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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    बाइबल के अध्ययन से बुद्धि बलवान होती है !

    यदि बाइबल का यथायोग्य अध्ययन किया जाय तो मनुष्यों की बुद्धि तीव्र हो जाती है.परमेश्वर के वचन में विषयों की व्याख्या की गई है, उसकी उक्तियों की मनोरंजक,सरलता वे श्रेष्ठ प्रसंग जो वह मस्तिष्क में प्रस्तुत करता है ये सब मानसिक शक्तियों का विकास करते हैं जिनका किसी और साधन द्वार विकास नहीं हो सकता.धर्मपुस्तक में विचार शक्ति के लिए असीम क्षेत्र खुल जाता है.मानवी रचित ग्रंथों पर अपना समय नष्ट करने की अपेक्षा (सस्ती व मामूली पुस्तकों का तो जिक्र ही क्या करना है) धर्मशास्त्र के उत्कृष्ट विषयों का मनन करके उसके उच्च कोटि के वाक्यलंकारों से परिचय प्राप्त करने से शिक्षार्थी की विचारधारा व भावना शुद्ध और उन्नत हो जायगी.युवकों के मस्तिष्कों के उच्चकोटि तक विकास नहीं हो पाता जब वे ज्ञान के उच्च स्त्रोत-परमेश्वर के वचन की उपेक्षा करते हैं.हमारे पास अच्छे मस्तिष्क वाले, स्थिर ख्याल वाले तथा ठोस विचार वाले मनुष्यों की कमी का कारण यह है कि परमेश्वर का भय नहीं माना जाता, न उसमें प्रेम रखा जाता, धर्म के नियमों के जीवन में यथायोग्य पालन नहीं किया जाता.ककेप 151.4

    परमेश्वर की इच्छा है कि हम अपनी मानसिक शक्तियों को बलवान करने तथा उनका उपार्जन करने के प्रत्येक साधन का उपयोग करें, यदि बाइबल के पढ़ने में अधिक समय लगाया जाता,यदि उसके सत्यों को उत्तम रीति से समझा जाता तो हम एक अति गुणवान, बुद्धिमान लोग होते.उसके पृष्ठों को ढूंढने से आत्मा को शक्ति प्राप्त होती है.ककेप 151.5

    बाइबल शिक्षा का मनुष्य के जीवन के हर पहलू से उसकी समृद्धि पर जीवित प्रभाव पड़ता है.इसी के द्वारा उन सिद्धांतों का प्रदर्शन होता है जो राष्टी की समृद्धि के कोने के सिरे के पत्थर हैं, ऐसे सिद्धांतों  जिन के साथ समाज का कल्याण संबद्ध है और जो परिवार के सरंक्षक हैं ऐसे सिद्धान्त जिनके बिना कोई मनुष्य इस जीवन में उपयोगिता, सुख तथा आदर प्राप्त नहीं कर सकता अथवा भावी अनन्त जीवन को प्राप्त करने की आशा ही कर सकता है. जीवन में कोई स्थिति ऐसी नहीं, मानव अनुभव में कोई अवस्था ऐसी नहीं जिसके लिए बाइबल की शिक्षा द्वारा जरुरी तैयारी न की जा सके.ककेप 151.6

    क्रूस पर चढ़े त्राणकर्ता,मसीह को अनन्त जीवन देने की सामर्थ्य है,इस का उपदेश लोगों में करना चाहिए.हमें उनको दिखलाना चाहिए कि जिस प्रकार नया धर्म नियम अपनी प्रदर्शित शक्ति में सुसमाचार है उसी प्रकार पुराना धर्म नियम भी प्रतिरुप व प्रतिबिम्ब में नि:संदेह सुसमाचार है.नया धर्म नियम नये धर्म को उपस्थित नहीं करता:पुराना धर्म नियम ऐसे धर्म को पेश नहीं करता जो नये के आने पर अवैध हो गया हो यथार्थ में नया नियम पुराने धर्म नियम की वृद्धि करता तथा उसको प्रदर्शित करता है. ककेप 152.1

    हाबिल मसीह पर विश्वास रखता था. वह ठीक उसी प्रकारे उसकी शक्ति द्वारा बचाया गया था जिस प्रकार पतरस और पौलुस बचाये गये थे.हनोक निस्संदेह उसी प्रकार मसीह का प्रतिनिधि था जिसे प्रकार प्रिय शिष्य यूहन्ना था और हनोक ने भी जो आदम से सातवी पीढ़ी में या उनके विषय में यह भविष्यवाणी की;कि देखों, प्रभु अपने लाखों पवित्रों के साथ आया’’(यहूदा 18:4) हनोक का संदेश और उसका स्वर्गरोहण उसके युग के लोगों के लिए विश्वसनीय प्रमाण था.ये बातें एक तर्क की जिन्हें मतुसेलह और नूह सामर्थ्य के साथ प्रयोग कर दिखला सकते थे कि धर्मी लोगों को जीते जो स्वर्गरोहण हो सकता है. वह परमेश्वर जो हनोक के संग चलता था हमारा प्रभु और त्राणकर्ता यीशु मसीह था. वह उस समय के लोगों को जीवन के मार्ग में शिक्षा देने के लिए शिक्षकों की कमी नहीं था क्योंकि नूह और हनीक मसीही थे.लैव्यवस्था की पुस्तक में सुसमाचार सिद्धान्त के रुप में दिया गया है.जैसे उस समय वैसे अब भी पूर्ण आज्ञापालन की आवश्यकता है तब यह कितना जरुरी है कि हम इस शब्द के महत्व को समझेंककेप 152.2

    प्रश्न पूछा जाता है कि कलीसिया में भक्ति के अभाव का क्या कारण है? इसका उत्तर यह है, ‘हम अपने मन को परमेश्वर के वचन से हटा देते हैं.यदि परमेश्वर का वचन आत्मा के लिए भोजन रुप खाया जाता, यदि उसके संग आदर भाव से व्यवहार किया जाता तो उतनी साक्षियों के बार-बार दिये जाने की कोई आवश्यकता न पड़ती, धर्मपुस्तक की साधारण घोषणाओं का स्वागत किया जाता और उसका पालन भी किया जाता.”ककेप 152.3