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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    अध्याय 50 - मांसाहार

    परमेश्वर ने हमारे प्रथम माता-पिता को वही भोजन दिया जिसे उसने सारी जाति के लिये नियुक्त किया था.किसी जीव की हत्या करना उसको योजना के प्रतिकूल ही था.एदेन की बारी में कोई मृत्यु न हो यह योजना थी.वाटिका के वृक्षों का फल मनुष्य का भोजन था.परमेश्वर ने मनुष्य को मांस खाने की आज्ञा जल प्रलय से पहिले कभी नहीं दी थी.हर एक प्रदार्थ जिस पर मनुष्य जीवन निर्वाह कर सकता था नष्ट हो चुका था इस लिये परमेश्वर ने नूह की आवश्यकता को महसूस करते हुये आज्ञा दी कि वह उन पवित्र पशुओं का मांस जिन्हें वह किश्ती में ले गया था खा सकते हैं.परन्तु पशुओं का मांस मनुष्य के लिये अति स्वास्थ्यवर्धक आहार नहीं था.ककेप 286.1

    जल प्रलय के बाद लोग अधिकतर मांसाहारी हो गये थे.परमेश्वर ने देखा कि मनुष्य की चाल बिगड़ गई थी और उसकी यह आदत हो गई कि वह अपने को अभिमानी होके, परमेश्वर से ऊंचा समझने लगा और अपने मन की इच्छा के अनुसार चलने लगा.उसने उस चिर-वायु जाति को उनके पापमय जीवन को कम करने के लिये मांस खाने की आज्ञा दी.जल प्रलय के तुरन्त बाद मनुष्य जाति को डील डौल और आयु घटने लगी.ककेप 286.2

    एदेन में मनुष्य का भोजन चुनकर परमेश्वर ने दिखलाया कि उत्तम भोजन क्या है;और इस्राएलियों के लिये भोजन का चुनाव करने में उसने उसी पाठ को सिखलाया.उसके द्वारा उसने जगत को आशीर्वाद देना तथा सिखलाया चाहा.उसने उनको वह भोजन जुटाया जो इस मनोरथ को पूरा करने के लिये अत्यंत अनुकूल था अर्थात् मान स्वर्गीय रोटी न कि मांसाहार उनको असन्तुष्टता तथा मिस्र की माँस की हांडियों के लिये बुड़बुड़ाने ही के कारण मांस खाने की आज्ञा उन्हें दी गई और यह भी थोड़े से समय के लिये.इसके प्रयोग से हजारों लोग बीमारी और मृत्यु के शिकार हुए.फिर भी भोजन का हार्दिक स्वागत नहीं किया गया.और यह असंतोष तथा बुडबुड़ाहट का चाहे वह प्रत्यक्ष हो या गुप्त कारण बना रहा पर यह स्थायी नहीं बना.ककेप 286.3

    कनान देश में बसने पर इस्राएलियों को मांस खाने की आज्ञा दी गई थी परन्तु वह भी बड़ी प्रतिबंध के साथ जिस के कारण बुरे परिणाम कम हो गये थे.सूअर का मांस खाना मना किया गया है और उन अन्य जानवरों, पक्षियों तथा मछलियों का मांस भी वर्जित था जो अपवित्र कहे गये थे.जिन पशुओं के मांस खाने की आज्ञा मिली थी उनकी चर्बी और लोहू खाने की सख्त वर्जित किए गए.ककेप 286.4

    केवल ऐसे पशुओं का मांस खाया जा सकता था जो स्वस्थ्य अवस्था में हों.कोई पशु जो किसी जंगली जानवर से फाड़ा गया हो, जो स्वयं मर गया हो अथवा जिसकी देह से सावधानी के साथ लोहू नहीं निकाला गया हो भोजन के लिये प्रयोग में नहीं लाया जा सकता था.ककेप 287.1

    इस्राएलियों को भोजन के लिये जो ईश्वरीय भोजन नियुक्त की गई थी उससे भटक जाने में बड़ी हानि उठानी पड़ी.उन्होंने मांसाहार की इच्छा की और उसके परिणाम भी भुगते.वे परमेश्वर के आदर्श चरित्र तक नहीं पहुंचे न उसके मनोरथ को पूरा किया.परमेश्वर ने उन्हें मुंह मांगा वर तो दिया पर उनको दुबला कर दिया.’’( भजन सहिता 106:15)उन्होंने भौतिक पदार्थ को आत्मिक से बहुमूल्य समझा और वे उस पवित्र श्रेष्टता तक जो परमेश्वर चाहता था पहुँच न सके.ककेप 287.2

    मांसाहारी केवल व्यवहार किया हुआ अनाज तथा वनस्पति ही खाते है;क्योंकि पशु ही सर्वप्रथम इन पदार्थों से उस खुराक को प्राप्त करते हैं जिससे शरीर बढ़ता है.वह जीवन जो अनाज तथा सब्जी में होता है खाने वाले के शरीर में पहुंचता है.हम उसको उस जानवर के मांस खाने से प्राप्त करते हैं.कितना उत्तम है कि हम उसे सीधा उस खाद्य पदार्थ से प्राप्त करे जिसे परमेश्वर ने हमारे उपयोग के लिये जुटायाककेप 287.3

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