Loading...
Larger font
Smaller font
Copy
Print
Contents
कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
  • Results
  • Related
  • Featured
No results found for: "".
  • Weighted Relevancy
  • Content Sequence
  • Relevancy
  • Earliest First
  • Latest First
    Larger font
    Smaller font
    Copy
    Print
    Contents

    छुटकारे के अन्वेषकों के लिये विजय

    मुझे परमेश्वर के लोगों का दृश्य दिखलाया गया तो क्या देखती हूं कि वे जोर से हिलाये गये.कुछ लोग दृढ़ विश्वास और दुखमय विलाप के साथ परमेश्वर से गिड़गिड़ा रहे थे.ककेप 344.3

    कुछ ऐसे थे जिन्होंने दु:खी होकर प्रार्थना में भाग नहीं लिया, वे उदासीन तथा बेपरवाह प्रतीत होते थे.वे अपने इर्द गिर्द के उस अंधकार का मुकाबला नहीं कर रहे थे और इससे वे एक घने बादल में घिर गये.परमेश्वर के दूतों ने इनको छोड़ और मैं ने देखा कि वे उनकी मदद को दौड़े हुए जा रहे जो दुष्ट दूतों का मुकाबला जी जान से कर रहे थे और परमेश्वर को धीरज के साथ पुकार कर स्वयं अपनी मदद कर रहे है.परन्तु स्वर्गदूतों ने उनको छोड़ दिया जो स्वंय अपनी मदद नहीं कर रहे थे और वे फिर मेरी आँखों से औझल हो गये .जब प्रार्थना करने वाले अपनी उत्साहपूर्ण पुकार में व्यस्त थे तो यीशु की ओर से प्रकाश की किरण कभी कभी आती और उनके हृदयों को प्रोत्साहित करती और चेहरों को दमकाती थी.ककेप 344.4

    मैं ने दृश्य में देखी हुई छंटनी का अर्थ पूछा, और मुझे बतलाया गया कि यह लाओदिकेया के सच्चे साक्षी की सलाह द्वारा उपस्थित की हुई खरी खरी गवाही के सब्बत से पैदा होगी.इससे ग्रहण करने वाले के हृदय पर प्रभाव पड़ेगा और स्तर ऊंचा किया जायगा और खरे सत्य का प्रचार किया जायेगा.कुछ लोग इस खरी खरी साक्षी का सहन न करेंगे.वे उसके विरुद्ध उठेंगे जिससे परमेश्वर के लोगों में बँटनी शुरु हो जाएगी.ककेप 344.5

    सच्चे साक्षी गवाही के आधे पर भी ध्यान नहीं दिया गया.जिस गम्भीर साक्षी पर मंडली का भाग्य लटका हुआ है उसका सामान्य ही रीति से आदर किया गया यद्यपि पूर्णत: तिरस्कार न ही किया गया इस साक्षी द्वारा पूर्ण पश्चाताप होना चाहिए और जो लोग इसे सच्चे मन से स्वीकार करेंगे वे उसका पालन करें और शुद्ध होंगे.ककेप 345.1

    दुत ने कहा: “सुनों ‘‘ तुरन्त मैं ने एक शब्द सुना जिसको ध्वनि बहुत से संगीत की सो बाजों भी और सब के सब मीठी,एक स्वर की राग के थे.जो संगीत मैं ने अब तक सुना था यह उन सबसे बढ़िया व उत्तम था.वह दया,करुणा तथा समुन्नत पवित्र आनंद से परिपूर्ण था.उसने मेरे सारे व्यक्तित्व में सनसनी पैदा कर दी.दृत ने कहा;’देखों’‘ !फिर मेरा ध्यान उन दलों की ओर आकर्षित किया गया जिनकी जोर के साथ छंटनी हुई थी.मुझे वे लोग भी दिखलाये गये जिन्हें मैं ने पहिले रोते हुये और आत्मा में दु:खी होकर प्रार्थना करते देखा था.उनके इर्द गिर्द के रक्षक दूतों का बल दो गुना किया गया था जो सिर से पैर तक कवच पहिने हुये थे.वे नियमानुसार सिपाहियों के दल की भांति दृढ़ता से चलते थे.उनके चेहरों पर कठोर संघर्ष के जो उन्होंने सहे थे,तथा दु:खमय संग्राम के जिन में होके वे गुजरे थे लक्षण दिखाई देते थे.तौभी उनकी शक्लें जिन पर भारी आंतरिक दु:ख के चिन्ह दिखाई देते थे अब स्वर्ग के प्रकाश व महिमा से चमकने लगीं.उनको विजय प्राप्त हो चुकी और अब उनसे अगाध कृतज्ञता तथा पवित्र आनंद की मांग की जाती है.ककेप 345.2

    इस दल की गिनती कम हो गई.उन में से कुछ तो छंटनी में गये और मार्ग में रह गये (देखो प्रका 3:15-17)बेपरवाही तथा उदासीनों ने जो उनके संग सम्मिलित नहीं हुये थे जिन्होंने विजय और त्राण की कद्र की थी कि धीरज के साथ उसके लिये दु:ख उठाया था उसे प्राप्त नहीं किया तो वे अंधकार में छोड़ दिये गये परन्तु उनकी कमी तुरन्त दूसरों से पूरी की गई जिन्होंने सत्य को ग्रहण किया था और उस श्रेणी में शामिल हुये थे फिर भी दुष्ट दूत उनके निकट इकट्टा हुये परन्तु उन पर उनका कोई वश न चला.(देखो इफिस 6:12-18)ककेप 345.3

    जो कवच पहिने हुये थे मैं ने उनको सत्य का सामर्थ्य के साथ प्रचार करते सुना और उसका असर भी हुआ.मैं ने उनको भी देखा जो बांधे गये थे;कुछ स्त्रियां उनके पतियों द्वारा बांधी गई, कुछ बालक माता-पिता द्वारा बांधे गये.सच्चे लोगों ने सत्य को उत्साह के साथ स्वीकार किया जिन्हें उसे सुनने से रोका गया था.उनसे नाते दारों का भय जाता रहा.उनके निकट तो सत्य की उच्चासीन था.सत्य उनको जीवन से अधिक प्यारा व कीमती था. वे तो सत्य के भूखे व प्यासे थे.मैं ने पूछा इतनी बड़ी तबदीली का कारण क्या था?एक दूत ने उत्तर दिया: ‘’यह परमेश्वर के सामने से जीव को ठंडा करने वाली पिछली बारिश है,यही तीसरे दूत का ऊंचा स्वर है.” ककेप 345.4

    इन चुने हुओं के संग बड़ी शक्ति थी.दूत ने कहा: “देखो!’’मेरा ध्यान दुष्टों अथवा अविश्वासियों की ओर फेरा गया.उनमें हलचल मच गई. परमेश्वर के लोगों के जोश व सामर्थ्य से वे जाग उठे और क्रोध से भर गये.चारों ओर गड़बड़ी ही दिखाई देती थी.मैं ने देखा कि उस बल से जिन में शक्ति और प्रकाश था कड़ा व्यवहार किया गया. उनके इर्द गिर्द गहरा अंधेरा छा गया फिर भी परमेश्वर के गृहीत होकर और उसी पर भरोसा करके खड़े रहे.मैं ने उनको व्याकुल देखा.फिर मैंने उनको उत्साह के साथ परमेश्वर को पुकारते सुना.दिन रात उनका चिल्लाना बन्द हुआ न हुआ.(देख लूका 18:7,8; प्रकाशित 14:14,15)ककेप 346.1

    मैं ने ये शब्द सुनेः’हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी हो यदि इससे तेरी महिमा हो तो अपने लोगों के लिये छुटकारे की राह निकाल! हमें अपने चारों ओर के अन्य जातियों से छुटकारा दे !उन्होंने हमारे लिये मृत्यु के सामान उपस्थित किये हैं परन्तु तेरी भुजा त्राण दिला सकती है.’’यही शब्द मैं स्मरण कर सकती हैं.सब के ऊपर अपनी अयोग्यता की बड़ी भावना छाई हुई थी और परमेश्वर की इच्छा की पूर्ण अधीनता प्रकट की थी.तोभी याकूब की भांति सब के सब उत्साह के साथ विनती कर रहे तथा छुटकारे के निमित युद्ध कर रहे थे.ककेप 346.2

    उनकी उत्साह पूर्ण पुकार के शुरु होने के तुरन्त ही बाद, सहानुभूति के तौर पर स्वर्गदूत उनके छुटकारे के लिये जाने को थे.परन्तु एक ऊंचे रोबीले दूत ने उनको रोक दिया.उसने कहा:“परमेश्वर की इच्छा अभी पूरी नहीं हुई है.उनको उस कटोरे में से पीना होगा.उनको वही बतिस्मा लेना होगा.”ककेप 346.3

    शीघ्र ही मैं ने परमेश्वर की आवाज सुनी जिसने स्वर्ग और पृथ्वी को हिला डाला.(देखो योएल 3:16;इब्रानियों 12:26; और प्रकाशितवाक्य 16:17)एक प्रचंड भूचाल आया.इमारतें हिलाई गईं जो चारों और गिर पड़ी.फिर मैं ने विजय की एक ऊंची सुरीली और स्पष्ट ध्वनि सुनी.मैं ने उस दल को देखा जो थोड़ी देर पहिले बड़ी संकट व बंधन में था अब उनकी बन्धुता ने पलटा खाया.एक प्रतापी प्रकाश उन पर चमका.वे उस समय कैसे सुन्दर नजर आते थे !सारी थकान और चिन्ता के चिन्ह अन्तर्धान हो गये;हर चेहरे पर स्वास्थ्य और सौंदर्य दृष्टिगोचर था. उनके शत्रु अर्थात् उनके इर्द गिर्द के मूर्तिपूजक मृतक के समान गिर पड़े.वे उस प्रकाश को सहन न कर सके जो उद्धार पाये हुये पवित्र जनों पर चमकता था.ककेप 346.4

    यह प्रकाश व तेज उनके ऊपर उस समय तक रहा जब यीशु स्वर्ग के मेघों पर आते दिखाई दिया और वह विश्वासी,परीक्षित दल एक क्षण में, पलक मारते ही महिमा से महिमा में बदल गये.कबरे खुल गई और धर्मजन अमरत्व को पहिने हुये उन में से बाहर निकल आये और पुकारने लगे:’मृत्यु और कब्र पर विजय!’’और जीवित धर्मीजनों के साथ वे अपने प्रभु से हवा में मुलाकात करने को उठाये गये जब कि जय जय के सुरीले मीठे नारे हरेक अविनाशी जिव्हा से निकलने लगे.ककेप 346.5

    Larger font
    Smaller font
    Copy
    Print
    Contents