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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    पाठक से ईश्वरीय प्रकाश की प्रतिमा

    परमेश्वर का वचन उसके ग्रंथमकर्ता के चरित्र की भांति रहस्य उपस्थित करता है जो पूर्ण रीति से परिचित मनुष्य द्वारा समझे नहीं जा सकते. यह हमारे मन को उस सृष्टिकर्ता की ओर पथदर्शन करता है, और अगम्य ज्योति में रहता है.’’(1 तिमोथियो 6:16)उसमें उसके अभिप्रायों को वर्णन है जिसमें मानवी इतिहास के सारे युग सम्मिलित है और जो अनन्तकाल के निरंतर युगों में ही पूर्ण होंगे.वह हमारे ध्यान को उन अथाह व महत्वपूर्ण विषयों की ओर खींचता है जो परमेश्वर के राज्य और मनुष्य के भाग्य से सम्बंधित हैं.ककेप 150.2

    संसार में पाप का प्रवेश करना,मसीह का अवतार लेना, नए जन्म,पुनरुत्थान के सिद्धान्त तथा बाइबल के अन्य विषय मानव बुद्धि के लिए उनकी व्याख्या करना तथा उनको समझना एक गूढ़ रहस्य है. परन्तु परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में उसकी ईश्वरीय चरित्र के पर्याप्त प्रमाण दिये हैं और हमें उसके वचन पर संदेह नहीं करना चाहिए इस लिए कि हम उसकी दूरदर्शिता के सारे रहस्यों को समझ नहीं सकते हैं.ककेप 150.3

    यदि सृजित प्राणियों के लिए परमेश्वर और उसके कामों का पूर्णत:समझना संभव होता और वे उस सीमा तक पहुँच भी जाते तो उनको सत्य की खोज करने की कोई आवश्यकता न होती,ज्ञान में कोई उन्नति न होती न मन व हृदय के विकास का कोई मौका होता. परमेश्वर फिर परम प्रधान न रहता और मनुष्य ज्ञान और योग्यता की शिखर पर पहुँच कर उन्नति करना छोड़ देता. आइए परमेश्वर का धन्य मानिए कि बात इस तरह की नहीं हैं. परमेश्वर अनन्त है; “उसी में बद्धि और ज्ञान के खजाने निहित हैं.’ अनंत काल लों मनुष्य खोज करते रहेंगे,सर्वदा सोखते रहेंगे, फिर भी उसकी बुद्धिमता भलाई और सामर्थ के खजानों का कभी अंत न होगा.ककेप 150.4

    पवित्र आत्मा को पथदर्शीन के बिना हम धर्मपुस्तक का निरंतर विपरीत अर्थ निकालते रहेंगे.बाइबल को बहुत पढ़ा तो जाता है परन्तु बिना लाभ प्राप्त किये हुये और अनेक परिस्थितियों में लाभ के बदले हानि होती है. जब परमेश्वर का वचन आदर के साथ नहीं खोला जातो न प्रार्थना के साथ, जब ध्यान और लगन परमेश्वर पर उसकी इच्छानुसार नहीं किये जाते हैं तो मन संदेह के बादलों से भर जाता है और बाइबल के अध्ययन ही के मध्य अविश्वास बलवंत होता जाता है.शत्रु,विचारों पर नियंत्रण पा लेता है और वह ऐसा अर्थ का सुझाव देता है जो शुद्ध नहीं.ककेप 150.5