलाओं का नाच-गाने में नेतृत्व किया था। जहाँ तक लोगों के प्रेम और स्वर्ग के सम्मान का प्रश्न था, मूसा और हारून के बाद उसी का नाम था। लेकिन वही बुराई जो सबसे पहले स्वर्ग में असामनन्‍जस्य लेकर आई, इस इज़राइली स्त्री के मन में जागृत हुई, और वह भी अपनी असन्तुष्टि में एक हितैषी पाने में असफल नहीं हुई।PPHin 385.3

    सत्तर पुरनियों की नियुक्ति में मूसा और हारून की राय नहीं ली गईं, और इस कारण मूसा के विरूद्ध उनकी ईर्ष्या भड़क उठी। जब इज़राइली सिने के मार्ग पर थे, यित्रो व मूसा की भेंट के समय, मूसा द्वारा अपने ससुर की राय को तत्काल स्वीकृति देने के कारण, हारून और मरियम के मन में यह आंशका जाग उठी कि मूसा उनसे अधिक यित्रो से प्रभावित था। पुरनियों के संगठन में उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उनके पद और अधिकार की उपेक्षा की गई हो। मरियम और हारून ने मूसा के उत्तरदायित्व और सुरक्षा के भार को कभी जाना नहीं, लेकिन फिर भी, क्‍योंकि उन्हें उसकी सहायता के लिये चुना गया था वे स्वयं के सन्दर्भ में ऐसा मानते थे कि वे नेतृत्व के भार को मूसा के साथ बराबरी से बाँट रहे थे, और उनका मानना थाकि अतिरिक्त सहायकों की नियुक्ति की आवश्यकता नहीं थी।PPHin 386.1

    मूसा उसके सुपुर्द किये गए महान कार्य के महत्व को इतनी गम्भीरता से लिया था जैसे किसी अन्य व्यक्ति ने नहीं लिया। उसे अपनी कमियों का एहसास हुआ और उसने परमेश्वर को अपना परामर्शदाता बनाया। हारून स्वयं को माननीय मानता था और परमेश्वर में कम विश्वास रखता था। जब उसे उत्तरदायित्व सौंपा गया वह असफल रहा, सिने पर मूर्तिपूजा के विषय में अपनी अधर्म सहमति द्वारा अपने चरित्र की दुर्बलता का प्रमाण दिया। ईर्ष्या और महत्वाकांक्षा में अन्धे हुए मरियम और हारून इस बात को भूल गए। याजकता के पवित्र कार्य के लिये हारून के परिवार की नियुक्ति में परमेश्वर द्वारा हारून को उत्कृष्ट सम्मान दिया गया था, लेकिन अब इस कारण भी उसकी आत्मा-पदोन्‍नति की इच्छा प्रबल हो गई। “क्या यहोवा ने केवल मूसा ही के साथ बातें की है? क्या उसने हम से भी बातें नहीं की?” स्वयं को परमेश्वर द्वारा, मूसा के तुल्य, कृपा दृष्टि प्राप्त मानते हुए, उन्हें प्रतीत हुआ कि वे भी उसी पद और आधिपत्य के लिये अधिकृत थे। PPHin 386.2

    असंतोष की भावना में बहकर, मरियम ने उन घटनाओं में शिकायत का कारण दूँढ लिया, जिन्हें परमेश्वर ने विशेषकर निष्प्रभाव कर दिया था। मूसा के विवाह से भी वह खिनन्‍्न थी। मूसा द्वारा, इब्रियों में से पत्नी चुनने के बजाय, दूसरी जाति की स्त्री को चुनना उसके जातीय व पारिवारिक गौरव का अपमान था।सिप्पोरा के साथ अत्यन्त घृणा के साथ व्यवहार किया जाता है। PPHin 386.3

    हालाँकि कहने को वह एक कृशी स्त्री थी (गिनती 12:1), पर मूसा की पत्नी एक मिद्यानी थी, और इस रीति से वह अब्राहम की वंशज थी। निजी स्वरूप में वह इब्रियों से भिन्‍न थी क्‍योंकि उसका रंग साँवला था। इज़राइली ना होते हुए भी, सिप्पोरा सच्चे परमेश्वर की उपासक थी। वह संकोचशील, नम्र व स्नेहमय स्वभाव की थी और पीड़ितों को देखकर अत्यन्त दुखी हो जाती थी, और यही कारण था कि मिस्र जाने के समय मूसाने उसे मिद्यान वापसी की अनुमति दी। वह उसे मिपस्रियों पर आने वाली दण्डाज्ञाओं का साक्ष्य होने के दुख से बचाना चाहता था।PPHin 387.1

    जब सिप्पोरा भीड़ में अपने पति से पुनः मिली, तो उसने देखा कि उसके दायित्व का बोझ उसके स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल रहा है और उसने अपनी चिन्ता अपने पिता यित्रों पर प्रकट की, जिसने मूसा के लिये भारमुक्ति के उपाय सुझाए । सिप्पोरा के प्रति मरियम के बैर-भाव का मुख्य कारण यहाँ था। स्वयं और हारून के प्रति दिखाई गई तथाकथित उपेक्षा से व्यथित, वह मूसा की पत्नी को कारण मानती थी, यह निष्कर्ष निकालते हुए कि उसी के प्रभाव ने मूसा को उनके सुझाव लेने से रोका था, जैसा कि वह पहले किया करता था। यदि हारून सही के लिये दृढ़ता से खड़ा रहता, तो उसने बुराई पर रोक लगा दी होती, लेकिन मरियम को उसके व्यवहार की दुष्टता बताने के बजाय, उसने उसके प्रति सहानुभूति प्रकट की, उसकी शिकायत के कथनों को सुना और इस प्रकार वह उसकी ईर्ष्या में भागीदार हो गया।PPHin 387.2

    मूसा ने उनके आशीषों को बिना शिकायत किये चुपचाप सहन किया। यह मिद्यान में प्रतीक्षा और कठिन परिश्रम के वर्षा के दौरान प्राप्त अनुभव था- वहां विकसित हुई दीनता और धेयशीलता थी- जिसने मूसा को लोगों की कुड़कड़ाहट और अविश्वास का और जिन लोगों को उसका अटल सहायक होना चाहिये था, उनके घमण्ड और ईर्ष्या का धेर्य के साथ सामना करने के लिये तैयार किया। “मूसा पृथ्वी भर के रहने वाले सब मनुष्यों से बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था” और इस कारण उसे सबको दिये गए शाश्वत ज्ञान और मार्गदर्शन से अधिक सनातन ज्ञान और मार्गदर्शन दिया गया। पवित्र शास्त्र कहता है, “वह नम्र लोगों को न्याय की शिक्षा देगा, हां वह नम्र लोगों को अपना मार्ग दिखलाएगा।”-भजन संहिता 25:91 नग्र लोगों का मार्गदर्शन परमेश्वर द्वारा किया जाता है, क्‍योंकि वे सिखाने योग्य हैं और निर्देशित होने के लिये तत्पर होते हैं। उनकी हार्दिक इच्छा होती है कि वे परमेश्वर की इच्छा को जानें और उसका पालन करें। मुक्तिदाता ने वचन दिया है, “यदि कोई उसकी इच्छा पर चलना चाहे, तो वह इस उपदेश के विषय में जान जाएगा ।-यहुन्ना 7:17। और वह प्रेरित याकूब के माध्यम से घोषणा करता है, “पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो तो परमेश्वर से माँगे, जो बिना उलाहना दिये सब को उदारता से देता है, और उसको दी जागएऐी। लेकिन उसकी प्रतिज्ञा उन्हीं के लिये है जो पूरी तरह से प्रभु के पीछे हो लेने को तैयार हैं। परमेश्वर किसी की इच्छा को बाध्य नहीं करता, इसलिये वह उनकी अगुवाई नहीं कर सकता जो घमण्ड के कारण सिखाने योग्य नहीं है, जो अपनी ही राह पर चलने पर तुले हुए है।जो मनुष्य दुविधा में हो- जो अपनी इच्छा का अनुसरण करे और साथ ही परमेश्वर की इच्छा का पालन करने का भी दावा करे- उनके बारे में लिखा है, “ऐसा मनुष्य यह न समझे कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा ।”- याकूब 1:7PPHin 387.3

    परमेश्वर ने मूसा को चुना था, और उस पर अपना आत्मा उँडेला था, और अपनी कुड़कुडाहट के द्वारा मरियम और हारून ना केवल अपने नियुक्त अगुवे के वरन्‌ स्वयं परमेश्वर के प्रति भक्तिहीनता के दोषी थी। उपद्रवी फसफसाने वालों को पवित्र मण्डप में बुलाया गया और मूसा के सम्मुख लाया गया। तब यहोवा ने बादल के खम्भे में उतरकर तम्बू के द्वार पर खड़े होकर हारून और मरियम को बुलाया । उनके भविष्यद्वाणी सम्बन्धी वरदान के दावे को नकारा नहीं गया था, परमेश्वर ने उनके साथ स्वप्न और दर्शनों के माध्यम से बातचीत की होगी। लेकिन मूसा को, जिसके लिये परमेश्वर ने स्वयं घोषणा की थी कि “वह तो मेरे सब घरानों में विश्वासयोग्य है,” परमेश्वर की अंतरग सहभागिता प्रदान की गई थी। उसे परमेश्वर आमने-सामने बात करता था। “तुम मेरे दास मूसा की निनन्‍्दा करते हुए क्‍यों नहीं डरे? तब यहोवा का कोप उनपर भड़का और वह चला गया।” बादल परमेश्वर की अप्रसननता के प्रतीक के रूप में मिलापवाले तम्बू पर से ओझल हो गया, और मरियम पर मार पड़ी। वह, ‘कोढ़ से हिम के समान श्वेत हो गई । हारून को छोड़ दिया गया, लेकिन मरियम के दण्ड में उसे कठोरतापूर्वक फटकारा गया। अब उनका घमण्ड मिट्टी में मिल गया, हारून ने अपने पाप का अंगीकार किया, और विनती की उसकी बहन को उस प्राणघातक व घृणास्पद दण्ड नष्ट होने न दिया जाए। मूसा की प्रार्थनाओं के उत्तर में उसका कोढ़ जाता रहा। लेकिन मरियम को सात दिन तक छावनी से बाहर रहना पड़ा। छावनी सेउसके निष्कासन के बाद ही परमेश्वर की कृपा-दृष्टि का चिन्ह दोबारा मिलापवाले तम्बू पर आकर ठहरा। उसे उच्च पद के सम्मान में, और उस पर आई विपत्ति के शोक में, सम्पूर्ण मण्डली उसकी वापसी की प्रतीक्षा में हसेरोत में रूकी रही।PPHin 388.1

    प्रभु की अप्रसननता का प्रदर्शन सम्पूर्ण इज़राइल को चेतावनी देने के लिये प्रयोजित किया गया ताकि असंतोष और आज्ञाभंग की बढ़ती हुई भावना पर रोक लगाई जा सके ।यदि मरियम की असन्तुष्टि और ईर्ष्या को संकेतक रूप से झिड़का ना गया होता, तो ये बहुत हानिकारक सिद्ध हो सकती थी। ईर्ष्या मानव हृदय में विद्यमान रहने वाला सबसे शैतानी लक्षण हो सकती है और यह अपने प्रभाव में सबसे अधिक अनिष्टकर है। ज्ञानी पुरूष ने कहा है, “कोध तो क्र, और प्रकोप धारा के समान होता है, परन्तु ईर्ष्या के आगे कौन ठहर सकता है? नीतिवचन 27:4 । ईर्ष्या ही थी जिसके कारण, सबसे पहले, स्वर्ग में असामन्जस्य उत्पन्न हुआ, और इसके अतिभोग से मनुष्यों में अत्याधिक बुराईयां उत्पन्न हो गई। “क्योंकि जहाँ डाह और विरोध होता है, वहाँ गड़बड़ी और हर प्रकार का दुष्कर्म होता है ।” याकूब 3:16PPHin 388.2

    दूसरों के बारे में बुरा बोलने को छोटी बात नहीं समझना चाहिये औरना हीस्वयं को उनके कर्मा और प्रयोजनों का निर्णायक समझना चाहिये। “जो अपने भाई को बदनामी करता है या भाई पर दोष लगाता है, वह व्यवस्था की बदनामी करता है और व्यवस्था पर दोष लगाता है, और यदि तू व्यवस्था पर दोष लगाता है, तो तू व्यवस्था पर चलने वाला नहीं पर उस पर हाकिम ठहरा ।”-याकूब 4:11 [एक ही न्यायाधीश- “वही अन्धकार की छिपी बातें ज्योति में दिखाएगा, और मनों के अभिप्रयों को प्रगट करेगा ।”-कुरिन्थियों 4:5 और जो भी अपने भाई-बन्धुओं को दोषी ठहराने और उनको परखने का उत्तरदायित्व स्वयं पर ले लेता है वह सृष्टिकर्ता के विशेषाधिकार को हड़प रहा है।PPHin 389.1

    बाइबिल हमें विशेष रूप से यह सिखाती है कि हम उन पर बिना सोचे समझे आरोप लगाने से सावधान रहें, जिन्हें परमेश्वर ने अपने राजदूत की भूमिका निभाने के लिये चुना है। परित्यक्त पापियों के वर्ग का वर्णन करते हुए प्रेरित पौलुस कहता है “वे ढीठ और हठी है, और ऊँचे पदवालों को बुरा भुला कहने से नहीं डरते। जबकि स्वर्गदूत जो शक्ति और सामर्थ्य में उनसे बड़े हैं, प्रभु के सामने उन्हें भला-बुरा कहकर दोष नहीं लगाते ।-2 पतरस 2:10,11 ।और पौलुस, कलीसिया के प्रधानों को अपने निर्देश में कहता है, “कोई दोष किसी प्राचीन पर लगाया जाए तो बिना दो या तीन गवाहों के उसको न सुन ।”-1 तीमुथियुस 5:19। जिसने मनुष्यों को अपने लोगों के अगुवे और अध्यापक होने का भारी उत्तरदायित्व सौंपा है, वह उन्हें अपने दासों के प्रति किए गए व्यवहार के लिये उत्तरदायी ठहराएगा। जिन्हें परमेश्वर ने सम्मानित किया है, उनका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है। मरियम पर आई दण्डाज्ञा उन सभी के लिये झिड़की है जो ईर्ष्या के आगे समर्पण करते है और उनके विरूद्ध कुडकड़ाते है जिन पर परमेश्वर अपने काम का बोझ डालता है।PPHin 389.2

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