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मसीही सेवकाई - Contents
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    निराश करने वाली ताकतों से जूझना

    किसी भी तरह नहेम्याह ने अपनी योजना के तहत दिवार बनाने का कार्य पूर्ण किया। वह कहता है, “शासकों ये ये पता नहीं, मैं कहाँ गया और मैंने क्या किया? न ही मैंने यहूदियों को याजकों को प्रधानों को, शासकों को और न बाकी लोगों को बताया जिन्होंने काम किया था ।” इस कष्ट दायक पड़ताल में उसने किसी भी मित्र या शत्रु का ध्यान इसी और आकर्षित करने की इच्छा नहीं की जिससे किसी प्रकार की उत्तेजना फैलती खबर भेजी जाती जो शायद उसे इस काम को करने में बाधा बनती या उसे असफल करती। नहेम्याह ने अपना बाकी समय प्रार्थना करने में बिताया। सुबह जरूर एक अथक प्रयास होना चाहिये था जो उसके निराश व हताश और विभाजित लोगों को उत्साहित करता और एक करता। (द सदर्न वॉचमेन 22 मार्च 1904) ChsHin 240.1

    यद्यपि नहेम्याह को एक शाही काम सौंपा गया था। जिसमें उसे वहाँ के रहवासियों के सहयोग की आवश्यता थी कि वह शहर पनाह को फिर से बना पाता। उसने केवल अधिकारियों के ऊपर निर्भर रह कर इस काम को करना नहीं चुना, बल्कि उसने स्वयं उनका भरोसा व सहानुभूति प्राप्त की, यह अच्छी तरह जानते हुये कि हृदयों के मिलने के साथ, सबका हाथ भी इस काम की सफलता के लिये आवश्यक था, जो करने को उसने हाथ भी इस काम की सफलता के लिये आवश्यक था, जो करने को उसने हाथ में लिया था। जब उसने लोगों को अगने दिन बुलाया, उसन ऐसे मुद्दे सामने रखे, जिनसे उनका जोशा जाग उठे और साथ ही वे सब जो बिखर गये थे, एक जूट हो जायें। और सारी बातों को पूरी तरह से सामने रखें, समझे ये बताते हुये कि वह अपना काम समाप्त कर सका, क्योंकि उसके पास फारस के राजा के साथ इजराइल का परमेश्वर भी था। नहेम्याह सीध ो तौर से लोगों से पूछता है। “कि क्या वे अस प्रिय सुअवसर का लाभ उठाना चाहेंगे, उसके साथ उठेंगे, शहर पनाह बनायेंगे? यह विनती हर एक के हृदय में उतर गई और जिस प्रकार पवित्र आत्मा ने उन्हें कायल किया वे डर के मारे लज्जित भी हुये। और फिर सब एक साथ पुकार उठे आओ चले और शहर पनाह निर्माण करें।” (द सदर्न वॉचमेन 29 मार्च 1904)ChsHin 240.2

    नेहम्याह की पवित्र शक्ति और ऊँ आशा लोगो तक पहुंचाई गई। जैसे उन्हें आत्मा पाया एक ही बार मैं वे अपने अगुवे के नैतिक स्तर तक पहुँच गये, हर एक अपने स्थान पर एक नहेम्याह था और हर एक ने एक दूसरे का हाथ था मगर एक-दूसरो को ताकत प्रदान की। (द सदर्न वॉचमेन 29 मार्च 1904)ChsHin 241.1