Loading...
Larger font
Smaller font
Copy
Print
Contents
कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
  • Results
  • Related
  • Featured
No results found for: "".
  • Weighted Relevancy
  • Content Sequence
  • Relevancy
  • Earliest First
  • Latest First

    सम्पत्ति का यथोचित बटवारा

    माता-पिता को जब मन स्वस्थ और विवेक दुरुस्त है प्रार्थना के साथ और योग्य परामर्शदाताओं की सहायता से जो जिनको सत्य का अनुभव और ईश्वरीय इच्छा का ज्ञान है अपनी सम्पति का बटवारा करना चाहिये.ककेप 78.3

    यदि उनके पास बच्चे पीड़ित हैं जो गरीबी से संघर्ष कर रहे हैं और जो रुपये-पैसे का बुद्धिमानी के साथ उपयोग कर सकते हैं तो उनका ख्याल रखना चाहिये.परन्तु यदि उनके पास अविश्वासी बालक है जिनके पास इस जगत का धन बहुतायत के साथ है पर कर रहे हैं सेवा संसार को तो वे अपने स्वामी के विरुद्व पाप कर रहे हैं जिसने उन्हें अपना भंडारी बनाया है क्योंकि उसने उनके हाथों में धन दौलत सौंपी है केवल इसी लिये कि वे उनकी सन्तान हैं. परमेश्वर के दावों का निरादर नहीं करना चाहिये.ककेप 78.4

    यह बात स्पष्टता से समझ लेनी चाहिये कि यदि माता-पिता ने वसीयत लिख दी है तो यह बात उनको जब तक वे जीवित हैं परमेश्वर के काम के लिये दान देने से नहीं रोकेगी.दान तो उनको देने ही चाहिये.उनको यही संतुष्टता होनी चाहिये जिसका प्रतिफल तो बाद में मिलेगा, कि उन्होंने अपने अतिरिक्त रुपये पैसे का जीते जी ठीक व्यवहार किया.उन्हें परमेश्वर के कार्य को आगे-आगे बढ़ाने के लिये अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिये. उनको उस रुपये पैसे को जो उनके स्वामी की ओर से उधार मिला है परमेश्वर की दाख की बारी में उपयोग करना चाहिये.ककेप 78.5

    जो लोग परमेश्वर के खजाने में दान देने से हाथ खींचते है और अपनी धन सम्पत्ति को अपने बच्चों के लिये संयम करते हैं वे अपने बालकों के आध्यात्मिक हितों को खतरे में डालते हैं. वे अपनी सम्पत्ति को, जो स्वयं उनको ठोकर खिलाने वाली है अपने बालकों की राह में रखते हैं कि वे भी ठोकर खाकर विनाश को पहुंचें, बहुत से लोग इस जीवन के मामलों में भारी भूल कर रहे हैं. वे अपने से और दूसरों से उस वरदान को जो उन्हें परमेश्वर की ओर से उधार दी गई. धन-सम्पत्ति के उचित उपयोग से प्राप्त हो सकता है रोक कर बचत दिखाते हैं और धार्मिक वृद्धि की ओर ठिंगने ही रह जाते हैं यह सब उस धन संचय के कारण से होता है जिसे वे प्रयोग नहीं कर सकते.वे अपनी जायदाद अपनी संतान को छोड़ जाते हैं और वह उनके वारिसों के लिये उनकी अपेक्षा नब्बे प्रतिशत भारी श्राप का कारण बन जाती है. उनकी संतान जो बपौती जायदाद पर आश्रय करती है अक्सर इस जीवन में सफल नहीं हो पाती और आम तौर पर आने वाले जीवन को प्राप्त करने में सर्वथा निष्फल रहती है.ककेप 78.6